पोटेंशियल कस्टमर / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
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जोशी अंकल का विनू इन दिनों पास की मल्टी में रहने वाले उसके ममेरे दादा दादी के यहाँ जाने में काफी रूचि लेने लगा है। सत्रह अठारह साल का विनू उन अकेले रहते दादा दादी के लिये कभी घर का बना अचार ले जाता तो कभी गरम - गरम पूरणपोली। वे दोनों भी बड़े खुश थे। इसी बहाने उनका भी थोड़ा वक्त निकल जाता। थोड़ा उसके साथ बतियाने में और उससे दुगुना उसके विषय में बतियाने में।


पूछने पर वह बताता कि उसी बिल्ड़िंग में उसका खास दोस्त प्रशांत भी रहता है रूम लेकर। उसके यहाँ जाने पर दादा दादी के यहाँ भी चक्कर लगा आता है। वैसे प्रशांत से उसकी कोई इतनी खास नहीं थी। बस हाईस्कूल में दोनों साथ पढ़े थे इतना ही।


दादा दादी भी अकेले से अपना जीवन जी रहे थे। दोनों की ही तबियत वैसे तो बिल्कुल ठीक ठाक थी। दादा चौंसठ के थे और दादी साठ के लगभग। उनके बच्चे अपन भविष्य सुधारने दूसरे देशों में थे और उनके अनुसार ये दोनों वहाँ की संस्कृति¸ रहन सहन से मोल जोल नहीं बैठा पाएँगे। इसलिये जब तक स्वयं का सब कुछ कर सकते है¸ कोई तकलीफ नहीं। आगे देखा जाएगा।


कई बार दादा दादी जब यही दुखड़ा फिर ले बैठते तब विनू उन्हें समझाता था¸ "आप क्यों चिंता करते है दादा! मैं हूँ ना यहाँ आपकी मदद करने को। आप तो जो भी काम हो¸ मुझे बेधड़क बता दिया कीजिये।" बड़े अपनेपन से कहता था विनू। दादा दादी निहाल हो जाते।


इसी तरह धीरे धीरे उसने इन दो महीनों में दादा के पेंशन निकालने से लगाकर किराना सामान लाने¸ उनके इंश्योरंस की प्रीमियम भरने से लगाकर बैंक में जमा खर्चे तक का काम संभाल लिया था। उसे इस तरह से काम करता देख उसका दोस्त प्रशांत हैरान होता।


"अरे यार कोई इन दिनों इतना तो अपने घर के लिये भी नहीं करता¸ तू है कि जुटा रहता है यहाँ पर। कोई मतलब साधना है क्या?" प्रशांत ने उसे टटोलते हुए पूछा था।


"बस यही समझ ले।" विनू मुस्कुराते हुए बोला था।


उस दिन दादाजी को मालूम था कि विनू ऊपर प्रशांत के यहाँ आया है। वे उसके लिये खुद जाकर उसके पसंद की फ्रूट आईस्क्रीम लाए थे । दादा दादी का विचार था कि विनू और प्रशांत को एक साथ नीचे बुलाकर आईस्क्रीम पार्टी दी जाए। इसलिये दादाजी ऊपर प्रशांत के ब्लॉक की ओर बढ़ रहे थे।


ऊपर पहुँचकर बेल दबाने को ही थे कि उन्हें सुनाई दिया जैसे दोनों दोस्त मिलकर उन्हीं के विषय में बतिया रहे है। वे बेल बजाना छोड़ उनकी बातें सुनने का प्रयत्न करने लगे।


"अरे बता ना यार। देख तू भाव मत खा क्या। बता तो ऐसा क्या है ये नीचे वाले दादा दादी के पास जो मेरे यहाँ आने के बहाने इनके चक्कर लगाया करता है तू?" प्रशांत विनू को परेशान कर रहा था।


"अभी नहीं यार। देख जल्दी ही तुझे समझ आ जाएगा कि मैं क्या करने वाला हूँ।" विनू बात टालने के मूड़ में था। दादाजी और सतर्क हो उठे।


"बता ना यार कोई लड़की वड़की हो उनके रिश्ते में तो मैं भी सेवा का पुण्य कमाऊँ।" प्रशांत ने विनू को छेड़ा।


"नहीं रे। अब तू इतना ही पीछे पड़ा है तब सुन। ये दादा दादी वैसे बड़े पैसे वाले है । मैंने इनके बैंक का काम क्या यूँ ही हथियाया है? और दादा अभी पैंसठ के नहीं हुए है। अगले महीने मैं एक इंश्योरेंस कंपनी की एजेंसी ले रहा हूँ। ये मेरे पोटेंशियल कस्टमर है इन्हे ऐसी भारी पॉलिसी बेचूंगा कि सारे फायदे अपने। इतने दिनों के संबंधों के बाद मना थोड़े ही करेंगे दोनों बूढ़ा बूढी क्यों?" और विनू और प्रशांत ताली मारकर हँसने लगे थे।


दादाजी को लगा जैसे उनके हाथों से अचानक किसी ने छड़ी छीन ली है...