पीड़ान्तर / आलोक कुमार सातपुते

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प्रसव के लिये स्टेचर पर जाती पत्नी का हाथ अपने हाथों में लेकर उसने कहा- ‘कल फुलके बनाते वक़्त ऊँगली जल जाने के दर्द में तुम रात भर रोती रही, और अब तो तुम दर्द के सागर में गोते लगाने जा रही हो... मुझे तो तुम्हारी बहुत चिन्ता हो रही है।’

’कल ऊंगली जलने पर हुए दर्द के लिये तो मैं मानसिक रुप से तैयार नहीं थी, जबकि आज व आगे जो दर्द होना है, उसके लिये मैं तो छुटपन से ही मानसिक रुप से तैयार हो गयी थी। दोनों पीड़ाओं में अन्तर है। जहाँ एक में दुःख की अनुभूति होती है, तो वहीं दूसरे में सुख की... आप में मेरी ज़रा भी चिन्ता न करें।’ उसकी पत्नी ने जवाब दिया।