प्रोजेक्ट ऑक्सीजन / कमल

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वर्ष 2006 का वर्तमान साहित्य: प्रेमचंद कथा प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त कहानी.

जेल जहां न जाने कितने कैदी, कितने आश्चर्य बंद रहते हैं। हर कैदी अपने साथ एक कहानी लिये होता है। कुछ बंदियों की कहानी में तो बार-बार एक बात सर उठाती है कि वे जेल में क्यों बंद हैं ? इस क्यों का सहज उत्तर नहीं मिल पाता। कभी-कभी तो ऐसी भी कहानियां कि जिन्हें वहां नहीं होना चाहिए वे ही वहां बंद हैं ।

ऐसी ही एक जेल का गेट खुला और प्रोबेशन पदाधिकारी अमन ने अंदर प्रवेश किया। कार्यालय में बैठ कर उसने फाइल खोली, मुख्यालय से आये कारा महानिरीक्षक के पैरोल जांच आदेश पर एक नजर डाली। उसमें उन सभी विन्दुओं का क्रमवार उल्लेख था, जिन पर उसे बंदी से पूछताछ करनी थी। जिसके बाद प्रतिवेदन देना था कि उस बंदी को पैरोल पर जाने की अनुमति मिलनी चाहिए या नहीं। फाइल का अध्ययन करने तक जेल का सिपाही बंदी को ले आया। उसका अनुमान था, किसी बीमार से बंदी से सामना होगा। लेकिन औसत कद-काठी वाले उस नौजवान बंदी की चमकती आंखों से अमन प्रभावित हुए बिना न रह सका। आमतौर पर बंदी कुछ भी बताने से घबराते हैं, उन्हें इस बात का डर बना रहता है कि न जाने कौन सी बात बाद में उनके विरुद्ध चली जाए। अतः अपनी इस तरह की हर पूछताछ का प्रारंभ वह वातावरण सहज बनाते हुए ही किया करता, दूसरे अधिकारियों की तरह कठोर अंदाज में नहीं।

“देखो मैं तुम्हारी मदद के उद्देश्य से आया हूं। तुम्हारी पत्नी बीमार है।मेरी रिपोर्ट के ही आधार पर तुम्हें पैरोल मिलनी है, इसलिए मेरी बातों का ठीक-ठीक जवाब देना।”

बंदी के होठों पर एक थकी सी मुस्कान फैल गई, “...तो रचना फिर से बीमार है। उसे आज तक वैवाहिक जीवन का कोई सुख नहीं दे पाया। इसीलिए उसे समझाया था, मुझसे विवाह मत करो। ...खैर आप पूछिए सर, जो भी पूछना है । मैं आपको बिल्कुल ठीक-ठीक जवाब दूंगा। वैसे भी मेरे पास छुपाने को कुछ नहीं है।”

“तुम पर लगे आरोप के बारे में कुछ बताओ ।”

अमन के प्रश्न ने बंदी की चमकती आंखों में अतीत के स्याह, सफेद, रूपहले कई तरह के पर्दों को लहराते देखा। जिन पर किसी मीटिंग के दृश्य उभरने लगे। विकसित देश के एक बड़े से शहर के एक बड़े से कांफ्रेंस रूम में वह मीटिंग हो रही थी। कांफ्रेंस रूम के बाहर सूरज की तेज धप, तेज हवा और गर्म लू के थपेड़े थे। लेकिन भीतर ए.सी. की ठंडक में स्वर्ग फैल हुआ था। भव्य फानूसों से झरता कृत्रिम प्रकाश वहां के कीमती कालीन, कीमती पर्दों, कीमती कुर्सियों वाले उस कमरें के कौतुक को बढ़ा रहा था। चलती-फिरती धरती की अप्सराएं वहां कीमती लोगों की सेवा में तत्पर नजर आ रही थीं। वे लोग इस धरती की हर चीज की कीमत तय करने की हैसियत रखते हैं, इंसानों की भी। वहां पर विकसित, विकासशील और तीसरी दुनिया के सफल व्यापारी घरानों के चमकते-दमकते प्रतिनिधयों को खास तौर पर बुलाया गया था। वह एक खास मौका जो था। एक ऐसे व्यापार की शुरुआत का जिसमें मुनाफे की अपार संभावनाएं पिछले मुनाफों के सभी रिकार्ड तोड़ देने वाली थी। मेहमानों के लिए तो यह सूचना ही रोमांचक थी कि उस नये व्यापार की उत्पादन लागत लगभग शून्य है। उत्पादन में प्रमुख समस्या बनने वाले मजदूर वर्ग से पूरी तरह मुक्त, उस व्यापार की सफलता केवल ‘टू पी.’ अर्थात् पैकेजिंग और प्रोपेगंडा (प्रचार) पर निर्भर थी। पैकेजिंग मशीनों द्वारा और प्रचार इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर सुंदर, मादक और मस्त प्रचार बालाओं द्वारा। इस प्रकार उस व्यापार में तरक्की फास्ट होगी, यह भी भला कोई पूछने की बात है! प्रचार का ही तो कमाल है कि मिट्टी को सोना कह कर बेच दे। उस पर तुर्रा ये कि ग्राहक अंत तक नहीं जान पाता, उसने मिट्टी खरीदी है, सोना नहीं। कुछ ऐसा ही होता है प्रचार और प्रचार-बालाओं ( जो बला की सुंदर होती हैं ) का तिलिस्मी संसार।

हौल की बत्तियां धीमी हो गईं। स्टेज की बगल में लगे पर्दे पर एल.सी.डी. प्रोजेक्टर की रोशनी चमकने लगी। डायस पर आने के बाद चमकते मेजबान ने बोलना शुरू किया, “हमारी कंपनी ने ऑक्सीजन को पैकेट बंद कर बेचने के व्यापार की योजना बनायी है।”

“क्या...?” कुछ लोगों के मुंह खुले के खुले रह गये।

डायस से आवाज निरंतर आ रही थी, “आप लोग आश्चर्य न करें। जैसे पहले किसी ने नहीं सोचा था कि प्रकृति में मिलने वाला पानी बोतल में बंद हो कर बिकेगा और करोड़ों के टर्न-ओवर वाला बिजनेस बन जाएगा। वैसे ही आज आपके मन में आशंकाएं उठ सकती हैं। लेकिन मै आपको आश्वस्त करता हूं कि प्राकृतिक रूप से मिलने वाली मुफ्ता हवा के इस व्यापार में करोड़ों नहीं अरबों की कमाई है। तेजी से बढ़ रहे वायु प्रदूषण के बारे में आप सभी जानते हैं। महानगरों में तो यह एक बड़ी समस्या बन चुका है। प्रदूषित हवा के कारण हो रही बीमारियों ने स्वच्छ हवा के लिए सब की चिन्ताएं बढ़ा दी हैं। लोगों की इन बढ़ती चिन्ताओं का हमें फायदा उठाना है। इन चिन्ताओं को और भी बढ़ा कर। इस तरह देखिए तो हमारे बाजार मानसिक रूप से तैयार हैं।”

उसकी बातें सुन कर अपनी जगहों पर बैठे कुछ लोग बेचैन नजर आने लगे। वे सोच रहे थे, इतना धांसू

आइडिया पहले उन्हें क्यों नहीं आया ?

“इस व्यापार की सबसे जरूरी बात, इसकी दूसरी ‘पी.’ यानि प्रचार है। जितना जोरदार और आकर्षक प्रचार उतना ही जोरदार और आकर्षक मुनाफा। आइये इसे देखते हैं।” कहते हुए उसने एल.सी.डी. आन कर दिया।

खूब तेज और चमकदार रोशनी के बीच स्क्रीन पर बिकनी में जकड़ी और सुदरता के उन्मुक्त आकाश पर स्वतंत्र उड़ान भरती एक प्रचार बाला नीले तरण ताल से उभरी। सबसे पहले उसकी उत्तेजक अदाओं और गदराये बदन पर नजर जाती थी, उसके बाद ही उस लाल रंग के खूबसूरत छोटे से बटुएनुमा पैकेट पर। जिसे लहरा कर वह बोली, “ मेरे होठों की लाली भरी है इसके जीवनदायी ऑक्सीजन में।” उसका वाक्य समाप्त होते न होते पूरी स्क्रीन पर वह बटुएनुमा पैकेट फैल गया और नेपथ्य से भारी आवाज गूंजने लगी, “ सौ करोड़ के संयंत्र में विशेष रूप से आपके लिए भरी गई ऑक्सीजन, जिसमें है जीवनदायी ऑक्सीजन के साथ-साथ और भी बहुत कुछ....” इसके बाद स्क्रीन पर वही आधुनिक मेनका अपने उन्मुक्त और उदार बदन के साथ फिर से नजर आने लगी।

प्रचार फिल्म समाप्त होने के बाद वहां एक पल को सन्नाटा छाया रहा, फिर हाल तालियों से गूंज उठा। मेजबान के चेहरे पर गर्व और व्यापार धधक रहे थे।

“भई वाह, क्या योजना है।” एक कीमती मेहमान हर्ष से पुलक उठा।

जितने भी मेहमान योजना और उसके व्यापार के आयतन का अनुमान लगा चुके थे, उनके चेहरों पर हर्ष अपनी छटा बिखेरने लगा था। जो अभी कम समझ पाये थे, उनके चेहरों पर संदेह अटका हुआ था। जो अभी तक नहीं समझ पाये थे, उनके चेहरों पर आशंकाओं के कैक्टस उग आये थे। ऐसे ही कैक्टस उगे एक चेहरे ने अपनी बात कही, “क्षमा करें, आप विकसित देशों की बात और है। परन्तु हमारे देश में बड़े बांध बनने पर भी लोग तूफान खड़ा कर देते हैं। ऑक्सीजन के इस तरह पैकेट में बंद होते ही वे लोग सड़कों पर उतर आयेंगें।”

“आप लोग जरा भी चिन्ता न करें।” मेजबान की मुस्कुराती आवाज गूंज गई, “ चूंकि हमारा सबसे बड़ा बाजार अधिक आबादी वाले आपके ही देश हैं। इसलिए हमारे विशेषज्ञों ने ‘प्रोजेक्ट ऑक्सीजन’ में आप जैसे सभी देशों का विशेष ध्यान रखा है। वैसे भी हम इतने समर्थ हैं कि अपने व्यापार के विरुद्ध उठने वाली हर आवाज को दबा दें। खैर, आपके इस और इस तरह के और भी कई प्रश्नों का जवाब देने के लिए मैं अपनी रिसर्च एक्सपर्ट मिस लिण्डा को डायस पर आमंत्रित करता हूं। लेडीज एण्ड जेंटलमैन प्लीज वेलकम विद एक बिग हैण्ड टू यंग, एनर्जेटिक एण्ड गार्जियस मिस लिण्डा (देवियों और सज्जनों कृपया जोरदार तालियों से युवा, उर्जावान, अतिसुन्दर और सेक्सी मिस लिंडा का स्वागत कीजिये )।”

हौल में गूंजती तालियों के बीच अप्सरा-सी, बहुत ही खूबसूरत स्त्री अपने पूरे शबाब के साथ स्टेज पर अवतरित हुई। तीखे नैन नक्श, सुराहीदार गर्दन उस पर झूलते कंधों तक कटे सुनहरी केश। उसका गहरे गले का स्लीवलेस टाप, उरोजों को ढंकने में कम और दिखाने में ज्यादा काम आ रहा था। वह वहां हर सवाल का जवाब देने के लिए आयी थी, जबकि लोग उसे देखने के बाद उससे सवाल पूछना ही भूल गये थे। यह देख मेजबान प्रसन्न हो रहा था। लिण्डा ने आकर एक स्विच ऑन किया, स्क्रीन पर एक कार्य-योजना का चित्र उभर आया।

“कृपया आप सब अपने सामने रखी फाइल का पेज थर्टीन खोलें।” मिस लिण्डा की खनकती आवाज वहां बैठे लोंगों को वर्षा की प्रथम फुहार-सा भिंगोती चली गई। उस खनकती आवाज में मदिरा की मदहोशी और टपकते ताजे मधु की मिठास के साथ-साथ नागपाश-सी जकड़ भी थी। शायद इसीलिए किसी ने भी अपने सामने पड़ी फाइल को खोलने का प्रयास नहीं किया, कैक्टस उग आये चेहरों ने भी नहीं।

लिण्डा खनक रही थी मदिरा की तरह, मधु की तरह, नागपाश की तरह, “...जिसे आप सब एक समस्या समझ रहे हैं दरअसल हम उस पर पहले ही विचार कर चुके हैं इसलिए कह सकते हैं कि वह कोई खास समस्या नहीं है। आंदोलन तो लोग तब करते हैं, जब समस्या उनके सर पर चढ़ चुकी होती है। इसीलिए आंदोलन अक्सर फेल हो जाते हैं। जबकि हम व्यापारी सारे रिस्क फैक्टर, आई मीन सारी समस्याओं पर पूर्व में ही विचार कर चुके होते हैं। हमारे रिसर्च एण्ड डाटा विभाग ने बाकायदा आपके देशवासियों के मनोविज्ञान का अध्ययन किया है। आप पेज वन सिक्सटीन पर देख सकते हैं, रिपोर्ट में हर स्थिति का न केवल पूर्व आकलन किया गया है बल्कि उससे निपटने के अचूक उपाय भी कर लिये गये हैं। अगर आपके देश में ऑक्सीजन की पैकेजिंग के खिलाफ विरोध होता है तो तुरंत ही वहां सांप्रदायिक दंगा करवा दिया जाएगा। प्रेस और मीडिया दंगों को पूरा कवरेज देंगे, टी.वी. पर लाइव दिखाया जाएगा। इस प्रकार आपके लोगों का पूरा ध्यान उन दंगों की ओर चला जाएगा और हमारा प्रोजेक्ट ऑक्सीजन पिछले रास्ते घुस कर वहां अपनी जड़ें जमा लेगा। सरकारों की फिक्र आप बिल्कुल न करें, सब कुछ पहले ही मैनेज हो चुकेगा। हमारे प्रोजेक्ट के विरूद्ध उठने वाले आंदोलनों से निपटने का यह सबसे सटीक और आसान उपाय है।” लिण्डा ने रुक कर अपने सामने रखे मिनरल वाटर का एक घूंट पी कर गला तर किया, “ याद कीजिए आपके देश के बंटवारे के समय वहां भड़के दंगों ने बंटवारे की कुटिल राजनीति को नेपथ्य में ठेल दिया था। यदि वहां दंगे न भड़के होते तो क्या वहां की जनता बंटवारे के खिलाफ गोलबंद न हो जाती ? तब उन लोगों ने देश बांटना था, आज हम लोग ने वहां व्यापार करना है। तब से आज तक आपके देशों ने भले ही काफी तरक्की कर ली है, लेकिन सांप्रदायिकता के मामले में अभी भी वहीं का वहीं हैं। मंदिर-मस्जिद के नाम पर आज भी वहां दंगे करवाना सबसे आसान काम है, जिसकी आड़ में न जाने कितना कुछ इधर से उधर कर लिया जाता है।”

मुस्कान बिखेरती लिण्डा का जवाब पूर होते-होते वहां नीरवता छा गयी। शंकाओं का समाधान होता जा रहा था। कांटों वाले कैक्टस का कायांतरण हरी-भरी दूब में होने लगा था। जिसमें लिण्डा का लावण्य मुख्य भूमिका अदा कर रहा था।

“...लेकिन ऐसी पैकिंग कितना चलेगी? मेरा मतलब है ऑक्सीजन तो हर जगह आसानी से उपलब्ध है। वह भी निःशुल्क! सभी जीव उसमें बगैर किसी खर्च के सांस लेते हैं। कितना बिकेगा यह...?”

एक और कैक्टस दिखायी दिया।

लिण्डा की मादक आवाज फिर से खनकने लगी, “ जब पहली बार पानी को बोतल-बंद करने का विचार आया था, तब भी कुछ ऐसी ही आशंकाएं उठी थीं।” उसकी एक-एक बात सीधी श्रोताओं के कानों के रास्ते उनकी आत्माओं प्रवेश करती जा रही थी। कोई भी अतृप्त या असंतुष्ट नहीं बचा था,” आज की तारीख में देख लीजिए वे सारी आशंकाएं निर्मूल हो चुकी हैं। पानी के उसी व्यापार से जुड़ी कंपनियां करोड़ों-अरबों कमा रही हैं। पानी की बोतलें उन जगहों पर भी धड़ल्ले से बिकती हैं, जहां पानी सहज ही उपलब्ध है। इस डर के कारण कि केवल बोतल-बंद पानी ही सुरक्षित है। पानी की तुलना में वायु को प्रदूषित करना और भी आसान है। यदि वायु प्रदूषित न भी हो तो भी वायु प्रदूषित हो गयी है, यह प्रचार करना कठिन कहां है ? प्रचार में बड़ी ताकत है। अब हमारी बात की सत्यता की जांच कौन करेगा? यदि कोई करेगा भी तो उसकी जांच रिपोर्ट वैसी ही होगी, जैसी हम चाहेंगे। इसका पूरा विवरण आपके सामने पड़ी प्रोजेक्ट - ऑक्सीजन की रिपोर्ट के अध्याय तेईस में है। हम प्रोजेक्ट - ऑक्सीजन का पेटेन्ट भी करवा चुके हैं।”

इसके बाद जो वहां जादूई नीरवता उतरी, तो फिर कोई कैक्टस नहीं उगा।

“वाह सर! मान गये आपको!”

“...न इसमें को खास उत्पादन लागत है और न ही कोई लेबर प्राब्लम!”

“आप तो जीनियस हैं सर, जीनियस! “

“सुंदर प्रचार बालाओं और सुंदर पैकेजिंग से करोड़ों-अरबों कमाने का लाजवाब व्यापार है, यह तो !”

मेजबान को घेरे खड़े मेहमानों के चेहरे उत्तेजना से दमक रहे थे।

वह चहक रहा था, “ इसीलिए तो हम टॉप पर हैं। हम विकसित हैं। लागत कम और मुनाफा ज्यादा यही तो है हमारे विकास का राज। और वह दिन दूर नहीं जब हम बगैर उत्पादन के बैठे-बैठे मुनाफा कमायेंगे...ढेर सारा मुनाफा।”

मेजबान और उसकी टीम लीडर मिस लिण्डा मेहमानों को समझाये जा रही थी और मेहमान समझते जा रहे थे, वह सब कुछ जो भी मेजबान उन्हें समझाना चाहता था। एक बहुत बड़ा व्यापार अपने संभावित बड़े मुनाफे के साथ उनके दिलो-दिमाग में हलचल मचा चुका था। बातें करते हुए सब लोग बगल वाले डायनिंग हाल की ओर सरकने लगे, जहां सुरा और सुदरियों का एक भीगा-भीगा, मस्त और लंबा दौर उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।

♦♦ • ♦♦

वह कहानी सुना रहे बंदी से अमन बोर होने लगा था। उसने टोकते हुए कहा, “ तुम ये बे-सिर-पैर की कहानी मुझे क्यों सुना रहे हो ? “

“कमाल है सर, आपने ही तो कहा था कि शुरु से बताऊं किस जुर्म में बंद हूँ ।”

“वो तो ठीक है लेकिन तुम्हारे जेल आने में यह विकसित देश की कहानी कहां फिट हो रही है ?” अमन की बोरियत अभी भी बनी हुई थी ।

“बस अब इसके फिट होने पर ही आ रहा हूं, जरा धैर्य रखें। मैंने इस कहानी की पूरी रिपोर्ट बना कर एक अखबार को भेज दी। उसका संपादक भी इसे बगैर किसी काँट-छाँट के छापने को तैयार हो गया। सुबह तक तो यह खबर सबके सामने होती। लेकिन न जाने कहां चूक हो गई। सरकारी खुफिया-तंत्र सक्रिय हो चुका था। देखते ही देखते उनके लोग अखबार के कार्यालय आ धमके। अखबार की सारी प्रतियां जला दी गयीं और मैं यहां पहुंचा दिया गया।”

“...लेकिन तुम पर तो गुजरात के दंगे में शामिल होने का आरोप है।” वे अमन की नौकरी के प्रारंभिक दिन थे। उसने सपने में भी न सोचा था कि सामान्य से दिखने वाले बंदी की जाँच में वैसा पेंच आयेगा।

“लगता है आप इस नौकरी में नये-नये आये हैं वर्ना मेरी बात सुन कर यूँ आश्चर्य न करते। वैसे भी जब यह पूर्व निश्चित हो कि किसे पकड़ना है और क्या आरोप लगाने हैं तो फिर बाकी सब बातें औपचारिकता मात्र रह जाती हैं। और तब गिरफ्तारी बड़ी ही आसानी से गुजरात, मिजोरम, असम, कश्मीर कहीं भी दिखलायी जा सकती है। रही बात मेरी तो मैं आज तक कभी भी झारखंड से बाहर नहीं गया । गुजरात के दंगे में कैसे शामिल हो सकता हूँ ?”

“मगर तुम्हारे केस रिकार्ड में तो...”

“झूठ है वह सब ! सफेद झूठ !!” उसने बीच में ही अमन की बात काट दी, “ यदि मुझ पर दंगे का ही आरोप सच था तो भी इतनी जल्दी क्या थी, महज चार माह में ही मुकदमा पूरा कर के सजा सुना दी जाए ? जबकि सामान्य मुकदमों में भी पांच-सात साल तो यूं ही गुजर जाते हैं। सच तो यह है कि मैंने उस व्यवस्था के विरुद्ध लिखा था जो अपने लाभ के लिए आम आदमी और नैसर्गिक प्रकृति को नष्ट कर देना चाहते हैं।”

“चलो तुम्हारी बात ही सच है कि तुम गुजरात के दंगों में शामिल नहीं थे। तब भी तुम्हें वैसा लेख लिखने की क्या आवश्यकता थी? अगर वे लोग स्वच्छ ऑक्सीजन की व्यवस्था कर रहे थे तो उसमें बुरा क्या था ? प्रदूषण

के इस दौर में ऐसा तो होगा ही ।”

"व्यवस्था होने की आपकी बात से मैं भी सहमत हूं। लेकिन व्यवस्था ही होनी चाहिए, व्यापार नहीं। फिर इस तरह के प्रदूषण के लिए क्या आम आदमी जिम्मेवार है?” बंदी ने पूरी गंभीरता से कहा।

बंदी के तर्क ने उसे निरुत्तर कर दिया। एक पल की चुप्पी के बाद उसने फिर से सांस बटोरी, “...अच्छा तुमने बताया था कि झारखंड से बाहर कभी नहीं गये तब उस विकसित देश की बेहद गोपनीय बैठक में कैसे पहुंच गये ?”

बंदी कुछ पल मौन अमन को देखता रहा फिर उसने एक जोरदार ठहाका लगाया, “ आपका जी.के. इतना कमजोर है ? मैंने सोचा न था, संचार-क्रांति के इस युग में आप प्रस्तर-युग का प्रश्न पूछेंगे। यह बात तो तब से लागू है जब फोन भी नहीं हुआ करते थे कि ‘जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि’। फिर मैं तो कवि भी हूं और गोडेसियन भी!”

‘गोडेसियन’ शब्द पर अमन बुरी तरह गड़बड़ा गया...गोडेसियन...यानि गाॅड...यानि ईसाई...यानी धर्मांतरण.. यानि...यानि...इस तरह के कई यानि एक साथ ही उसके दिमाग में कौंध गये, “कहीं तुम उड़ीसा में तो नहीं पकड़े गये ?”

“...अरे नहीं सर, मैं आज तक कभी उड़ीसा नहीं गया। फिर अभी-अभी आपने ही तो बताया था, मेरे एफ.आई.आर. के अनुसार मेरी गिरफ्तारी गुजरात में हुई है।” बंदी मौज में आ गया लगता था, “वैसे ‘गोडेसियन’ का अर्थ ‘गाॅड का’ नहीं होता। हमारी लोकल भाषा में इसका अर्थ है, ‘गोड्डा का’ अर्थात् झारखंड के जि़ला गोड्डा का निवासी। हम लोग आपस में एक दूसरे को प्यार से गोडेसियन कहते हैं। जैसे अमेरिका से अमेरिकन, इंडिया से इंडियन, वैसे ही गोड्डा से गोडेसियन ...समझें !”

अमन बुरी तरह झेंप गया। अपनी झेंप मिटाने के लिए उसने दूसरा मोर्चा खोला, “लेकिन अपनी वेश-भूषा, बात-चीत के ढंग आदि से तो तुम कवि जैसे बिल्कुल नहीं लगते।”

उसकी बात सुन कर बंदी के होंठों पर बरबस ही एक मुस्कान आ गई, “...कवि जैसे ?”

वह हंसने लगा, “हा...हा...हा...आप भी, अधिकारी जैसे नहीं लगते ...हो...हो... जेल-अधिकारी जैसे तो बिल्कुल भी नहीं...हा...हा...”

वह जोर-जोर से हंसने लगा था, बिना रूके लगातार....।

अमन हत्प्रभ हो गया। उसकी हंसी रूके तो वह अपनी पूछ-ताछ जारी रख सके, लेकिन उसकी हंसी तो रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। काफी देर बाद जब गोडेसियन की हंसी कुछ थमी तो अमन ने राहत की सांस ली।

“तुम्हारी बीमार पत्नी तुमसे मिलना चाहती है। उसने कारा महानिरीक्षक के पास तुम्हारे पैरोल के लिए आवेदन दिया है।” अमन ने अपने मतलब की बात पर लौटते हुए कहा।

“ठीक है।” बोल कर बंदी चुप हो गया।

“तुम्हें इस बात की गारंटी देनी होगी कि पैरोल की अवधि में तुम केवल अपनी पत्नी के पास रहोगे। किसी भी अन्य गैरकानूनी गतिविधि में संलग्न नहीं होगे।”

थोड़ी-सी चुप्पी के बाद उसने मुस्कान भरा उत्तर दिया, “ सच कहूं या झूठ ?”

“चलो दोनों ही कह दो। “

“तब पहले झूठ ही सुन लीजिए। मैं अपनी पत्नी के पास ही रहूंगा। केवल उसकी देख-भाल करूंगा। इसके सिवा और कुछ भी नहीं करूंगा।” कुछ रुक कर बोला, “अब आपको एक राज की बात बताऊं ?”

अमन ने उसे गहरी नजरों से देखा,” अब क्या ?”

उसकी गहरी आवाज़ और चमकीली आंखों में एक अजीब-सा सम्मोहन था,” आप चाहे कितनी भी अच्छी रिपोर्ट लिखें, मुझे पैरोल नहीं मिलेगी ।”

“तुम इतना निराश मत होओ। तुम्हें न्याय जरूर मिलेगा।”

“न्याय...हा...हा...हा! न्याय मिलना होता तो मुझे यहां क्यों भेजा जाता ? हा...हा...हा...”

“अजीब बात है ! तुम हर बात पर हंसने क्यों लगते हो ?” वह झल्लाया फिर न जाने अमन को क्या हो गया वह बंदी को जोर-जोर से झिंझोड़ने लगा, “ मेरा विश्वास क्यों नहीं करते? तुम्हें न्याय मिलेगा, जरूर मिलेगा मेरा विश्वास करो।”

बंदी उस पर हंसता जा रहा था और अमन उस पर चीखता जा रहा था, “ मिलेगा, जरूर मिलेगा, मिलेगा !”

♦♦ • ♦♦

बेडरूम में दाखिल होती उसकी पत्नी ने नींद में बड़बड़ाते अमन को पकड़ कर हिलाया, “ क्या बात है ? सपने में किसे, क्या दे रहे हो ? अब उठो भी । आज आफिस नहीं जाना क्या ?”

अमन ने आंखें खोंलीं, उसके चेहरे पर हैरानी के भाव थे। उसने चारों तरफ देखा । दीवारों का रंग, कोने में रखी अलमारी, किताबों की रैक, स्टैंड पर रखा टी.वी., छत पर घूम रहा पंखा सब कुछ उसका जाना-पहचाना था, वह अपने घर में था।

...तो क्या वह सब सपना था। एक परेशान करने वाला डरावना सपना!

“क्या हुआ, कोई बुरा सपना देखा ?” उसकी पत्नी ने झुकते हुए अपने धुले बाल अदा से उसके चेहरे पर बिखेर दिये।

“हां बड़ा अजीब-सा सपना था। जेल में बंद एक कैदी का सपना ।”

“कितनी बार कहा है, चुपचाप अपनी नौकरी किया करो। इन कैदियों में ज्यादा इन्वोल्व मत हुआ करो, तुम हो कि मानते ही नहीं।” पत्नी बनावटी गुस्से से बोली।

“...मगर ऐसा सपना ? सपने तो हमारे अतीत या अवचेतन में सोच की उपज होते हैं। परन्तु मैंने सपने में जो कुछ देखा है, वैसा तो पहले कभी नहीं सोचा ।” अमन ने बेचैनी से कहा।

“ज्यादा परेशान मत होओ। कभी-कभी हमारे सपने भविष्य का आभास देने वाले भी होते हैं ।” कहते हुए आराम पहुंचाने के उद्देश्य से पत्नी उसके बालों में प्यार से अंगुलियां फिराने लगी। अमन को अच्छा लगने लगा था।