फ़िशिंग-2 / शमशाद इलाही अंसारी

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भाग दो

अगले दिन मुकर्रर वक्त पर अहमद, सैयद और उसकी दुलहन दोपहर के खाने पर आये, समर के घर पर यह पहला ऐसा मौका था जब कोई लोकल अरबी खाने पर आया हो, आयशा ने बेहतरीन हैदराबादी बिरयानी, कोफ़ते,चिकन कढा़ई, कीमा, रायता, लस्सी, और कई शरबतों से टेबिल भर दी. सभी मेहमानों ने खूब पेट भर खाना खाया और खाने की तारीफ़ों के पुल बाँध दिये. आयशा भी तारीफ़ें सुन कर गद-गद थी. समर को पहली बार पता चला कि सैयद की दुल्हन दर असल एक पूर्व सोवियत संघ के स्वतंत्र हुये गणराज्य कजा़खि़स्तान की मुस्लिम लड़की यासमीन थी जो टूटी फ़ूटी अंग्रेज़ी में समर के बच्चों और आयशा से बातचीत कर रही थी. समर इस बात से उत्साहित होकर लेनिन, स्टालिन के बारे में सवाल करने लगा, जिसका यासमीन अपने अंदाज़ में आधे अधूरे जवाब देती, माक्सिम गोर्की, लियो टालस्टाय, पुश्किन जैसे लेखकों के बारे में भी वह यासमीन से वार्ता को उत्सुक था लेकिन भाषा के कारण चर्चा संभव न हो सकी. समर का भाई असद भी सब मेहमानों की तवाज़ों में एक पैर पर खडा़ रहा, उसने सबसे बाद में खाना खाया. अहमद जो अच्छी हिंदी बोल लेता था उसकी वजह यह थी कि उसकी माँ इंडियन है जिसे उसके वालिद ने पाँच बच्चों के बाद तलाक दे दिया था, उसकी माँ हैदराबाद की रहने वाली है और वहीं रहती है. उसने बताया कि उसके पिता जो अब एक रिटायर्ड फ़ौजी है, को शादी करने का शौक था, कई शादियाँ की उसने और अब वह अपनी एक पाकिस्तानी बेग़म के साथ फ़ुजैरा में रहता है. खैर खाने के दौरान यह तय हो गया कि अगले वीकण्ड पर, गुरुवार की रात को ही फ़ुजैरा चला जायेगा, रात में थोडा़ आराम करने के बाद सुबह ३ बजे बोट से फ़िशिग के लिये जायेंगे.

समर के लिये ये एक सप्ताह गुज़ारना बडा़ मुश्किल था, उसे बडी़ शिद्दत से वीकएण्ड का इंतज़ार था, कैसे तैसे दिन बीते और गुरुवार आया, ठीक शाम ६ बजे वे लोग तीन कारों में फ़ु़जैरा के लिये रवाना हुये, समर का परिवार, सैयद और उसकी बीवी एक कार में और अहमद अकेले अपनी शेवर्ले लुमिना स्पोर्ट्स कार में था. सैयद के पास फ़ोर बाई फ़ोर लैण्ड क्रूसर थी, समर की कार ही सबसे सस्ती थी जबकी समर उन सब में सबसे ज़्यादा पढा़ लिखा और रुतबे में एक मैनेजर था. लोकल अरबी लोगों को सरकार बडी-बडी़ सैलरी देती, एक सिपाही की सैलरी १५ हजार दिरहम होती और तमाम सहूलतें अलग से, जैसे मकान भत्ता,अपना मकान बनाना हो तो इंट्रेस्ट फ़्री कर्ज़, बच्चों की पढाई फ़्री, स्वास्थ्य सेवायें फ़्री, हर बच्चे पर एक स्टाईफ़ण्ड अलग से मिलता, कुल मिला कर लोकल अरबियों की लाईफ़ एकदम लकज़री है. किसी भी एक्सपैट को अगर काम करना हो, अपनी कंपनी बनाने के लिये किसी एक लोकल की स्पांसर्शिप लेनी अनिवार्य होती जिसकी एवज में लोकल अरबी काम धन्धे के मुताबिक मोटी रकम लेते. कम से कम एक लोकल को नौकरी जैसे पी.आर.ओ. ज़रुर रखना होता. लोकल अरबियों के लाईफ़ स्टाईल पर सभी प्रवासियों के दिलों में एक कसक ज़रुर रहती. वे समझते कि इन लोगों को बिना कुछ परिश्रम किये सब कुछ मिल रहा है जबकि श्रम प्रवासी जनता करती है, मौज ये लूटते है.

असद, समर की कार चला रहा था, दुबई पीछे रह गया था लेकिन उसकी चमकदार रोशनी अब भी नज़र आ रही थी, शानदार सड़कों का सीना घिसते हुये वे लोग १५० किलोमीटर दुबई के पूर्व में फ़ुजैरा की तरफ़ १४० किलोमीटर की रफ़्तार से बढ़ रहे थे. आम प्रवासी के जहन वाले सवाल को असद ने उछालते हुये कहा,"क्या मौज है इन लोगों की, हुकुमत ने इन्हें कितनी सहूलतें दी है, हरामखो़र बना दिया पूरी कौम को..इनमें से किसी का भी ओहदा तुम्हारे बराबर नहीं लेकिन जीवन शैली मे अंतर कितना है? सब के सब तुम से कोई दस-दस साल छोटे होगें, लेकिन इनके ठाठ देखो? हम लोग रात दिन कठिन मेहनत कर के भी ये नहीं कर सकते और इनको देखो, बोट, बडी़-बडी़ गाडियाँ मेनटेन करते है, बडे़ बडे़ घरों में रहते हैं, इनकी जन्नत तो पूरी यहीं हो गयी..भाई".

समर कुछ देर चुप रहा ये सुनकर, फ़िर बोला, "ठीक है ये भी, पिछ्ली कई शताब्दियों में कष्ट भी बहुत झेला है इन लोगों ने, ऊँट और खजूर ये दो ही चीज़ें थी इनके पास, तीसरा था ये भयानक, गर्म रेगिस्तान जो कुछ भी पैदा नहीं करता था. बहुत कठिन समय से गुज़री है ये कौम, फ़िर तेल निकला, इनकी तकदीर बदल गयी, जिसकी बदौलत हम सब यहाँ हैं, तेल की अपार दौलत का एक हिस्सा राजा अपनी प्रजा को किसी कारणवश ही देता होगा? इन बेचारों की ज़िंदगी राजा और उसके परिवार के मुकाबले तो कुछ भी नहीं"

असद को ऐसे उत्तर की आशा भी न थी, बात खत्म हो गयी, कोई ढेड़ घंटे बाद फ़ुजैरा आ गया, अहमद सीधा समर के परिवार को एक विला में लेकर गया जहाँ रुकने-सोने का इंतज़ाम किया गया था. ये एक पुरानी विला थी लेकिन ऐश आशाईश की तमाम चीज़ों इसमें सुलभ थी. खाना खा कर करीब दस बजे सब लोग सोने चले गये.

रात कोई ढा़ई बजे, अहमद और सैयद आ गये, समर और असद भी तैयार हुए और ठीक मुकर्रर वक्त पर चारों लोग सैयद की लैण्ड क्रूसर में बैठ कर समुंद्र की तरफ़ रवाना हुये, गाडी़ के पीछे डबल इंजन सिक्स सीटर बोट भी टो की जा रही थी.समर के लिये यह एक ड्रीम कम ट्रू इवेंट से कम न थी, वह चाह कर भी ये शौक पूरा न कर पाया था जो आज अहमद के जरिये पूरा होने जा रहा था. चारों लोग सुबह ६ बजे तक समुंद्र में रहे और बहुत बडी़-बडी़ मछलियाँ पकडी़, १०-१० किलो की हमूर,बरकूडा, किंगफ़िश, बेबी शार्क भी उनमें से एक थी, फ़ुजैरा का समुद्र हिंद महासागर है उसके ठीक सामने पाकिस्तान और भारत है, शारजाह का समुद्र पर्शियन गल्फ़ है और उसके ठीक सामने इरान है. कोई सात बजे सब लोग वापस आ गये, तब तक आयशा और बच्चे भी जाग गये थे और विला भ्रमण में व्यस्त थे, इतनी बडी़-बडी़ मछलियाँ देख कर वे दंग रह गये. नहा धो कर सब लोगों ने नाश्ता किया. समर,असद आयशा और बच्चे शारजाह चलने के लिये तैयार थे जबकि अहमद ने बहुत इसरार किया कि सो कर शाम में जाना, लेकिन समर ने कहा कि बस घर चल कर ही एक बार सोना है. कोई १२ बजे तक समर शारजाह अपने घर पहुँचा, वे अपने साथ तीन मछलियाँ ही ला पाये क्योंकि उनका फ़्रिज़ इतना ही बडा़ था, ये तीन मछलियाँ रखने में भी आयशा को बडी़ मशक्कत करनी पडी़.

उसके बाद कोई दो-तीन बार समर और अहमद शारजाह के समुंदर पर फ़िशिंग करने गये, धीरे धीरे मौसम ने करवट ली और सीज़न खत्म हुआ, अप्रैल से सितम्बर तक लोग यहाँ अपने-अपने घरों में ही कैद रहते हैं या फ़िर बस मालिंग करते है. अहमद गाहे बगाहे समर से मिलने आता रहता, आयशा भी बस एक बार ही यासमीन के पास गयी, उसे पता चला कि यासमीन एक माह की हामिला है.

जून के महीने में एक बार ऑफ़िस जाते हुये सुबह समर की गाडी़ स्टार्ट न हुई, उसे जम्प स्टार्ट कराने के लिये दूसरी कार की ज़रुरत पडी़. समर को इस आडे़ वक्त में सैयद की याद आयी, सकुचाते हुये वह उसके एपार्टमेंट तक गया और बेल बजायी, काफ़ी देर तक घंटी बजाते हुये भी जब दरवाज़ा नहीं खुला तो समर ने सैयद के मोबाईल पर फ़ोन किया जो स्विचड ऑफ़ मिला, अब कोई दूसरा परिचित सैयद का भाई खालिद ही था बिल्डिंग में, वक्त तेज़ी से गुज़रता जा रहा था और समर को टेंशन होती जा रही थी. जल्दी से वह खालिद के एपार्टमेंट की तरफ़ दौडा़, घंटी बजायी तो खालिद आँख मलते हुये आया. समर ने जल्द अपनी ज़रुरत उसे बतायी, खालिद ने समर को अपनी कार पर जाकर इंतज़ार करने को कहा. थोडी़ देर बाद खालिद अपनी कार के साथ वहाँ आया और समर की कार को जम्प स्टार्ट करा दी.

समर कार से बाहर आया और खालिद को धन्यवाद कहने लगा, उसने लगे हाथ ही प्रश्न भी दाग दिया कि "सैयद कहाँ है"? खालिद ने अपनी कार स्टार्ट करते हुये भावरहित सपाट लहजे में कहा, "सैयद.....वो फ़िशिंग करने गया है". समर ऑफ़िस पहुँच गया लेकिन खालिद का जवाब उसके जहन में उलझने ही पैदा करता रहा, आखि़र अपने काम से फ़ारिग होकर उसने अहमद को फ़ोन लगाया जो उस समय दुबई में अपनी ड्यूटी पर था.

"अहमद भाई, आज सुबह खालिद भाई से मुलाकात हुई थी, तुम्हारा भी कई वीक्स से कोई अता पता नहीं, सैयद का भी पता नहीं, मैं उसके घर पर आज सुबह गया था लेकिन किसी ने दरवाज़ा ही नहीं खोला, खालिद से पूछा कि सैयद कहाँ तो बोला कि फ़िशिंग करने गया है..इस मौसम में फ़िशिंग..सब खैरियत तो है ना..??

अहमद ने संक्षिप सा जवाब दिया, "समर मैं अभी बिज़ी हूँ, आज शाम मैं उधर आ रहा हूँ, तुम्हे फ़ोन करुँगा" "ओ.के, आई विल वैट फ़ोर योर काल, बाये" कह कर समर ने फ़ोन काट दिया. समर अपने काम में व्यस्त हो गया लेकिन जब भी उसे फ़ुर्सत मिलती उसका दिमाग सैयद की तरफ़ चला जाता...फ़िशिंग और अब..इस मौसम में, कहाँ और कैसे?

ऑफ़िस के बाद समर अपने घर शाम कोई सात बजे पहुँचा, तकरीबन आठ बजे अहमद का फ़ोन आया, समर को उसने नीचे बुलाया. समर अपने वाक के लिये जाने को तैयार ही बैठा था वह फ़ौरन लिफ़्ट पकड़ कर नीचे चला गया कि बाहर अहमद पहले ही से उसका इंतज़ार कर रहा था. दुआ सलाम हुयी फ़िर मुद्दे की बात पर आ गये, समर ने पूछा, अब बताओ, "सैयद कोन सी फ़िशिंग करने गया है" "यासमीन उसकी बीवी नहीं थी, वो धन्धेवाली कोई रशियन औरत थी जिसे उसने रख रखा था, उसके तीन महीने का वीज़ा खत्म हो गया था सो वो चली गई, उसके चक्कर में सैयद ने मुझ से और खालिद से २०-२० हजार दिरहम लिये थे और खर्च कर दिये, उसकी अच्छी भली फ़ौज की नौकरी थी जो उसने छोड दी, हम लोगों ने उसे बडा़ समझाया लेकिन वो हम से ही लड़ पडा़, हाथापाई भी हुई, अभी वो एक माह से गायब है, फ़िर किसी और लड़की को लेकर आयेगा, ये ही है उसकी फ़िशिंग" अहमद ने एक साँस में सारी बात कह दी. समर कुछ देर तक सुन्न पड़ गया, उसके और सैयद के पिछ्ले २-३ माह के तमाम संसर्ग किसी फ़िल्म की तरह उसके जहन में गश्त करने लगे, अहमद से विदा लेकर समर अपनी वाक पर निकल पडा़. सवाल दर सवाल उसके जहन को कचोटने लगे.जिसे वह अब तक जानना समझ रहा था वह कितना निरर्थक और अप्रयाप्त था. दुबई में रशियन जिस्मफ़रोश औरतें, पूर्व सोवियत संघ, गोर्बाचेव, पेरेस्त्रोईका, ग्लास्नोस्त, येल्तसिन, पूतिन, पूँजीवाद, इस्लाम, राजशाही, तेल की संपदा, उसका वितरण... और सैयदों से भरा ये मुल्क !!!

रचना काल: २९.०९.२००९