प्रेम का उपरांत / दीपक श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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लड़की स्टडी से उठ कर लिविंग रूम में बैठ गई थी।

बापट ऐसी मुसीबत में पहले कभी नहीं पड़ा था। उसका नाम नयन बापट है लेकिन इतने अच्छे नाम होने के बावजूद सभी उसे बापट ही कहते हैं। उसकी खूबसूरत पत्नी दिव्या भी जो कि मीरचंदानी है। वो खुद भी अपने को बापट ही समझता है बहुत हुआ तो एन बापट।

बचपन में एक बार जब उसका दोस्त उसके घर आया था, दरवाजा उसके पिता ने खोला था।

'बापट घर पर है', उसके दोस्त ने कहा था।

'कौन सा बापट चाहिए, बड़ा या छोटा', उसके पिता ने कहा।

दोस्तों में बहुत दिन तक यह लतीफा मशहूर रहा।

काकोली उसको नयन बुलाती थी।

काकोली बोस उसकी दोस्त और क्लासमेट थी। मुंबई के महँगे विद्यालयों में से एक के क्लास फोर्थ में वह पढ़ता था। चलते नवंबर की आखिरी तारीखो में से एक के रिसेस के समय नयन बापट का चयन क्रिसमस के कोरल्स गाने के लिए हुआ था। पहली रिर्हसल हो रही थी तब बापट की हथेलियाँ भीगी हुई और पैर काँप रहे थे। काकोली ने भाँप लिया और उसकी हथेलियों को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और आखों से ही उसमें आत्मविश्वास भरने की कोशिश की। नयन बापट को पता था कि काकोली उसी के साथ पढ़ती है और कोरल्स गाने में उसके साथ है।

दोनों की मुट्ठियाँ उस समय छोटी-छोटी थीं। काकोली का कद उस समय उससे ऊँचा था हालाँकि बाद तक नहीं रहा। भाँपने की प्रतिभा काकोली में आखिरी मुलाकात तक रही। कभी-कभी व्यवहार उसकी संरक्षिका की तरह करती। नयन बापट क्लास में हमेशा पढ़ने में अव्वल रहता था। होमवर्क, एसाइनमेंट, प्रोजेक्ट वगैरह में काकोली को उसकी जरूरत रहती।

नाइन्थ क्लास में स्कूल फेट के समय जब काकोली ने अपनी मुलायमीयत को छूने दिया था, उसके कई दिनों तक नयन घर की सारी मुलायम चीजों को छू-छू कर उनकी नरमी को अपनी हथेली की स्मृतियों से तौलता और स्पष्ट अंतर पाने पर अगली चीज खोजने लगता। माँ को गुजरे कई साल हो गए थे शायद इसलिए कोमल-मुलायम चीजें उसके घर कम थीं।

बारहवीं के प्रीबोर्ड के समय फिजिक्स लैब के एकांत में जब काकोली को पहली व आखिरी बार चूमा था और अंतिम परीक्षा के बाद दोस्तों के कहने पर नयन ने उससे चर्चगेट के रिवाल्विंग रेस्तराँ में चलने का प्रस्ताव किया था तब दोनो बार काकोली बोस ने उससे कहा था, 'नयन तुम बुद्धू हो।'

दूसरी बार स्पष्टतः कहा। पहली बार कहा नहीं लेकिन कहने जैसे भाव थे। काकोली गई नहीं और उसके बाद नयन से मुलाकात नहीं हुई। अभी 'आरकुट' पर दिखी थी, न्यूजर्सी में अपने पति और दो लाडलों के साथ। स्कूल के ग्रुप से आईडी मिली थी। प्रोफाइल में लाडलों पर जान छिड़का जा रहा था। फोटो गैलरी में थोड़ी मोटी लग रही थी, लेकिन दाँत और हँसी वही थी जिसे वह 'क्लोजअप स्माइल' कहता था। मेसेज करने की उसकी कोई इच्छा नहीं हुई।

आज फिर इस लड़की के बहाने जो स्टडी से उठ कर लिविंग रूम में बैठ गई थी - उसे काकोली बोस की याद आ गई।

दरअसल इस लड़की ने नीचे सिक्यूरिटी से फोन से बात करवाते समय कहा था, 'मिस्टर नयन मुझे शुक्ला जी ने भेजा है।'

बापट को 'नयन' सुनने के बाद काकोली बोस की याद आ गई और कोई बात सुनाई नहीं दी। वह जब तक सहज हो प्रतिक्रिया लायक हो पाता लड़की सिक्यूरिटी को इस चुप्पी का चकमा दे एक्सप्रेस लिफ्ट से उसके पंद्रहवें माले के पेंटहाउस में प्रवेश कर चुकी थी। अब तो वह लिविंग रूम में बैठ चुकी थी।

आधिकारिक रूप से यह पेंटहाउस उसका नहीं है, उसके पत्नी के नाम भी फिलहाल नहीं है हालाँकि होने की बात है। अभी यह संपत्ति उसके श्वसुर के नाम ही है। मलाड के महँगे इलाके के इस तीन मंजिली पेंटहाउस में सबसे ऊपरी मंजिल पर स्विमिंग पूल और टैरेस गार्डन है। बतौर चार्टेड एकाउंटेंट वह जमीन व रियल इस्टेट का काम नहीं करता है लेकिन इतना जानता है कि इसकी कीमत सात करोड़ के आसपास है जिसे उसके श्वसुर ने उनकी ग्यारह महीने पुरानी शादी में गिफ्ट किया था। दिव्या मीरचंदानी ने इंटीरियर कन्सलटेंट की सलाह और अपने घर को विशिष्ट रखने के शौक को अपनी कल्पनाशक्ति और अमीर बाप मदन मीरचंदानी के पैसे से भरपूर पूरा किया। मदन मीरचंदानी वैसे भी पेशे से फाइनेन्स का काम करते हैं। बेटी उनके विरसे में बड़े हिस्से की मालकिन है।

अब अगर दिव्या को पता चल जाए कि जिस सिक्स पीस महोगिनी सोफे के लिए वो पूरी मुंबई में घूमी थी उस पर रात ग्यारह बजे एक हाई प्राइस्ड कालगर्ल बैठी 'सोसाइटी' पत्रिका पढ़ रही है तो बापट के कौन से तर्क काम आएँगे। मुहावरे की भाषा में वह कच्चा चबा जाएगी।

दिव्या से उसकी पहली मुलाकात एक पार्टी में हुई थी जो उसके सीनियर पार्टनर और 'तुली एंड जहूर' फर्म के मालिक समीर तुली ने दी थी। जहूर साहब का इंतकाल हुये काफी समय हो गया लेकिन उनका नाम फर्म से जुड़ा रहा। फर्म में तुली और बापट के अलावा तीन और पार्टनर हैं। बापट सबसे नया और तीन साल पुराना है। जिसकी एक उपलब्धि पचीस साल की कम उम्र में सीए बनने की है। इसके अलावा वह मेहनती व अपने काम का जानकार है। पार्टी किस उद्देश्य से दी गई थी यह बापट को याद नहीं लेकिन सोद्देश्य उसे दिव्या और उसके पिता से मिलाया गया यह उसे पता था। वह कायदे से मिला, उसने अपने व्यक्तित्व प्रबंधन की श्रेष्ठ प्रस्तुति की। करीब एक साल की मुलाकातें हुईं जो उत्तरोत्तर कोर्टशिप और अंततः विवाह में बदल गईं। पिता के गुजर जाने के बाद किसी फैसले को लेने में कोई पेंच नहीं था। उसके पास इस फैसले से बेहतर विकल्प नहीं था। दिव्या अच्छी है, उसे पसंद करती है और उसके पिता के पास बहुत सारा लगभग असीमित धन है।

आज दिव्या अपने पिता के घर गई है। कल उसके पिता का जन्मदिन है। बहुत सारे लोग आने है। इस पार्टी की योजना दिव्या की है। इसीलिए पिछले तीन दिनों से वहीं है। नौकरों को भी लेकर गई है और बापट अकेला है।

यहीं से समस्या की शुरुआत हुई। टिंबर व्यवसायी और सरकारी ठेकेदार धनंजय शुक्ला का फोन शाम को काम के सिलसिले में आया था। बापट उसकी फर्म का काम देख रहा है। बापट इन लोगों से व्यक्तिगत बातें नहीं करता लेकिन पता नहीं किस रौ में उसने शुक्ला से अपने अकेलेपन की चर्चा कर दी और उसके साथ कुछ उदासी की। धनंजय उसका हमउम्र है और कभी-कभी दोनो हँसी-मजाक कर लेते हैं। उसकी परिणति इस रूप में - लड़की भेजने के स्तर पर होगी, उसने सोचा नहीं था।

बहुत देर से वह धनंजय को मोबाइल मिला रहा है। एक बार उठा भी तो उधर शोर करती आवाजें थी जिनमें धनंजय की आवाज अतिउल्लासित और नशे में लग रही थी। संवाद करने की अपनी सारी प्रतिभा का उपयोग बापट स्थिति को स्पष्ट करने में लगा रहा था। जब बापट को अपनी मूर्खता का बोध हुआ, उसने फोन काट दिया।

समस्या उसकी है और उसे अपने स्तर पर ही निबटाना होगा। वह लड़की से कह दे कि उसकी जरूरत यहाँ नहीं है। किसी गलतफहमी की वजह से उसे भेज दिया गया है और वह चली जाए। दूसरी बार उसे अपने ठसपने का अहसास हुआ कि यह छोटी सी बात सूझने में उसे आधा घंटा लग गया।

लिविंग रूम में बैठी लड़की अब 'बिजनेस टुडे' पलट रही थी। पहले की पढ़ी पत्रिकाएँ करीने से रख दी गईं थी। वह जाकर सामने खड़ा हो गया। लड़की पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई। वह शायद बापट के लगातार गतिशील रहने को उसकी व्यस्तता समझ रही थी या इन स्थितियों से ऊपर उठी हुई थी और उसके लिए यह सब महत्वहीन था।

खड़े बापट को असहजता महसूस हुई और वह बगल के सोफे पर बैठ गया।

लड़की ने उसकी तरफ देखा। इससे बापट सहज हुआ।

संबोधन और वाक्य विन्यास इत्यादि को लेकर कुछ अनिश्चय थे लेकिन बापट एक रौ में पूरा वाक्य बोल गया, 'देखिए, कुछ गलतफहमी की वजह से आप यहाँ आ गईं हैं। आपको यहाँ आना नहीं था।'

लड़की के चेहरे व माथे पर हल्के प्रश्नवाचक निशान बन आए।

'मतलब मैने नहीं बुलाया था', वह दबे स्वर में बोला।

'लेकिन मिस्टर नयन मुझे सही सूचनाओं के साथ भेजा गया है। यहीं के लिए और आपके लिए', लड़की का स्वर कोमल जैसा था लेकिन उसमें दृढ़ता थी।

'...आपके लिए' सुनते समय व उसके बाद बापट को लगा कि लड़की अश्लीलता से हँसेगी या कम से कम हँसेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ वह बदस्तूर 'बिजनेस टुडे' में एक बड़े घराने के म्यूचुवल फंड का विज्ञापन देखती-पढ़ती रही थी।

बापट को लगा कि वह किसी कंपनी के बोर्ड-रूम में है, सामने बैठी वी-गले का मैरून टॉप और लिवाइस की जीन्स पहनी लड़की कंपनी की प्रतिनिधि है जिसे वह अपना पक्ष प्रस्तुत करने बैठा है। वह चुपचाप ही बैठा रहा।

उसके चुप रहने और बैठे रहने से लड़की असहज नहीं हुई।

उस थोड़े अंतराल की चुप्पी के बाद लड़की ने बदली परिस्थिति में प्रस्ताव किया। यह प्रस्ताव उसने अंग्रेजी में किया, 'ठीक है, मेरे स्टैंडिंग चार्जेज के बीस हजार रुपए दे दीजिए और एक टैक्सी बुला दीजिए, मैं चली जाती हूँ।'

गनीमत इतनी थी कि लड़की के बोलने का लहजा हिंदुस्तानी अंग्रेजी में था, अमेरिकन या विक्टोरियन अंग्रेजी का अनुमान भी बापट के लिए अब मुश्किल नहीं था। बीस हजार रुपए को लेकर भी अब उसे संशय नहीं था, अब मुसीबत गले लगी है तो कुछ चूना लगना ही है। टैक्सी वाली बात एक समस्या की तरह आई। आस-पास के किसी टैक्सी स्टैंड का पता या संपर्क फोन नंबर या कि टैक्सी स्टैंड के अस्तित्व के बारे में बापट को पता नहीं था। इस बारे में किसी की सहायता लेना भी संभव नहीं था, कम से कम इस समय रात के बारह बजे। एक बात का प्रण उसके विचार के साथ ही बापट ने कर लिया कि अपनी गाड़ी से वह इस थर्ड ग्रेड रंडी को कहीं नहीं ले जाएगा।

हालाँकि रंडियों के ग्रेडेशन पद्धति के बारे में बापट को पता नहीं था।

वस्तुतः इस तरह की किसी लड़की से प्रत्यक्ष मिलने का यह उसका पहला अवसर है। अगर वह उस तरह की लड़की है। उसके उस तरह की लड़की होने में अब कतई संदेह नहीं था, पैसे की माँग के बाद तो कत्तई नहीं।

वह अभी भी म्यूचुवल फंड का विज्ञापन देख रही थी, अब और ध्यान से। हालाँकि निवेश सलाह का भी बापट विशेषज्ञ नहीं है लेकिन कुछ अच्छे आने वाले आईपीओ के बारे में वह बता सकता है अगर लड़की जानना चाहे। जिस म्यूचुवल फंड का विज्ञापन वह देख रही है लंबे समय के पूँजीनिवेश के लिए बुरा नहीं है।

उसे लगा कि अब उसके पास बहुत विकल्प नहीं बचे हैं। लड़की जिस ठसके से बैठी है उसमें उससे सहयोग की अपेक्षा नगण्य है। उसके लिए बीस हजार रुपए का ही महत्व है शेष की परवाह नहीं है। बापट एक बार फिर उसे मन ही मन रंडी संबोधन से देखना चाहता था।

उसे अपनी शब्दावली चयन पर आश्चर्य हुआ। इस तरह के घटिया शब्दों का प्रयोग सामान्यतः वह नहीं करता है। उसने सोचा शायद बीस हजार रुपए बिना मतलब खोने और इस तरह की स्थिति में फँसने की कुंठा से वह ऐसा सोच रहा है। बापट ने अपने को सँयत किया और महसूस किया कि उसे एक परिपक्व आदमी की तरह परिस्थितियों को लेना चाहिए। उसे लगा वह घबरा गया है। उसने एक बार फिर से स्थिति का आकलन किया।

अब जब रात के बारह बज चुके हैं लड़की को स्वयं ले जाकर छोड़ने का कोई आधार नहीं है। किसी की सहायता वह ले नहीं सकता तब केवल एक विकल्प बचता है कि लड़की रात यहीं रुक जाए सुबह जल्दी चली जाए। लड़की गेस्ट रुम में रुक जाएगी।

कहने से वह बचना चाहता था लेकिन पिछले एक घंटे से उसकी कोई मर्जी नहीं चल रही थी।

'तुम चाहे तो यहाँ रुक जाओ, जाने का अभी कोई जरिया मिलना मुश्किल है।', वह अंग्रेजी में बोला।

'पैसे तुम अभी ले लो।', आश्वस्त करते हुये वह अपने अभिजात्य का दबाव बनाना चाहता था।

उसे लगा कि लड़की के चेहरे पर कुछ भाव बदले। हर बात को लिपिबद्ध करने की पेशेगत कुशलता होने के बावजूद बापट को चेहरे पढ़ने में असहजता महसूस हो रही थी। उसे लगा कि लड़की के होंठ चालाकी भरी मुस्कान की शुरुआत कर फिर सामान्य हो गए, आँखें भी हँसने की शुरुआत कर फिर चुप हो गईं।

'पैसे सुबह ले लूंगी।', उसने हामी भरी।

लड़की पत्रिका रख चुकी थी। उसने बापट को ध्यान से देखा।

'मुझे भूख लगी है।', वह बोली।

'सैंडविच रखी हैं उनसे काम चलेगा।', कहने का तरीका आदतन शिष्टचारी था। उसे कहने के तरीके पर अफसोस रहा।

लड़की के 'हाँ' या 'ना' की प्रतीक्षा किये बिना वह लिविंग रुम से निकल कर डाइनिंग रुम में आ गया। लड़की भी पीछे-पीछे आ गई जिसका उसको पूरा अनुमान था। एक प्लेट ले उसने फ्रिज से पैक्ड चीज सैंडविच - पहले एक - फिर कुछ सोच कर - दो अदद निकाले। माइक्रोवेव ओवन में रख चालू-सेट कर आकर वह डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। जहाँ लड़की पहले से बैठी थी।

'तुम माइक्रोवेव चला लेते हो?', लड़की सहज हो रही थी। साथ ही वह खूबसूरत व अनोखे ग्लास डाईनिंग टेबल को देख रही थी जो पूरा शीशे का बना था। यह नए तरह का डाइनिंग टेबल हालैंड की इंटीरियर डेकोरेटर चेन के यहाँ की कारीगरी है। दिव्या ने स्थानीय फ्रेन्चाइजी के यहाँ नेट पर वेबसाइट से देख कर आर्डर दिया था।

बापट को नाराज होना चाहिए था लेकिन वह लड़की को देखने लगा। लड़की अच्छी लग रही थी। वह हर तरफ से भरी-भरी व पूरी थी। उसके बाल पोनी टेल में बँधे थे जो इस समय देर रात सहज स्थिति को प्राप्त हो जाने से मादक हो उठे थे या उसे लग रहा था। भोगने के लिए लड़की बुरी नहीं है। बशर्ते वह क्लीन हो। अपने सीमित अनुभवों के बावजूद भी उसे लग रहा था कि बिस्तर पर वह लड़की को सँभाल लेगा। कालेज के समय की देखी देहक फिल्मों की एंद्रिकता की गमक को वह आज महसूस कर सक रहा था। जवान, स्वस्थ और एक तरह से सुंदर लड़की की उपस्थिति तमाम आशंकाओं के बावजूद उसे अच्छी लग रही थी।

उसने अपने दिमाग को झटका। यह खतरनाक होगा। कुछ बासी पड़ जाने वाले अनुभवों के लिए वह रिस्क नहीं ले सकता। वह जीवन में तरक्की की ऊपरी ऊँचाइयों पर जाना चाहता है और ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहता जिसे अपनी उन्नति के रास्ते में वह सहन न कर सके। नैतिकताओं के मूल्य को वह महत्व देता है, बाहरी तौर पर उनकी उपादेयता की वजह से। दिव्या के सामने खड़े होने के लिए भी जिस व्यक्तिगत नैतिक साहस की जरुरत है उसको भी वह खोना नहीं चाहता कम-स-कम आज की तारीख में।

'तुम कॉफी भी बना लेते हो?', लड़की बोल रही थी।

'मैं बना लेती हूँ?', लड़की बिना उसके जवाब के इंतजार के बोली। वाक्य के भाव में सम्मान जैसा था।

'अगर तुम बता सको कॉफी का सामान कहाँ है, या अनुमति दो कि मैं खोज लूँ।', लड़की ने वाक्य पूरा किया।

बापट लड़की की तेजी से हँसा।

'तुम्हारा नाम क्या है।'

'जूली! या... तुम्हें जो पसंद हो।' कह कर लड़की किचन की तरफ बढ़ी।

जाती लड़की के जीन्स की कसावट में उभरे कूल्हे व टाइट टाप में कमर के बल उसकी नजरों की जद में रहे। बापट ने इससे ज्यादा न बढ़ने के लिए अपने को आश्वस्त किया।

जिस समय अंतराल में लड़की दो कप में कॉफी लेकर लाई, वह माइक्रोवेव बंद कर सैंडविच निकाल चुका था।

कॉफी अच्छी बनी थी।

बापट ने सैंडविच की प्लेट उसकी तरफ बढ़ा दी।

'तुम लोगे?' , लड़की ने पूछा।

'मैं खाना खा चुका हूँ।'

लड़की ने प्लेट अपनी ओर खींच ली सैंडविच हाथ में लेकर काफी के घूँट के साथ खाने लगी।

'तुम शादीशुदा हो?', वह बोली।

'हाँ।'

'पत्नी मायके है।'

'हाँ।'

'अमीर आदमी हो।', उसने प्रमाणपत्र देने जैसा फैसला सुनाया।

बापट ने इस पर कोई प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं समझा।

'तुम कब से इस काम में हो।', वह बोला।

'हूँ...! तुम्हें कोई एतराज? 'कह कर वह खिलंदड़े अंदाज से मुस्कराई।

'इस धंधे में कैसे आई?'

'मेरे बारे में जानना चाहते हो?

'देखो, अगर झूठ बोलूँगी तो एक लाख लूँगी और सच के लिए दस लाख, मंजूर हो तो नगद जमा करो और जो सुनना हो सुनो।', कहते वह इतने जोर से खिलखिलाई कि बापट भी मुस्कराए बिना नहीं रह सका।

'तुम चार्टेड एकाउंटेंट हो।', उसने दूसरा सैंडविच उठा लिया था।

'तुम्हें कैसे मालूम।', बापट को आश्चर्य हुआ।

'उस कमरे में पूरी बुकशेल्फ कास्टिंग, एकाउंटस की किताबें, रिर्पोट और जरनल्स से भरी हैं।'

'तो मैं चार्टेड एकाउंटेंट हो गया।'

'किताबों को दिखाने का शौक दो लोगों को होता है, वकील और चार्टेड एकाउंटेंट। इस लिहाज से हुए।', वह आराम से थी।

'और क्या जानती हो चार्टेड एकाउंटेन्सी के बारे में।', उसकी आवाज में तंज था।

'उतना तो जानती ही हूँ जितना तुम मेरे वाले काम के बारे में नहीं जानते।', कहकर वह फिर अँगड़ाई के अभिनय करते हुये खिलखिलाई।

बापट आहत हुआ।

'क्यों तुम्हारी मशीन कुछ गड़बड़ है।', धीमी आवाज में कहते हुये वह गंभीर दिखने का अभिनय कर रही थी। कुटिल मुस्कान उसके होंठों के कोनों पर ठहरी थी जिसे वह बरदाश्त नहीं कर सकी और फटी खिलखिलाहट से हँस पड़ी।

उसकी कॉफी समाप्त हो चुकी थी। बापट को पीड़ा व क्षोभ के भाव उसके हँसने के पहले से ही आने लगे थे।

'चलो तुम्हें सोने की जगह बता दूँ।', प्रकट भाव में वह बोला। बचपन में निचले लोगों से बात न करने की नसीहत के महत्व को वह आज अच्छे से जान गया था।

लड़की को गेस्ट रुम में छोड़ कर वापस बेडरुम में आने के साथ वह अपने को व्यवस्थित करने लगा। उसे आज बहुत काम थे। दो आडिट रिर्पोट की समरी लिखनी थी। उसने आज दिन में फील्ड-स्टाफ के साथ उन पर चर्चा की थी। दोनो रिर्पोट जरूरी हैं। पिछले दो घंटे बरबाद हो गए। उसने सोचा था कि डिनर के बाद लिख लेगा। तब तक यह मुसीबत आ गई। कल आफिस में क्लाइंट से प्रीलन्च अप्वाइंटमेंट है। दोपहर बाद ससुरजी के बर्थडे की हाजिरी लगानी है। उसकी स्टेनो आजकल छुट्टी पर है। जरूरी कामों के लिए जोशी के टाइपिस्ट को लगाना पड़ता है। जोशी उसकी अमीरी को ही उसकी काबिलियत समझता है इसलिए जलता है। उस पर आज शाम से उसके सिर में हल्का दर्द है।

बापट ने तय किया कि रिर्पोट वह आज ही लिख लेगा। उसने लैपटाप बेड से सटी मेज पर जमाया और अपने आफिस ब्रीफकेस से सभी कागजी रिर्पोट और पेन ड्राइव निकाल लाया जिसमें उसकी आडिट टीम ने डेटा सेव किया था। जब तक वह पहली रिर्पोट को सरसरी देख रहा था सिस्टम बूट हो गया। सिस्टम पर पेन ड्राइव खोलने पर पता लगा कि तीन-चार फार्मेट जिसमें अंतिम बैलेन्स शीट भी है अभी कंप्यूटर से बने ही नहीं है। दूसरी रिर्पोट का भी यही हाल था और रिर्पोट समरी तो उसके ही जिम्मे का काम है जो अभी होना है। कागजी फार्मेट बने हुए थे। अभी वह काम की शुरुआत का ढंग सोच ही रहा था कि उसे बेडरूम के दरवाजे पर लड़की खड़ी दिखाई दी।

उसकी प्रतिक्रिया स्वतःस्फूर्त नाराजगी की हुई। लड़की की मादक उपस्थिति ने उसमें परिवर्तन नहीं किए, उसकी नाराजगी उसके चेहरे पर बनी रही।

'मुझे नींद नहीं आ रही है, रात में सोने की आदत मुझे नहीं है।', वह दरवाजे से थोड़ा अंदर आई।

'और मुझे सॉरी बोलना था, वो 'मशीन' वाली बात पर - तुम शायद नाराज हो गए।', कहते हुये वह बापट के बगल में बेड पर बैठ गई।

'किसी रंडी से इससे बेहतर प्रतिक्रिया की उम्मीद मैं नहीं करता।', पूरा वाक्य बापट ने अंग्रेजी में सपाटबयानी से बोला। 'रंडी' की जगह 'व्होर' और 'प्रतिक्रिया' की जगह 'कांप्लीमेंट' का प्रयोग किया।

लड़की के चेहरे पर तिलमिलाहट के भाव पूरी तरह उभरे - वह चुप रही फिर धीमे से हँसी। हँसी को और खोलते हुये उसने स्थिर भाव से कहा, 'तुम पैसे दोगे इसलिए कुछ भी कह सकते हो, कर सकते हो।'

बापट अब चुप रहा।

बैठे-बैठे लड़की लैपटाप के स्क्रीन को देखने लगी। उस पर एक्सेल साफ्टवेयर के फार्मेट मे बनी रिर्पोट खुली थी। नए फार्मेट बनाने के लिए बापट कागज में बनी रिर्पोट को सामने रख कर लैपटाप पर काम करने लगा। बापट इस काम में कुशल नहीं था, काम की अधिकता की खीज रही-सही कुशलता को प्रभावित कर रही थी। सरदर्द, खीज के समानुपातिक मात्रा में बढ़ रहा था। बीस मिनट के कार्य अंतराल में उससे अंतिम रुप से कोई रिर्पोट नहीं बनी। एक्सेल शीट की रो विड्थ बदलने पर उसकी हेडिंग गड़बड़ा जाती कभी सेलेक्श्न गलत होने पर डाटा गायब हो जाता और बापट को फार्मूला बार का पूरा इस्तेमाल नहीं आता था। बीच में वह बाम लाकर सर पर मल चुका था।

लड़की बगल में बैठी उसे और लैपटाप की स्क्रीन देख रही थी।

'लाओ मैं कर दूँ।', उसने जब कहा, बापट को पूरी तरह से वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ।

उसकी समझ तब खुली जब लड़की ने रिर्पोट और लैपटाप की ओर इशारा किया।

उसने लड़की को मौका देना उचित समझा। वह अपनी जगह से हट कर बगल हो गया।

ढेड़ घंटे में लड़की ने सारी रिर्पोट और बापट की दी डिक्टेशन की रिर्पोट समरी बना लैपटाप व पेन ड्राइव पर सेव कर दिया।

इस बीच दोनो में काम को लेकर ही बातचीत हुई। बापट ने महसूस किया लड़की को काम की जानकारी है और टाइपिंग में उसका हाथ साफ है। उसका काम हो चुका था। सर में उभरे तनाव और आज शाम की पड़ी आदत से वह अपने सर को अगूठे और तर्जनी से मलने लगा।

'लाओ मैं कर दूँ।', उसने जब फिर कहा, बापट को वाक्य का अर्थ फिर स्पष्ट नहीं हुआ।

उसने बापट के सर की तरफ इशारा किया।

वह चौंकना चाहता था। लड़की की मेहरबानियाँ बढ़ रही थीं। लड़की उसकी समझ से परे थी। शायद ऐसी ही एब्नार्मल लड़कियाँ इस धंधे में आती हैं। वह बेड पर लेट गया। उसे लगा लड़की अपनी गोद में उसका सर रख कर दबाएगी। उसे थ्रिल महसूस हुआ। एक रोमांटिक और इमोशनल आनंद। उसे कुछ यह साजिश जैसा लगा। यही इनका ट्रेड सिक्रेट है। जब वह यह महसूस कर रहा था, लड़की उसके सर के नीचे तकिया लगा पीछे की तरफ बैठ गई थी।

लड़की ने उसकी कनपटियों पर बाम लगाया फिर बरौनियों के ऊपर धीरे-धीरे मलने लगी। उसके हाथ सर पर थे लेकिन वह बापट से दूर थी, इतनी दूर कि उसकी मादा-गंध बापट तक नहीं आ रही थी जिसे खींचने की कोशिश उसने की।

'तुम कंप्यूटर पर अच्छा काम कर लेती हो।', अब उसके पास बातचीत के अलावा विकल्प नहीं था।

'हाँ, तुम नौकरी दोगे मुझे!', वह मुस्कराई।

'ऐसा क्यूँ कहा?', वह सतर्क हो गया था।

'तुम्हारे जैसा हर तीसरा आदमी नौकरी देने लगता है।', वह बोली।

'मेरे जैसा...!', उच्छवास जैसा भाव उसने अपनाया।

'तुम लोग जब दया करते हुये लगते हो तब अजीब से लगते हो।', उसका चेहरा बापट को नहीं दिख रहा था।

'अजीब? हम अजीब से लगते हैं!'

'असहज...अननेचुरल।'

'और तुम लोग?'

'...हम लोग अननेचुरल हैं ही।'

'बहुत अच्छे।', वह सहज होने लगा।

'बड़ा ज्ञान है तुम्हारे पास।', बिना किसी इंतजार के वह बोला।

'ज्ञान नहीं अनुभव। ज्ञान कुछ होता भी है?', जवाब हाजिर था।

'अच्छा मुझे पता नहीं था।', सर की मालिश से मिलते आनंद में कोई विघ्न वह नहीं चाहता था।

'क्या?'

'कि ज्ञान कुछ होता भी है?', उसके कहन में हास्य था।

'तुम्हें सब पता होना चाहिए, जिसके पास ताकत और पैसा होता है उसे सब पता रहता है। उसे जो पता रहता है उतना ही होता है।', वह सर के बीच दबा रही थी।

'बहुत अनुभवी हो।'

'नहीं ज्ञानी।', अब वह मुस्कराई। वह बेड से उतरी, सामने सोफे पर बेठ गई।

वह भी उठ कर बैठ गया। सामने बैठी लड़की अपने नाखून देख रही थी और बिना देखे, देख रही थी कि वह उसे देख रहा है। बापट को वह बिगड़ी बच्ची लग रही थी और स्कूली बच्चों जैसी तर्कशीलता उसे और बचकाना बना रही थी।

'बातें करना तुम्हें अच्छा लगता है।', वह बोला।

'नहीं।'

'फिर क्या अच्छा लगता है।'

'पैसे कमाना।'

'तुम्हें भी अच्छा लगता होगा, पैसे कमाना।', वह बिना रुके बोली।

'अच्छा। क्यूँ।', उसने जानना चाहा।

'क्यूँकि पैसे तुम्हारे पास हैं।'

'उससे क्या होता है।'

'जिसके पास जो चीज होती है या जो जहाँ होता है वो उसकी अपनी पसंद होती है और वह वहीं होने के लिए होता है।'

'पैसा भी।'

'कुछ भी।'

'यह ज्ञान है या अनुभव?'

'दर्शन।', वह फिर मुस्कराई।

'दर्शन तुम्हारा प्रिय विषय है।', उससे रहा नहीं गया।

'नहीं।', कह कर सोफे से उतरी और दीवार पर लगी बड़ी सी आयल पेंटिंग देखने लगी जिसमें झरने के नीचे तीन औरतें नहाने की तैयारी कर रही थीं और बगल में दो मृगछौने अपनी स्वाभाविक जगह थे, सामान्यतः किसी, इस तरह कि पेंटिंग में जहाँ वो होते हैं।

'मेरे प्रिय विषय पब्लिक एडमिन और फाईनेन्स मैनेजमेंट हैं। दोनों मेरे धंधे के लिए जरूरी हैं।', उसने जारी रखा।

'इन दोनों में अभी क्या कर रही हो।'

'तुम्हारा मनोरंजन।'

'अच्छा! क्यूँ?'

'क्यूँकि तुम पैसे दोगे।'

लड़की गंभीरता से बात कर रही थी। बापट इस बेमतलब व निरर्थक बातचीत में अपनी भूमिका को लेकर संदेह में था। उसे जीवन नें सार्थक व उपयोगी चीजों पर श्रम व समय खर्च करना सिखाया था।

'पैसे तो मैं दूँगा ही, मैंने कहा था।'

'फिर भी, मैं कमाना चाहती हूँ।'

'तुम मुझसे प्रेम कर सकती हो?', यह कहते हुये बापट ने योजनागत कुछ नहीं सोचा, कई सारी बहकती बातों में उसने यह स्वतंत्रता ले ली।

'कैसा प्रेम?'

'जैसा देवदास और चंद्रमुखी में था।' उसके बहकने को फिल्मी उड़ान मिल रही थी।

लड़की उसकी ओर गौर से देखने लगी और मुस्कराई। यह मुस्कराहट शाम से लड़की के चेहरे पर आने वाली हर मुस्कराहट से अलग थी। जैसी कभी काकोली मुस्कराती थी या कभी-कभी दिव्या। लड़कियों वाली स्वाभाविक मुस्कराहट।

'नहीं। वह प्रेम नहीं था।', वह बोली।

'अच्छा!'

'देवदास जमींदार था, चंद्रमुखी प्रैक्टीशनर नाचनेवाली थी।'

'तो!'

'चंद्रमुखी एक स्ट्रक्चर में थी।'

'तो!'

'तो वह प्रेम नहीं करती थी। उसके लिए वह स्केप था - भागना था।'

'और देवदास?'

'वह किसी से प्रेम नहीं करता था। वह खुद ही स्ट्रक्चर था। ताकतवर प्रेम नहीं करते हैं। स्ट्रक्चर के लोग प्रेम कभी नहीं करते हैं।'

'मैं क्या हूँ?'

'तुम स्ट्रक्चर में हो।'

'और तुम?'

'मैं उससे बाहर हूँ? क्यूँकि मुझे कोई नहीं जानता।', बोलते समय वह हँसी।

'तुम बहुत कुछ जानती हो। बहुत सारी चीजों के बारे में।', बापट बोला।

'जो जानती हूँ वह जानती हूँ।', लड़की बोली।

'मैं सोचता था रंडियाँ पैर फैलाने का काम ही जानती हैं। तुम जानती हो न यह काम, कपड़े उतार, पैर फैला कर छत देखने का काम।',

बापट ने यह वाक्य फिर अंग्रेजी में बोला। 'रंडियाँ' के लिए फिर 'व्होरस्', 'फैलाने' के लिए 'स्प्रेड' तथा 'छत' के लिए 'सीलिंग' का प्रयोग किया।

लड़की ने शाम से पहली बार बापट की बात की प्रतिक्रिया नहीं दी। बापट को स्पष्ट लगा वह अपने मकसद में कामयाब हुआ। लड़की ने अपने को अपमानित महसूस किया था। वह उठी, दरवाजे से बाहर निकल गई। निकलने के बाद दरवाजा जोर से बंद हुआ।

लड़की की नाराजगी से बापट को आदिम खुशी हुई। देर से इस पल का इंतजार वह कर रहा था। हँसते हुए उसे लगा कि वह ऐसे भी सोच सकता है कि प्रेम का दरवाजा उसके लिए बंद हो गया।