पोकेमॉन संजीवनी की तलाश में! / जयप्रकाश चौकसे

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पोकेमॉन संजीवनी की तलाश में!
प्रकाशन तिथि :30 जुलाई 2016


जापान के सातोशी ताजरी ने पोकेमॉन नामक काल्पनिक विचार को जन्म दिया और जॉन हेन्के ने पोकेमॉन गेम को बनाया। उनकी कम्पनी पोकेमॉन से अकूत धन कूट रही है। टेलीविजन पर पोकेमॉन कार्टून शृंखला की लोकप्रियता ने इसे सबसे अधिक बिकने वाला बना दिया। पोकेमॉन एक वैकल्पिक संसार की रचना का केंद्र बन चुका है, जिसे आप आभासी संसार भी कह सकते हैं। आज पोकेमॉन "मिकी माउस' नामक वॉल्ट डिज़्नी रचित पात्र से अधिक लोकप्रिय हो गया है। पोकेमॉन की अकल्पनीय लोकप्रियता एक अत्यंत गंभीर बात को रेखांकित कर रही है कि यथार्थ इतना अन्यायपूर्ण, असमान और अमानवीय हो चुका है कि मनुष्य वैकल्पिक संसार की कल्पना में स्वयं को खो देना चाहता है। अफीम के नशे के बाद पोकेमॉन नशा संभवतः अफीम के नशे से अधिक व्यापक और भयावह हो चुका है। व्यवस्था पोकेमॉन आकल्पन से प्रसन्न है, क्योंकि अवाम का आभासी संसार में लीन हो जाना, उन्हें सत्ता में बनाए रखेगा।

टेक्नोलॉजी, संसार में भौतिक परिवर्तन के साथ ही मनुष्य की सोच को भी बदल देती है। यथार्थ दुनिया के हर हिस्से को गूगल मैप पर देखा जा सकता है, आप अपने मोहल्ले और घर को भी इसमें खोज पाते हैं। आजकल वैकल्पिक संसार का नक्शा भी आपको अपने मोबाइल तक पर उपलब्ध है और इसी जीवन में पोकेमॉन की खोज में लोग यथार्थ जीवन में निकल पड़ते हैं। कुछ दुर्घटनाएं भी हो रही हैं, क्योंकि आभासी संसार के स्थान के लिए यथार्थ के स्थान पर चलते हुए आप यथार्थ के आवागमन से बेखबर किसी वाहन से टकरा जाते हैं। दशकों पूर्व पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था कि "फैन्टम अॉफ फियर बिल्ड्स इटसेल्फ इन टू मोर फियरसम देन फियर इन रिएल्टी' अर्थात डर का हव्वा स्वयं को इतना विकराल बना लेता है कि वह यथार्थ के डर से बड़ा हो जाता है। डर केवल मनोवैज्ञानिक है, वह हमारी कल्पना में जन्म लेता है और भयावह आकार ग्रहण कर लेता है। इसी तर्ज पर काल्पनिक संसार यथार्थ के संसार से बड़ा हो जाता है। पोकेमॉन आकल्पन भी इसी तरह विराट हो गया है और इस जुनून का कोई ओर छोर ही नजर नहीं आ रहा है।

कुछ दशक पूर्व "मैट्रिक्स' नामक फिल्म बनी थी, जिसका मूल विचार था कि एक समय आएगा, जब मनुष्य को अपनी खुराक और ऊर्जा बनाकर कम्प्यूटर द्वारा उत्पन्न लोग विश्व के भ्रम में जीवित रहेंगे और इस छलावे को मायाजाल कहा गया था। कम्प्यूटर राज्य की सरहद के परे कुछ यथार्थ मनुष्य एक जगह छुपे बैठे हैं और उन्हें आशा है कि कोई अवतार कम्प्यूटर तानाशाही से विश्व को मुक्त करेगा। यह महाशक्तिमान अवतार अपनी ताकत से बेखबर कम्प्यूटर तानाशाह की सेवा कर रहा है। मनुष्यों का एक प्रतिनिधि अपनी जान पर खेलकर इस अवतारी नायक को स्वतंत्र कराता है और उसे तानाशाही के खिलाफ युद्ध में शामिल करता है। मानवीय शक्ति किसी तरह टेक्नोलॉजी की तानाशाही से मनुष्य को मुक्त कराती है। इस युद्ध में एक बार मरणासन्न नायक प्रेम की शक्ति से पुनः जीवित होकर टेक्नोलॉजी के तानाशाह को परास्त करता है। मनुष्य मन की ताकत के स्तुति गान के रूप में मैट्रिक्स फिल्म शृंखला बनी थी। इसके फिल्मकार वाचोस्की थे।

ज्ञातव्य है कि महान फिल्मकार स्टेन्ले क्यूब्रिक ने अपनी फिल्म "स्पेस ओडेशी 2001' में यह भय अभिव्यक्त किया था कि किसी दिन मशीन मनुष्य की अवज्ञा करके मनमानी करने पर उतारू हो जाएगी और मनुष्य को अपना दास बना लेगी। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि 1930 या 1931 में लंदन में चार्ली चैपलिन महात्मा गांधी से मिलने आए थे और उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए गांधीजी के प्रयास की प्रशंसा करते हुए अपनी सेवा देने की बात भी की थी। उसी चर्चा में चार्ली चैपलिन ने गांधीजी के मशीन विरोध को समझना चाहा था, तब गांधीजी ने भी अपनी आशंका जाहिर की थी कि मशीन पर निर्भर रहते हुए एक िदन मनुष्य मशीन का गुलाम हो जाएगा। इसी विचार से प्रेरित चार्ली चैपलिन ने 1936 में अपनी फिल्म "मॉर्डन टाइम्स' के एक शॉट में एक विशाल मशीन चक्र पर सफाई करते कर्मचारी को मशीन के पुर्जे के रूप में प्रस्तुत किया था।

एच.जी. वेल्स ने विज्ञान फंतासी साहित्य का सृृृृृृृृृृृृजन किया। उनकी एक कथा में एक वैज्ञानिक मनुष्य के समान दिखने वाला रोबो बनाता है और उस पर आसक्त होने वाली अपनी पुत्री को आग्रह करता है कि कभी मुष्य जैसे दिखने वाले रोबो के पास मत जाना। वह रोबो कन्या से प्रेम की बातें करता है और पुत्री के यह बताने पर वैज्ञानिक कहता है कि यह संभव नहीं है, क्योंकि ऐसा कुछ उन्होंने रोबो के स्मृति-कक्ष में डाला ही नहीं है। एक दिन वैज्ञानिक अपनी पुत्री को रोबो के निकट मरा हुआ पाता है। रोबो के प्रेम निवेदन से वशीभूत कन्या उसके सीने से लगती है और रोबो अपने प्रोग्राम के अनुरूप उसे अपने लोहपाश में दबा लेता है। वैज्ञानिक रोबो को डिस्मेंटल करके परीक्षण करता है, तो उसे ज्ञात होता है कि उसकी प्रयोगशाला के निकट बगीचे में प्रेमी युगल बात करते हैं और एक दिन रोबो का खुला हुआ याद कक्ष उन्हें रिकॉर्ड कर लेता है।

मशीन-मनुष्य के रिश्ते पर वुडी एलेन की एक फिल्म में एक आदमी अपने कमरे में हमेशा चैनल बदलकर कार्यक्रम देखता रहता है। एक दिन अपने खाली फ्रिज के लिए सामान खरीदने जाता है, तो एक गुन्डा उसे चाकू दिखाकर लूटना चाहता है। वह कहता है कि अपने रिमोट से अपराध चैनल हटा देगा, अर्थात उसे भान ही नहीं कि वह अपने वैकल्पिक संसार से बाहर यथार्थ दुनिया में खड़ा है। क्या हम पोकेमॉन को संजीवनी की तलाश में हिमालय जाने का निवेदन करें? हम वैकल्पिक संसार के प्राणी जो ठहरे।