फासिज्म के करिश्मे / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती

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इस बात पर थोड़ा विस्तृत विचार कर लेना जरूरी है। कारण, यह अहम मसला है। युध्द के विरुध्द युध्दवाला सिध्दांत अपनी जगह पर साधारणतया पूँजीवादी परिस्थिति और युग में ठीक ही है। मगर यह युग साधारण पूँजीवाद का न हो कर उसके गुंडाशाही रूप, फासिज्म का है जिसे नात्सीज्म और फाइनान्स कैपिटल का युग भी कहते हैं। मर्केंटइल कैपिटल (व्यापारिक पूँजी) और इंडस्ट्रियल कैपिटल (औद्योगिक पूँजी) के युगों को पार करके यह फाइनान्स कैपिटल (आर्थिक पूँजी) का युग आया है। मोटी तौर पर पहले को पूँजीवादी और दूसरे को साम्राज्यवादी युग भी कह सकते हैं, कहते हैं। पर तीसरा युग साम्राज्यवाद की मरणशय्या का युग है जब कि वह सरेसाम की हालत में बेहद कूदफाँद और तूफान मचाता है। इसकाध्यानमाक्र्स, एंगेल्स और लेनिन ने किया जरूर होगा और लेनिन तो विशेष रूप से अपनी सूक्ष्म दृष्टि से यह भी देखता होगा कि यह आने ही वाला है। फिर भी उन्हें इससे पाला नहीं पड़ा था। इसीलिए इसके अनुरूप अपनी गतिविधि को बदलने का निश्चित आदेश स्पष्ट रूप से वे किसान-मजदूरों को-शोषित एवं पीड़ित जनता तथा उसके नेताओं को-दे न सके थे। यदि उन्हें इस फासिज्म के करिश्मों का प्रत्यक्ष अनुभव होता तो इससे निपटने के रास्ते वे अवश्य ही स्पष्ट लिख जाते। मगर यह बात थी नहीं।


हिटलर और उसके साथी फासिस्टों-इटली एवं जापान-के शासकों की अभूतपूर्व विजय और एतदर्थ निराले ढंग की तैयारी-जिसका पता शेष दुनिया को पहले न था। किंतु इन विजयों के फलस्वरूप होने लगा था-हमें जेल में बैठे-बिठाए सोचने को बाध्य कर रही है कि क्या होने जा रहा है, युध्द का परिणाम क्या होनेवाला है, ये तीनों शैतान मिल-मिला के क्या करने जा रहे हैं? ये प्रश्न हमें परेशान कर रहे थे, खास कर हिटलरी चमत्कार और उसकी अपार सैनिकशक्ति हमें विवश कर रही थी कि हम वर्तमान एवं निकट भविष्य की ही परवाह न करके दूर भविष्य के बारे में भी सोचें। हमारे दिल-दिमाग हमें बताने लगे थे कि हिटलर तो संसार भर के लिए─सारी दुनिया के लिए─बला बनने जा रहा है। जब वह सीमित कोयला,लोहा, पेट्रोल आदि के बल पर ऐसी भीषण तैयारी कर सकता है,तब तो रूस,इराक,फारस आदि को जीत लेने पर संसार के ऊपर एकच्छत्र राज करेगा और स्थान-स्थान पर केवल लोगों को दबा रखने के लिए फौज (occupation army) रखेगा। केवल जर्मनों को आर्य और शेष लोगों को अनार्य मानने का उसका अभिप्राय भी यही प्रतीत होगा कि जर्मन शेष संसार के अनार्यों पर शासन करें, उन्हें कच्चा माल पैदा करने के लिए छोड़ दें औरसर्वत्रजर्मनी के बने तैयार माल की मंडियाँ खुलजाए। हमारे दिमाग में कुछ इसी प्रकार की खलबली थी,बेचैनी थी और यह दशा रूस पर हिटलर के आक्रमण के ठीक कुछ दिन पहले से हो रही थी ज्यों-ज्यों हम हिटलर और दोस्तों की छूमंतरी विजयों को देख रहे थे। फिर भी हमारा खयाल था कि अभी तत्काल रूस पर वह हमला न करेगा। किंतु बाकियों को जीतकर एक-दो साल रुकेगा और पूरी तैयारी करके रूस पर धावा बोलेगा। आखिर साँस भी तो उसे लेना चाहिए।

जब रूस पर उसने एकाएक धावा बोल दिया तो हम अकचका गए। पहले तो हमें विश्वास ही न हुआ जब एक साथी ने हमसे कहा कि हिटलर ने रूस पर हमला कर दिया। तब तक हमें उस दिन का अखबार न मिला था। हमने उत्तर दिया कि सरासर झूठी बात है। जब साथी ने उसे दुहराया तब भी हम यकीन करने को तैयार न थे। जब उसने तीसरी बार कहा तो हमारे मुँह से यकायक निकल पड़ा कि हिटलर सनक गया। हमें भी समझ में नहीं आता कि हम यह कैसे बोल उठे। मगर परवर्ती घटनाओं ने बताया है कि वह जरूर सनक उठा था। वह सनक क्यों और कैसी थी यह बात दूसरी है। हम रूस की शक्ति समझते थे कुछ-कुछ। इसलिए भी हमें ऐसा कहने का साहस हुआ। जब-जब एके बाद दीगरे लेनिनग्राड,मास्को, और स्तालिन ग्राड पर हिटलर के घेरे आगे चल कर और जेल के हमारे साथी कहा करते थे कि हिटलर ने अब लिया, तब लिया तब भी हमारा बराबर यही कहना था कि वह लेलिनग्राड को ले नहीं सकता, मास्को जीत नहीं सकता आदि-आदि। ये बातें भी सही निकलीं।

मगर अब तो हमें और भी बेचैनी हुई कि यह क्या होने जा रहा है? इस संसार मात्र की बला (World menace) का सामना कैसे किया जाए?हम इस नतीजे पर पहुँच रहे थे कि शेष संसार को आपसी मतभेद भुलाकर इस एक ही बला का सामना करना होगा। दूसरा रास्ता नहीं है। भारत पर भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खत्म करके जर्मन फासिज्म चढ़ बैठेगा यह हमारी मान्यता हो रही थी। फलत: हम चूल्हे से निकलकर भट्ठी में जा पड़ेंगे। यदि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से देर-सवेर से पिंड छुड़ाने की आशा भी हम करते थे तो हिटलरी पिशाचों से जान बचने और त्राण पाने की संभावना भी नहीं है। यह बात हमने कांग्रेस के एक प्रमुख नेता से कही और घंटों उनसे हमारा कथनोपकथन होता रहा। उनने तत्काल उत्तर न देकर सोचने और पीछे उत्तर देने को कहा।