पौधों का करिश्मा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्राफ्ट विषय में उसने बागवानी लिया था। सबसे

अच्छा उसे यही लगा था। बाकी दर्जीगिरी और कताई बुनाई भी एच्छिक विषयों में

थे, परंतु दर्जीगिरी के विषय में तो सोचकर ही वह सिहर उठ‌ता था। पहले कपड़े का

नाप लो, फिर जो आइटम बनाना है उसके हिसाब से कपड़े की कटाई करो, फिर

सिलाई। थोड़ा भी इधर उधर हुआ कि कपड़े का सत्यनाश हुआ। फिर कौन मशीन में धागा

डालता फिरे, पागलों का काम, उससे तो कताई बुनाई अच्छी है। पोनी ले लो तकली

में फँसा दो और घुमा दो। इधर तकली ने फेरे लिये उधर कच्चा सूत तैयार। किंतु

इसमें भी परेशानी, तकली के ऊपरी पांइट पर पोनी फँसना बहुत कठिन काम है। अनाड़ी

रहॆ तो सूत बार-बार टूटे। खैर अब तो गाँधीजी भी नहीं है काहे का सूत काहे

की खादी। रामप्रसाद को बागवानी सबसे अच्छी लगी थी। क्यारी में पौधे ही तो लगाना

है। गड्ढा खोदा और पौधा रोप दिया और फुरसत। थोड़ा बहुत पानी वानी डाल दिया। फिर

कौन देखता पौधा सूखा कि बचा।

रामप्रसाद को पेड़ पौधों से कभी लगाव नहीं रहा। घर

के आँगन में लगे पेड़ उसे बैरियों के समान लगते थे। इच्छा होती कि कुल्हाड़ी

उठाकर दे दनादन, सब काट डाले। परंतु माँ के कारण यह संभव ही नहीं था। ज‌ब इस

सम्बंध में बात करता, मां की त्योरियाँ चढ़ जातीं" ये तेरे बाप दादों ने लगाये हैं

तू इन्हें कैसे काट स‌कता है, बुजुर्गों का सम्मान तो करना सीख। " रोज सुबह से

ही आंगन में सूखे पत्तों के ढेर देखकर वह बिलबिला उठता पर

माँ....पेड़ों के कारण घर में अँधेरा भी तो होता है, वह माँ को

मनाने कि कोशिश करता परंतु व‌ही ढाक के तीन पात। बाप दादे माँ के लिये किसी

ईश्वर से कम नहीं हैं।

परीक्षा के दिन आ गये। क्राफ्ट विषय तो प्रायोगिक

ही है। प्रयोग की अवधि में ही परीक्षक दो चार प्रश्न पूँछ लेता है। चूंकि

उसने बागवानी चुना था, उसे शाला के बगीचे में दस पौधे लगाने का काम दिया गया

था। एक लम्बी-सी क्यारी में एक के बाद एक, कतार में पौधे लगाना थे। चार घंटे

का समय दिया ग‌या था। गड्ढा खोदकर वैग्यानिक पद्धति से भुरभुरी मिट्टी

तैयार करना थी, पौधे लगाना थे और फिर परीक्षक द्वारा उपलब्ध फेंसिंग {ट्री

गार्ड} से पौधों को घेर दॆना था। फिर मौखिक प्रश्नों के जबाब इतना-सा ही तो

काम था। राम प्रसाद ने गेंती और फावड़े कि सहायता से दस गड्ढे खोद

डाले। चाहता तो एक, एक गड्ढा खोदकर उनमें पौधे लगाता जाता किंतु उसे पहिले

दस गड्ढे खोदना सुविधा जनक लगा। अब पौधे लगाना है, फिर ट्री गार्ड़ यही सोचकर

उसने पहिले गड्ढे में एक पौधा रोप दिया। खाद मिली हुई मिट्टी से गड्ढा पूरा

और फिर ट्री गार्ड लगा दिया। एक पौधा तो निपटा यह सोचकर वह आगे के गड्ढे के

तरफ बढ़ा। । दूसरे गड्ढे में भी उसनॆ वही प्रक्रिया अपनाई। वह गुनगुनाता हुआ

आगे जाने को तैयार हुआ कि उसकी दृष्टि पहले गड्ढे पर चली गई। " अरे वहाँ का

पौधा कहाँ गया, अभी तो लगाया था। " वह दौड़कर उस गड्ढे के पास पहुँच गया। ।

पौधा गायब था। कहाँ गया पौधा, वह चारों ओर घूम गया। आसपास कोई नहीं था। दूसरे

साथी दूर-दूर दूसरी क्यारियों में पौधे लगा रहे थे। कोई पशु पक्षी भी आसपास

नहीं था।

फिर मज़बूत ट्री गार्ड, पौधा कहाँ गया? वह आश्चर्य चकित था। ठीक है बाद में

देखेंगे, यही सोचकर वह दूसरा पौधा लगाने चला गया। जैसे ही वह पौधा लगाकर तीसरे गड्ढे

की ओर बढ़ा तो दूसरे गड्ढे का पौधा भी गायब हो गया। अरे-अरे यह क्या हो रहा है

वह बौखला गया। वह ज़ोर जोर से चिल्लाने लगा" अरे कौन है यहाँ, जो मेरे पौधे उखाड़ रहा

है। कोई प्रेत है क्या, कोई भूत क्या? आखिर मेरे पौधे क्यॊं उखाड़ रहा है

कोई? " प्लीज़ मेरे पौधे वापिस जहाँ के तहाँ लगा दो, मेरी परीक्षा है मैं फेल हो जाऊंगा, मुझ पर दया करो। ' वह

आसमान की तरफ़ दोनों हाथ उठाकर रोने लगा। उसने देखा कि बाक़ी आठ पौधे जो कि पालीथिन

में रखे थे-थे वह भी गायब हो गये और आसमान में जाकर अट्टहास करने लगे। दोनों

गड्ढों से गायब हुये पौधे भी उनमें शामिल थे। दसों पौधे आसमान में एक गोल घेरा बनाकर घूम रहे थे।

"अब रोता क्योंहै?" उनमें से एक पौधा मीठी आवाज़ में बोला। " तुझे तो पौधों सॆ

नफरत हैं न, तुम अपने आँगन में लगे सारे पेड़ काटना चाहते हो न, बाप दादा के हाथ के

लगाये पेड़ों से तुम्हें जरा-सा भी प्रेम नहीं है, तुमने अपने घर में कभी कोई पौधा नहीं लगाया, फिर

यहाँ पौधे क्यों लगा रहे हो? "

" मुझे परीक्षा में पास होना है, बागवानी मेरे कोर्स में है, आज मेरा प्रेक्टिकल टेस्ट है, मुझे पौधे लगाकर दिखाना है,

परीक्षक आते ही होंगे, प्लीज़ नीचे आ जाओ नहीं तो मैं फेल हो जाऊंगा। परीक्षक

मुझे अनुत्तीर्ण कर देगा, मुझे क्षमा

क‌र दो। " रामप्रसद रोये जा रहा था।

"ठीक है हम क्षमा कर देंगे किंतु तुम्हें एक वादा करना होगा।" पौधा बोला।

"हाँ हाँ मैं तैयार हूँ, बोलो क्या करना हॊगा।" वह सिसकते हुये बोला।

" आज से पेड़ पौधों से नफ़रत नहीं करोगे, नये पौधे लगाओगे और पेड़ कभी नहीं

काटोगे। "

" हाँ-हाँ पेड़ कभी नहीं काटूंगा, नये-नये पौधे लगाऊंगा, सेवा करूंगा पानी

दूंगा खाद दूंगा। ' प्लीज़ अब तो ।उसने अपने दोनों कान पकड़ लिये।

देखते ही देखते दसों पौधे अपनी पूर्व स्थिति में आ गये। दो पौधे अपने अपने

गड्ढों में लग गये बाक़ी आठ यथा स्थान रखा गये। राम प्रसाद दौड़ दौड़कर पौधे

लगाने लगा। तभी उसने देखा कि परीक्षक महोदय चले आ रहे हैं। अब तो वह घबड़ा

गया। उसका धैर्य जबाब देने लगा। तीन ही पौधे तो लग पाये थे। अब तो फेल होना

ही है, यह सोचकर उसके हाथ पैर फूल गये। वह ज़ोर से रोने लगा। अचानक उसने

देखा कि उसके पास रखे पौधे दौड़ लगाकर गड्ढों की तरफ़ जाने लगे। अरे-अरे पौधे

अपने आप ही गड्ढों में जाकर रोपित हो गये, मिट्टी ने भी अपने आप उछल उछल‌कर

पौधों के घेरे भर दिये। इधर ट्री गार्डों ने भी दौड़ लगा दी और पौधों को घेरकर ऊपर

यथा स्थान खड़े हो गये।

परीक्षक महोदय आ चुके थे। इतना साफ़ सुथरा काम देखा तो वे बहुत खुश

हुये। नन्हें हाथों का कमाल देखकर उसे शत प्रतिशत अंक दे दिये। वह बगवानी

में अपनी कक्षा में प्रथम घोषित हो गया था। वह ख़ुशी के मारे चीख पड़ा।

"अरे क्या हुआ राम प्रसाद, क्या हुआ" मां की आवाज़ सुनकर वह जाग गया। मां उसका सिर पकड़कर जोरों से हिला रही थी।

"अरे यह तो सपना था" वह हड़बड़ाकर उठ बैठा। "शायद भगवान् उसे चेतावनी दी है यदि वृक्षों से घृणा करोगे, उनका पोषण नहीं करोगे तो ऐसा ही होगा।" वह सोचने लगा। उसने अपना सिर झटककर उठा और आंगन में जाकर पेड़ों से लिपट गया।

अब राम प्रसाद वृक्षों से बहुत प्यार करता है, पौधे रोपता है, खाद पानी

देता है और उनकी सुरक्षा करता है। पौधे और पेड़ ही उसका संसार है।