प्रजातंत्र पर हावी होता भीड़ तंत्र / जयप्रकाश चौकसे

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प्रजातंत्र पर हावी होता भीड़ तंत्र
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2019


एक गड़रिया सैकड़ों भेड़-बकरियों को हांकता हुआ अपने गंतव्य तक ले जाता है। गड़रिया केवल एक भेड़ या अधिक से अधिक चार भेड़ों को हांकता है और उसका काम हो जाता है, क्योंकि सारी भेड़ें उसकी हांकी एक भेड़ के पीछे चल पड़ती हैं। वर्तमान समय की भीड़ भी भेड़चाल ही चल रही है और जगह-जगह भीड़ शंका के आधार पर मासूम व्यक्तियों का कत्ल कर देती है। पुलिस थानों में इस सामूहिक अपराध की रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती। पुलिस का मौन समर्थन उन्हें प्राप्त है।

कुछ दिन पूर्व ही फिल्म उद्योग लिंचिंग प्रकरण पर दो भागों में बंट गया था। अखबारों में उन कलाकारों और फिल्मकारों की सूचियां प्रकाशित की गई हैं, जो व्यवस्था के मौन समर्थन के पक्ष में हैं या विरोध कर रहे हैं। बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध किए जाने को एक साजिश बताया जा रहा है। 'मासूम', 'मिस्टर इंडिया' और 'बैंडिट क्वीन' जैसी फिल्मों को बनाने वाले शेखर कपूर ने कहा कि किसी भी बुद्धिजीवी से गले मिलने पर उन्हें घृणा हो जाती है। उनके इस कथन की धज्जियां उड़ाई हैं जावेद अख्तर ने जिनकी लिखी 'मि. इंडिया' शेखर कपूर ने निर्देशित की थी। कमोबेश शेखर कपूर वैसे ही बदल गए हैं, जैसे इंडिया बदल रहा है। गुरुदत्त की 'प्यासा' में शायर मंच पर खड़े होकर जैसे ही यह कहता है कि अवाम जिसे सम्मानित करने वहां एकत्रित हुआ है, वह वही शायर नहीं है, तो हड़कंप मच जाता है। जो भीड़ शायर को सम्मानित होते देखने के लिए जुटी थी, वही भीड़ उसी शायर के खिलाफ हिंसक हो जाती है। इसी शायर की एक रचना है, 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।' दरअसल, यह भौतिकवादी सुखों और सहूलियतों को अस्वीकार करने और अध्यात्म की ओर उठाया पहला कदम है।

भेड़चाल को राज कपूर की 'जागते रहो' के एक दृश्य में भी दिखाया गया था, जब कुछ अनजान लोग चोर-चोर की आवाजें करते हुए मासूम व्यक्ति की ओर दौड़ते हैं। यह दृश्य कुछ ऐसा ही था जैसे शेर के शिकार पर गए किसी हाकिम के लिए कुछ लोग हांका लगाकर शेर को उसी मचान की ओर भागने पर मजबूर करते हैं, जहां शिकारी उसकी ताक में बैठा है। गोयाकि वह सुरक्षित जगह पर बैठकर शिकार करना चाहता है। आजकल मॉब लिंचिंग वाली भीड़ हाका लगाने वालों से भी बढ़कर स्वयं ही शिकार करने लगी है। समाज का बहुसंख्यक वर्ग जो महात्मा गांधी के प्रभाव में जीवन के उच्चतम मूल्यों को अपना चुका था, वर्तमान समय में अपने मूलभूत स्वरूप पर लौट आया है। अगर हम पूरे कालखंड को एक फिल्म मान लें तो कहना होगा कि महात्मा गांधी के प्रभाव वाला समय उस फिल्म के 'स्वप्न दृश्य' की तरह है। वर्तमान 'स्वप्न भंग' का कालखंड है और हम अपने स्वाभाविक बौनेपन पर लौट आए हैं। फिल्म उद्योग का प्रतिक्रियावादी धड़ा भी प्रगतिवादी लोगों को गालियां दे रहा है। कुछ लोगों को पुरस्कार का मोह है, परंतु इनमें से अधिकांश लोग उस तरह के हैं, जिन्हें झुकने को कहा जाता है तो वे लेट जाते हैं। साष्टांग प्रणाम करने लगते हैं। यह एक तरह से अनाम तानाशाह के नाम भेजा निमंत्रण-पत्र है कि हमारी व्यवस्था चरमरा गई है, आप सफेद घोड़े पर आएं और हम पर शासन करें। हमें यह याद रखना होगा कि हममें से कुछ लोगों ने ही विदेशी ताकतों की मदद की है कि वे आकर हमें पराजित करें। जयचंद महज एक नाम नहीं वरन् एक भयावह प्रवृत्ति है।