फ़िशिंग / शमशाद इलाही अंसारी

Gadya Kosh से
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भाग एक एक कमरतोड़ सख़्त वीक के बाद समर ने अपने भाई के साथ बुधवार को ही फ़िशिंग पर जाने का कार्यक्रम बना लिया था, गुरुवार को वीकेण्ड शुरु होते ही खाना खा पी कर जल्दी से सो गये, कोई डेढ़ बजे उठ कर, तैयार हुये और घर के सामने ही समंदर के किनारे कार से पहुँच कर चार पाँच राड डाल कर बीयर के अपने-अपने केन खोले और पीने लगे. समर ने शारजाह कार्निश पर मकान सोच समझ कर ही लिया था, एक तो समुद्र को देखने का उसके और उसके परिवार का शौक, दूसरे उसका फ़िशिंग का शौक भी पूरा होगा, तीसरे उसका भाई असद के काम की जगह और रिहाईश भी नज़दीक थी, समर और असद दोनों दुबई में काम करते. असद को अपनी कंपनी में ही रहने के लिये क्वाटर मिला हुआ था, वो अक्सर वीकण्ड पर समर के पास भाभी और दो छोटे-छोटे भतीजों से मिलने आ जाता. समर की देखा देखी उसे भी फ़िशिंग का शौक़ डवलप हो गया था.पिछले चार साल से दोनों भाई मुसलसल अपना शौक पूरा करते. ये उनका प्रिय फ़िशिंग स्पाट भी था. एक तो घर के नज़दीक, दूसरे वहाँ से कभी कभार ही खाली हाथ लौटना होता.हमूर, बराकूडा, शैरी, बियाह जैसी मछलियाँ इसी स्पाट से वे दोनों अब तक ढे़र सारी पकड़ चुके थे.

दो घंटे हो चुके थे, अभी तक किसी भी राड में कोई हरकत नहीं हुई थी, तीन किस्म का बेट लगाया हुया था अलग अलग रोड्स पर, श्रिम्प,सरडीन और स्कुइड.. समंदर अपने उरुज़ पर था, रह रह के बडी़-बडी़ लहरें किनारों पर पडे़ पत्थरों पर टक्करें मारती, तेज़ हवाओं के झोंके अपने साथ ठण्ड की फ़ुहारें लाते, चाँद रात भर का सफ़र कर के आसमान के एक कोने की तरफ़ थका थका सा बढ़ रहा था. अक्टूबर से मार्च तक खाडी़ के इस इलाके में फ़िशिंग का सीज़न होता है, यूँ तो करने वाले यहाँ पूरे साल फ़िशिंग करते हैं लेकिन गर्मियों के महीनों में रात को भी पसीने छूटते हैं.

मध्य जनवरी की इस रात को समर और असद पूरे सर्दियों के कपडे़ पहने थे, सर्दी का आनंद अगर लेना हो तो बस समुद्र किनारे आप यहाँ रात में हों तो दिल्ली की ठण्ड याद आ जायेगी. असद ने सर्द रात की निसब्धता तोडी़," क्या बात है आज क्या मछलियाँ छुट्टी पर हैं, अभी तक कोई हरकत क्यों नहीं है?"

समर इस फ़िनोमिनन को मानो पहले ही स्टडी कर चुका हो और जैसे सवाल का इंतज़ार ही कर रहा हो, फ़ौरन बोला," पिछ्ले १५-२० महीनों में यहाँ रिक्लेमेशन का काम बहुत हो रहा है, दिन भर बडी़-बडी़ क्रेन, बुलडोज़र, बाब केट मशीनें अपना काम करती हैं, रात में साईट्स पर तेज़ चमकदार रोशनियाँ भी रहती हैं, ये सारी एक्टिविटीज़ मछलियों के लिये ठीक नहीं, पिछ्ले दिनों से हमारे कैच भी कम हुये हैं, फ़िश बहुत सेंसिटिव जीव है, ऐसे इलाके से, जहाँ शोर शराबा हो, वे गुरेज़ करती हैं, लेकिन फ़िर भी किनारे की तरफ़ उनका आना बंद नहीं होगा, यहीं से उन्हें अपना शिकार मिलता है, जब तक वे यहाँ आती रहेंगी, हमारा काम भी चलता रहेगा"..

अभी समर अपनी बात पूरी भी न कर पाया था कि एक राड ज़ोर से हिली, असद तेज़ी से बढा़ और राड को उठा कर रिवाइंड करने लगा, कोई एक किलो भर की बरकूडा फ़ँसी थी. थोड़ी-थोडी देर में सभी रोड्स पर एक्टिविटी होने लगी और दोनों भाई व्यस्त हो गये, जल्दी जल्दी राड निकालते और फ़िर पुन: बेट लगा कर वापस समुंद्र में हुक्स फ़ेंकते. भाईजान, श्रिंप पर ही आ रही है और श्रिंप का बेट खत्म होता जा रहा है, असद ने कहा. समर के लिये ये एक नई टेंशन थी,"कमबख्त बेट को भी आज ही खत्म होना था, तू फ़िक्र मत कर मैं करता हूँ कुछ"

समर ने नज़र दौडाई, कुछ दूर एक दो आदमी उसे दिखाई पडे़, वह पत्थरों पर तेज़ी से कूदते हुये फ़िशिंग करते दो व्यक्तियों की तरफ़ दौडा़.समर ने उनके पास पहुँच कर बेबाकी से पूछा,"बास, श्रिंप हैं क्या थोडे़ से?" भोर फ़ूट चुकी थी और इतनी रोशनी हो चुकी थी कि चेहरे देखे जा सकें, नज़दीक पहुँच कर समर को एहसास हुआ कि उस लड़के की ठोडी पर छोटी सी गोटी थी, ठीक होंठ के नीचे, वह समझ गया कि ये लोकल अरबी लडके हैं, समर ने सलाम किया, लेकिन वह अपनी बात पहले कह चुका था. उसकी बेबाकी की भी वजह थी कि दो समान शौक रखने वाले फ़िफ़्टी परसेंट तो एडवांस में ही दोस्त होते हैं, बाकी बस हाथ बढा़ने की बात है...

लडके ने सलाम का जवाब देते हुये पास रखे बैग की तरफ़ इशारा किया, "लो, श्रिंप लो.." हिंदी में जवाब सुन कर समर का साहस कुछ और बढा़, एक पलास्टिक की थैली से उसने थोडे़ से श्रिंप निकाले, थैंक्यू बोला और वापस तेज़ी से असद की तरफ़ दौड़ पडा.

असद अभी भी व्यस्त था, अब तक ८-१० मछलियाँ आ गयी थी, सूरज निकलने वाला ही था, ये वक्त ही बडा़ कीमती होता है किसी भी फ़िशिंग करने वाले के लिये. मछलियाँ सुबह सुबह समुंद्र में जैसे खेलने और खाने के अभियान पर निकली हों, इस बात से बे-ख़बर कि कुछ काँटे उनका इंतज़ार कर रहे हैं.

शारजाह कार्निश पर बनी विशाल अट्टालिकाओं के पीछे सूरज निकल चुका था, आसमान पर चमक बढ़ती जा रही थी और उसके साथ-साथ राड्स पर हरकतें भी कम होती गयी. तभी समर की नज़र उन दोनों लडकों पर पडी़ जो अपना सेशन खत्म कर के वापस घर लौट रहे थे, पास आने पर दुआ सलाम हुई, एक दूसरे का कैच देखा-दिखाया गया. समर ने नाम पता भी पूछ लिया, एक का नाम अहमद था और दूसरे का सैयद, उसे तब ताज्जुब हुआ जब उसे यह पता चला कि वो भी उसी की बिल्डिंग में रहते है. अहमद और सैयद चचाज़ात भाई है, अहमद दुबई पोर्ट पर काम करता था और वह सैयद से बडा़ है.चलते वक्त समर ने बीयर के दो केन अहमद को दिये, उसने पहले गौर से ब्राण्ड देखा फ़िर मुस्कुराते हुये स्वीकार कर लिया. अहमद और सैयद ने अपने अपने केन खोले और गट-गट कर के कार तक पहुँचने से पहले ही खत्म कर दिये.

समर और असद भी अपना सामान पैक कर घर वापस आ गये, आज का दिन बहुत सफ़ल था, मछली भी खूब मिली और पहली बार किसी अरबी लड़के से दोस्ती भी हुई, पिछ्ले आठ सालों में उसने पहली बार किसी लोकल लड़के से इतनी तफ़सील में बात की थी. आमतौर पर यहाँ सभी ए़क्सपैट कम्युनिटी अपने- अपने बनाये कबाएली कफ़स में ही जीती हैं, ज्यादा ही कुछ हुआ तो इंडियन-पाकिस्तानी लोगों की दोस्ती हो जाती है, ऐसा कम ही होता है कि इंडियन-सूडानी, या फ़लस्तीनी, या जोर्डन, मिस्री वगैराह के साथ दोस्ती हो, लोकल लोगों के साथ तो कोई रिश्ता बा-मुश्किल तमाम ही होता है. अरबी बोलने वाले लोग चाहे मिस्री हों या सूडानी वो अपने आप को किसी लोकल से कम नहीं समझते, उनकी नफ़रत और बेसलूकी गै़र अरबी लोगों से, लोकल अरबियों से भी ज़्यादा होती हालांकि वे खु़द भी नौकरी करने ही यहाँ अन्य प्रवासियों की भांति रहते हैं.

घर पहुँच कर समर और असद ने मछलियाँ साफ़ की, नहाये धोये और सो गये, समर की बीवी और बच्चे अभी भी सो ही रहे थे. समर की बीवी आयशा कोई १० बजे उठी और अपने काम काज में व्यस्त हो गयी. तीन बजे तक समर और असद भी उठ गये तब तक आयशा खाना बना चुकी थी, सब ने मिलकर ताज़ी मछली चठकारे मार-मार कर खाई. समर को तभी ख़्याल आया कि क्यों न एक प्लेट फ़िश करी, अहमद और सैयद को भेजी जाये?

खाना खाकर समर ने आयशा से एक प्लेट फ़िश करी पैक करायी और बिल्डिंग में ही बताए फ़्लैट नंबर १५०२ में पहुँच गया. बेल बजायी, सैयद ने दरवाज़ा खोला तो बडे़ अच्छे ढ़ंग से समर का स्वागत किया. सैयद के घर में घुसते ही उसे फ़र्क नज़र आया, मोटे-मोटे कालीन, शानदार आर्टीफ़ेक्ट्स और सजावटी चीज़ों से पूरा एपार्टमेंट अटा पडा़ था, भारी भारी मोटे मोटे गहरे सोफ़ों के बीच शानदान अरबी रिवायत की एक मजलिस बिछी थी, परंपरागत आउद की घनी खुश्बू से पूरा घर महका हुआ था. अहमद भी सो कर अभी उठा था, दोनों भाईयों ने जम कर बातचीत की, इतने में दरवाज़े पर फ़िर घंटी बजी, एक फ़र्द और घर में दखिल हो गया जिसका नाम खालिद था, वह भी इसी अहमद का चचेरा भाई और सैयद का असल बडा़ भाई, इसी बिल्डिंग के १७०५ फ़्लैट में अपनी बीवी बच्चों के साथ रहता था. जब वे लोग अरबी में खूब जमकर बातें करने लगे तब समर ने घर जाने की इज़ाज़त माँगी, इस पर अहमद ने बताया, "हम लोग अगले वीकण्ड पर फ़ुजेरा जाकर बोट फ़िशिंग करने का प्रोग्राम बना रहे थे, तुम भी साथ चलो.." इस अप्रत्याशित ड्रीम इवेंट के लिये समर न जाने कब से मर रहा था, उसने फ़ौरन हाँ भर दी, लेकिन इसकी डीटेल्स के लिये उसने अहमद, सैयद और उसकी बीवी को अगले दिन दोपहर खाने पर आने का आग्रह किया जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया. इस बीच सैयद की बीवी शर्बत के बडे़-बडे़ गिलास और बिस्कुट से भरी थाल लेकर आ गयी, घर के अंदर भी उसे अबाया पहने देख समर को कुछ आश्चर्य हुआ था...थोडा़ बहुत खा-पी कर समर वापस अपने एपार्टमेंट में लौट आया.

लौटते हुये उसके दिमाग में कई सवाल उठ रहे थे, मसलन ये सब लोग पहले से इसी बिल्डिंग में काफ़ी समय से रह रहे थे, फ़िर क्यों नहीं इनसे पहले मुलाकात हुई? ये चेहरे भी पहले दिखाई नहीं दिये, क्यों? शायद हम वो ही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं.जाने कितने चेहरे हम रोज़ देखते हैं लेकिन वो देखना नहीं होता, शायद सरसरी निगाह ही है जिसे हम भूल जाते हैं. इन चेहरों को मैंने पहले भी देखा ज़रुर होगा लेकिन उनकी कोई तस्वीर ज़हन में न थी. उसको पहली बार देख्नना और सरसरी निगाह में फ़र्क का पता चला, यह पता चला कि देखना और जानना दो अलग-अलग चीज़ हैं, दोनों के बीच इस भारी अंतर का आज उसे गहरा एहसास हुआ.

घर पर लौटकर समर ने आयशा को बताया कि कल लंच पर तीन लोग आ रहे हैं, वो भी लोकल..ज़रा ठीक ठाक खाना बनाएं, आयशा की आँखों का विस्मय जब थमा नहीं, तब समर ने बाकी डीटेस्ल बतायी.