पूर्वोत्तर में परचम फहराती हिंदी / सपना मांगलिक

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विविधता में एकता भारतवर्ष की प्रमुख विशेषता है, यहाँ एकता धर्म, संस्कृति, राजनीति आदि में निहित है तो विविधता इसकी बहुभाषिकता में परिलक्षित होती है। हमारे देश में लगभग 171 भाषाएं एवं 544 बोलियां अस्तित्व में हैं। अनेकता में एकता के तार पिरोने के लिए हिन्दी को राष्ट्रभाषा का पद प्रदान किया गया। भारत की अनेक भाषाओं में केवल हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसको स्वाभाविक रूप से अपने क्षेत्र के बाहर विकसित होने का अवसर मिला है।वर्तमान समय में हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है।उत्तर–पूर्व की भाषाओं का अन्य भारतीय भाषाओं से गहरा संबंध है। पूर्वांचल में वास्तविक रूप में हिन्दी का पदार्पण तब हुआ, जब सन 1934ई.में 'अखिल भारतीय हरिजन सेवा संघ' की स्थापना हेतु महात्मा गांधी असम आये। उन्होंने जगह-जगह संबोधनों में असमिया को हिन्दी से परिचित होने की बात कही थी, उनके प्रत्युत्तर में गड़ मुड़ सर्वाधिकार श्री श्री पीतांबर देव गोस्वामी ने सूचित किया था कि 'यहां हिन्दी सिखाने वालों की कमी है। अत: यदि यह व्यवस्था हो जाए, तो हम हिन्दी शिक्षा की व्यवस्था करेंगे।' इससे गांधी जी संतुष्ट होकर बाबा राघवदास को हिन्दी प्रचारक के रूप में नियुक्त करके असम भेजा। उनकी संतमय, तेजोमय तथा तपस्वी जीवन से पूर्वांचल सदा गौरवान्वित है।

प्रत्यक्ष रूप में तो नहीं पर परोक्ष रूप में देखा जाता है कि जिन भाषाओं की लिपि देवनागरी है, वह भाषा हिन्दी न होते हुए भी उस भाषा के जरिए हिन्दी भाषा का प्रचार संभव हो सका है। उदाहरण के रूप में अरूणाचल में मोनपा, मिजि, और अका, असम में मिरि, मिसमि और बोड़ो, नागालैंड में अडागी, सेमा, लोथा, रेग्मा, चाखे तांग फोम तथा नेपाली, सिक्किम में नेपाली लेपचा, भड़पाली, लिम्बू आदि भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि है। देवनागरी लिपि अधिकांश भारतीय लिपियों की जननी रही है। अत: इसके प्रचार-प्रसार के पूर्वोत्तर में हिन्दी शिक्षा का सुगम हो गया। असम में भी बोड़ो भाषा के लिए 'देवनागरी लिपि' का प्रयोग हो रहा है। इस क्षेत्र में इस विषय से संबंधित बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक अध्ययन हो रहे हैं। जिसके लिए देवनागरी के संशोधन के बाद बोड़ो भाषा के लिए उपयोगी साबित हुई है।

पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में परचम फहराती हिन्दी

पूर्वोत्तर राज्य प्रचुर संसाधन, एवं अलौकिक प्राकृतिक वैभव अनूठी छटा से लवरेज हैं।वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत में आठ राज्य शामिल हैं जिनमे सिक्किम के अतिरिक्त अन्य सात राज्यों को सात बहनों की उपमा प्रदान की गयी है, से प्रसिद्ध निम्न सात जिनमे –अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालेंड, त्रिपुरा हैं।इन आठ राज्यों के विकास के लिए सन् 1971 में केन्द्रीय संस्था के रूप में पूर्वोत्तर परिषद (North Eastern Council) के गठन के बाद से भारत सरकार ने इस क्षेत्र में हिन्दी की प्रगति के लिए प्रभावी योजना बनाना आरम्भ किया। पूर्वोत्तर भारत में राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति प्रेम में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। इन राज्यों में सेना, सुरक्षा से जुड़े हुए जवान, व्यापार के लिए हिन्दीभाषा क्षेत्र से जाकर इन राज्यों में बस जानेवाले व्यापारी, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से काम के सिलसिले में इन राज्यों में काम करनेवाले मजदूरों के कारण यहाँ हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार हुआ। पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी समझने एवं जानने वाले तथा बोलने वाले लोगों की संख्या पर्याप्त है, पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का योगदान भी उल्लेखनीय है। संस्थान के तीन केन्द्र गोवाहाटी, शिलांग तथा दीमापुर में स्थित हैं। ये तीनों केन्द्र अपने-अपने कार्य क्षेत्रों के राज्यों में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के विशेष कार्यक्रम चलाते हैं तथा विशेष रूप से हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत हिन्दी अध्यापकों के लिए आवश्यकतानुसार एक सप्ताह से लेकर चार सप्ताहों के लघु अवधीय नवीकरण पाठ्यक्रमों का संचालन करते हैं। इन पाठ्यक्रमों में प्राध्यपकों को भाषा-शिक्षण की उन पद्धतियों का ज्ञान कराया जाता है जिनको ध्यान में रखकर वे अपने स्कूलों में उन विद्यार्थियों को हिन्दी पढ़ा सकें जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है।

गोवाहाटी के केन्द्र का कार्य क्षेत्र असम, अरुणाचल प्रदेश एवं सिक्किम राज्य हैं। शिलांग के केन्द्र का कार्य क्षेत्र मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य हैं। दीमापुर के केन्द्र का कार्य क्षेत्र नागालैण्ड एवं मणिपुर राज्य हैं।

मणिपुर में हिन्दी

हिन्दी साहित्य सम्मेलन'की ओर से सन् 1928 ईस्वी से यहाँ पर हिन्दी का प्रचार-कार्य शुरु हो गया था। कुछ वर्षों बाद यहाँ'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने अपनी शाखा खोल दी। यहाँ इम्फाल में के हिन्दी प्रेमियों ने मिलकर 07 जून, सन् 1953 ईस्वी को 'मणिपुर हिन्दी परिषद' की स्थापना की। मणिपुर की दूसरी संस्था का नाम 'मणिपुर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' है। मणिपुर के प्रमुख हिन्दी प्रचारक और हिन्दी सेवी –1. लाइयुम ललित माधव शर्मा 2. टी. वी. शास्त्री 3. फु। गोकुलानंद 4. एन. तोम्बीसिंह 5. हेमाम नीलमणि सिंह 6. अरिबम पंडित राधा मोहन शर्मा 7. क। हिमाचार्य शर्मा 8. एस. नीलवीर शर्मा शास्त्री 9. अरिबम घनश्याम शर्मा 10. राधागोविंद थोङाम 11. कालाचाँद शास्त्री 12. नन्दलाल शर्मा 13. नवीन चाँद 14. सिजगुरुमयुम 15. लाइमयुम नारायण शर्मा 16. फिराइलात्पम पंडित जगदीश शर्मा 17. द्विजमणि देव शर्मा

नागालैण्ड में हिन्दी

नागालैण्ड में अनेक जनभाषाएँ बोली जाती हैं। हिन्दी प्रचार के लिए यहाँ 'नागालैण्ड राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' कार्यरत है। यहाँ हिन्दी के मेल जोल से तैयार समन्वित भाषा का चलन बढ़ रहा है जिसको नागालैण्ड के लोग 'तेञीदिए' के नाम से पुकारते हैं और जिसको अंग्रेजी के ग्रंथों की देखा देखी 'नागामीज़' कहा जाता है। इसमें मौसम, प्रार्थना, अंग आदि अनेक हिन्दी शब्दों का प्रयोग होता है तथा हिन्दी फिल्मों के संवादों तथा गानों में प्रयुक्त शबदों का चलन बढ़ता जा रहा है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान नागालैण्ड के हिन्दी अध्यापकों के लिए सन् 1972 से विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है जिसमें प्रति वर्ष नागालैण्ड से बीस से तीस हिन्दी अध्यापक आगरा आते हैं तथा प्रशिक्षण के बाद आगरा से अपने यहाँ 'हिन्दी के राजदूत' बनकर लौटते हैं। धीरे धीरे नागालैण्ड के अंगामी, रेंगमा, लोथा, चाखेसाङ, फोमा आदि जनऊषाओं के बोलनेवाले देवनागरी लिपि को अपना रहे हैं।

मिज़ोरम में हिन्दी

मिज़ोरम की डॉ। इंजीनियरी जेनी संस्थान में हिन्दी की प्रोफेसर हैं तथा इन्होंने 'पूर्वांचलीय हिन्दी साहित्य' पर शोध कार्य किया है तथा इनका हिन्दी मिज़ो शब्दकोश प्रकाशित हो चुका है। हिन्दी के प्रचार की संस्था का नाम'मिज़ोरम हिन्दी प्रचार सभा, आइजोल' है। आर. एल. थनमोया एवं ललथलमुआनो हिन्दी-मिजो परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।

मेघालय में हिन्दी

संस्थान ने सन् 1976 में अपना शिलांग केन्द्र खोला। यहाँ की दो प्रमुख भाषाओं – खासी तथा गारो- का हिन्दी से व्यतिरेकात्मक विश्लेषण का कार्य हो रहा है। इससे खासी भाषी तथा गारो भाषी विद्यार्थियों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण सामग्री और अधिक वैज्ञानिक ढंग से बनाई जा सकेगी। संस्थान ने मेघालय राज्य की कक्षा 5, 6, 7, 8 की पुस्तकों का निर्माण किया है। हैं।पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकेडमी यहाँ प्रमुख रूप से हिन्दी प्रसार की कमान संभाले हुए है।

त्रिपुरा में हिन्दी

त्रिपुरा के हिन्दी प्रचारकों में रमेन्द्र कुमार पाल का नाम उल्लेखनीय है। डॉ। नरेन्द्र देव वर्मा तथा खोमतियादेव वर्मा हिन्दी-कॉकबरॉक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं।

इन सभी संस्थाओं के अतिरिक्त वर्तमान में पूर्वांचल में सौ-सौ ज़्यादा हिन्दी विद्यालयों का संचालन हो रहा है, जिसमें हर सौ-सौ छात्र-छात्राएं हिन्दी में परीक्षा पास करके रोजगार प्राप्त कर रहें हैं। कई पत्रिकाएँ ऐसे प्रदेशों से प्रकाशित हो रही हैं, जिसमें पूर्वोत्तर राज्यों के लेखक अपने अपने राज्य में प्रचलित लोक कथाओं, लोकगीतों आदि का हिन्दी में अनुवाद कर रहे हैं तथा मौलिक सर्जन भी कर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि वे अपने अपने क्षेत्र की जनभाषा को देवनागरी लिपि में लिखने के अभ्यस्त हो रहे हैं और उनके साहित्य के हिन्दी में अनुवाद होने से उनका साहित्य जिसे एक विशेष क्षेत्र के ही पाठक मिलते थे अब पूरे भारत वर्ष के पाठक पढ़ सकते हैं।पूर्वोत्तारिय भाषाओं को हिन्दी ने न केवल जुबान दी है अपितु सेंकडों लाखों कान भी उनकी मीठी बोली का रसास्वादन करने हेतु उपलब्ध कराये हैं। एक भाषा का साहित्य दूसरी भाषा में अनुवाद करके रसास्वादन करना आसान है इससे एक-दूसरे की भाषा, कला-संस्कृति, रीति-रिवाज को जानना समझना सुगम होता है। हिन्दी भाषा इस क्षेत्र में पूर्वांचल के लिए अनुवाद की भाषा बनकर महत्त्वपूर्ण कदम उठा रही है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि पूर्वांचल की भाषाओं के विकास में हिन्दी की अहम भूमिका रही है। अत: इकबाल के कहे शेर के मुताबिक़ -रोम, यूनान, मिश्र सभी राष्ट्र और उनकी भाषाएँ मानचित्र से भले ही विलुप्त हो गए और संभवतया एक रोज बाकी देश, उनकी भाषा एवं सभ्यता भी विलुप्त हो जाएँ मगर हिन्दी और हिन्दुस्तान विश्व के मानचित्र पर सदैव सितारे की भांति झिलमिलाते रहे हैं और झिलमिलाते रहेंगे। जय हिन्दी जय हिंदुस्तान।