पूछेरी / मनोहर चमोली 'मनु'

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“मेरी जात क्या है? मेरा ननिहाल कहां है?”पूछेरी ने पण्डित जी से पूछा।

पण्डित जी ने लंबी सांस ली। आंखें बंद करते हुए जवाब दिया-”मेरी पोथी में तेरा कोई हिसाब-किताब नहीं है। मैं क्या कोई पण्डा भी तेरे सवालों का जवाब नहीं दे सकता।”

“लेकिन क्यों?” पूछेरी ने फिर पूछा।

“वही तो। तभी तो तेरा नाम पूछेरी है। तू सवाल बहुत करती है। अरी। अब जा। तूने मंदिर साफ कर दिया है न? दोपहर को आना और अपने लिए जी भर कर फल-फरोट ले जाना। अब जा। मुझे संध्या-वंदन करने दे।” पण्डित जी ने कहा।

पण्डित जी उठे और जानबूझकर पूछेरी की ओर पीठ कर ली ताकि वो वहां से चली जाए। ऐसा ही हुआ। काफी देर तक पण्डित जी को घूरने के बाद पूछेरी वहां से चली गई।

पूछेरी गरीब घर की लड़की है। उसके पैदा होते हुए ही उसकी मां मर गई। पिता काम की तलाश में शहर गया था। फिर कभी गांव नहीं लौटा। दाई ने पूछेरी को कूड़ेदान में फेंक दिया। एक चौकीदार पूछेरी को उठा लाया। उसे दो बरस तक पाला-पोसा। चौकीदार का परिवार बड़ा था। लालन-पालन में उसे दिक्कत हुई तो उसने निराश होकर पूछेरी को छोड़ दिया। दो बरस की पूछेरी क्या करती। यहां-वहां घूमती रहती। घर-घर जाकर रोने लगती। दरवाजे पर जा खड़ी होती। कोई उसे भगा देता तो कोई उस पर दया कर देता। उसे खाना खिला देता। कोई उसे अपने आंगन में सो जाने देता। कोई न कोई उसकी मदद कर ही देता।

समय बीत रहा था। पूछेरी कब तक छोटी-सी बच्ची रहती। पूछेरी बड़ी हो गई। गांव में इधर-उधर भटकती रहती। हर किसी से पूछती-”मेरा नाम पूछेरी क्यों रखा है?”

हर कोई एक ही जवाब देता-”तू सवाल बहुत करती है न। कुछ न कुछ पूछती रहती है। तभी तेरा नाम पूछेरी पड़ गया।”

पूछेरी पढ़-लिख नहीं सकी। कुछ सीख भी नहीं पाई। उसे एक ही काम आता। घास काटना। वह जंगल जाती। घास काटती। घास के पुले बनाती। गठरी बांधती। गांव भर का चक्कर लगाती। कोई न कोई उससे घास का गट्ठर खरीद ही लेता। इस तरह उसका जीवन बसर हो रहा था।

पंचायत के चुनाव हुए। नया पंचायती राज आ गया था। महिलाएं भी सरपंच के लिए खड़ी हो रही थीं। पूछेरी के गांव में सरोजा भी प्रधान पद के लिए खड़ी हुई। पूछेरी ने सरोजा का चुनाव प्रचार जम कर किया था। खूब मेहनत की। सरोजा को जिताने के लिए पूछेरी घर-घर घूमी थी। सरोजा के पक्ष में वोट करने के लिए उसने हर किसी से मिन्नतें की थी। हाथ जोड़े थे। सरोजा प्रधान बनी। सरोजा के विजयी जुलूस में पूछेरी ने सबसे आगे चल कर जमकर नारे भी लगाए थे।

एक दिन की बात है। गांव में पंचायत की बैठक चल रही थी। पूछेरी भी घूमते-घामते वहां आ गई। सरोजा ने उसे बुलाया। कहा-”मैं इस गांव की प्रधान हूं। तूने मेरे लिए काम किया था। बता मैं तेरे लिए क्या कर सकती हूं?”

पूछेरी कुछ न बोल पाई। वह चुप ही रही। उप प्रधान बोले-”पूछेरी। मांग ले। कुछ भी मांग ले। ऐसा मौका दोबारा न आएगा।”

पंचायत सदस्य रेहाना मुस्कराते हुए बोली-”पूछेरी और कुछ नहीं तो अपने लिए दूल्हा ही मांग ले।”

सब हंस पड़े। पूछेरी की आंखों में आंसू आ गए। वह सुबकती हुई चली गई। पूछेरी सोच में पड़ गई। खुद से बोली-”पूछेरी तेरा कोई नहीं है। सब तेरा मजाक बनाते हैं। तुझ पर दया दिखाते हैं। तूझे भीख देना चाहते हैं। कुछ करके दिखा। कुछ बन के दिखा। ऐसा कुछ काम कर कि गांव वाले तेरी वाह-वाह करें।”

पूछेरी ने ठान लिया। वह कुछ कर के दिखाएगी। गांव में ही रहेगी। गांव के लिए बड़ा काम करेगी। ताकि कोई उस पर कभी न हंसंे

पूछेरी रोजाना की तरह अपने काम में व्यस्त हो गई। वह दिन भर घास काटती। उसे बेच कर अपना पेट पालती। गांव के किनारे नदी थी। नदी से लगा हुआ घना जंगल था। गांव वाले जंगल से लकड़ी लाते। चारा-पत्ती लाते। माहिलाएं झुण्ड बनाकर जंगल जाती और अपने पशुओं के लिए घास काट कर लाती।

एक दिन की बात है। कुछ महिलाएं जंगल गई हुई थीं। वे घास काट रही थीं। पूछेरी भी घास काट रही थी। तभी वहां बाघ आ गया। बाघ ने एक महिला पर हमला बोल दिया। महिलाएं शोर मचाने लगी। पूछेरी दौड़कर आई। उसके हाथ में दरांती थी। उसने दराती से बाघ पर ताबड़-तोड़ वार किए। बाघ बुरी तरह से जख्मी हो गया। बाघ ने महिला को छोड़ दिया और दुम दबा कर बाघ गया। दूसरी सभी महिलाएं मारे डर के भाग गईं थीं। पूछेरी ने घायल महिला को पीठ पर लादा और गांव लौट आई।

बाघ के हमले की खबर आग की तरह फैल गई। लोग लाठी-डण्डे लेकर जंगल की ओर दौड़े। जंगल से लौट रही पूछेरी को देखकर सब दंग रह गए। सबने पूछेरी को शाबासी दी। पूछेरी मन ही मन मुस्कराई।

घायल बाघ आदमखोर हो गया था। अब वह रात को दबे पांव आता। गांव में घुस कर उसने पहले कुत्तों को अपना निशाना बनाया। फिर वह भेड़-बकरियों को अपना निशाना बनाने लगा। आवारा पशुओं को एक के बाद एक कर उसने खत्म कर डाला।

गांव में बाघ की दहशत फैल गई। अंधेरा होते ही बाघ गांव में घुस आता। अब तो आए दिन बाघ के हमले की घटनाएं आम होने लगीं।

गर्मियों के दिन थे। कुछ लोग आंगन में न चाहते हुए भी सोने लगते। एक रात शोर मचा। लोग चिल्लाए-”मारो! मरो! बाघ!”

बाघ को कौन पकड़ता। बाघ एक दिन फिर आया। रेहाना का बेटा आंगन में ही सो रहा था। बाघ ने हमला बोल दिया। सबने शोर मचाया। बाघ भाग गया। लेकिन रेहाना का बेटा बच नहीं पाया।

सारा गांव बाघ के आतंक से परेशान था। पंचायत की बैठक बुलाई गई। कोई कुछ कहता तो कोई कुछ सुझाव देता। पूछेरी भी बैठक में थी। वह बोली-”बाघ से मैं निपटूंगी।”

सब हंस पड़े। सरोजा प्रधान ने कहा-”पूछेरी। बाघ आदमखोर हो गया है। जंगलात की टीम तक उसे नहीं पकड़ पा रही है। दो-दो शिकारी मचान बनाकर उसे मारने की फिराक में हैं। वह बहुत चालाक है। दबे पांव आता है। बिजली की तरह चमकता है। हवा से भी तेज दौड़कर भाग जाता है। बाघ से निपटना हंसी-खेल नहीं है।”

हमेशा की तरह पूछेरी चुप ही रही। लेकिन उसने मन ही मन में ठान लिया था कि वह कुछ तो करेगी। पूछेरी अपने आप से बोली-”सुन पूछेरी। गांव को बाघ के आतंक से बचा। चाहे कुछ भी हो।”

पूछेरी दरांती की धार पैनी रखती। अकेले जंगल जाती। बाघ को खोजती। घास काट कर लाती। रात में चुपचाप अकेले गांव के दो-तीन चक्कर लगाती। पर उसे कहीं भी बाघ नहीं दिखाई दिया।

एक दिन की बात है। चांदनी रात थी। गांव वाले सो चुके थे। पूछेरी स्कूल के आंगन में सो रही थी। अचानक कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे। तभी गांव में शोर मचने लगा। सुखराम ने चिल्लाते हुए आवाज लगाई-”कोई है। बचाओ। बाघ ने मेरा पोता उठा लिया है।”

पूछेरी ने भी सुना। उसने झट से दरांती उठा ली। बाघ बच्चे को मुंह में दबाए भाग रहा था। पूछेरी डट कर बाघ के सामने खड़ी हो गई। इससे पहले बाघ कुछ समझ पाता। पूछेरी ने बाघ की कमर पर दरांती से तेज चोट की। बाघ गुर्राया। उसके जबड़े से बच्चा नीचे घास पर छूट गया। बाघ जोर से दहाड़ा। पूछेरी ने दरांती उसके जबड़े में फंसा दी। बाघ हड़बड़ा गया। पूछेरी ने दोनों हाथ से बाघ की गरदन दबोच ली। पूछेरी ने बाघ के पेट पर जोर से लात दे मारी। दोनों जमीन पर लोट-पोट हो रहे थे। पूछेरी ने दूसरे ही क्षण बाघ का कान काट डाला। बाघ सिवाए फूॅ-फॅू के कुछ नहीं कर पा रहा था। सारा गांव जमा हो गया। सबने बाघ को घेर लिया। किसी को कुछ सूझ ही नहीं रहा था।

पूछेरी ने झट से अपनी चुनरी ली। चुनरी बाघ के पैरों में उलझ गई। तभी सुखराम ने बाघ के सर पर लोहे की छड़ दे मारी। बाघ एक ही वार से ढेर हो गया। पूछेरी ने बच्चे को गोद में ले लिया। सरोजा प्रधान भी आ गई। सबने पूछेरी के साहस का आंखों देखा हाल सुनाया।

सरोजा ने पूछेरी को गले लगा लिया। उसके सिर पर हाथ रखा। सरोजा ने कहा-”पूछेरी। तू मेरी बच्ची-जैसी है। आज से तू मेरे साथ ही रहेगी।”

सुखराम की आवाज भर्रा गई-”नहीं प्रधान जी। आज से ये मेरे साथ रहेगी। आज ये न होती तो मेरा पोता नहीं बच पाता।”

गांव वाले बोले-”सुखराम जी। हम सभी से गलती हुई है। पूछेरी को हम कभी समझ ही नहीं पाए। पूछेरी हम सभी की बेटी है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि इसका ख्याल रखें। यह इस गांव की बेटी है।”

पूछेरी की आंखे भर आईं। वह खुश थी। उसने अपने आप से कहा-”यह गांव मेरा है। मैं अकेली नहीं हूं। सब मुझे प्यार करते हैं। अब और क्या चाहिए मुझे।”