फिनिक्स, खण्ड-19 / मृदुला शुक्ला

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दुर्गापूजा नगीच आवी गेलोॅ छेलै, मतरकि धूप में वहेॅ रँ तेजी छेलै। गरमी सें पस्त होली गंगा जल्दी घोॅर आवी रहलोॅ छेली। रिक्शा आय चौराहा पर नै छेलै तेॅ गंगा वहीं ठां रुकै के बदला पैदले चली देलकै। तखनिये रस्ता में एक आदमी ओकरा छेकी केॅ खाड़ोॅ भै गेलै। गंगा नें आँख उठैलकी तेॅ ऊ अनजान आदमी के चेहरा एतना नगीच सें देखी केॅ डरी गेली। ऊ कुच्छू बुझतियै तब ताँय एकदम्में उजड्ड रँ आवाज में बोलेॅ लागलै, "सोझें-सोझें कही दै छियौं कि ऊ घोॅर सें दोसरा जग्घोॅ भागी जा, नै तेॅ एक दिन तोरा उठवाय लेभौं। लोगें कहतौं, कोय यार जोरें भागी गेली होतै।" असभ्य चेहरा, असभ्य व्यवहार आरू असभ्य भाषा। गंगा के देहोॅ में एक सिहरन रँ जागी गेलै।

आय ताँय आपना पर बड्डी भरोसा छेलै, भला आरू पढ़लोॅ-लिखलोॅ लोगोॅ के बीचोॅ में आपनोॅ बातो जोरदार ढंगोॅ सें राखै लेॅ जानै छेली। कम उमर में बहुत्ते कुच्छू झेली केॅ बुद्धि सें परिपक्व होय गेली छेलै, मतरकि सुनसान रस्ता में ऊ प्रस्ताव आरू धमकी सुनी केॅ वैं एतना भर कहलकी, "ई कोय जबरदस्ती छेकै। ई सब बात मकान-मालिकोॅ सें करना चाहियोॅ।"

"ज्यादा चपड़-चपड़ नै करवें, एखनिये मजा चखाय देभौं तोरा आरू तोरोॅ यार तपनो केॅ।" एतना आमना-सामनें सें अभद्र भाषा सें ओकरा पाला नै पड़लोॅ छेलै। ऊ चुप रही गेली। सामन्हैं वाला छौड़ा आपनोॅ साथी साथें मदमस्त हाथी नाँखि झूमी रहलोॅ छेलै आरू एक हाथ सें चाकू केॅ दोसरा हाथोॅ में लोकी रहलोॅ छेलै, फेनू ओकरा जेब में रखी देलकै। सामने वाला सड़क पेॅ कुच्छू आदमी केॅ ऐतैं देखी केॅ फेनू ऊ दोनों छौड़ा टरकी गेलै।

काँपली-हफसली गंगा घोॅर ऐली तेॅ दुआरी पर कत्तेॅ नी कूड़ा-कर्कट राखलोॅ छेलै। पैरोॅ सें टारी केॅ दरवाजा खोललकी आरू बिछौना पर गिरी केॅ कानेॅ लागली। कपसी-कपसी केॅ माय-बाबुजी केॅ याद करे ंॅ लागली। हुनकोॅ रहतें कोय पड़ोसी ओकरा रण्डी, कसबी तेॅ नहिये बोलेॅ पारतियै। मतरकि माय बाबुजी कत्तेॅ दिन साथ रहेॅ पारतियै। फेनू जेना अन्हारोॅ में बिजली चमकलोॅ रहै, प्रशान्त के याद आवी गेलैµजबेॅ देवघर जाय के रस्ता में ऊ डरी रहलोॅ छेली आरू प्रशान्त नें ओकरा विपत्ति सें उबारी लेनें छेलै। यहो सोचेॅ लागली कि आखिर प्रशान्त ओकरोॅ जीवन में ऐलै कथी लेॅµएक्के आदमी जे मनोॅ केॅ अच्छा लागलै ओकरा, मजकि कतना कम समय तक के साथ मिललै, तहियो कत्तेॅ मर्यादित, कत्तेॅ संतुलित। ऊ चांदनी रात में मनोॅ के जे गाँठ खुलतें-खुलतें रही गेलोॅ रहै, आय वही सम्पत्ति बनी केॅ हमरोॅ पास राखलोॅ छै।

ऊ समय में गंगा के मनोभाव पल-पल में बदली रहलोॅ छेलै कि वहीं कैन्हें नी ऊ दिन आपनोॅ अन्दर के भाव उजागर करी देलकै। जाय वक्तियो कैन्हें नी रोकी लेलकै कि प्रशान्त एक रिश्ता यहूँ अनाथ होय रहलोॅ छै, छोड़ी केॅ मत जा। मतरकि की ऊ कहेॅ पारतियै? केना औरत होयकेॅ आपन्हैं सें कहतियै? ऊ रात के सम्मोहन में हम्में दोनो बँधलोॅ तेॅ छेलियै, जीवन के जे पन्ना ऊ दिन जुड़ी रहलोॅ छेलै की ऊ सब्भे के साथें जुड़ै छै, जे प्रशान्तें नै बूझेॅ पारलकै। की प्रणय के ऊ अभिव्यक्ति नै छेलै। प्रेम के वास्तें की ओकरा बोलना ज़रूरी होय छै? है सब तेॅ अंग्रेज़ी सभ्यता में होय छै कि दिनोॅ में दस बेर 'आई लव यू' बोलै छै आरू अन्तर में कोय हिलोर नै, कम्पन नै, बस ठोर हिलै छै। आय कहाँ छै प्रशान्त? बीहा होय गेलै तेॅ की, तोरा गंगा के बारे में जानै के कोशिश नै करना चाहियोॅ। हमरोॅ सम्बन्ध केॅ बीहा सें की मतलब? मतरकि एतना सोचत्हैं-सोचत्है गंगा के जेना कोय पुरानोॅ घाव चिनकी गेलै।

प्रशान्त के बीहा के कार्ड ऐलै तेॅ गंगा नें आपनोॅ मोॅन केॅ भरमाय लेली कोय-कोय बात अन्दरे-अन्दरे दोहरावैµप्रशान्त ओकरोॅ कुछुए नै लागै छेलै आरू ओकरोॅ बीहा सें ऊ कैन्हें दुखी होतै। तबेॅ अन्दर के भाव केॅ दवाय लेली ऊ ज़्यादा काम करेॅ लागली। छुट्टी होत्हैं कहीं दूर घूमै लेॅ चल्लोॅ जाय। बाज़ार सें फालतू सिनी चीज खरीदी केॅ लेलेॅ आवै। मतरकि कोय फायदा नै होलै। सात बरस में भी प्रशान्त के प्रति आकर्षण दुर्निवार ढंग सें उमड़त्हैं रहलै। आकि ई गंगा के स्वार्थ छेलै, जे असहाय होय केॅ आपनोॅ प्रथम पुरुष के सहारा खोजी रहलोॅ छेलै?