प्रत्येक घटना कुछ न कुछ सिखाती है! / ओशो

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प्रवचनमाला

आंखें खुली हों, तो पूरा जीवन ही विद्यालय है। और, जिसे सीखने की भूख है, वह प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक घटना से सीख लेता है। और, स्मरण रहे कि जो इस भांति नहीं सीखता है, वह जीवन में कुछ भी नहीं सीख पाता।

इमर्सन ने कहा है : हर शख्स, जिससे मैं मिलता हूं, किसी न किसी बात में मुझ से बढ़कर है। वही, मैं उससे सीखता हूं।

एक दृश्य मुझे स्मरण आता है। मक्का की बात है। एक नाई किसी के बाल बना रहा था। उसी समय फकीर जुन्नैद वहां आ गये और उन्होंने कहा : खुदा की खातिर मेरी भी हजामत कर दें।

उस नाई ने खुदा का नाम सुनते ही अपने गृहस्थ ग्राहक से कहा, 'मित्र, अब थोड़ी मैं आपकी हजामत नहीं बना सकूंगा। खुदा की खातिर उस फकीर की सेवा मुझे पहले करनी चाहिये। खुदा का काम सबसे पहले है।'

इसके बाद फकीर की हजामत उसने बड़े ही प्रेम और भक्ति से बनाई और उसे नमस्कार कर विदा किया। कुछ दिनों बाद जब जुन्नैद को किसी ने कुछ पैसे भेंट किये, तो वे उन्हें नाई को देने गये।

लेकिन उस नाई ने पैसे न लिये और कहा : आपको शर्म नहीं आती? आपने तो खुदा की खातिर हजामत बनाने को कहा था, रुपयों की खातिर नहीं! फिर तो जीवन भर फकीर जुन्नैद अपनी मंडली में कहा करते थे, निष्काम ईश्वर-भक्ति मैंने हज्जाम से सीखी है।

क्षुद्रतम् में भी विराट संदेश छुपे हैं। जो उन्हें उघाड़ना जानता है, वह ज्ञान को उपलब्ध होता है। जीवन में सजग होकर चलने से प्रत्येक अनुभव प्रज्ञा बन जाता है। और, जो मू‌िर्च्छत बने रहते हें, वे द्वार आये आलोक को भी वापस लौटा देते हैं।

(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)