प्रेरक प्रसंग-14 / बुद्ध

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » संकलनकर्ता » अशोक कुमार शुक्ला  » संग्रह: प्रेरक प्रसंग
आम्रपाली का उद्धार
प्रेरक प्रसंग

एक बार तथागत बुद्ध वैशाली पहुंचे | समाचार सुनकर वहां की प्रसिद्ध न्रत्यांगना अम्बपाली भी उनके उपदेश सुनने पहुची| तथागत एक वृक्ष की छाया में बैठे थे और हजारों उपासक उनके उपदेश सुन रहे थे | उपदेश समाप्त होने पर अम्बपाली ने नतमस्तक होकर तथागत को अपने यहां अगले दिन भोजन पर आमंत्रित किया |वह बोली, ”तथागत! आपके चरण कमलों से इस दासी की कुटिया पवित्र हो जायेगी |”

तथागत ने अम्बपाली की प्रार्थना स्वीकार कर ली | वहां उपस्थित राजकुमारों को यह अखरा | उन्होंने कहा, “ यह वेश्या है, आपके चरणों योग्य नहीं है | आपके लिए राजमहल प्रस्तुत है|” तथागत के लिए राजा और वेश्या में क्या अंतर है ? तथागत सम्द्रष्टि हैं|”

मार्ग में ख़ुशी से दिवानी अम्बपाली से राजकुमारों ने कहा ‘अम्बपाली ! हम तुझको एक लाख स्वर्ण मुद्रा देंगे, तू तथागत को कल के भोजन के लिए हमारे यहां आने दे |’ 

अम्बपाली ने उत्तर दिया, ‘आर्य पुत्रों! यह नही हो सकता | यदि आप समस्त साम्राज्य भी मुझे दे देते, तो भी मै इस निमंत्रण को नहीं बेच सकती | यह गौरव बेचने या अदला बदली करने की चीज़ नहीं है|

‘अम्बपाली ने बुद्ध के प्रति अनुपम श्रद्धा दिखाई और भोजन के बाद अपने आम्र उपवन को बुद्ध और भिक्खु संघ के लिए समर्पित कर दिया और स्वयं भी भिक्खुणी हो गयी|