पुलिस का पेट / प्रमोद यादव

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पुलिस के (पापी) पेट पर (बढे हुए पेट पर) जब-तब जनता-जनार्दन की उंगलिया उठती रही है.वैसे सबका अपना-अपना पेट है और अपना-अपना प्राब्लम.यह सर्वथा सबका निजी पेट और निजी प्राब्लम है.पर पुलिसवालों का पेट (तोंद) केवल पुलिस महकमे या गृह-मंत्रालय का ही नहीं अपितु पुरे देश का प्राब्लम है. पिछले दिनों देश के गृहमंत्री ने पुलिस के बढते पेट (तोंद) और बढते निकम्मेपन पर काफी रोष जताया और कहा कि तोंदवाले पुलिस उन्हें सख्त नापसंद है.उनका कहना है कि पुलिसवालों का सीना बाहर और पेट अंदर रहे तो ज्यादा अच्छा (इससे कभी उन पर रिश्वत खाने का आरोप नहीं लगेगा) उन्हें ‘ सिंघम ‘, ‘ दबंग ‘ या ‘ रावड़ी राठोर ‘ के हीरो सलमान, देवगन, अ क्ष य जैसे चुस्त, चुलबुल पर्सनाल्टी वाले (बाडीवाले) पुलिस पसंद है. वे पुलिसवालों को हट्टा-कट्टा और जवान देखना चाहते हैं.उन्हें रनिंग प्रेक्टिस बढाने और जिम जाने की सलाह दे रहें हैं.उसके बाद भी किसी का पेट बाहर का बाहर ही रह जाए तो उसे महकमे से बाहर का रास्ता दिखाया जाए (ऐसा उन्होंने मन ही मन बुदबुदाया )

गृहमंत्री के इस प्रवचन से पूरे महकमे में सन्नाटा पसर गया.

पेटवाले पुलिसकर्मी-अधिकारी के पेट पर पलटवार-सा हो गया. उनका पेट खराब हो गया. वे हैरान कि इसी महकमे में सब-इन्स्पेक्टर से मंत्री बने महोदय उनसे किस बात का बदला ले रहें?. अपने ही भाई-बंधुओं पर क्यों ऐसा सितम ढा रहें हैं ? पुलिस के बढते पेट का रहस्य क्या उन्हें नहीं मालूम? माना कि समस्या गंभीर है पर नक्सली जैसा भी नहीं. गृहमंत्रीजी नक्सली- समस्या सुधार लें तो निश्चित ही हम अपना पेट भी सुधार लेंगे.

खैर,पुलिस-प्रशासन इन दिनों तोंदवाले पुलिसकर्मी-अधिकारी के इन- काउंटर में बीजी है...उनके पेट में कसावट लाने, पेट अंदर करने के कवायद में व्यस्त है.तोंद को पुनः पेट में कन्वर्ट करने के विविध वर्कशाप चल रहे हैं. पी.टी., कसरत, दौड़, जिम में झोंके जा रहें हैं तोंदवाले. पर पेट है कि ‘दिल है कि मानता नहीं’ की तर्ज पर मानता ही नहीं, अंदर जा ही नहीं रहा अलबत्ता जान जरुर बाहर निकली जा रही है.जिम इन्हें जान निकालने का कारखाना-सा प्रतीत होता है. एक बड़े पुलिस आफिसर मेरे मित्र हैं जो ‘आपरेशन तोंद टू पेट’ वर्कशाप चलाते हैं. सिपाहियों को लेक्चर देने के लिए मुझसे ‘पेट’ पर एक शार्टनोट माँगा, पेट के विषय में प्राथमिक जानकारी चाही. फ़ुटबाल जैसे बड़े पेट पर अंगूर के दाने जैसा छोटा सा लेख कुछ यूँ बन पड़ा है —

पेट—मानव शरीर के मध्य में स्थित, शरीर का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण, और सबसे बड़ा (भू) - भाग (भू फॉर भूक्कड़) - चीन जैसा (चीनी सामान की तरह कभी भी बिगड भी जाता है). शरीर के इसी एकमात्र अंग को ‘पापी’ कहा जाता है.’पापी पेट का सवाल है’ ‘पापी पेट के लिए ही सब जीते हैं’ जैसे मुहावरों से स्पष्ट है कि पेट पापी होता है. कभी नहीं सुना-पढ़ा कि दशरथ-पुत्र लक्षमन ने सूर्पनखा के ‘पापी नाक’ को काट दिया या किसी प्रेमी ने अपनी प्रेयसी के ‘पापी जुड़े’ में गुलाब टाँक दिया.

पेट—चार तरह का होता है-(अ) खाली पेट (ब) भरा पेट (स) सामान्य पेट और (ड) असामान्य पेट.

खाली पेट- हमेशा पिचका रहता है.ऐसे पेट वालों को ‘गरीबनवाज’ कहते हैं.

भरा पेट- हमेशा गुब्बारे की तरह तना रहता है.इन्हें बेहद सुखी माना जाता है.इनकी आँखों में हर वक्त एक मस्ती सी छाई रहती है

सामान्य पेट- औसत पेट को सामान्य पेट कहते हैं.यह आम आदमी का पेट होता है.जो न कभी फूलता है न कभी पिचकता है.थोड़े से उंच-नीच में इनका हाजमा बिगड़ता है.पूरी जिंदगी का आधा समय ये पैखाने में(सोचते-विचारते) गुजारते हैं.सही मायनों में यही पेट ‘पापी पेट’ होता है.

असामान्य पेट- पेट जब द्विगुणित - त्रिगुणित हो जाए तो उसे असामान्य पेट या तोंद कहते हैं.मुफ्त की मलाई खाने, रिश्वत खाने से यह होता है. ऐसे पेट वाले या तो सेठ होते हैं या फिर पुलिस वाले. दोनों ही बड़े आराम-तलब वाले होते हैं.

आदमी का पेट- काफी दमदार होता है. सब कुछ पचा लेता है.

औरत का पेट- बहुत ही कमजोर.कुछ भी नहीं पचता.

औरत- पेट से हो तो उसे ‘गर्भवती’ कहते हैं.

आदमी- पेट से हो तो उसे सेठ या पुलिस कहते हैं.

पेट पापी जरुर है फिर भी ‘पेट में लात मारना’ सबसे गंभीर अपराध माना गया है कूल्हे पे मारिये, पीठ पे मारिये पर किसी के पेट में लात कभी न मारें अन्यथा सीधे नर्क के पात्र बनेंगे.

शरीर के टापवाले हिस्से में मुंह होता है और मुंह के भीतर होते हैं बत्तीस दांत पर कहते हैं कुछ लोगों के पेट में भी दांत होते हैं. इसे माइक्रोस्कोप या एक्सरे से भी नहीं देखा जा सकता.यह केवल मन की आँखों से देखा जाता है और इसे कुछ खास एक्सपर्ट लोग ही देख पाते हैं. पेट में दांत वालों को काफी ‘डेंजरस’ माना जाता है.इनसे बचकर रहने में ही भलाई है.

‘पेट पापी है फिर भी पूजा जाता है. पेट-पूजा न करें तो पेट तो ढप्प होगा ही ह्रदय के भी ठप्प होने की पूरी गारंटी है.

हर पेट की अपनी एक विशेषता होती है. कोई शाकाहारी तो कोई मांसाहारी और कोई-कोई पेट दोनों ‘हारी’– बारी-बारी लेकिन सबमें जो एक समानता होती है, वो है- ‘हर पेट में चूहा कूदता है’ भूख लगने पर सब पेट में चूहा कूदता है. एक शाकाहारी के पेट में चूहा कूदे, सुनने में ही अटपटा लगता है. न मालुम किसने ये मुहावरा बनाया. बिलकुल गलत मुहावरा है यह. अगर कूदाना ही था तो शाकाहारी के पेट में मटर-पनीर ही कूदा देता. गरीब भारतियों के पेट में चूहे कूदते हैं तो सोचता हूँ अंग्रेजों के पेट में क्या कूदते होंगे- ड्रेगन या डायनोसार?

अंत में, पेट के विषय में ‘ जान है तो जहान है ‘ के तर्ज पर यही कहा जा सकता है कि पुलिस है तो पेट(अनिवार्य) है.

इस शार्टनोट को पढकर आपके पेट में बल पड़े या पेट फूले तो सूचित करें.