पार्टियों की करतूतें / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जेल में इस बार जो पार्टियों की करतूतों का कटु अनुभव हुआ वह कभी भूलने का नहीं। उनने भरसक कोशिश की कि जो उनमें शामिल न हों उनका जीवन नारकीय बन जाए। खासकर एक पार्टी के तथाकथित महारथियों की करनी रुलाने एवं गुस्सा लाने वाली थी। उनने कोई भी तरीका उठा न रखा लोगों को अपनी पार्टी में भर्ती करने और भर्ती न होनेवालों का जीवन कष्टमय बनाने में। धमकी और मारपीट तक उतर आए। समस्त जेल का वायुमंडल अत्यंत दूषित बन गया और जेल की अपनी कोठरी (सेल से बाहर निकलना असंभव था। मेरी तो दिनचर्या ही ऐसी थी कि मिनट-मिनट कामों में बँटे थे और दैनिक क्रियाएँ घड़ी की सुई की तरह ठीक समय होती थीं। फिर भी सचमुच ही मैं भयभीत था कि ये पार्टी के भूत न जाने क्या कर डालें और किस तरह कब पेश आएँ। फिर भी मैंने अपना यह भय किसी पर प्रकट नहीं किया। नहीं तो मामला और बेढब हो जाता।