पुराने पाप / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुलिस विभाग से रिटायर दीवान जी बेहद चिन्ता में निमग्न बरामदे में बैठे थे। दान-दहेज की मांग पर अपनी एकलौती बेटी की शादी, सरकारी नौकरी पाए एक लड़के से करने के बाद उनकी बिलकुल कमर टूट चुकी थी, ऊपर से उनके दो जवान बेकार लड़के एक अदद नौकरी पाने के लिए मारे-मारे घूमते हुए, उनकी छाती पर मूंग दल रहे थे। उनकी एक मामूली पेंशन पूरे घर के गुजारे का एक मात्र ज़रिया थी। तमाम खर्चे उनके सिर पर रोज़ तांडव करते थे। जब आमदनी कम हो, ख़र्चा अधिक हो, तो उस घर में प्रतिदिन ठक-ठक और आपसी टेन्शन आम बात हो जाती है।

आज बेटों के काम धंधों को लेकर उनकी पत्नी ने उन्हें कुछ ज़्यादा ही सुना दिया, इसलिए दीवान जी और दिनों की अपेक्षा आज कुछ ज़्यादा ही गमगीन दिख रहे थे। तभी उनका बड़ा बेटा बेहद थका-हारा घर लौटा, पिता के सामने पड़ी कुर्सी पर निढाल हो, लंबी उबासी लेकर बोला-जिन्दगी बिलकुल नरक बन चुकी है, पता नहीं कब नौकरी मिलेगी। पता नहीं किस जन्म में किए गये पाप का बदला ईश्वर हमसे ले रहा है। तभी दीवान जी के दिमाग़ में एकाएक वह घटना किसी पिक्चर की सीन की तरह उभर आई। आज से बीस साल पहले एक महामारी के लाकडाउन में सड़क पर जाते एक रिक्शे वाले को, जब उन्होंने रोक लिया था, तब उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा था, ' साहब जी-घर में खाने को एक दाना नहीं है। मेरा भाई बीमार चल रहा है। चार पैसे कमा लूंगा, तो कुछ रूखी-सूखी और कुछ दवा-दारू का जुगाड़ हो जायेगा। साले जब सरकार ने बंदी करा रखी है, तब क्यों चले आए मरने। उस बूढ़े रिक्शे वाले पर दो-तीन लाठियाँ जमाते, उसके टायर पंचर करने लगे, तब वह रोते हुए बोला-हुजूर! माई बाप बड़ी दूर से आया हूँ। टायर पंचर कर दोगे, तो अपने गाँव कैसे वापस जा पाऊंगा, पर वे न माने उसके रिक्शे के तीनों टायर पंचर कर दिए। तब वह बूढ़ा दिल में आह भरकर सजल नेत्रों से बोला था-जाओ दीवान जी तुमने एक गरीब का दिल दुखाया है, एक गरीब की यही बद्दुआ है, ईश्वर तुम्हारी सात पुस्तो तक कभी न सुखी रखे... उस बूढ़े की आज फिर वह बात याद हो आई, तो अंदर तक सिहर गये। अब अपने दिल को तसल्ली देते हुए बेटे को समझाते हुए बोले-बेटा कर्म करना हमारा फ़र्ज़ है। फल पाना हमारे हाथ में नहीं। कभी-कभी हम लोगाें से जाने-अनजाने में कुछ पाप हो ही जाते हैं, जिससे हमें जीवन में दुःख भोगना पड़ता है, शायद हमें वही दुःख भोगना पड़ रहा है। यह कहते-कहते दीवान जी शून्य में खो गये और उनकी आंखों में नमी उभर आई। तब उनका बेटा उठा और वास-बेसिन की ओर मुंह-हाथ धोने के लिए बढ़ते हुए सोच रहा था, पापा पता नहीं किस पाप की बात कह रहे। मेरी जानकारी में, तो मैंने और उन्होंने आज तक कोई पाप नहीं किया।