पुरस्कार / प्रेम गुप्ता 'मानी'

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राजा ने पूरे देश में 'रामराज्य' का ऐलान करते हुए कहा कि अब से उसके राज्य में सबको समान समझा जाएगा तथा सच बोलने वाले को विशेष रूप से पुरस्कृत किया जाएगा।

राजा कि बात का असर हुआ। देश में सर्वत्र शांति कायम हो गई। सभी प्रेम से रहने लगे। सत्य का बोलबाला हो गया।

राजा बहुत ख़ुश हुआ।

एक दिन रानी ने किसी दूसरे देश की रानी को किसी उत्सव में खालिस सोने का एक अनमोल हार पहने देखा। वह भी वैसे ही हार के लिए मचल पड़ी।

राजा ने फिर एक बार ऐलान करवाया कि जो कोई भी वैसा ही हार बना कर लाएगा उसे भरपूर ईनाम दिया जाएगा।

कुछ दिनो बाद एक सुनार ठीक वैसा ही दमकता हार लेकर राजा के सम्मुख उपस्थित हुआ। रानी ने हार देखा और बहुत खुश हुई। सुनार को ढेर सारा इनाम देकर विदा किया गया।

अभी हार पहने एक हफ़्ता भी न बीता था कि सोने की पारखी एक दासी ने रानी के कान भर दिए कि सोने का जो हार वह पहने है, वह शुद्ध स्वर्ण का नहीं है। बस फिर क्या था, स्वर्णकार को बुलवाया गया।

सत्य बोलने पर अभयदान तो था ही, अतः सुनार ने पुरस्कार पाने की आशा में सत्य बोल दिया कि हार पूर्ण शुद्ध स्वर्ण का नहीं, बल्कि उसमे सुंदरता लाने के लिए तांबे की मिलावट की गई थी। चूँकि हार लेते वक्त शुद्धता के बारे में उससे नहीं पूछा गया था इसी से उसने भी कुछ नहीं बताया था।

राजा थोडी देर गंभीरता से चहलकदमी करता रहा फिर उसने सैनिकों को आदेश दिया कि उस स्वर्णकार को यथोचित पुरस्कार दिया जाए।

दूसरे दिन सुनार को राजा से धोखाधड़ी के ज़ुर्म में फाँसी पर लटका दिया गया।