फिनिक्स, खण्ड-16 / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
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ई बेर गंगा नें जे घोॅर किराया पर लेनें छेलै, ओकरा में शुरुवे में कचकचोॅ होय रहलोॅ छेलै। आपनोॅ एक सहकर्मी के मदद सें गंगा केॅ घोॅर तेॅ मिली गेलै, मतरकि कहियो चैन सें रहेॅ नै पारै। मकान के मालिक कलकत्ता में रहै छेलै आरू मकान के एक हिस्सा में दबंग आदमी रही रहलोॅ छेलै। ऊ हौ मकानोॅ पर कब्जा करै लेली चाहै छेलै। ऊ वही लेली सफड़ी रहलोॅ छेलै कि गंगा के ऐला सें ओकरोॅ स्वारथोॅ में रुकावट आवी गेलोॅ छेलै। गंगा बैंक सें किराया लेली किराया के रसीदो मकान मालिक सें लै रहली छेलै, दोसरोॅ तरफ ऊ आदमी बिना किराया के रही रहलोॅ छेलै, ई सिनी बात गंगा नै समझेॅ पारी रहली छेलै।

गंगा आपना केॅ एकदम्में असकल्ली समझी रहली छेलै। नवल भैया के आना-जाना होने कम होय गेलोॅ छेलै। निवेदिता आरू ओकरोॅ आपनोॅ फैसला लै के कारण माय-बाबुजी अन्दर सें क्षुब्ध आरू दुखी छेलै। ई हालत में भागलपुर आवी केॅ प्रशान्त के याद आवी रहलोॅ छेलै। नौकरी के शुरू में जे सहारा आरू सहयोग मिललोॅ छेलै, ओकरोॅ कीमत आबेॅ समझी रहलोॅ छेलै। शुरू के तीन महीना में तेॅ बेसी परेशानी नै होलै, मतरकि बादोॅ में तरह-तरह सें पड़ोस के छेदी बाबु के परिवारोॅ के तरफ सें टोका-टोकी हुएॅ लागलै।

हौ दिन विषहरी पूजा छेलै। बैंक सें आवै वक्ती रिक्शा नै मिललै। रस्ता में बाला-बिहुला के शोभा-यात्रा निकली रहलोॅ छेलै, यै लेली कत्तेॅ जगह रुकी-रुकी केॅ घोॅर ऐली तेॅ थकी केॅ चूर छेली। घोॅर आवै में साँझ होय गेलोॅ रहै, बाहर अन्हार रहै, दरवाजा पर ईटोॅ-पत्थर राखलोॅ रहै, जेकरा सें ठेंसाय गेली। सोचलकै, पड़ोसी के बच्चा नें खेलोॅ में जमा करी देंनें होतै। कहै लेॅ गेलै तेॅ छेदी बाबु के कनियैनी देर सें आवै के बारे में कटाक्ष करेॅ लागली। मोॅन छोटोॅ करी केॅ ऊ लौटी ऐली। कभी बिना कारणें घरोॅ के बिजली कटलोॅ मिलै, कहियो रात के बारह बजें एतना तेज रेडियो, टेप बजावेॅ लागै कि सुतवो मुश्किल होय जाय।

ऊ रोज कोय रात भर बीचोॅ-बीचोॅ में दरवाजा खड़काय दै। गंगा जानै छेलै कि कोय बदमाश-चोर नै छेकै, यहो छेदी बाबु के बेटा के काम छेकै। यैं सें ओकरा डोॅर तेॅ नै होलै, मतरकि रात भर जागी केॅ बिताय लेॅ पड़लै। बैंक में ऊनींदवासलोॅ आँखी सें गंगा केॅ काम करतें देखी केॅ सीमा नें गंगा केॅ तबीयत के बारे में पूछी लेलकै। गंगा नें तखनी तेॅ मुस्की देलकै, पीछू लंच ब्रेक में आपनोॅ समस्या बतैलकी आरू नया घोॅर खोजी दै लेॅ भी कहलकै। मतरकि एक साल के किराया ऊ दै चुकली छेलै आरू अभी पाँच महीना बाकी छेलै यै लेली सोचै छेलै कि केन्हौं केॅ पाँच महीना कटी जाय तेॅ ऊ जग्घोॅ बदली लै।