फिनिक्स, खण्ड-13 / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
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रधिया मझधार में छेकी? ओकरोॅ मनटुन के प्रति प्रेम ज़्यादा उजागर होय गेलोॅ छेलै। मनटुनो नर्सिंग ट्रेनिंग के होस्टल में जाय केॅ भेंट करै छेलै। गंगा केॅ कुच्छू समझ में नै आवै कि ई दुर्निवार आकर्षण के आखिर अन्त की होतै। की समाज एतना बदली गेलोॅ छै? कि मनटुन के मोॅन रधिया के वास्तें ओतने सहै आरू तपै के हिम्मत रखै छै, जेतना रधिया के भीतर छै? मतरकि प्रेम के बेबसी जानी गेला के बाद गंगो जानै छै कि ई सब सवाले व्यर्थ छै आरू वें रधिया केॅ कुच्छू नै कहै छै।

मतरकि होलै वहेॅ, जेकरोॅ शंका गंगा के मनोॅ में उठी रहलोॅ छैलै। मनटुन के बीहा ठीक होय गेलै आरू रधिया लुग मनटुन नें कानी-कानी केॅ आपनोॅ मजबूरी बताय देलकै, "माय जहर खाय के धमकी दै देलेॅ छै आरू वैंनै चाहतेॅ हुएॅ भी ई बीहा के विरोध नै करेॅ पारै छै।" रधिया एकदम्मे सें जेनां सपना सें जागी गेली छेलै। एकरोॅ पहिनें, मनटुन कभियो भी आगू की होतै, एकरोॅ बारे में सोचै नै छेलै।

रधिया गाँव लौटली तेॅ ओकरोॅ टोला के लोगें कुछू उपद्रव करै लेॅ चाहै छेलै। अमंगल के अशंका सें रधिया नें साफ-साफ कही देलकी, "ओकरा मनटुन सें कहियो प्रेम नै छेलै। ओकरा एन्होॅ कमजोर आरू बिन पेन्दी के लोटा सें वैं प्रेम कर्है नै पारै छेॅ।"

ओकरोॅ बाद सें रधिया बांका के एक छोटोॅ टा अस्पतालोॅ में रही गेली। नै भागलपुर आवै लेॅ चाहै आरू नै गाँव। पनरह बरस के साथ आरू बचपन के खेलथैं-खैथैं जे प्रेम उगलै, वहेॅ जीवन ओकरोॅ आँखी के सामनें आवी रहलोॅ छेलै। गंगा ओकरोॅ मन के दुख समझी रहलोॅ छेली आरू मनटुन ओकरोॅ भाय लागै छेलै, जैसें गंगा के अन्दर कुच्छू अपराधो बोध जगी रहलोॅ छेलै। वैं नें पुरुष होय के अहम में ही एक लड़की के साथ खाली यै लेली छोड़ी देलकै कि ऊ ओकरोॅ जात, दहेज सिनी के कसौटी पर खरोॅ नै उतरी रहलोॅ छेली। गंगा लुग जबेॅ रधिया ऐली तेॅ दुन्हू एक दोसरा सें आँख चोरैत्हैं रहली। मतरकि जबेॅ गंगा नें आपनोॅ आरू प्रशान्त के बीच आपनोॅ सम्बन्ध के बात बताय केॅ प्रशान्त के बदली होय गेला के बात बतैलकै तबेॅ रधिया फूटी-फूटी केॅ कानेॅ लागली। कहेॅ लागली, "तोहें तेॅ प्रशान्त केॅ बतैवे नै करलौ, मतरकि हम्में तेॅ मनोॅ के एक-एक टा बात मनटुन केॅ बताय देलेॅ छेलियै, तहियो हम्में हारी गेलियै। तोरा ठुकराय के दरद तेॅ नै भोगै लेॅ पड़लौं। नारी मोॅन घायल केना होय छै, यहेॅ दरद आज तक भोगी रहलोॅ छी।"

गंगा नें गम्भीर होय केॅ कहलकी, "सच्चे रधिया, आपने दरद बेसी बड़ोॅ लागै छै। जेकरा मोॅन चाहै छै, मुँहोॅ सें ओकरा बताना की ज़रूरी होय छै, की वैं प्रेम के भाषा नै बुझेॅ पारै छै। हमरा विश्वास नै होय रहलोॅ छै कि प्रशान्त केॅ प्रेम समझ में नै ऐलोॅ रहै, यहो तेॅ ठुकरैवे होलै नी।"

रधिया गंगा के तकलीफ समझी केॅ ही दोसरोॅ सिनी गप्प करेॅ लागली। आरो फेनू दुनो नें आपनोॅ काम के गप्प शुरू करी देलकी।

बादोॅ में एक दिन रधिया ऐली तेॅ थोड़ोॅ टा प्रसंग चलत्हैं गंगा मुसकाय केॅ बोलली, "छोड़ रधिया और भी गम है जमाने में मोहब्बत के सिवा, तोहें अस्पतालोॅ में सेवा करी केॅ बड़का काम करी रहलोॅ छैं आरू हम्में जिनगी के अधूरा खाता आपनोॅ बैंकोॅ में खोली केॅ राखलेॅ छियै।" गंगा के मनोॅ पर पड़लोॅ बोझ केॅ जानी केॅ ही रधियां निवेदिता के बारे में पूछेॅ लागली। गंगा के चेहरा चमकी गेलै, "बहुत अच्छा करी रहली छै, पत्राकारिता रोॅ संसार के बारे में चिट्ठी लिखनें छै।"

गंगा दुनिया भर सेें आपनोॅ तकलीफ छिपाय केॅ रात के सन्नाटा में सोचेॅ लागै कि सचमुच प्रशान्त ओकरोॅ प्रेम सें अनजान छेलै आकि मनटुन नाँखि वहू ओकरोॅ साथ नै दिएॅ पारतियै, यही लेली मूँ नै खोललकै, "तोहें हमरोॅ जीवन में कैन्हें ऐलोॅ प्रशान्त, हम्में आपनोॅ जीवन में जेना छेलां, ठीक्के छेलां।"