पूर्वोत्तर भारत का लोकजीवन और सांस्कृतिक परिदृश्य / वीरेन्द्र परमार

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भारत का पूर्वोत्तवर क्षेत्र बांग्ला्देश, भूटान, चीन, म्यांमार और तिब्बत- पांच देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अवस्थितत है। असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किवम- इन आठ राज्योंर का समूह पूर्वोत्त र भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सामरिक दृष्टिि से अत्यंमत महत्त्वरपूर्ण है। देश के कुल भौगलिक क्षेत्र का 7.9 प्रतिशत भाग पूर्वोत्तषर क्षेत्र के आठ राज्यों में समाविष्टक है। कुल क्षेत्रफल का 52 प्रतिशत भूभाग वनाच्छा्दित है। इस क्षेत्र में 400 समुदायों के लोग रहते हैं। इस क्षेत्र में लगभग 220 भाषाएं बोली जाती हैं। संस्कृ ति, भाषा, परंपरा, रहन-सहन, पर्व-त्योएहार आदि की दृष्टिक से यह क्षेत्र इतना वैविध्यंपूर्ण है कि इस क्षेत्र को भारत की सांस्कृलतिक प्रयोगशाला कहना अतिशयोक्तिपपूर्ण नहीं होगा। इस क्षेत्र में आदिवासियों का घनत्वत देश में सर्वाधिक है। सैकड़ों आदिवासी समूह और उनकी उपजातियां, असंख्यय भाषाएं व बोलियां, भिन्नै–भिन्न प्रकार के रहन-सहन, खान-पान और परिधान, अपने-अपने ईश्ववरीय प्रतीक, आध्यादत्मिअकता की अलग-अलग संकल्पहनाएं इत्यारदि के कारण यह क्षेत्र अपनी विशिष्टव पहचान रखता है। इस क्षेत्र में सर्वाधिक वन व वन्या प्राणी हैं। वनस्पततियों, पुष्पोंा तथा औषधीय पेड़-पौधों के आधिक्यग के कारण यह क्षेत्र वनस्परति-विज्ञानियों एवं पुष्पं-विज्ञानियों के लिए स्वधर्ग कहलाता है। पर्वतमालाएं, हरित घाटियां और सदाबहार वन इस क्षेत्र के नैसर्गिक सौंदर्य में अभिवृद्धि करते हैं। जैव-विविधता, सांस्कृहतिक कौमार्य, सामुहिकता-बोध, प्रकृति प्रेम, अपनी परंपरा के प्रति सम्मातन भाव पूर्वोत्तरर भारत की अद्धितीय विशेषताएं हैं। अनेक उच्छृं खल नदियों, जल- प्रपातों, झरनों और अन्या जल स्रोतों से अभिसिंचित पूर्वोत्तअर की भूमि लोक साहित्ये की दृष्टिस से भी अत्यंात उर्वर है।

असमिया साहित्यत, संस्कृ ति, समाज व आध्याेत्मि क जीवन में युगांतरकारी महापुरुष श्रीमंत शंकर देव का अवदान अविस्मरणीय है। उन्होंहने पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक मौन अहिंसक क्रांति का सूत्रपात किया। उनके महान कार्यों ने इस क्षेत्र में सामाजिक सांस्कृततिक एकता की भावना को सुदृढ़ किया। उन्होंेने रामायण और भगवद्गीता का असमिया भाषा में अनुवाद किया। पूर्वोत्त र क्षेत्र में वैष्णमव धर्म के प्रसार के लिए आचार्य शंकर देव ने बरगीत, नृत्यद–नाटिका (अंकिया नाट) , भाओना आदि की रचना की। उन्होंंने गांवों में नामघर स्था पित कर पूर्वोत्तयर क्षेत्र के निवासियों को भाइचारे, सामाजिक सद्भाव और एकता का संदेश दिया। असमिया असम की प्रमुख भाषा है। यहाँ बांग्ला और हिन्दी भी बोली जाती है। इनके अतिरिक्तस राज्य की अन्यय भाषाएं हैं-बोड़ो, कार्बी, मिसिंग, राभा, मीरी आदि। त्रिपुरा नाम के संबंध में विद्वानों में मत भिन्नहता है। इसकी उत्पीत्ति के संबंध में अनेक मिथक और आख्या न प्रचलित हैं। कहा जाता है कि राधाकिशोरपुर की देवी त्रिपुर सुंदरी के नाम पर त्रिपुरा का नामकरण हुआ। एक अन्य मत है कि तीन नगरों की भूमि होने के कारण त्रिपुरा नाम ख्याात हुआ। विद्वानों के एक वर्ग की मान्य ता है कि मिथकीय सम्राट त्रिपुर का राज्य‍ होने के कारण इसे त्रिपुरा का अभिधान दिया गया। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि दो जनजातीय शब्द तुई और प्रा के संयोग से यह नाम प्रकाश में आया जिसका शाब्दिरक अर्थ है भूमि और जल का मिलन स्थुल। त्रिपुरा एक छोटा पर्वतीय प्रदेश है। लगभग 18 आदिवासी समूह त्रिपुरा के समाज को वैविध्य पूर्ण बनाते हैं जिनमें निम्न लिखित प्रमुख हैं- त्रिपुरी, रियड; नोआतिया, जमातिया, चकमा, हालाम, मग, कुकी, गारो, लुशाई इत्याोदि। इस प्रदेश के पास उन्नत सांस्कृ तिक विरासत, समृद्ध परंपरा, लोक उत्सिव और लोकरंगों का अद्धितीय भंडार है। बंगला और काकबराक इस प्रदेश की प्रमुख भाषाएं है।

नागा समाज अनेक आदिवासी समूहों एवं उपजातियों में विभक्तल है। नागालैंड की प्रमुख जनजातियां हैं-चाकेसाड; अंगामी, जेलियाड; आओ, सड।तम, यिमचुंगर, चाड; सेमा, लोथा, खेमुंगन, रेंगमा, कोन्यीक इत्याजदि। नागालैंड की संपूर्ण आबादी जनजातीय है। प्रत्येैक समुदाय वेश-भूषा, भाषा-बोली, रीति-रिवाज और जीवन शैली की दृष्टिब से पृथक है लेकिन इतनी भिन्नगता के बावजूद नागा समाज में परस्पीर भाईचारा और एकता की सुदृढ़ भावना है तथा वे एक-दूसरे की जीवन-शैली का सम्माीन करते हैं। नागालैंड में लगभग 30 भाषाएं बोली जाती हैं। ये भाषाएं एक-दूसरे से भिन्ना हैं। एक गांव की भाषा पड़ोसी गांव के लिए अबूझ है। इन सभी भाषाओं की वाचिक परंपरा में असंख्यन लोकगीत, लोककथाएं, मिथक, कहावतें आदि उपलब्धष हैं। मणिपुर अपने शाब्दिमक अर्थ के अनुरूप वास्त व में मणि की भूमि है। इसे देवताओं की रंगशाला कहा जाता है। सदाबहार वन, पर्वत, झील, जलप्रपात आदि इसके नैसर्गिक सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं। अत: इस प्रदेश को भारत का मणिमुकुट कहना अतिशयोक्तिौपूर्ण नहीं है। यहाँ की लगभग दो-तिहाई भूमि वनाच्छाकदित है। प्रदेश के पास गौरवशाली अतीत, समृद्ध विरासत और स्वभर्णिम संस्कृरति है। मणिपुर की प्रमुख भाषा मैतेई है जिसे मणिपुरी भी कहा जाता है। मैतेई भाषा की अपनी लिपि है-मीतेई-मएक। इसके अतिरिक्त राज्या में 29 बोलियां हैं जिनमें प्रमुख हैं- तड।खुल, भार, पाइते, लुसाई, थडोऊ (कुकी) , माओ आदि। मिजो आदिवासियों की भूमि मिजोरम एक छोटा पर्वतीय प्रदेश है। मिजो का शाब्दिाक अर्थ पर्वतवासी है। यह शब्दछ मि और जो के संयोग से बना है। मि का अर्थ है लोग तथा जो का अर्थ है पर्वत। मिजोरम में मुख्य त: निम्नेलिखित समुदायों के लोग निवास करते है - राल्ते्, पाइते, दुलियन, पोई, सुक्तेम, पंखुप, जहाव, फलाई, मोलबेम, ताउते, लखेर, दलाड; खुड।लई, इत्या दि। मिजो इस प्रदेश की मुख्यम भाषा है। यहाँ की अधिकांश भूमि पर्वत-घाटियों और वनों से आच्छा।दित है। यहाँ खासी, जयंतिया, गारो तीन प्रमुख आदिवासी समूह रहते हैं। खासी, जयंतिया, गारो और अंग्रेजी प्रदेश की प्रमुख भाषाएं हैं। तिब्ब त, नेपाल, भूटान की अंतर्राष्ट्रीाय सीमा पर अवस्थिरत सिक्किमम एक लघु पर्वतीय प्रदेश है। यह सम्राटों, वीर योद्धाओं और कथा-कहानियों की भूमि के रूप में विख्याभत है। पर्वतों से आच्छाटदित इस प्रदेश में वनस्पंतियों एवं पुष्पोंी की असंख्यि प्रजातियां विद्यमान हैं। सिक्किसम की पुष्पा च्छा्दित हवा सुगंध से सराबोर रहती है। जैव विविधता, पेड़-पौधों की असंख्य प्रजातियां एवं वन्य्-जीवों के कारण इस प्रदेश को वनस्प तिविज्ञानियों-पुष्प विज्ञानियों का स्व र्ग कहा जाता है। राज्यन में मुख्योत: लेपचा, भूटिया, नेपाली तथा लिंबू समुदाय के लोग रहते हैं। अरुणाचल प्रदेश अपने नैसर्गिक सौंदर्य, बहुरंगी संस्कृति, वनाच्छादित पर्वतमालाओं, बहुजातीय समाज, नयनाभिराम वन्य- प्राणियों के कारण देश में विशिष्ट स्थान रखता है I अरुणाचल की सुरम्य भूमि पर भगवान भास्कर सर्वप्रथम अपनी रश्मि विकीर्ण करते हैं Iइसलिए इसे उगते हुए सूर्य की भूमि कहा जाता है I यहाँ पच्चीस प्रमुख आदिवासी समूह निवास करते हैं I इन आदिवासियों के रीति- रिवाज, संस्कृति, परंपरा, भाषा, पर्व- उत्सव में पर्याप्त भिन्नता है I इनकी भाषाओं में तो इतनी भिन्नता है कि एक समुदाय की भाषा दूसरे समुदायों के लिए असंप्रेषणीय है I डॉ ग्रियर्सन ने अरुणाचल की भाषाओं को तिब्बती- बर्मी परिवार का उत्तरी असमिया वर्ग माना है I अरुणाचल की प्रमुख जनजातियाँ हैं- आदी, न्यिशि, आपातानी, मीजी, नोक्ते, वांचो, शेरदुक्पेन, तांग्सा, तागिन, हिल मीरी, मोंपा, सिंहफो, खाम्ती, मिश्मी, आका, खंबा, मिसिंग, देवरी इत्यादि I

सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वोत्तर भारत अत्यंत समृद्ध है I प्राचीन ग्रंथों में इस क्षेत्र के निवासियों को किरात की संज्ञा दी गई है I सर्वप्रथम यजुर्वेद में किरात शब्द का उल्लेख मिलता है I इसके उपरांत अथर्ववेद, रामायण एवं महाभारत में भी उन मंगोल मूल की जनजातियों की चर्चा मिलती है जो भारत की उत्तर- पूर्वी क्षेत्र की घाटियों व कंदराओं में निवास करती हैं I ब्रह्मपुत्र घाटी का संबंध किरात से है I महाभारत के विख्यात योद्धा राजा भगदत्त पूर्वोत्तर के थे I महाभारत काल से पूर्वोत्तर का गहरा संबंध है I माना जाता है कि पांडवों ने अपना अज्ञातवास इसी क्षेत्र में व्यतीत किया था I अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में स्थित मालिनीथान और ताम्रेश्वरी मंदिर का संबंध श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी से है I अरुणाचल के लोहित जिले में अवस्थित परशुराम कुंड एक प्रमुख तीर्थस्थल है जो भगवान परशुराम से संबंधित है I असम का तेजपुर नगर (शोणितपुर) श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और वाणासुर की पुत्री उषा के प्रेम का साक्षी है I गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर एक प्रमुख शक्तिपीठ है Iत्रिपुरा का त्रिपुरेश्वरी मंदिर देश की 51 शक्तिपीठों में से एक है I इसे कुर्म पीठ भी कहा जाता हैIपौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पूर्वोत्तर भारत का शेष भारत से गहरा संबंध है परंतु शेष भारतवासी इस क्षेत्र की विशिष्टताओं से अनभिज्ञ हैं अथवा वे भ्रांत धारणाओं से ग्रस्त हैं I