प्रेम के पाँच नियम / राजकिशोर

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कहते हैं, प्रेम की दुनिया में नियम का क्या काम! यह वह मुकाम है, जहाँ आकर सारे नियम फेल कर जाते हैं। हाल तक मैं भी यही मानता था। लेकिन तब तक एक आदतन प्रेमी से मुलाकात नहीं हुई थी। वह उस नस्ल का आदमी है, जिसके बारे में किसी शायर ने कहा है, मिजाज बचपन से आशिकाना है। फ्रांस के मशहूर दार्शनिक रूसो ने भी बचपन से ही प्रेम करना शुरू कर दिया था। वे जब बच्चे थे, अपनी नर्स को दिल दे बैठे थे। हमारे इस आशिक ने अपने जीवन के इस पहलू पर प्रकाश नहीं डाला। लेकिन उसने जो कुछ बताया, उसके आधार पर प्रेम की एक छोटी-सी नियमावली बनाई जा सकती है।

नियम संख्या एक : प्रेम तुम्हारे लिए है, तुम प्रेम के लिए नहीं हो। यह एक बुनियादी नियम है। जो प्रेम करता है, वह अक्सर प्रेम में खो जाता है। उसे किसी और बात की सुध-बुध नहीं रह जाती। इससे ज्यादा आत्म-संहारक घटना नहीं हो सकती। सवाल यह है कि प्रेम तुम अपने को समृद्ध करने के लिए कर रहे हो या अपने को लुटा देने के लिए? लुटाने के बाद तो फकीरी ही हासिल हो सकती है। यह आत्महत्या है, प्रेम नहीं। सच्चा प्रेमी कभी भी अपने को, अपने हितों को नहीं भूलता। वह किसी पहुँचे हुए सिद्ध की तरह हमेशा जागरूक रहता है। यों भी कह सकते हैं कि जैसे द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन की नजर मछली की आँख की पुतली पर टिकी हुई थी, वैसे ही प्रेमी भी उस सब पर नजर गड़ाए रहता है जो उसे प्रेम से मिल सकता है। दूसरे शब्दों में, प्रेम साध्य नहीं, साधन है। जो इस भेद को भूल जाता है, वही प्रेम में विफलता हाथ लगने पर टेसुए बहाता है। सच्चा प्रेमी नए शिकार की तलाश में निकल जाता है।

नियम संख्या दो : हर प्रेम पहला प्रेम है। बहुत-से लोग अपने पहले प्रेम की कहानियाँ सुनाते हैं। बताते हैं, यह वह प्रेम है जिसकी स्मृति आखिरी साँस तक बनी रहती है। यह प्रेम में भावुकता का दखल है, जिससे हर समझदार प्रेमी को बचना चाहिए। उसे इस तरह अभिनय करना चाहिए जैसे हर प्रेम उसके लिए पहला प्रेम हो। इससे उसके प्रस्तुतीकरण में गहराई आएगी। अगर सचमुच में उसका कोई पहला प्रेम था, तो उसे अपना बचपना मान कर भूल जाना चाहिए। नहीं तो भविष्य में प्रेम करने में मुश्किल पेश आ सकती है। अगर प्रेमिका को संदेह हो जाए कि तुमने पहले भी किसी से प्रेम किया था, तो उसे यह आश्वस्त करना तुम्हारा फर्ज है कि वह आसक्ति थी, प्रेम नहीं। इसके बाद तुम्हें अपनी आसक्ति को प्रेम साबित करने की मशक्कत करनी होगी। यह मशक्कत तभी कामयाब हो सकती है, जब तुम अपने को इस तरह पेश कर सको जैसे तुम्हारी जिंदगी में प्रेम की किरण यह पहली बार उतरी है और तुम महसूस कर रहे हो कि तुम्हारे जैसा भाग्यशाली कोई नहीं है।

नियम संख्या तीन : हर प्रेम आखिरी है। प्रेमी को प्रेमी जैसा दिखने के लिए यह जरूरी है कि वह हर प्रेम को आखिरी मान कर चले, जिसके बाद करने को कुछ बचा नहीं रहेगा। इससे उसके भीतर संघर्ष करने की शक्ति आएगी। वह अपने वर्तमान प्रेम को सफल बनाने के लिए अपने सभी संसाधन झोंक देगा। अगर वह वर्तमान प्रेम को आखिरी नहीं समझेगा, तो उसके प्रेम-व्यापार में शिथिलता आ सकती है। प्रेमिका उसकी गंभीरता में शक कर सकती है। वह सोच सकती है कि उसके प्रेमी ने बहुत कुछ अपने पास बचा रखा है। ऐसे मतलबी आदमी को कोई क्यों अपना सर्वस्व दे? जो युद्ध अधूरे मन से लड़ा जाता है, उसमें सफलता नहीं मिलती। जो प्रेम अधूरे मन से किया जाता है, उसमें फूल भले लग जाएँ, पर फल कभी नहीं लगते।

नियम संख्या चार : एक से दो बेहतर। वे बेवकूफ हैं जो एक समय में एक ही चिड़िया का शिकार करते हैं। इन्हें चिड़ीमार ही मानना चाहिए। सच्चा प्रेमी वह है जो अपने सारे अण्डे एक ही टोकरी में नहीं रखता। कभी टोकरी गिर गई, तो सारे अण्डे चूर-चूर हो जाएँगे। आजकल सभी निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे अपना सारा पैसा किसी एक कंपनी में या निवेश के किसी एक प्रकार में न लगाएँ। उन्हें अपने निवेश को डाइवर्सीफाइ करना चाहिए, ताकि एक जगह पैसा डूबे तो दूसरी जगह बढ़ जाए। इसलिए भावनात्मक सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि एक समय में कम से कम दो स्थानों पर हाथ आजमाया जाए। इससे अधिक की कोशिश करना लालच है, जिसके लिए प्रेम के शास्त्र में कोई स्थान नहीं है। वैसे, एक ही समय में दो-दो से प्रेम करना मामूली साधना नहीं है। बड़े-बड़ों को पसीना आ जाता है। अतः शुरू-शुरू में एक समय में एक से ही काम चलाना चाहिए।

नियम संख्या पाँच : विफलता से मत डरो। जीवन के सभी क्षेत्रों में लोगों को विफलता से डर लगता है। इसलिए बहुत-से जरूरी काम शुरू ही नहीं हो पाते। प्रेम भी एक ऐसा ही क्षेत्र है। यहाँ विफलता आदमी को अपनीे ही नजर में हास्यास्पद बना देती है - एक आदमी, जिसने जिंदगी में पहली बार भीख माँगी और वह भी न मिली। ऐसे कातर-हृदय व्यक्तियों को प्रेम के मैदान में नहीं उतरना चाहिए। उन्हें अपने कौमार्य को, अपने स्वाभिमान की तरह, बचा कर रखना चाहिए। सच्चे प्रेमी विफलता से कभी नहीं डरते। वे जानते हैं कि हर बंसी में मछली नहीं फँसती, न ही हर सीपी में मोती होता है। न ही मृग सिंह के मुख में स्वयं प्रवेश करते हैं। अतः तुरन्त ही फल मिल जाए, इसकी चिंता किए बगैर अपना प्रयत्न जारी रखना चाहिए। प्रयत्न सफल न हो, तो कोई बात नहीं। उसके दुख में डूब कर हताशा का शिकार हो जाना पौरुषहीनता है। इतनी बड़ी दुनिया है। इतना इफरात समय है। कहीं न कहीं तो सफलता हाथ लगेगी, यह सोच कर सच्चा प्रेमी अपने ध्येय से च्युत नहीं होता।