फिनिक्स, खण्ड-10 / मृदुला शुक्ला

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गंगा बैंकोॅ के काम खतम करी निकली ही रहली छेलै कि तभिये मैनेजर वर्मा के कोठरी सें प्रशान्त निकललै। दोनों हाथ ऊपर उठाय केॅ अभिवादन करलकै। गंगो नें संकुचित होय केॅ हाथ जोड़ी देलकी। प्रशान्त प्रायः आपनोॅ दोस्त सें पाँच-सात मिनिट मिलै लेली आवीये जाय छेलै। वर्मा जी के परिवार यहाँ नै छेलै आरू प्रशान्त केॅ बैंक के कामो पड़थैं रहै छेलै। भेंट करै लेली ही ऊ चपरासी सें काम नै भेजवाय केॅ आपने चललोॅ जाय छेलै। मतरकि शायद ओकरोॅ एक कारण गंगा सें सामना आरू एक-दू बात करवोॅ भी छेलै। आपनोॅ ई भाव केॅ प्रशान्तो अभी ठीक सें समझेॅ नै पारलेॅ छेलै।

हिन्नें दू-तीन महीना सें गंगा घोॅर नै जावेॅ पारली छेलै। माय-बाबूजी के तरफ सें आवै लेली दवाब बढ़ी रहलोॅ छेलै। एक दिन देवघर जाय लेली चललै तेॅ वहू भांगटे वाला होलै। बस के ड्राइवर नें सवारी केॅ भागलपुरोॅ में तेॅ कुच्छू नै बतैलकै। डीजल दाम के बढ़ला सें देवघर में चार पहिया वाला गाड़ी के हड़ताल छेलै, यै लेली देवघर के बाहरे छोटोॅ रं जग्घा में बस वाला नें सवारी उतारी देलकै। गंगा ई सिनी सें थोड़ोॅ परेशान होय रहली छेलै। साँझोॅ के आसमान धुंधवाय केॅ अन्हार होय रहलोॅ छेलै। मौसमो के मिजाज ठीक नै बुझाय रहलोॅ छेलै। बस वाला के काम तेॅ सवारी के पैसा लौटाय केॅ खतम होय गेलै, मतरकि सवारी सिनी हड़बड़ाय केॅ आपनोॅ-आपनोॅ इंतजाम में लगी गेलोॅ छेलै। सामान आरू परिवार वाला आदमी आपनोॅ ठौर-ठिकाना खोजी केॅ प्रायवेट आकि सवारी गाड़ी खोजी-खोजी निकली रहलोॅ छेलै। अधिकांश आदमी लोकल सवारी रिक्शा पकड़ी केॅ चल्लोॅ गेलोॅ छेलै।

गंगा कनमुँही रं आपनोॅ हाथ के बैग पकड़ी केॅ खाड़ी छेलै। थक्की केॅ ऊ चाय वाला के दुकानी के बाहर बेंच पर बैठी गेली। दू-चार ठो शोहदा रं छौड़ा बाँही में बाँही डाली केॅ घुसुर-पुसुर करी रहलोॅ छेलै। ओकरा सिनी के खी-खी करतें आरू कंघी करी-करी केॅ गाना गैतें देखी केॅ दुकानी के बूढ़ा कहलकै, "दुकानी के अन्दर आवी केॅ बैठी जा बेटी, दस बजें रात तांय हमरोॅ दुकान खुल्ला रहै छै, तब तांय कोय व्यवस्था करी केॅ जान-पहचान वाला कन चल्लोॅ जैय्योॅ।"

स्थिति के गंभीरता सें गंगा एकदम्में हताश होय गेली, चिन्ता में ऊ टहलेॅ लागली कि तखनिये प्रशान्त के कार आवी केॅ चाय के दुकानी पर रुकलै। वहींठा प्रशान्त केॅ देखी केॅ गंगा केॅ एन्हे लागलै जेना सुक्खा धान में पानी पड़ी गेलोॅ रहेॅ, बाढ़ में भांसलोॅ जाय वाला केॅ बड़का सहारा मिली गेलोॅ रहै। गंगा नें आगू बढ़ी केॅ प्रशान्त केॅ पुकारै लेली चाहै छेलै कि प्रशान्तो के नजर गंगा पर पड़ी गेलै। प्रशान्त साथें एकटा प्रौढ़ महिलो छेलै।

प्रशान्त नें आगू बढ़ी केॅ परिचय करैलकै। हुनी प्रशान्त के फूफू छेली आरू हुनक्है घोॅर पहुँचाय लेली प्रशान्त जाय रहलोॅ छेलै। गंगा के समस्या सुनी केॅ प्रशान्त नें कहलकै, "फूफू को पहुँचा कर मैं आपको भी पहुँचा दूँगा, लेकिन इस सबमें देर होगी और आपको भी फूफू के घर चलना होगा।"

गंगा के सामनें तेॅ आरू कोय उपाय्यो नै छेलै। फूफूओ गंगा केॅ बहुत अच्छा स्वभाव के लागली। हुनियो कहेॅ लागलै, "असकल्लोॅ यहाँ रहवोॅ उचित नै होतौं बेटी. यही बहाना हमरोॅ घोॅर देखी लिहोॅ। कोय चिन्ता के बात नै छै, प्रशान्त के फूफू तेॅ तोहरो भी फूफुए होलिहौं।" चाय पीतें-पीतें गंगा नें बहुत सोची-विचारी केॅ साथें जाय के फैसला करी लेलकी। सोचलकी कि पनरह-सोलह किलो मीटरे तेॅ दूर छै गाँव, कतना समय लागतै आरू आपनोॅ सामान लै केॅ फूफू के बगलोॅ में बैठी गेली।

फूफू के आग्रह पर हुनकोॅ घरो गेली। चाय-नाश्ता होला के बाद फेनू जाय के बारे में सोची रहली छेलै कि गामोॅ के एक आदमी ऐलै; वहीं बतावेॅ लागलै कि भागलपुर देवघर वाला मेनरोड पर पुलिस आरू भीड़ के बीच पत्थरबाजी आरू लाठी चार्ज होय गेलोॅ छै। सौंसे सड़क सुनसान होय गेलोॅ छै। इमरजेंसी में है सिनी बात बड़का बात छेकै। एक आदमी के ज़्यादा घायल होला सें लोगो फफुआय रहलोॅ छै। ई सब सुनी केॅ फूफू नें प्रशान्त केॅ बाहर जाय लेली मना करी देलकी। ई घटना सें गंगो केॅ चुप्पी लगी गेलै, की करै, कुच्छू सोचेॅ नै पारै छै कि वैं भगवानोॅ केॅ धन्यवाद दै कि ऊ सड़क सें हटी केॅ घरोॅ में सुरक्षित जग्घा पर छै आकि घोॅर नै पहुँचै के कारण माय-बाबूजी के चिन्ता लेली सोचै। हाथोॅ में तेॅ कोय उपाय नै छैµएतना स्वार्थी बनी केॅ खाली आपने बारे में नै सोचना चाहियोॅ। कुच्छू देर गुमसुम पत्थर नाँखि बैठली रहलै। फेनू आपना आप पर ई सोची केॅ लजावेॅ लगली कि जे परिवार नें शरण देलेॅ छै, ओकर्हे बारे में ऊ नै सोची रहली छै। ओकरोॅ चिन्ता सें प्रशान्तो परेशान देखाय पड़ी रहलोॅ छेलै। गंगा केॅ रुकना आरू पहुँचाना, दोनों में सें वैं कुच्छू नै कहेॅ पारी रहलोॅ छेलै। तबेॅ गंगे नें आपनोॅ चिन्ता छोड़ी केॅ परिवार सें गप-सप करी केॅ वातावरण सहज बनैलकी। हुनकी पुतहू आरू बच्चो सिनी के बीचोॅ में गंगां कोय दुविधा नै अनुभव करलकी। परिवार संभ्रान्त तेॅ छेवे करलै, विचार आरू सोचो खुल्ला छेलै। हँसी-मजाक आरो गप-शप में समय केना बीती गेलै, गंगा केॅ पतो नै चललै।

खाना-पीना के बाद गंगा के सुतै के इन्तजाम घरोॅ के बच्चा साथें करी देलोॅ गेलै। टीनी आरू टूटू दोनों बच्चा, गंगा सें कहानी सुनथें-सुनथें सुती गेलै। नया जग्घा होला के कारण गंगा केॅ नींदे नै आवी रहलोॅ छेलै। ऊ ढेर सिनी बात सोची रहली छेलै कि यहेॅ रं कोय-कोय लड़की के बारे में कलंकोॅ के कथा गाँव-समाज केन्होॅ रस लै केॅ सुनाय छै। जेना कोय रिश्तो नै होला पर ऊ आय प्रशान्तोॅ के घोॅर में छै, ई बात तेॅ सच्चे बड़का छै, लोकाचार के विरूद्धो। मतरकि घटनाक्रम सें देखलोॅ जाय तेॅ एकदम्में सामान्य आरू स्वाभाविक...माय-बाबूजी केॅ अगर मालूम होय गेलोॅ होतै कि हम्में चली चुकलोॅ छियै आरू पहुँचेॅ नै पारलियै, तेॅ कत्तेॅ चिन्ता करतै। आरू ई रहै वाला बात सें तेॅ हुनियो कुच्छू सोचेॅ पारै छैµयहेॅ सब सोचोॅ सें रात जेना बीतिये नै रहलोॅ छेलै आरू मोॅन घबरैलोॅ रं लागेॅ लागलै। यै लेली गंगा कोठरी सें निकली केॅ धीरे सें छत्तोॅ पर चल्ली गेलै। छत्तोॅ पर कुर्सी आरू चौकियो राखलोॅ छेलै। मतरकि गंगा रेलिंग दिश बढ़ी गेली। वही सें प्रकृति के छटा देखेॅ लागली। नारियल गाछी में अटकलोॅ चाँद जेना ओकर्है ताकी रहलोॅ छेलै। ऊ ठंडक में वैं आपनोॅ जिनगी के ओझरैलोॅ सूत्रा खोजेॅ लागली। रूपा के साथ सें लै केॅ बैंकोॅ के नौकरी तांय जेना सब्भे कुच्छू गडमड होय रहलोॅ छेलै। चम्पा फूलोॅ के गंध सें मोॅन एक जग्घा पर नै रही रहलोॅ छेलै। नीला रं के स्वच्छ आसमान में आधोॅ चांद आरू सतभइया तारा आपनोॅ सफर पर धीरें-धीरें बढ़ी रहलोॅ छेलै, जेकरा सें गंगा के मनोॅ के बोझो कुच्छू हल्का होय रहलोॅ छेलै। गामोॅ के कच्चा-पक्का घोॅर बच्चा के आँख हेनोॅ मूँदलोॅ छेलै आरू यही सिनी स्तब्ध सुन्दरता में डुबली गंगा जेना आपना केॅ भुलाय केॅ खाड़ी छेली कि कुच्छू आवाजोॅ के खटका होलै। पलटी केॅ देखलकी तेॅ दोसरोॅ दिश प्रशान्तो कखनी सें पता नै, कुरसी पर बैठी आसमानोॅ दिश देखी रहलोॅ छेलै।

गंगा के जी धक्क सें रही गेलै। एतना एकान्तोॅ में खाली ऊ आरू प्रशान्त, यही सोची केॅ पहिनें काँपी गेलै। दोसरा घरोॅ में ई रं के छत पर आवै के छूट लेवोॅ असभ्यता छेकै, ओकरा ऊ कोठरी सें नै निकलना चाहियोॅ, यही सोची केॅ गंगा नीचें जाय लेली मुड़ली, तबेॅ तांय प्रशान्तोॅ नें गंगा केॅ देखी लेलेॅ छेलै। थोड़ोॅ असहज होला के बाद, स्थिर होय केॅ कहलकै, "हिन्नें आवी जा, कुर्सी पर बैठोॅ। हमर्हौ नींद नै आवी रहलोॅ छेलै तेॅ छत्ते पर आवी गेलियै। नया जग्घा में हमरा नींद नै आवै छै।" फेनू रुकी केॅ कहेॅ लागलै, "पहिनें तेॅ हम्में खुब्बे आवै छेलियै, बच्चा साथें खूब मोॅन लागै छेलै। बाबूजी यहाँ सें पहिने भिलाई गेलै तेॅ कम आवेॅ लागलियै। फेनू दिल्ली गेला के बाद तेॅ ई परिवेश नये होय गेलै, सब्भे कुच्छू अस्त-व्यस्त होय गेलै।"

प्रशान्त पहिलोॅ बेर अंगिका में बतियाय रहलोॅ छेलै। गंगा केॅ पहिनें थोड़ोॅ अजीब लागलै। घरोॅ के लोगोॅ सें गंगा केॅ अंगिका में बोलतें सुनी केॅ प्रशान्तो गंगा सें अंगिकाहै में बोलेॅ लागलै। हालाँकि बोली थोड़ोॅ अनटेटलोॅ रं लागी रहलोॅ छेलै जेना कोय बच्चा बोलतेॅ रहेॅ। गंगा के मोॅन ई बोली केॅ मिठास सें अन्दर तांय भरी गेलै, एक अपनापन के छुअन भी बुझावेॅ लागलै। नै मालूम, की अन्दर के आकर्षण छेलै, की अंगिका के मोह, आबेॅ गंगा एकदम निर्द्वन्द्व होय केॅ कुर्सी पर बैठी गेली।

प्रशान्तो कुर्सी सें चौंकी पर आवी केॅ लेटी गेलै। प्रशान्त के गोरोॅ चेहरा पर माथोॅ के केस आवी जाय तेॅ गंगा के मोॅन हुवै कि ओकरा समेटी केॅ पीछू करी दियै। लम्बा छरहरा शरीर पर सफेद भक्क कुरता-पैजामा, ऊ चाँदनी रात में प्रशान्त सचमुच में खूब सुन्दर लगी रहलोॅ छेलै। गंगा मूरत बनी केॅ बस बैठली छेलै। ऊ राती प्रशान्त नें आपनोॅ बारे में ढेरे बात गंगा केॅ बतैलकै आरू तबेॅ गंगा के अन्दर के गांठो जेना खुली गेलै, जे ओकरोॅ जीवन में घुन नाँखि लगी रहलोॅ छेलै। हौ दुखोॅ सें भींजलोॅ रात, तनाव सें भरलोॅ दिन, बहिनी के असमय मृत्यु के दंश सें उपजलोॅ शादी के प्रति विरक्ति सब्भे कुच्छू। पता नै केना केॅ गंगो बहुत कुछ बोली गेलै, जेना कोय झरना खुली गेलोॅ रहै।

प्रशान्त आँख बन्द करी केॅ गंगा के एक-एक टा शब्द केॅ जेना पीयै के कोशिश करी रहलोॅ छेलै। शांत, चुप्पी भरलोॅ रात, बस दूनो के भाव सें जेना नदी नाँखि बहतेॅ रहलै। दुन्हू केॅ कुच्छू पतो नै चललै, मतरकि दुन्हू भीतरोॅ सें बदली चुकलोॅ छेलै। चार बजेॅ लागलै तेॅ आँखो नींद सें भारी हुवेॅ लागलै। प्रशान्त नें नींदयैलोॅ आँखी सें गंगा केॅ देखलकै आरू चौंकी पर सें उठी गेलै। उठतें-उठतें प्रशान्त नें कुर्सी पर बैठली गंगा के केस धीरे सें सहलाय देलकै, पता नै जानी केॅ, की अनजाने में। गंगो केॅ एन्होॅ महसूस होलै, मतरकि बोललकी कुच्छू नै। गंगो चुप्पे-चाप नीचें उतरी गेली। बाहर में रहला सें ओस के ठंडक सें मोॅन भारी-भारी लगी रहलोॅ छेलै, मतरकि हृदय बड़ा हल्का महसूस करी रहलोॅ छेलै। ऊ रात नें गंगा के जीवन में एक अजीब परिवर्तन लानी देलकै।