फ़ितरत / अमित कुमार पाण्डेय

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अजय की जॉब एक टेलीकॉम कंपनी में एक साल पहले लग गई थी। वह अभी अपने एक साल की ट्रेनिंग समाप्त करके बैंग्लोर से लखनऊ वाया दिल्ली होते हुए लौट रहा था। वो काफी खुश था क्योंकि उसे पोस्टिंग लखनऊ मिली थी जो की उसके होम टाउन वाराणसी से बहुत दूर नहीं थी। रास्ते में जाम की वजह से वह देरी से प्लैटफ़ार्म पर पहुचा। प्लैटफ़ार्म पर ट्रेन को खड़ा पा कर उसके जान में जान आयी। उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नज़र डाली अभी ट्रेन जाने में पंद्रह मिनट बचे थे। अतः उसने चाय पीने निश्चय किया। चाय पीकर वह अपने आरक्षित डिब्बे की ओर चल दिया। जैसे ही वह डब्बे पर चढ़ रहा था उसकी नज़र डिब्बे पर चिपके आरक्षण चार्ट पर गई. उसने देखा कि उसके सीट के आस पास सिर्फ़ सीनियर सिटिज़न लोगों की ही सीट थी। उसने सोचा काश उसकी सीट के आस पास किसी लड़की की सीट होती तो इतना लंबा सफर आराम से कट जाता। एक बार फिर उसने अपनी किस्मत को कोसा और अपनी सीट की तरफ चल दिया। ट्रेन ठीक समय पर चल दी। थोड़ी देर बाद टीसी टिकिट चेक करने आया। अजय का टिकिट देख कर वह बोला आपका सीट एसी फ़र्स्ट क्लास में हो गई है। अजय अपना सामान उठाकर एसी फ़र्स्ट क्लास की तरफ चल दिया। जैसे ही वह फ़र्स्ट क्लास के कूपे में पहुचा तो पाया कि वहाँ पहले से ही उसकी ट्रेनिंग की बैचमेट जिसकी भी पोस्टिंग लखनऊ थी, वह बैठी थी।

अजय ने बोला, "हाय, मोहिनी"। मोहिनी ने बोला, "हाय" । अजय ने अपना सामान सीट के नीचे डाल दिया और आराम से मोहिनी के सामने वाली सीट पर बैठ गया। तभी टीसी ने प्रवेश किया। टिकिट चेक करने के बाद वह बोला अब आप लोग कूपे का दरवाजा बंद कर ले। मोहिनी लगातार खिड़की से बाहर देख रही थी।

अजय ने पूछा, "आप कहाँ की रहने वाली हैं"।

"दिल्ली" -मोहिनी ने बिना अजय की तरफ देखे उत्तर दिया।

"मैं वाराणसी का"-अजय ने बिना पूछे जबाब दिया।

फिर काफी देरी कूपे में एक बोझिल-सा सन्नाटा छाया रहा। मोहिनी अबभी खिड़की से बाहर देख रही थी और अजय कभी बाहर तो कभी मोहिनी को देख रहा था। फिर अजय एकाएक चुप्पी को तोड़ते हुए बोला कि बैंग्लोर से लखनऊ का सफर बहुत लंबा और बोरिंग होता है। कंपनी वालों को हमें फ्लाइट का टिकिट देना चाहिये। मोहिनी एक हल्की मुस्कान के साथ अजय की तरफ देखा और फिर बाहर देखने लगी। थोड़ी देर बाद अटटेंडेंट ने रात के खाने का ऑर्डर लिया और चला गया। मोहिनी ने अपने कान में इयरफोन फोन लगाया और बैग से एक किताब निकाल कर पढ़ने लगी। अजय चाह कर भी मोहिनी से बात नहीं कर पा रहा था। थोड़ी देर बाद कूपे का अटटेंडेंट रात का खाना लेकर आया। अजय और मोहिनी खाना खाने लगे। खाने के बीच में अजय ने पूछा कि आप सीधे लखनऊ जाएंगी या दिल्ली रूकेंगी। मोहिनी ने कहा कि मैं सीधे लखनऊ जाऊँगी बाद में छुट्टी लेकर दिल्ली जाऊँगी। अजय ने पूछा और आपके घर कौन-कौन है आपके अलावा। मोहिनी ने कहा कि मेरे अलावा पापा जो बैंक में काम करते है, मम्मी हाउस वाइफ़ हैं और एक छोटा भी जो अभी पढ़ रहा है। पहली बार मोहिनी ने अजय से पूछा और तुम्हारे घर मे। अजय ने कहा कि पापा जो एक सरकार वकील है, मम्मी हाउस वाइफ़ है और एक छोटा भाई जो अभी पढ़ रहा है। फिर दोनों ने खामोशी से खाना खाया। खाने के बाद दोनों अपने बर्थ पर लेट गए. मोहिनी अपनी किताब दोबारा पढ़ने लगी। अजय कूपे की लाइट बंद करके लेट गया और अपने मोबाइल के साथ खेलने लगा। पर उसका ज़्यादा ध्यान मोहिनी की ही तरफ था। अजय ने मोहिने से कहा कि कितना अच्छा है कि हम लोगों की पोस्टिंग अपने घर के पास मिली है नहीं तो बहुत दिक्कत होती। मोहनी ने तपाक से कहा कि कितनी अजीब बात है जब हमें जॉब नहीं मिल रही होती है तो हम कहीं भी जाने को तैयार होते हैं और जैसे ही हमें जॉब मिल जाती है तो हम अपनी सुविधा देखने लगते हैं। वैसे मुझे कहीं पोस्टिंग मिल जाती मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। अजय को शायद मोहिनी से ऐसे उत्तर कि आशा नहीं थी। इसके बाद अजय बिलकुल चुप हो गया हो गया और मोबाइल बगल में रख कर खिड़की से बाहर देखने लगा। मोहिनी अपनी किताब पढ़ने में व्यस्त हो गई. ट्रेन तेज गति से भागे जा रही थी। कूपे में एकदम सन्नाटा छाया था। कुछ देरी बाद शायद मोहिनी को ये एहसास हुआ कि उसने अजय से कुछ ज़्यादा बेरुखाई से बोल दिया। फिर उसने अपने आप से बोला कि पता नहीं मुझे क्या हो जाता है कभी-कभी मैं बड़े अजीब तरीके से जवाब दे देती हूँ जो मुझे नहीं देना चाहिए. अजय ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया, वो लगातार बाहर देखा जा रहा था। थोड़ी देर बाद अजय ने कहा कि वह तो पोस्टिंग की बात उसने ऐसे ही कही थी। वैसे जो कुछ तुमने कहा वह बिलकुल सही है। मोहिनी ने हसते हुए कहा कि सही कहा पर बहुत अजीब तरीके से।

मोहिनी ने कहा, "तुमको नींद नहीं आ रही"।

अजय ने कहा, "प्रायः मैं देर से सोता हूँ, और सुबह देर से उठता हूँ। इसलिए मुझे ट्रेनिंग के दौरान काफी दिक्कत महसूस हुयी। लेकिन आप को क्यों नींद नहीं आ रही है।"

मोहिनी ने कहा, -"मुझे रात में खाना खाने के बाद चाय पीने आदत है, इसलिए शायद उसकी तलब लग रही है"।

अजय ने कहा, -"देखते हैं ट्रेन शायद किसी स्टेशन पर रुक जाय तो चाय मिल सकती है"।

जैसे ही ट्रेन स्टेशन अगले स्टेशन पर रुकी अजय दो कप चाय ले कर आया। मोहिनी ने चाय का कप लिया और अजय को धन्यवाद दिया। उधर ट्रेन ने गति पकड़ी इधर अजय और मोहिनी की वार्तालाप ने गति पकड़ ली। थोड़ी देर बात करने के बाद मोहिनी ने कहा, -"अच्छा चलो अब सो जाते हैं"। मोहिनी ने कूपे की लाइट बंद की और सो गई. इधर अजय की आँखों में नींद कहाँ। वो लेटकर एक बार फिर मोबाइल से खेलने लगा और बीच-बीच में निगाह मोहिनी पर डाल देता था। सोते हुए मोहिनी का चेहरा बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। उसने सोचा निश्चय ही मोहिनी उसके बैच की सबसे खूबसूरत लड़की थी। फिर पता नहीं कब मोहिनी को नींद आ गई. थोड़ी देर बाद मोहिनी उठी और कूपे से बाहर चली गई. इसी दौरान अजय की भी नींद टूट गई. थोड़ी देर बाद मोहिनी वापस आई और अपने बर्थ पर सो गई. पर इस बार उसे नींद नहीं आ रही थी। आखिरकार अजय ने पूछ ही लिया कि मोहिनी क्या कोई समस्या है क्या।

मोहिनी ने कहा, "हाँ, मेरे सर में बहुत दर्द है। क्या तुम्हारे पास कोई पेन किलर है?"।

अजय ने तुरंत मोहिनी को दवा दी। मोहिनी ने एक बार फिर अजय को धन्यवाद दिया और कहा, -"आज तुम मेरे साथ नहीं होते तो मैं मुसीबत में पड़ जाती। हमारा बैच इतना बड़ा था कि हम लोगों के बीच परिचय नहीं हो पाया पर आज देखो एक ही पोस्टिंग की वजह से हम साथ-साथ हैं। मैंने ट्रेनिंग के दौरान सिर्फ़ प्रवीन से दोस्ती बढ़ाई वह भी सिर्फ़ इसलिए की वह भी दिल्ली का रहने वाला है"।

अजय ने कहा, "प्रवीन की पोस्टिंग तो कोलकाता है"। मोहिनी ने कहा, -"हाँ, वो लखनऊ आने के लिए प्रयास कर रहा। चलो अच्छा है एक अजनबी शहर में हम दोनों तो परिचित होंगे"। अजय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। शायद पहली बार किसी लड़की से वह इतनी बात कर रहा था, और लड़की भी मोहिनी जैसी.

मोहिनी ने पूछा, -"क्या सोच रहे हो"।

अजय ने कहा, -"कुछ नहीं, कोई पुरानी बात याद आ गई थी"।

मोहिनी ने कहा, -"कहीं मैं तुम्हें परेशान तो नहीं कर रही हूँ। तुम सोच रहे हो की मेरे सर में दर्द है इसलिये मैं तुमसे बात कर रही हूँ और रात में परेशान कर रही हूँ। तुम चाहो तो अब सो सकते हो। तुम्हारी दी गई दवा से अब मुझे आराम होने लगा है"।

अजय ने कहा, -"ये तुम क्या कह रही हो, वैसे भी मुझे रात को इतनी जल्दी नींद कहाँ आती है। इसमे परेशानी की क्या बात है। वैसे भी अब हम एक ही शहर के हो गए हैं। इसलिए हमे एक दूसरे के सुख दुख का खयाल रखना होगा"। मोहिनी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

अजय ने कहा, -"मोहिनी, क्या मैंने कुछ ज़्यादा कह दिया"। मोहिनी ने कहा, -"नहीं, तुमने ठीक कहा। अभी हमे एक रात और बितानी है तब कहीं जा के दिल्ली आयेगा। तभी अजय बोल पड़ा, -" और फिर दिल्ली से लखनऊ। मैं सोच रहा हूँ अगर तुमसे मेरी मुलाक़ात नहीं होती तो ये सफर कैसे कटता"।

तभी मोहिनी बोल उठी, -"तो तुम मुझे टाइम पास समझ रहे हो और ज़ोर की हसी"।

अजय ने कहा, -"अरे नहीं, मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि इस सफर में तुम मेरे लिए कितनी अहम होने वाली हो"। अजय ने तो मज़ाक किया पर मोहिनी गंभीर हो गई. एकाएक खुशनुमा माहोल गंभीर वातावरण में बदल गया। थोड़ी देर दोनों खिड़की से बाहर देखने लगे।

मोहिनी ने कहा, -"रात अब काफी हो चुकी है। अब मेरे सर का दर्द भी ठीक है। चलो अब सो जाते हैं"।

थोड़ी देर बाद अजय और मोहिनी अपने-अपने बर्थ पर सो गए. सुबह मोहिनी की नींद अटटेंडेंट के आवाज़ से खुली जो सुबह की चाय लेकर आया था। मोहिनी ने अजय को भी जगाया। फिर दोनों ने साथ चाय पी और नाश्ता किया। फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला आगे बढ़ा। एक अचानक-सी मुलाक़ात पूरे सफर में मोहिनी से दोस्ती में बदल गई. मोहिनी और अजय पूरे दो दिन बाद लखनऊ पहुचे। दूसरे दिन दोनों ऑफिस गए और संयोगवश दोनों को एक ही विभाग मिला। दोनों ने विभाग में जाकर अपनी नौकरी शुरू की। धीरे-धीरे समय बीतता गया। मोहिनी और अजय की दोस्ती और नौकरी दोनों पुराने और मजबूत होते गए. फिर एक शाम अजय मोहिनी के घर गया और बोला, -" मोहिनी, आज मैं तुमसे कोई खास बात करना चाहता हूँ।

मोहिनी ने कहा, -"हाँ बोलो"।

अजय ने कहा, -" आज माँ का फोन आया था। वो लोग अब मेरी शादी के बारें में सोच रहें हैं। और तुम तो जानती ही हो कि मैं तो। इसके बाद अजय कुछ रुक-सा गया। हमारी दोस्ती को तीन साल हो गए. इस बीच जो बात मैंने तुमसे कभी नहीं की पर आज कहने चाहता हूँ।

मोहिनी ने कहा, - "क्या" ।

अजय बोला, -"मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ"।

मोहिनी ने बड़े ही शुष्क अंदाज में कहा, -"सबसे पहले इस बारें में मुझे अपने मम्मी पापा से बात करनी होगी। मैं तुम्हें इसके बारें में बता दूँगी"।

अजय ने मज़ाक में बोला, -"किस बारें में बात करोगी। प्यार के बारें में या शादी के बारें मे"। मोहिनी ज़ोर से हंसी. वैसे अजय को मन ही मन कुछ अटपटा-सा लगा। उसे लगा मोहिनी उसके इस प्रस्ताव से बहुत खुश होगी। अजय तुरंत उठा और मोहिनी के घर से चला गया। रास्ते में उसे उसका ऑफिस का दोस्त आलोक मिला। आलोक अजय को अपने घर लेते गया। आलोक ने पूछा कि क्या बात है बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हो।

अजय बोला, -"आलोक, तू तो जानता है, मेरी और मोहिनी की दोस्ती कितनी पुरानी है। आज मैं उसके पास शादी का प्रस्ताव लेकर गया था। पर उसने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी। उसने इस बात को अपनी मम्मी पापा पर टाल दिया"।

आलोक ने कहा, -"तो क्या हुआ। वो तो अपने मामी पापा से विचार विमर्श करेगी ही। अब तू घर जा। सब ठीक हो जाएगा"। इसके बाद अजय अपने घर चला गया। इधर लगातार मोहिनी और अजय ऑफिस में एक दूसरे से मिलते पर उनके बीच शादी के बारें में कोई बात नहीं होती। फिर एक शाम मोहिनी ने अजय को अपने घर बुलाया। मोहिनी ने कहा, -"अजय, मैंने मम्मी पापा से शादी के बारें में बात की है। उन्हें इस शादी से कोई एतराज नहीं है। ये सुनकर अजय जैसे खुशी से पागल हो गया। अजय ने कहा, -" मोहिनी, तुम्हें नहीं पता मैंने ये दिन कैसे गुजारें हैं"।

अजय ने कहा, -" ऐसा करते हैं अगले हफ्ते सगाई और आगामी महीने में शादी कर लेते हैं। मोहिनी ने कहा कि ठीक है दोनों के घर वाले मिल बैठ कर तय कर लेंगे। अगले हफ्ते अजय और मोहिनी की सगाई धूम धाम से हुई. इस मौके पर अजय और मोहिनी के माँ बाप के अलावा आलोक और उनके कई ऑफिस के दोस्त उपस्थित थे। अगले महीने कि 25 तारीख को शादी होना तय हुआ।

अजय और मोहिनी शादी की तैयारी में काफी व्यस्त हो गए. अजय को तो जैसे खुशी का ठिकाना नहीं रहा। शादी के दो हफ्ते पहले एक शाम मोहिनी ने अजय को अपने घर बुलाया। अजय मोहिनी के घर पहुचा तो पाया मोहिनी चुपचाप अपने सोफ़े पर बैठी थी। अजय ने पूछा, -"क्या बात है? इतनी शांत क्यों बैठी हो। सब ठीक तो है न"।

मोहिनी ने कहा, -"अजय, मुझे समझ में नहीं आ रहा है मैं ये बात तुमसे कैसे कहूँ"।

अजय ने कहा, -"क्या बात है। कृपया जल्दी कहो"।

मोहिनी ने बड़े ही शुष्क स्वर में बोल, -"अजय, तुम शायद मुझे माफ कर दो। मैं तुमसे यही ऊमीन्द करती हूँ"। अजय ने कहा कि मोहिनी साफ-साफ कहो क्या बात है। मेरा दिल बैठा जा रहा है।

मोहिनी ने कहा, -"अजय, मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती हूँ"। मोहिनी मज़ाक मत करो। शादी के सिर्फ़ दो हफ्ते रह गए हैं और तुम ऐसी बात कर रही हो"–अजय परेशान होकर बोला।

मोहिनी ने ज़ोर देकर कहा, -"अजय, मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती और मैंने बहुत सोच समझ कर ये फैसला लिया है"।

अजय ने झल्लाकर बोला, -"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि एकाएक तुमने ऐसा फैसला कैसे कर लिया। अच्छा बताओ क्या कारण है कि तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहती हो। और ऐसा करना था तो तुम्हें पहले ही मना कर देना चाहिए था।"

"मैं तुमको कारण बताने के लिए बाध्य नहीं हूँ। और हाँ ये मेरा अंतिम फैसला है। ये हम दोनों के लिए भी सही है कि अभी हमने शादी के कार्ड ऑफिस में नहीं बाटे हैं। और हाँ मैंने अपने माता पिता से पूछकर ये निर्णय लिया है।" , -मोहिनी ने बड़ी बेरुखाई से बोला।

अजय चिंतित होकर बोला, -"ठीक है मोहिनी, अब ये तुम्हारा अंतिम निर्णय है तो ठीक है। मैं चलता हूँ"। अजय उठा और मोहिनी के घर चला गया। अजय ने आलोक को फोन करके अपने घर बुला लिया और सारी घटना से अवगत कराया।

आलोक ने गुस्से से कहा, -"यार, बड़ी अजीब लड़की है। अगर यही सब करना था तो पहले ही मना कर दिया होता। कम से कम इतनी बेईज्यती तो नहीं होती। यार अजय, तूने कारण जानने की कोशिश नहीं की"।

"की थी। पर उसने कहा मैं कि मैं कारण बताने के लिए बाध्य नहीं हूँ"-अजय परेशान-सा होकर बोला।

आलोक ने अजय को दिलासा देते हुए कहा, -"यार, तू परेशान मत हो। मोहिनी कोई आखिरी लड़की नहीं है। अब मैं चलता हूँ। तू भी आराम कर। मैं इसका कारण पता लगाने की कोशिश करूंगा"। दूसरे दिन ऑफिस में मोहिनी नहीं आई थी और अजय ने इस बात पर ध्यान भी नहीं दिया। आलोक ने अजय को बताया कि मोहनी दो हफ्ते की छुट्टी पर जा रही है। थोड़ी देर में उसकी ट्रेन है। अजय को पता नहीं क्या सूझा। वो ऑफिस छोड़कर मोहिनी के घर चल गया। मोहिनी ने दरवाजा खोला।

अजय ने कहा, "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ" ?

मोहिनी ने कुछ खास प्रतिकृया नहीं दी और बड़े अनमने ढंग से कहा, -"आ जाओ. पर ज़रा जल्दी करना। मेरी दिल्ली के लिए अभी ट्रेन है"। अजय खड़ा ही रहा और मोहिनी ने अजय को बैठने के लिए भी नहीं कहा। अजय ने कहा, -"मोहिनी मैं यहाँ सिर्फ़ तुमसे शादी नहीं करने का कारण जानने आया हूँ। अगर तुम बताना चाहो"।

मोहिनी ने कहा, -"अजय, तुम तो प्रवीन को जानते ही होगे, वही जो मेरे साथ ट्रेनिंग के दौरान बैंग्लोर में था और दिल्ली का रहने वाला है। अजय ने बोला, -" हाँ, तुमने एक बार ट्रेन में उसका जिक्र किया था"।

मोहिनी अजय से आँखें चुराकर बोली, -"अजय, मैं उससे शादी करने जा रही हूँ। अजय, प्रवीन आई॰ए॰एस बन गया है। उसका स्टैंडर्ड अब तुमसे बहुत ऊंचा हो गया है। और खास बात है वह भी मुझे बहुत चाहता है। अब मेरी चॉइस बहुत साफ है। उसकी पोस्टिंग केरला में है और मैं शादी के बाद अपना तबादला केरला करवा लूँगी"।

अजय ने कहा, -"मोहिनी, तुमने बिलकुल ठीक किया है। हर किसी को अपना फायदा सोचने का अधिकार है"। ये कहकर अजय मोहिनी के घर से निकल कर अपने घर चला गया। शादी के कुछ दिन बाद मोहिनी का तबादला केरला हो गया। समय के साथ अजय मोहिनी को भूलकर अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गया। इस बीच अजय के माता-पिता ने अजय की शादी करने की बहुत कोशिश की, लेकिन अजय ने शादी करने से मना कर दिया। धीरे-धीरे आठ साल बीत गए. इस बीच अजय के ऑफिस में कई और लोगों की नियुक्ति हुयी। उनमे से सबसे प्रमुख थी एक पैर से विकलांग लड़की आरती। आरती अपने स्वभाव और मेहनत की वजह से थोड़े ही समय में ऑफिस में काफी चर्चित हो गई थी। दोनों के उम्र में काफी फासला होने के बावजूद धीर धीरे आरती और अजय में गहरी दोस्ती हो गई थी। एक शाम आरती ने अजय को पहली बार अपने घर बुलाया। पहले तो अजय को कुछ अटपटा-सा लगा पर अजय आरती के घर चल गया। अजय ने आरती से अपने घर बुलाने का कारण पूछा।

आरती ने बताया की आज उसका मन बहुत ही ज़्यादा उदास है। उसे कुछ अच्छा-सा नहीं लग रहा है। अजय ने इसका कारण पूछा। आरती ने कहा, -"आज माँ का फोन आया था। वो मेरी शादी को लेकर बहुत चिंतित दिखाई दे रही थी। अब सर आप ही बताओ मैं पैर से विकलांग हूँ, वैशाखी के सहारे चलती हूँ। ऐसी दशा में मुझसे कौन शादी करेगा। मम्मी बहुत उदास थी तो मैं भी उदास हो गई. अजय ने कहा, -" ऐसा नहीं है। तुम उदास न हो। भगवान सब ठीक कर देगा"।

आरती ने बात को बदलते हुए कहा, -"सर, आज आप पहली बार घर आयें हैं रात का खाना यही से खाकर जाना"। अजय ने कहा, -"अरे नहीं मैं चलता हूँ। तुम परेशान मत हो"। पर आरती नहीं मानी। अतः अजय को खाने के लिए रुकना पड़ा।

खाने के दौरान आरती ने अजय से कहा, -"सर, मैं एक बात पूछू आप नाराज तो नहीं होंगे"। अजय ने कहा, -"नहीं, पूछो"।

आरती ने कहा, -"मेरी शादी क्यों नहीं हो सकती ये आप जानते हैं। पर आपने ने अभी तक शादी क्यों नहीं की"।

अजय ने कहा, -" तुम तो मेरी कहानी जानती ही हो। मोहिनी ने शादी के लिए हाँ कहा और ऐन वक़्त पर उसने मना कर दिया। मैंने अपने आपको बहुत अपमानित पाया। उसके बाद मेरी शादी की हिम्मत नहीं पड़ी। खैर अब तो मेरी उम्र भी 40 के आस पास है अब कोई लड़की वैसे भी मुझसे शादी नहीं करेगी।

आरती ने कहा, -"तो क्या हुआ आज भी बहुत-सी लड़कियां शादी के लिए तैयार हो जाएंगी"। अजय ने मज़ाक में कहा, -"लड़कियां नहीं औरत बोलो और ज़ोर का ठहाका लगाया"।

आरती के घर से लौटेते वक़्त अजय की मुलाक़ात आलोक से हो गई. आलोक ने पूछा, -"अजय, कहाँ से लौट रहा है"। अजय ने कहा, -"आरती के घर चला गया था"।

आलोक ने कहा, -"कुछ खास"।

अजय ने कहा, -"नहीं यू ही वह थोड़ा परेशान थी। फिर उसने रात के खाने के लिया रोक लिया। फिर अजय ने आलोक को सारी बात बताई"।

आलोक ने कहा, -"तू बुरा मत मान तो एक बात कहूँ"। अजय ने कहा, -"कह, इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है"।

आलोक ने कहा, -"तूने भी इस उम्र तक शादी नहीं की है और आरती के साथ भी दिक्कत है। क्यों न तुम दोनों आपस में शादी कर लेते"।

अजय ने कहा, -"तू भी न कुछ भी बात करने लगता है। वो मेरी एक अच्छी दोस्त है। और उसके और मेरे बीच उम्र का काफी फासला है"।

आलोक ने समझाते हुए कहा, -"यार, तेरी उम्र ज़्यादा है तो आरती के साथ भी तो समस्या है। मेरी बात मान तो एक बार सोच के देख ले"। ये कहकर आलोक चला गया। अजय भी अपने घर आ गया और सोने के लिए बेड पर लेट गया। पर उसे नींद नहीं आ रही थी। वो बार-बार आलोक की कही गई बात पर विचार करने लगा। वो सोच रहा था कि आलोक ने उसके मन में शादी का विचार एक बार फिर जगा दिया। वो सोच रहा था कि अगर वह आरती से शादी की बात करता है तो आरती उसके बारें में क्या सोचेगी। आरती से बात करनी चाहिए की नहीं, इसी ऊहा पोह में वह काफी देरी जागता रहा। अंत में उसने आरती से बात करने का निर्णय लिया। अजय ने आरती को देर रात फोन लगाया। आरती ने फोन उठाया, तुरंत अजय बोला, -"आरती, मुझे तुम्हें देर रात में फोन करने के लिए माफ करो। पर बात कुछ ऐसे है कि मैं अपने आप को रोक नहीं सका"।

आरती ने कहा, -"सर, बात अगर इतनी ज़रूरी है कि आप कल तक का इंतज़ार नहीं कर सकते तो घर आ जाओ"।

अजय ने तुरंत कपड़े बदले और आरती के घर पहुच गया। आरती ने थोड़ा हिचकते हुए दरवाजा खोला और अजय को बैठने का इशारा किया। अजय ने थोड़ा घबड़ाते हुए बोला, -"आरती मैं तुमसे एक बात कहूँ तुम बुरा तो नहीं मानोगी"। आरती ने नहीं का इशारा किया।

अजय बोला, -"आरती, यदि तुम चाहो तो मैं तुमसे शादी करना चाहता हू"। आरती तो जैसे सन्न रह गई.

आरती ने कहा, -"सर, आप कहीं मेरे साथ मज़ाक तो नहीं कर रहें हैं। एक तो ज़िंदगी ने मेरे साथ पहले ही मज़ाक किया है"। अजय ने ज़ोर देकर कहा, -"नहीं आरती, मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ"।

आरती ने कहा, -"सर, मुझे एक दिन का समय दीजीए मैं अपने माता-पिता से पूछकर आपको बताती हूँ"।

अजय ने कहा, -"मैं इंतज़ार करूंगा"। अजय ने शुभ रात्रि कहा और अपने घर चला गया। दूसरे दिन शाम को आरती ने अजय को अपने घर बुलाया और बोला कि उसने अपने माता-पिता से बात की है वह इस शादी के लिए राज़ी हैं। इतना कहते ही आरती का चेहरा शरम से झुक गया। अजय ने खुशी से उसका हाथ पकड़ लिया और बोला अब हम अगले महीने में शादी कर लेंगे। आरती ने बिना कुछ बोले सर हिला दिया। आरती ने मन ही मन सोचा कि उसने तो कभी सोचा ही नहीं था कि उसकी ज़िंदगी में भी कभी ठहराव आएगा। वो मन ही मन बहुत खुश थी। अजय ने अपने माता-पिता से बात करके शादी की तारीख पक्की कर दी। अब तो अजय और आरती के मिलने का सिलसिला ऑफिस के बाहर भी होने लगा। आरती इस शादी का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। अजय का मित्र आलोक इस शादी से बहुत खुश था। एक दिन अजय अपने ऑफिस से लौटने के बाद घर पर आराम कर रहा था। उसके दरवाजे की घंटी बजी. उसने उठ कर दरवाजा खोला तो पाया की सामने मोहिनी खड़ी थी। बिलकुल उदास चेहरे पर कोई तेज नहीं।

मोहिनी ने कहा, -"क्यों इतने दिन बाद मुझे देख कर आश्चर्य हो रहा है। अजय ने कहा तुम, -" वो भी इतने साल बाद"।

मोहिनी ने कहा, -"घर के अंदर नहीं बुलाओगे"। अजय ने बेमन से सर हिला दिया और कहा, -"आओ, केरला से यहाँ इतने साल बाद"।

मोहिनी ने कहा, -"मैंने केरला से यहाँ लखनऊ में दोबारा अपना तबादला करवा लिया है"। फिर एक सन्नटा-सा छा गया। फिए शांति भंग कराते हुए कहा, -"कहाँ है तुम्हारी बीवी"।

अजय ने कहा-"मैंने अभी तक शादी नहीं की"।

मोहिनी ने कहा, -"क्यों?"।

"कभी कोई मुझे धोखा देकर चला गया था"।

मोहिनी ने शरम से अपने गर्दन झुका ली। अजय ने कहा, -"और सुनाओ, तुम्हारी ज़िंदगी कैसी चल रही है। तुमने यहाँ तबादला क्यों करा लिया"।

मोहिनी के आँख से आँसू गिरने लगे। पर अजय को कोई हमदर्दी नहीं हुई. मोहिनी ने दुख से कहा, -"मेरे साथ बहुत बुरा हुआ। शादी के दो साल के बाद मेरे पति प्रवीन की कार दुर्घटना में मौत हो गई. उसके बाद मेरा मन केरला में नहीं लगा। बहुत मिन्नत के बाद मेरा तबादला लखनऊ दोबारा हो गया। इसके बाद काफी देरी शांति छाई रही। मोहिनी उठी और कहा-" ठीक है अजय, कल ऑफिस में मिलते है"। मोहिनी के चले जाने के बाद अजय बहुत देर तक मोहिनी के बारें में सोचता रहा। कितनी सुंदर लगती थी मोहिनी। और आज देखो तो कितनी उदासी थी चेहरे पर। तभी अचानक फोन की घंटी बजी. अजय ने देखा आरती का फोन था। आरती ने पूछा, -" कहाँ थे इतनी देरी से। फोन क्यों नहीं किया"। अजय ने कहा तुम्हें तो मोहिनी के बारें में पता ही होगा। उसने अपना तबादला दोबारा लखनऊ करा लिया है। वही आ गई थी।

आरती ने कहाँ, -"हाँ आपने मुझे बताया था"। इसके बाद अजय ने आरती को मोहिनी के बारें में बताया। आरती ने कहा, -"सुनकर बहुत दुख हुआ"। इसके बाद आरती बात बदलते हुए अजय से कुछ और बात करने लगी। पर अजय का सारा ध्यान मोहिनी की ही तरफ ही लगा हुआ था। दूसरे दिन ऑफिस में अजय ने आरती की मुलाक़ात मोहिनी से कराई और बताया कि आरती से उसकी अगले महीने शादी है"।

मोहिनी को ये सुनकर कुछ अच्छा नहीं लगा। शाम को जैसे ही अजय अपने घर पहुचा उसके थोड़ी ही देर बाद मोहिनी उसके घर पहुच गई. अब मोहिनी रोज़ शाम को अजय के घर पहुच जाती। अजय और मोहिनी के बीच मुलाक़ात फिर से एक बार शुरू हो गई. लगभग दो हफ्ते बाद एक दिन मोहिनी ने अजय से कहा, -" अजय, जब मुझे पता चला कि तुमने अभी तक शादी नहीं की है तो ये बात सुनकर मैं बहुत खुश हुई. पर मुझे उस वक़्त धक्का लगा जब मैंने ये सुना तुम एक अपाहिज लड़की से शादी करने जा रहे हो।

अजय ने कहा, -"आरती एक बहुत अच्छी लड़की है। और इस उम्र में मुझसे और कौन शादी करता"।

मोहिनी धीरे से उठी और अजय का हाथ पकड़ लिया, -"मैं तुमसे शादी करना चाहती। तुम क्यों अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहो हो"।

अजय ने हाथ छुड़ाकर बोला, -"तुमने कोई कसर छोड़ी है क्या"।

मोहिनी बोली, -"अजय, मैं गलती तो सुधारने के लिए आई हूँ। अजय क्या रखा है आरती मे। वो सदा तुम पर बोझ बनी रहेगी। उससे तुमको सिर्फ़ पैसे का फायदा होगा। इससे अच्छा होता की तुम शादी ही नहीं करते। ये सारी बातें किताबों में अच्छी लगती हैं। असल ज़िंदगी में नहीं। करो वही जिसमे तुम्हारा फायदा है। मैं मानती हूँ मुझसे एक बार गलती हो गई थी। मैं अपनी भूल सुधारने के लिए तैयार हूँ। एक भूल तो भगवान भी माफ कर देता है। और मुझे अपनी गलती की सजा मिल चुकी है। मेरे इस प्रस्ताव को ध्यान से सोचना। जल्दीबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना। हो सकता है भाग्य को यही मंजूर हो की हम दोबारा मिले"। ये कहकर मोहिनी ने बड़े प्यार से अजय का हाथ पकड़ा औए घर से बाहर चली गई. उसके जाने के बाद अजय बहुत ही परेशानी में आ गया। अब उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अजय सोच रहा था कि क्यों इतना सबकुछ होने के बाद भी उसके मन में मोहिनी के लिए हमदर्दी है। इस असमंजस की स्थिति में उसने आलोक को फोन करके अपने घर बुला लिया। अजय ने आलोक से कहा, -"यार तुमसे एक राय लेनी है"।

आलोक ने कहा, -"हाँ बोल क्या बात है"। अजय ने कहा, -"यार तुझे तो पता ही है मोहिनी वापस आ गई है"।

आलोक ने गुस्से से कहा, -"मैं तेरा मतलब नहीं समझा"।

अजय ने थोड़ा झेपते हुए कहा, -"यार तुझे तो पता ही है कि मोहिनी के ऊपर की क्या बीती है। अब वह बिलकुल अकेली है। वो अपनी गलती सुधारना चाहती है। वो मुझसे शादी के लिए तैयार है। तुझे तो पता ही है कि आरती के साथ शादी एक समझौता है"।

आलोक ने कहा, -" लेकिन तुझे अभी क्यों ऐसा लग रहा है। मोहिनी के आने से पहले तो तू आरती से शादी के लिए तैयार था। तो अब क्या हो गया। तूने ही पहले आरती से शादी के लिए हाँ कही थी। तू ये क्यों नहीं कहता कि मोहिनी को दोबारा पाने की खवाहिश तेरे मन जाग गई है। तुझे पता है मोहिनी कितनी स्वार्थी लड़की है।

अजय ने कहा, -"पर मोहिनी अपनी गलती सुधारने के लिए तैयार है। और वह कह रही थी की एक गलती तो भगवान भी माफ कर देता है"।

आलोक ने गुस्से से बोला, -"देख अजय, मोहिनी को भगवान माफ करे या ना करे। पर यदि तूने यदि आरती से शादी नहीं की तो तुझे भगवान कभी माफ नहीं करेगा"। ये कहकर आलोक अजय के घर से निकल गया। अजय काफी देर सोच विचार करता रहा। दूसरे दिन शाम को वह आरती के घर गया।

अजय ने कहा, "आरती मैं तुमसे कुछ खास बात करने आया हूँ"।

आरती ने कहा, -"सर, बेझिझक होकर कहो"।

अजय ने कहा, "आरती, तुम तो जानती ही हो की मोहिनी मेरा पहला प्यार है। अब जब वह दोबारा आ गई है तो मेरे मन में उससे शादी करने की इच्छा जागृत हो गई है। और वह भी मुझसे शादी करना चाहती है। पर मैं तुम्हें शादी का वचन दे चुका हूँ। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है"।

आरती ने कहा, -"सर, आप मुझसे क्या चाहते हैं। यदि आप मोहिनी से शादी करना चाहते हैं तो कर सकते हैं। और जहां तक वचन का सवाल है उससे मैं आप को मुक्त करती हूँ। आज के इस युग अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है। मैंने आप से पहले ही कहा था कि आप मुझसे शादी करके परेशान रहेंगे"।

अजय ने कहा, -"आरती तुमने मुझे शादी के बंधन से मुक्त कर दिया। मैं इसका धन्यवाद कैसे करूँ"।

आरती ने कहा, -"सर, इसकी कोई ज़रूरत नहीं"। इसके बाद अजय चुपचाप आरती के घर से चला गया। आरती काफी देरी अपने सोफ़े पर बैठकर रोती रही। शायद अब उसकी ज़िंदगी अब कभी ठहराव नहीं आएगा।

उधर अजय ने मोहिनी को फोन किया और खुशी से बोला, -" मोहिनी, मैंने आरती से बात कर ली है। अब मैं उससे नहीं तुमसे शादी के लिए तैयार हूँ।

मोहिनी ने कहा, -"अजय, मुझे तुमसे यही समझदारी की उम्मीद थी। मैं एक हफ्ते के लिए दिल्ली जा रही हूँ। दिल्ली से लौटने के बाद हम लोग कोर्ट मैरेज कर लेंगे"।

अजय ने कहा, -"मोहिनी जैसा तुम ठीक समझों"।

अजय खुशी के मारे पागल हुआ जा रहा था। वो सोच रहा था कि आखिरकार उसने मोहिनी को पा ही लिया। पर इस सारी घटना से आलोक अजय से बहुत नाराज़ था।

अजय ने कैसे एक हफ्ता बिताया वह अजय ही जानता है। पर मोहिनी एक हफ्ते बाद वापस नहीं लौटी. अजय ने लगातार मोहिनी को फोन किया पर उसका फोन बंद आ रहा था। धीरे-धीरे एक हफ्ता और बीत गया। करीब दस दिन बाद अजय को एक लिफाफा मिला। अजय ने लिफाफा खोला तो उसमे एक पत्र था। पत्र में लिखा था कि

प्रिय अजय,

ये पत्र पढ़कर तुमको अच्छा नहीं लगेगा। अजय, मैं तुमसे एक बार फिर माफी मागती हूँ।

दिल्ली में मैंने एक बहुत बड़े उद्योगपति से शादी कर ली है। वो बड़े पैसे वाला आदमी है।

तुमसे आँख मिलाने की अब मेरी हिम्मत नहीं। इसलिए मैं अब लखनऊ नहीं आऊँगी।

मैंने अपना इस्तीफा डाक द्वारा ऑफिस को भेज दिया है। मैं भगवान से यही प्रार्थना

करती हूँ कि हमारी मुलाक़ात अब कभी ना हो। मुझ पर एक बार और विश्वास करने

के लिए धन्यवाद।

तुम्हारी मोहिनी

ये पत्र अजय ने आलोक को थमा दिया। आलोक ने पत्र पढ़ा और बोला, -"अजय, अब तू तो हमदर्दी के लायक भी नहीं है"। इतना कहकर आलोक अजय के घर से वापस चला गया और अजय बाहर बरामदे में बैठ कर आकाश को निहारने लगा।