फिनिक्स, खण्ड-14 / मृदुला शुक्ला

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आपनोॅ बदली होला के बाद प्रशान्त पहिलोॅ हेनोॅ तेॅ रहिये नै गेलै। एकदम चुप रहेॅ लागलै। सोचै छेलै, छोटा में कभियो-कदाल घोॅर आरू ननिहरो आवै-जाय छेलै तेॅ कत्तेॅ अच्छा लगै छेलै। मतरकि फूफू के घोॅर में ओकरा सबसें बढ़ियां लागै। मैट्रिके में छेलै ऊ, तखनिए माय नै रहलै। किशोर उम्र में जबेॅ बड़ी उदास रहेॅ लागलै तेॅ फूफू केॅ ओकरोॅ प्रति माया बढ़ी गेलै। बहिन बड़ी छेलै। शादी-बीहा होला सें आपनोॅ संसार में लपटैली छेली। मतरकि वै नें ही नैहरा के घोॅर आरू बाबुजी माय केॅ सम्हारी देलकै। जबेॅ-जबेॅ प्रशान्त रहै, भैगना-भैगनी के साथें मगन रहै। खेलो-कूद में प्रशान्त अच्छा छेलै। किताबो पढ़ै के शौकिन छेलै। तहियो बड़ा घरोॅ के लड़का दाय-नौकर आरू ढेरी सिनी आवै-जाय वाला रिश्तेदारोॅ के बीचोॅ में एकाकी अनुभव करै छेलै।

भागलपुर शहरोॅ के एक याद छेलै, जैसें वैं नें पहिलें पोस्टिंग भागलपुर लेनें छेलै। दादा के बनैलोॅ पुरनका घोॅर छेलै, जै में एक ठो दूर के रिश्तेदार रही रहलोॅ छेलै। नजदीके में ओकरी फूफू वहाँ मिली गेली, जै सें शनिचर-एतवार कटी जाय छेलै। गंगा के साथ मिलला सें जेना दिल्ली के नामे भुलाय गेलै।

पटना आवी केॅ प्रशान्त केॅ आपनोॅ जिनगी विस्थापित रँ लागी रहलोॅ छेलै। सब्भे कुच्छू बिखरलोॅ। बाबुजी दिल्ली में मरीज बनी केॅ रही रहलोॅ छेलै। बहिन आबेॅ परिवार साथें बैंगलोर में छेली, ऊ पटना में आरू ओकरोॅ मोॅन गंगा के भागलपुरोॅ में रही रहलोॅ छेलै। ओकरहे साथें ऐन्होॅ होना छेलै। बाबुजी नें बिजनेस ही करै लेली पहिनें कहलकैµएत्तेॅ बड़ोॅ कारोबार हुनी फैलाय लेनें छेलै, आखिर के संभालतियै। वैं इनकार करी देलकै। ओकरा नौकरी करै के शौक छेलै। बाबुजी नें सोचलकै, थोड़ोॅ दिन आपनोॅ मनोॅ सें जीवी लै, यै लेली हुनी स्वीकृति दै देलकै। मतरकि एकलौता बेटा के आजादी के भी एक सीमा होय छै। एत्तेॅ दूर बाबुजी सें पटना में रहना अखड़ी रहलोॅ छेलै। मतरकि है दूरी भागलपुरोॅ में कैहनें नी बुझाय छेलैµयहेॅ सोची केॅ प्रशान्त हैरान छै। शायद बरसो पहिलका अंग-संस्कृति सें छुटलोॅ नाता जोड़ै लेली मोॅन ललचाय गेलोॅ रहै आकि दिल्ली के बंधन भरलोॅ जीवन सें मुक्ति चाहै छेलै, पता नै।

प्रशासनिक परीक्षा के तैयारी में व्यस्त जीवन आबेॅ बैर खोजी रहलोॅ छेलै, तभिये फूफू के गृहस्थी गाँव-घोॅर समाज में ओकरा रस मिलेॅ लागलै। परिवार के सुख केहनोॅ होय छै, खट्टा-मिट्ठोॅ स्वाद में ऊ भी डूबेॅ लागलोॅ छेलै। आपनोॅ गाँव भी जाय तेॅ वहाँकरोॅ बाँस-बगीचा, तीज-त्योहार सें मोॅन हरखित रहै। आपनोॅ गामोॅ के घोॅर ठीक-ठाक कराय लेली सोची रहलोॅ छेलै, मतरकि बाबुजी नें मना करी देलकै। कहलकै, खेत-जमीन देखना तक तेॅ ठीक छौं, मतरकि घोॅर सब पर ओतना ध्यान दै केॅ भी की करभौ, के रहतौं वहाँ। प्रशान्तो शिथिल पड़ी गेलै, सहिये बात छेलै। बाबुजी के बीमारी आरू इलाज वास्तें दिल्ली छोड़ना कठिन छै, तबेॅ दू टा प्राणिये घरोॅ में छै, के रहतै।

पटना गेला के बाद प्रशान्त नें बैंक सें फोन करी केॅ दू-तीन बार बात करलकै। कभी-कभी मोॅन भटकेॅ लागै तेॅ सोचै छेलै कि भागलपुर दूरे कत्तेॅ छै, फूफुओ के घर में एक चक्कर लगाय लै। अन्दर एक इच्छा छेेलैµगंगा सें मिलै के, मतरकि सोचत्हैं रहलै, कहाँ जावेॅ पारलै। एतने में एक आँधी ऐलै कि ऊ भ्रमित बनले रहलै आरू सब्भे कुच्छू उलटाय-पुलटाय देलकै। बाबुजी के बीमारी के खबर पावी केॅ ऊ दिल्ली गेलै। हुनका हर्ट अटैक ऐलोॅ छेलै। बीस दिन रही केॅ प्रशान्त लौटलै तेॅ ध्यान बाबुये जी पर रहै। फूफुओ दिल्ली आवी गेली छेलै आरू शिखा दी भी। तहियो प्रशान्त केॅ चैन नै छेलै। ऊ दिल्लिये में पोस्टिंग करवाय लेली दौड़-धूप करेॅ लागलै। बाबुजी के केस कुच्छू जटिल छेलै। प्रशान्त शिखा दी के कान्हां पर माथोॅ राखी फूटी-फूटी केॅ कानेॅ लागलै। समझैला पर पटना जाय तेॅ फेनू जल्दी ही छुट्टी लै केॅ दिल्ली चल्लोॅ आवै। हेन्हैं छोॅ महीना होतैं-होतैं, कोशिश-पैरवी करी केॅ दिल्ली बदली करवाय लेलकै। जाय के पहिनें मोॅन होलै कि गंगा केॅ आपनोॅ परेशानी आरू बदली होला के सब्भे बात बताय दिएॅ, फेनू मनोॅ में होलै कि की पता, गंगो ओकरा आपनोॅ समझै छै की नै। ऊ मोॅन कड़ा करी केॅ सामान बाँधिये रहलोॅ छेलै कि तभिए गंगा के फोन आवी गेलैµप्रशान्त हतप्रभ होय गेलै। कैन्हें कि गंगा नें अब ताँय आपन्हैं सें फोन नै करलेॅ छेलै। असल में प्रशान्त के फुफेरोॅ भाय सें गंगा के भेंट बाजारोॅ में होय गेलै तेॅ ओकर्हैं से गंगा नें प्रशान्तोॅ के बाबुजी के बीमारी आरू दिल्ली ट्रांसफर के बात सुनलकै। गंगो केॅ याद आवी गेलै कि माय के बीमारी में प्रशान्त नें केना केॅ ओकरोॅ मदद करलेॅ रहै। एकर्है सें वैं फोन नम्बर ओकरोॅ भाय सें लै केॅ प्रशान्त सें हाल-चाल पूछेॅ लागलै। प्रशान्त नें सब्भे घटना बताय केॅ बस एतन्हैं कहलकै, "आदमी सोचै कुच्छू छै, होय कुच्छू आरू छै। भागलपुर में रहियै तेॅ लागै छेलै कि आबेॅ हम्में याँही रही जैवै, दिल्ली सें भागै के मोॅन करै छेलै, मतरकि होनी हमरा फेनू दिल्ली रं बेदिल वाला शहर लै जाय रहलोॅ छै। पता नै हमरोॅ की-की हेराय रहलोॅ छै।" ऊ दिन भावुक होतेॅ हुएॅ भी गंगा आकि प्रशान्त नें आपनोॅ मनोॅ के बात नै कहलकै। प्रशान्त केॅ गंगा के फोन आरू दुक्खोॅ सें भींजलोॅ मनोॅ पर ओकरोॅ सान्तवना अच्छा लागलै।

दिल्ली पहुँचलोॅ थोड़े दिन होलोॅ छेलै, बाबुजी के तबीयत में थोड़ोॅ सुधार आवी चुकलोॅ छेलै कि तखनिये एक दोसरे प्रसंग ओकरोॅ जीवन में आवै लेॅ तत्पर छेलै। कावेरी के बाबुजी भी बिजनेस करै छैलै। शिखा दी नें कावेरी केॅ पसन्द करी चुकलोॅ छेलै। प्रशान्त के 'हाँ' करै लेली खाली हुनी सिनी रुकलोॅ छेलै। वैं नें कातर होय केॅ सबकेॅ देखेॅ लागलै, "शिखा दी, अभी है सिनी बात रहेॅ दहौ नी, बाबुजी बीमार छै आरू हम्में आभी बीहा लेली एकदम्मे तैयार नै छी।"

शिखा दी कहेॅ लागली, "जों तोरा पसन्द नै छौ तेॅ बोली दैं आकि कँही आरू पसन्द छौ तेॅ वाँही करी ले, मतरकि आबेॅ घरोॅ में एक जनानी के रहना ज़रूरी छै।" फूफुओ वाँही छेली बोलेॅ लागली, "देर करै के कोय्यो प्रयोजने नै छै।" प्रशान्त एकदम्में हताश होय केॅ फूफू केॅ देखेॅ लागलै तेॅ फूफू ओकरोॅ माथोॅ सहलावेॅ लागली, "बेटा, तोरोॅ ऊपर कोय जोर-जबरदस्ती नै करी रहलोॅ छी। आपनोॅ पसंद सें आकि हमरा सिनी के पसन्द सें बीहा तेॅ आबेॅ होय्ये जाना चाहियोॅ।" प्रशान्त बिना कुच्छू बोलले वहाँ सें उठी गेलै। कंठ में कुच्छू अटकी रहलोॅ छेलै। गंगा के चेहरा सामना में तेॅ आवै, मतरकि भरोसा कहाँ छेलै कि जे सम्बन्ध दोनों के बीच छेलै, की ओकर्है प्रेम कहै छै आकि महज दोस्ती आकि मानवता कहै छै। भागलपुर जानो संभव नै छेलै। गंगा के घोॅर, परिवेश आकि गंगो एतना खुल्ला ढंग के नै छेली कि बीहा रँ बात ओकरा सें फोनोॅ पर करेॅ पारै। कहीं ऊ ई बात पूछी केॅ गंगा के नजरोॅ सें नै गिरी जाय। रात भर प्रशान्त टहलत्हैं रहलै फेनू बाबुजी के खुशी देखी केॅ चुप्पो रही गेलै। वैं आपना आप केॅ भाग्य के लहर पर छोड़ी देलकै। घरोॅ में चहल-पहल बढ़ी गेलै, प्रशान्त माय के बाद जेना घरोॅ में फेनू एक सुर आरू संगीत के आवाज सुनी रहलोॅ छेलै।

कावेरी सुन्दरो छेली आरू समझदारो। आवी केॅ ऊ घोॅर-संसार सम्हारी लेलकी, मतरकि प्रशान्त के अन्दर जे गामोॅ के प्रति रूझान छेलै, जे भावुकता के स्वर छेलै, ओकरा सें तालमेल नै बैठावेॅ पारै। ऊ सोचै कि प्रशान्त के ई सब आदत केॅ ओकरा छोड़ाय देना छै। भागलपुर सें कोय परिचित, रिश्तेदार आवै तेॅ वैं खुली केॅ मदद करै। भागलपुर में वैं रही केॅ जे सीखलेॅ छेलै, प्रशान्त चाहै छेलै कि कावेरियो आपनोॅ संस्कृति सीखी जाय। जेना सब्भे आपनोॅ संस्कृति केॅ बचाय के कोशिश करै छै, हमर्हौ सिनी घमण्डोॅ सें बताबेॅ पारौं। कावेरी पटना के नजदीक के गामोॅ के छेली, मतरकि ओकरोॅ बाबुजी बैंगलोर में बसी गेलोॅ छेलै, यैं सें ओकरा ई सब फालतु लागै छेलै, हालाँकि ऊ कुच्छू बोलै नै छेलै। फेनू भी दोनो के ज़िन्दगी ठिक्के चली रहलोॅ छेलै।

बाबुजी के तबीयत थोड़ोॅ ठीक होलै तेॅ कावेरी बैंगलोर चल्लोॅ गेली, कावेरी साथें प्रशान्तो गेलोॅ छेलै। आवै दिन कावेरीं कहलकै कि अभी एक हफ्ता हम्में नै जाय लेॅ चाहै छियै। तहूँ रुकी जा। प्रशान्त नें साफ इनकार करी देलकै, "वैं नौकरी करै छै आरू वहो जिम्मेदारी वाला पद पर। बाबुजी के बीमारी में एन्हें काम पेंन्डिग होय गेलोॅ छै, यैं सें ऊ तेॅ नहिए रुकेॅ पारै छै। हौं, तोहें जों चाहै छोॅ आरो एक हफ्ता बाद केकर्हौ संगंें दिल्ली आवी जाय के बारे में सोचै छोॅ तेॅ ठीक्के छै।"

कावेरी के सखी के बीहा छेलै यै लेली ऊ चाहै छेलै कि प्रशान्तो रुकी जाय, मतरकि प्रशान्त नें आपनोॅ कार्यक्रम नै बदललकै। यही पर पति-पत्नी में पहिलोॅ बेर विवाद होय गेलै। दू बरस में एतना उच्चोॅ आवाज में कहियो ऊ सिनी बात-बहस नै करलेॅ छेलै। थोड़ोॅ खिन्न मनोॅ सें प्रशान्त असकल्ले दिल्ली चल्लोॅ ऐलै। एक सप्ताह बाद ऊ सोचै छेलै कि कावेरी आपन्हैं आवै के खबर करतै आकि ओकरा फेनू आवै लेली बोलैतै। जबेॅ दस दिन बादो कावेरी नै ऐली, नै खबर भेजलकी तेॅ प्रशान्त के मोॅन क्षुब्ध होय गेलै। नौकरी के साथें बाबुजी के देखभाल के परेशानी सें निपटवोॅ पड़ी रहलोॅ छेलै। महीना लागै पर छेलै, बाबुजी नें पुछवोॅ शुरू करी देनें छेलै। दिवाली में शिखो दी आवै वाली छेली। प्रशान्त केॅ आबेॅ थोड़ोॅ चिन्ता होय रहलोॅ छेलै कि कहीं कावेरी के मोॅन-मिजाज तेॅ खराब नै होय गेलोॅ छै। आखिर में हारी केॅ प्रशान्त नें फोन करी केॅ आवै लेली कहलकै। कावेरियो के मोॅन प्रशान्त के चुप्पी सें दुखी। आरू प्रशान्तें बाबुजी आरू शिखा दी के नाम लै केॅ ओकरा आवै लेली कहलकै तेॅ वैं कही देलकै कि दिवाली में अभी देर छै, यै लेली ऊ आभी एक महीना यहाँ रहै के सोचेै छै। प्रशान्त के मोॅन भन्नाय गेलै। कावेरी सोचै छेली कि प्रशान्त नें जे कड़ा बोली बोललेॅ छै, वै लेली वैं ओकरा आवी केॅ ज़रूरे मनैतै। मतरकि प्रशान्त के आफिस में एन्होॅ काम बढ़ी गेलै कि ऊ एकदम्में जावै लायक स्थिति में नै छेलै। दिवाली के कुच्छू पहिनें शिखा दी आवी गेली, प्रशान्त तबेॅ कावेरी केॅ लानै लेली गेलै। कावेरी सें थोड़ोॅ गोस्साय केॅ कहेॅ लागलै, "आबेॅ तोरा आपनोॅ जिम्मेवारी समझै के भी कोशिश करना चाहियोॅ।"

"हम्मेें कहिया आपनोॅ जिम्मेवारी नै समझलियै। बीहा के बादोॅ सें बस रोगी आरू सेवा में तेॅ ही छियै। हनीमून के टिकट कटैलोॅ कैन्सिल करवाय देलियै, कहीं आना-जाना नै, बस एन्हे तेॅ ज़िन्दगी कटी रहलोॅ छै।"

प्रशान्त अन्दर सें दुखी होय गेलै कहलकै, "बाबुजी के बीमारी सें तोहें अभिये ओकताय गेलौ कावेरी, ई हम्में नै सोचलेॅ छेलियै।"

"हम्मू तेॅ आदमिये छेकियै नी। हमरो कुच्छू मोॅन हुएॅ पारै छै घूमै के आकि आपनोॅ ढंग सें रहै के."

"घूमै-फिरै के भी समय देखिये केॅ सब होय छै नी। बाबुजी केॅ बीमार छोड़ी केॅ हम्में नहियें जावेॅ पारतियै, आरू तोहें जों आपना केॅ हमरा सें पृथक समझै छोॅ तेॅ ठीक छै।"

ई सब कही केॅ प्रशान्त करवट बदली केॅ सुती गेलै। भोर होलै तेॅ पुछलकै, "तोरोॅ जाय के मोॅन छौं की नै, शिखा दी अगला हफ्ता चली जैतै आकि कहोॅ तेॅ शिखा दी केॅ बैंगलोर में भेंट करै लेॅ कही दिहौं।" थोड़ोॅ व्यंग्य सें प्रशान्त बोललै।

कावेरी बिना कुच्छू कहले तैयार होय गेली, मतरकि अन्दर सें वहो खिन्न छेली।

दिल्ली आवियो केॅ दोनों के सम्बन्ध सहज नै रही गेलै। बात-बात पर बहस छिड़ी जाय। कावेरी बै। गलोर में रहै लेली चाहै। ओकरा दिल्ली के ट्रैफिक, गन्दगी, रोजे दिन शहरोॅ में होय वाला पचड़ा सें घबराहट लागै छेलै। दिल्ली प्रशान्तो केॅ पसन्द नै छेलै, मतरकि ऊ अगर दिल्ली छोड़तियै तेॅ बचपन के शहर भागलपुर वास्तें। यै सिनी बात पर कावेरी केॅ बड़ा अचरज लागै कि भागलपुर एन्होॅ कस्बानुमा शहरोॅ में छेवे की करै, जे लोग वहाँ बसै।

धीरें-धीरें दाम्पत्य जीवन में कड़वाहट भरी रहलोॅ छेलै जैसें प्रशान्त बड़ी चिन्तित रहेॅ लागलै। बाबुजी अभी ठीक्के-ठाक छेलै। मतरकि हुनका पुतोहू सें जे अपेक्षा छेलै, ऊ पूरा नै हुएॅ पारलै। हुनी चाहै छेलै कि कावेरियो शिखा नाँखि बेटी बनी केॅ ई घोॅर-संसार केॅ बचाय लै। मोॅन नै लागला पर ओकरोॅ साथें कैरम खेलती, किताब पढ़ी केॅ सुनैती आकि अखबारोॅ के खबर बतैती, दवाय, फोॅल के खयाल राखती, मतरकि हौ सिनी नै हुएॅ पारलै। कावेरी के मोॅन जे क्षुब्ध रहै तेॅ ऊ प्रशान्तो केॅ चोट पहुँचाय वास्तें आरू लापरवाही करेॅ लागली छेलै।

हेना केॅ कावेरी ससुरोॅ के ध्यान राखै में कोय कसर नै राखै छेली, मतरकि हर समय घरोॅ के वातावरण भारी लागै छेलै। नौकरोॅ सें सेवा करै लेली कही केॅ बाहर चल्ली जाय छेलै। मतरकि एकलौता बेटा सें माय-बाप कुच्छू बेसिये उम्मीद बान्है छै आरू हौ घर तेॅ प्रशान्त के माय के बादे सें जेना उदास पड़लोॅ छेलै। एक नारी के प्रवेश सें घोॅर थोड़ोॅ बदली रहलोॅ छेलै। बहुत दिनोॅ के जेना आस रहै। वहेॅ घोॅर कावेरी केॅ खिन्न आरू चिड़चिड़ैलोॅ स्वभाव सें मनहूस रँ लागेॅ लागलोॅ छेलै।

प्रशान्त आरू कावेरी के दाम्पत्य में कुच्छू दूरी आवी रहलोॅ छेलै। प्रशान्त तेॅ एन्हैं आपना केॅ बहलाय रहलोॅ छेलै। हेना तेॅ गृहस्थियो वै नें बाबुये जी के कारण बसाय लेॅ सोचलेॅ छेलै। यै लेली कभी-कभी ऊ सोचै भी कि एकरोॅ सजा कावेरी कैन्हें भोगेॅ। यही सब सोची केॅ गंगा के प्रति आकर्षण आरू स्नेह के स्रोत केॅ मनोॅ में ही दबाय देनें छेलै। ई सिनी के प्रभाव प्रशान्त पर यहेॅ पड़लै कि ऊ धीरें-धीरें असहनशील होलोॅ जाय छेलै। नौकरी में भी आवेॅ पैहलोॅ रँ ध्यान नै दै पारै छेलै। कावेरी केॅ खुश राखै के कोशिश, बाबुजी आकि घरोॅ के प्रति न्याय करै में ऊ मुरझैलोॅ जाय रहलोॅ छेलै।

यहेॅ रँ ऊ दिन प्रशान्त आफिस सें जल्दी ऐलै। राष्ट्रीय नाट्य-विद्यालय में शेक्सपीयर के नाटक मैकवेथ के मंचन छेलै। दू ठो पास मिललोॅ रहै। कावेरी केॅ ई सब चीजोॅ के बहुत्ते शौक छेलै। ऊ भरतनाट्यमो सिखलेॅ छेलै आरू बैंगलोर में लड़की सिनी केॅ नृत्यो सिखावै छेली। दिल्ली आवी केॅ ओकरोॅ कला-संस्कृति सें सम्बंध एकदम्में खतम होय गेलोॅ छेलै। यहो सब सें ऊ कुढ़ली रहै। ई सब सोची केॅ प्रशान्त केन्होॅ केॅ समय निकाली केॅ घोॅर ऐलै। साँझ के बेर छेलै। बाहर लॉन में बाबुजी बैठलोॅ छेलै। बगल के सक्सेना साहब ऐलोॅ छेलै। प्रशान्तो वहीं ठां बैठी गेलै। तभिये ओकरोॅ साला अन्दर सें निकललै तेॅ वहो वहीं बैठी गेलै। कुशल समाचार पूछी केॅ प्रशान्त अन्दर गेलै। कावेरी आपनोॅ सामान समेटी रहली छेलै। प्रशान्त कुछूओ नै बुझतें हुएॅ पूछेॅ लागलै, "सामान कैन्होॅ छेकै, एकरा समेटी कैन्हें रहलोॅ छौ?"

कावेरी नें काम करतेॅ हुएॅ जवाब देलकै, "दिवाकर संगें हम्में कल बैंगलोर जाय रहलोॅ छियै, वहाँ एक कार्यक्रम छै भरतनाट्यम के, ओकरै में बोलैलेॅ छै।"

प्रशान्त अकचकाय गेलै। नाटक के टिकट के बातो भूली गेलै आरू हड़बड़ाय केॅ बोलेॅ लागलै, "बाबुजी सें पूछी लेलेॅ छौ? तोर्होॅ गेला पर हुनी एकदम्में चुप होय जाय छै।"

"यै में बाबुजी सें पूछै के की बात छै। हौ कार्यक्रम में हमरोॅ जाना ज़रूरी छै। कल जाना छै तेॅ राती कही देवै। आबेॅ तोंही आवी गेलोॅ छौ तेॅ तोंही कही दहू।"

प्रशान्त कुच्छू नै बोलेॅ सकलै। कावेरी के दृष्टि सें तेॅ ई एकदम्में सहज आरू स्वाभाविक छेलै। जे नृत्य के अभ्यासोॅ में वैनें दस-पन्द्रह साल बिताय देलेॅ छै, ओकरोॅ परिणाम आरू प्रदर्शनो आवश्यक छै। मतरकि बाबुजी के दायित्व केॅ प्रशान्त अकेल्ला केना उठाबेॅµयहेॅ नै समझेॅ पारै छै। जों वैं कावेरी सें शादी के पहिनें मिललोॅ रहतियै आरू ओकरोॅ रूचि-महत्त्वाकाँक्षा जानी लेलेॅ रहतियै, तेॅ बाबुजी के खातिर है बीहा के हामी नै भरतियै, कैन्हें कि ई बीहा वैं आपनोॅ लेली तेॅ करनें नै छेलै। प्रशान्त केॅ आपनोॅ निर्णय नै लै के आदत पर बहुत गोस्सा ऐलै। ऊ रात दोनों में कहा-सुनी होलै आरू प्रशान्त नें नाटक के दूनो पास फाड़ी केॅ फेकी देलकै। कावेरी आपनोॅ भाय साथें दोसरे दिन बैंगलोर चल्ली गेलै। ई बेर प्रशान्त नें कावेरी सें आवै के बारे में कुच्छू नै कहलकै।

प्रशान्त के बाबुजी है समझी रहलोॅ छेलै कि कुच्छू खास बात छै, मजकि लाचार छेलै। हुनी खाली दुखी हुएॅ पारै छेलै। सब्भे घरोॅ में थोड़ोॅ बहुत झगड़ा तेॅ होवे करै छै, मतरकि आपनोॅ घोॅर छोड़ियो केॅ की कोय जाय छै भला। केकरा समझैलोॅ जायµकुच्छू नै बूझेॅ पारै छेलै। दू महीना बीततें-बीततें प्रशान्तो केॅ बहुत खराब लागेॅ लागलै। लोगोॅ के पुछलो सें ऊ खिजलाय जाय छेलै। कभी-कभी फोन पर कावेरी सें बात करी लै छेलै। लोगोॅ केॅ कुच्छू-कुच्छू बहाना करी केॅ बताय दै छेलै। बाबुजी नें एक दिन प्रशान्त केॅ समझैलकै कि दाम्पत्य जीवन में जे भी समझदार रहै छै, ओकर्है आगू बढ़ी केॅ दाम्पत्य केॅ बचाय लेना चाहियोॅ, यै लेली जाय केॅ कावेरी केॅ लेलेॅ आवोॅ। प्रशान्त छुट्टी लै के सोचिये रहलोॅ छेलै कि बैंगलोर सें खबर ऐलै कि कावेरी माय बनै वाली छै आरू डॉक्टर नें बेड रेस्ट बताय देनें छै। प्रशान्त सब्भे कुच्छू भूली-भाली केॅ बैंगलोर भागलै। बाप बनै के संभावना नें ओकरोॅ अन्दर एक नया दायित्व बोध जगाय देनें छेलै। ओकरोॅ खुशी सें प्रशान्त एकदम्में सें बदललोॅ लागी रहलोॅ छेलै। कावेरियो तबेॅ ताँय ठीक-ठाक होय गेली छेलै। डॉक्टर नें कुच्छू परहेज बताय देनें छेलै। आरू बी0 पी0 चेक करी केॅ ओकरोॅ बी0 पी0 नै बढ़ेॅ, एकरा पर ध्यान दै लेली कहलकै। कुच्छू दिन बादे कावेरी ऐतियै, यै लेली प्रशान्त लौटी ऐलै।

प्रशान्त आयकल कत्तेॅ-कत्तेॅ देर फोन पर कावेरी के हाल-चाल पूछेॅ लागलोॅ छेलै। एक नया जीवन ओकरोॅ आरू कावेरी के बीच पुल बनी रहलोॅ छेलै। बाबुजी के भी मोॅन लगै कि जेना समस्या के अन्त होय वाला रहै। प्रशान्त नें आपनोॅ मनोॅ केॅ बाँधलकै कि आबेॅ बचपना आरू आपस के तनातनी छोड़ी केॅ ओकरा हर हालोॅ में कावेरी केॅ खुश रखना छै। ई उत्तरदायित्व वाला नौकरी में तेॅ ऊ कावेरी केॅ पूरा समय्यो नै दिएॅ पारै छै। यै लेली जों कावेरी कहतै तेॅ बिजनेसो में उतरी जाय के बारे में सोचेॅ लागतै।

कावेरी में धीरें-धीरें परिवर्तन आवी रहलोॅ छेलै। ओकरोॅ समय भावी जीवन के तैयारी के सोच में बीती रहलोॅ छेलै आरू प्रशान्त के प्रति शिकायत के भाव खतम होय रहलोॅ छेलै। फेनू पचमा महीना लागत्हैं कावेरी आपनोॅ भाय साथें प्रशान्त के घोॅर आवी गेली।

प्रशान्त एकदम्में सें व्यस्त होय गेलै। बिना औरत के घोॅर आरू गर्भवती स्त्राी के रख-रखाव सें अनभिज्ञ प्रशान्त हरदम्में घबरैलोॅ रहै। कखनू फूफू सें फोन पर कुच्छू बात पूछै, कखनू डॉक्टर कन भागी केॅ जाय, कखनू दीदी केॅ जल्दी आवै लेली कहै। कावेरी आपनोॅ प्रति प्रशान्त के ई लगाव देखी केॅ हतप्रभ सें खाली ताकत्हैं रहै। सूनोॅ घोॅर आरू प्रशान्त के चिन्ता देखी केॅ आखिर कावेरिये नें फैसला लेलकी कि प्रसव बैंगलोरे में होवोॅ ठीक होतै आरू नै चाहतेॅ हुएॅ भी प्रशान्त नें कावेरी केॅ बैंगलोर पहुँचाय देलकै। आपनें दिल्ली आरू बैंगलोर करी रहलोॅ छेलै। कावेरी केॅ खुश देखी केॅ प्रशान्तो खुश छेलै। ससुर आरू सारोॅ सें भी बात करै। बिजनेस करै तक ऊ सहमत होय गेलोॅ छेलै, मतरकि बैंगलोर रहवोॅ ओकरा नै जँची रहलोॅ छेलै। तहियो ऊ आबेॅ आपनोॅ अप्रसन्नता प्रकट नै करै छेलै।

कावेरी के प्रसव पूर्व ताँय सब्भे ठीक्के चली रहलोॅ छेलै। फेनू पता नै केना केॅ बी0 पी0 एकदम्में सें बढ़ी गेलै। डॉक्टर नें जल्दी सें आपरेशन के तैयारी करलकै तहियो केस बिगड़ी गेलै। एक बेटा केॅ जनम दै केॅ कावेरी प्रशान्त केॅ भौचक्का करी केॅ दुनिया सें विदा होय गेली।

जेना वज्रपात होय गेलोॅ रहेॅ। आपनोॅ माय मरला के बाद जे दरद प्रशान्त नें भोगलेॅ छेलै, वहेॅ दर्द के साथें एक ठो आरू टूअर ओकरोॅ ज़िन्दगी के सामना सवाल बनी केॅ खाड़ोॅ छेलै। तीन महीना तेॅ जेना-तेना डॉक्टर-नर्स, सास-सरहज केॅ गोदी में बच्चा के कटी गेलै। प्रशान्त किंकर्त्तव्यविमूढ़ बनी बच्चा केॅ बस देखत्हैं रहै। बादोॅ में प्रशान्त केॅ होश होलै कि आबेॅ बैंगलोर में रहै के कोय मतलबे नै छै। कोवरी के जिद पर ऊ बैंगलोर में रहै छेलै। आपनोॅ बच्चा केॅ वहाँ छोड़ै के सासोॅ के प्रस्तावो पर ऊ राजी नै हुएॅ पारलै। माय के साथें बाप सें भी टूअर ऊ बच्चा केॅ नै बनावेॅ लेली चाहलकै। यै लेली छोटोॅ रँ बच्चा केॅ छाती सें लगैनें दिल्ली आवी गेलै। दिल्ली पहुँचला पर जेना एक दिन दीदी नें प्रशान्त केॅ संभाली लेलेॅ छेलै, तेन्हें ओकरोॅ बेटो केॅ आपनोॅ अँचरा में नुकाय लेलकी।

जिन्दगी में एतना तेज अन्धड़ ऐलै कि सब्भे कुच्छू उजड़ी-पुजड़ी गेलै। सोचै-समझै के ताकते जेना कोय खतम करी देलेॅ रहेॅ। एतना छोटोॅ बच्चा केॅ केना पालेॅ पारवै आरू उत्तरदायित्व छोड़ी केॅ केना भागेॅ पारै छी, यहेॅ सब प्रशान्त सोचत्हैं रहै, फेनू भी कुच्छू नै समझै में आवै छेलै। आसिन महीना के कुनकुन ठंडा-गरम रँ के मौसम आवी गेलोॅ छेलै। प्रशान्त खाली सोचत्हैं रहै कि यही महीना में परसाल कावेरी नैहरा जाय लेली रूसली छेलै आरू ऊ ओकरा नै जाय दै रहलोॅ छेलै, मतरकि आय तेॅ बिना पुछल्हैं एत्तेॅ दूर चल्ली गेली कि ओकरा आपनोॅ बच्चो के परवाह नै रही गेलै। बाबुजी तेॅ एकदम्में मौन होय गेलोॅ छेलैµआपनोॅ अतीत जेना फेनू सें हुनका डरावेॅ लागलोॅ छेलै, जबेॅ प्रशान्त केॅ छोड़ी केॅ ओकरी माय दुनिया सें गेली रहै। प्रशान्त हुनका सामनें पड़ै लेॅ नै चाहै छेलैµआकि हिम्मते नै हुएॅ। शुरू-शुरू में सहानुभूति आरू लोगोॅ के ऐवौ-जैवौ सें प्रशान्त एतना तीक्ष्ण अनुभव नै करलकै। मतरकि जेना-जेना दिन बीतेॅ लागलै, घोॅर ओकरा काटै लेली दौड़ै। दीदी जबेॅ तांय बच्चा केॅ देखी रहलोॅ छेलै, ऊ यायावर नाँखि हिन्नें-हुन्नें घूमत्हैं रहै। दोसरोॅ दिन चली रहलोॅ छेलै। रात केॅ भटकतें रहला सें प्रशान्त के मिजाज खराब होय गेलै। ठंडा छाती में जकड़ी गेलोॅ रहै। जबेॅ खटिया पकड़ी लेलकै तेॅ बच्चा केॅ सामन्हैं पावी केॅ सोचै कि जे बच्चा केॅ आवै के कल्पना सें ऊ रोमांचोॅ सें भरी जाय छेलै, ओकरा देखत्हैं ऊ पत्थर कैन्हें बनी जाय छै, सोचेॅ नै पारै छै कि ओकरा प्यार करै कि नफरत। बच्चां तेॅ बस टुकुर-टुकुर ताकै छै।

बीमारिये के दिनोॅ में प्रशान्त आपनोॅ जीवन के पिछलका पन्ना उलटी-पुलटी केॅ देखेॅ लागै तेॅ आँखी तोॅर एक सपना के परछाँही जेना आवी जाय कि ऊ आपनोॅ लेली की सोचलेॅ छेलैµऊ सपना में बड़ोॅ-बड़ोॅ आँख आरू लम्बा चोटी वाली गंगो जेना ओकरा सें प्रश्न करै छेलै। लागै गंगा कहतें रहेॅµहमरा सें भागी केॅ की पैला? हृदय खोलना संगी साथें की एतना बड़ोॅ बात छेलै। फेनू कावेरी के चेहरा सामनां आवी जाय आरू ऊ मुँह झाँपी केॅ कानेॅ लागै।