फिनिक्स, खण्ड-1 / मृदुला शुक्ला

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"गंगा, आबेॅ खेलै लेॅ नै जइयौ बेटा, बेरा झुकी गेलोॅ छै" , इन्दु ने हाँक पारी केॅ कहलकै।

"बस्स, थोड़ोॅ देर आरू खेली केॅ आवै छियौं" , गंगा यही कही केॅ खेलै लेॅ भागी गेली। गंगा के माय इन्दु चूल्हा पर चढ़लोॅ तरकारी चलाबेॅ लागली। तखनिए गंगा के बाबुजी भी बाहर सें अयलै। जेन्होॅ कि हुनकोॅ आदत छेलै, आपनोॅ तीनो बेटी आरू बेटा केॅ खोजेॅ लागलै। रूपा तेॅ अन्दर कोठरी में पढ़ी रहली छेलै, आरू छोटकी भी सामन्हैं में कनिया-पुतरी खेली रहलोॅ छेली, मतरकि गंगा के कँही अता-पता नै देखी केॅ हुनी इन्दु सें गंगा के बारे में पूछेॅ लागलै।

जब ताँय इन्दु कुछ कहतियै, तब ताँय नवल आपनोॅ बहिन गंगा के कान पकड़लें घरोॅ में घुसलै। इन्दु हड़बड़ाय केॅ देखेॅ लागलै तेॅ नवल तमतमैलोॅ बोलेॅ लागलै, "माय, एकरा एत्तेॅ देर ताँय बाहर कैन्हें रहै दै छैंµई खाली लड़ै लेॅ बाहर जाय छै। एखनियो रेणुआ साथें लड़ी रहलोॅ छेलै। तोहें जानै छैं नी कि ओकरोॅ माय कैन्होॅ झगड़ाही छै, ओराहना सें उद्धार करी देतौ, तबेॅ बूझिहैं?"

गंगा आपनोॅ हाथ छोड़ाय केॅ दौड़ी केॅ माय लग सटी गेली आरू कानी-कानी बोलेॅ लागली, "हम्में की ओकरा माय डरोॅ सें कुछ नै बोलेॅ पारौं? हम्में कुछ नै करलेॅ छेलियै। वहीं सोनिया सें कही रहली छेलै कि एकरोॅ बहिन भैसाठी रँ होली जाय छै आरू बीहा नै करी रहलोॅ छै। हमरी माय कही रहलोॅ छेलै कि कोय दिन हल्कुआ जोरें भागी जैतै। तबेॅ हम्में ओकरोॅ हाथ पकड़ी केॅ पूछेॅ लागलियै तेॅ वहीं हमरा धकेली देलकै। तहियो भइया हमरै झगड़ाही कहै छै।"

ई सब सुनी केॅ इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु बस ठगले रँ खाड़ोॅ रही गेलै। गुमगाम होय केॅ सोचेॅ लागलै कि है सिनी की सब सीखी आरू सुनी रहली छै गंगा। रूपा तेॅ शांत प्रकृति के छै तेॅ गाँवोॅ के तेरह-पाँच में नै पड़ै छै, आरू हुनका सिनी के सीख भी मानै छै, मतरकि गंगा तेॅ जेना बिजली रहै, एक्को टा बात जमीन पर नै पड़ै लेॅ दै छै। बिना बात के ई सिनी झंझट में पड़ै के इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु के मोॅन नै रहै, तहियो रूपा के बारे में सुनी केॅ थोड़ोॅ जी खराब लागेॅ लागलै।

रामप्रसाद झा एक मिशन में अध्यापक छै। ऐन्होॅ स्कूली में आदर्श तेॅ उच्चे रहै छै, मतरकि वेतन एक सन्यासी भर के होय छै। ओतना पैसा में गृहस्थी चलाना मुश्किल समझी केॅ रामप्रसाद बाबु आपनोॅ परिवारोॅ केॅ तारापुर के घरोॅ पर रखी केॅ बच्चासिनी के पढ़ाय-लिखाय के व्यवस्था करी देनें छै। जखनी गंगा मूँ-हाथ चमकाय केॅ बोली रहली छेली, तखनिए किस्टो माय एंगना होय केॅ छोटकी पास जाय रहली छेली। वैं बीचोॅ में बोलेॅ लागली, "दुलहैन, कही दै छियौं, लड़की जात केॅ दाबी केॅ रक्खोॅ, नै तेॅ यैं तेॅ गामोॅ के नामे हँसाय देथौं, बड़ी जोधिन होली जाय छों।"

गंगा आँख फाड़ी केॅ खाय जायवाला नजरोॅ सें किस्टो माय केॅ देखेॅ लागलै, मतरकि ओकरा सें की? आठ-नौ बरस के गंगा फेनू जोर-जोर सें कानेॅ लागली। इन्दु नें रिसियाय केॅ गंगा के पीठी पर दू थपप्ड़ मारलकी आरू सिधे आपनोॅ कमरा में घुसी गेली।

बात तेॅ ऐलोॅ-गेलोॅ होय गेलै, मतरकि सोनिया के जे बात गंगा नें बतैलकै, ऊ इन्दु के कलेजा में गड़ी गेलै। बात सच्चे छै कि गामोॅ के जनानी सिनी तरह-तरह के बोल बोलै छै। इन्दु केॅ ई सब सोची केॅ हूक उठेॅ लागलै। कोय की जानी-बुझी केॅ आपनोॅ बेटी केॅ कुँवारोॅ राखै छै। आभी पनरह बरस के होय गेली छै आरू गामोॅ के सब्भे लोगोॅ के आँखी में गड़ी रहली छै। रामप्रसाद बाबु भी करै तेॅ करै की? जहाँ भी जाय छै, लड़का के डाक सुनी केॅ दाँतोॅ पेॅ दाँत दबाय केॅ चुपचाप उठी केॅ आवी जाय छै। दोनों परानी आपनोॅ हाथ मली केॅ रही जाय छै। फेनू तीन-तीन बेटी जनमैला के सन्तापोॅ सें इन्दु के देह दिनोदिन सूखलोॅ जाय रहलोॅ छै।

नवल आभी तारापुर में पढ़ी रहलोॅ छै, मतरकि हायर सेकेन्डरी करत्हैं ओकरोॅ खरचा भी बढ़ी जैतै, फिरू केना ई गृहस्थी के पार लागतै। नद्दी में जबरदस्ती भँसाय केना देतै बेटी केॅ? यहेॅ सिनी इन्दु सोची रहलोॅ छेली। रामप्रसाद बाबु साँझे सें इन्दु के सूखलोॅ मूँ देखी रहलोॅ छेलै आरू इन्दु के चिन्ता भी समझी रहलोॅ छेलै। बच्चा-बुतरू के सुतला के बाद हुनी इन्दु के पास जाय केॅ बोललै, "आय माथोॅ बड़ी दुखाय रहलोॅ छै। ज़रा घृतकुमारी तेल छौं तेॅ लगाय देॅ।" इन्दु आपनोॅ सोच में डूबली छेली। दोसरा बार फेनू बोलला पर उठी केॅ गेली आरो करुओॅ तेल लै केॅ अयली, तबेॅ रामप्रसाद बाबु इन्दु दिश ताकी केॅ बोललकै, "की बात छै नवल के माय, बड़ी उदास देखै छियौं। मोॅन ठीक नै छौं की? घृतकुमारी तेल बोललिहौं तेॅ करुओॅ तेल लै केॅ ऐलौ। धियान कन्हेॅ छौं?"

इन्दु हाथोॅ में करुओॅ तेल देखी आरू समझी केॅ झेपी गेली, ऊ फेनू सें घृतकुमारी तेल लानी केॅ रामप्रसाद बाबू के माथा में लगावेॅ लागली। तेल लगैतें-लगैतें इन्दु धीरें-धीरें रामप्रसाद बाबु सें कहेॅ लागली, "आय जोन बात पर गंगा लड़ी केॅ अयली छै, वहेॅ बात नें हमरोॅ चैन छीनी लेनें छै। बात सच्चे छै नी। रूपा के अब ताँय तेॅ बीहा होय जाना चाहियोॅ, वै में देर होय रहलोॅ छै।"

गामोॅ के लोगोॅ के ताना सुनी-सुनी केॅ इन्दु घबराय उठली छै, ई बात रामप्रसाद बाबु भी बूझी रहलोॅ छै, मतरकि लोगो ऐन्होॅ-ऐन्होॅ लड़का बतावै छै, जे कोय ढंगोॅ के नै दिखाय छै। भगवान बेटी दियेॅ तेॅ पैसा भी दियेॅ, यहेॅ रामप्रसाद बाबू सोची रहलोॅ छै। परसू भी हुनी यहेॅ सिनी के चक्कर में दिनभर भुखले रही गेलै। एक मित्रा छेलै, वही लै केॅ एक लड़का कन गेलोॅ छेलै, लेकिन लड़का दोविहोॅ आरू रूपा सें दुगनोॅ उमर के छेलै। पहिलका घरोॅ सें एक बेटियो छेलै। रामप्रसाद बाबू दरबाजा पर जाय केॅ एकदम ठकमकाय गेलै, मतरकि मुहोॅ पर कुछू नै कही केॅ 'बादोॅ में अयभौं' कही केॅ उठी ऐलै।

जखनी रुकी-रुकी केॅ रामप्रसाद बाबु नें इन्दु केॅ सब कथा सुनैलकै तेॅ इन्दु के आँखी सें आपनोॅ मजबूरी पर छर-छर लोर गिरेॅ लागलै। जखनी रूपा होली छेली, तखनी रामप्रसाद बाबू बी0 ए0 में पढ़ै छेलै आरू बाबूजी भी छेलै; हुनका समय में खेत-पथारी भी अच्छे छेलै, तबेॅ कत्तेॅ सपना इन्दु आरू रामप्रसाद बाबू नें यही रूपा लेली देखलेॅ छेलै। नवल आरू रूपा में सवा वरस के ही अंतर रहै। मतरकि रामप्रसाद बाबु के कोय बहिन नै रहै यै लेली दादा-दादी बड़ी खुश होलोॅ छेलै। बादोॅ में तीन कन्या होल्हौ पर रामप्रसाद बाबू नें बेटी के अवहेलना नै करनें छेलै, मतरकि बाबुजी के मरला के साथें घरोॅ के चिन्ता, दू ठो भाय के पढ़ाय-लिखाय के भार आवी गेलै आरू हुनकोॅ रिजल्ट खराब होय गेलै। केन्हौं केॅ टीचर ट्रेनिंग करी केॅ बादोॅ में बी0 ए0 करलकै। नौकरी घरोॅ सें बेसी दूर करना संभव नै छेलै, यै लेली भागलपुरे में पढ़ावेॅ लागलै। मतरकि पैसा के कमी आरू घरोॅ सें आवै में देर-सवेर होला के कारण हौ नौकरी छोड़ी देलकै। रामकृष्ण मिशन में नौकरी लेला सें एक लाभ यहेॅ छेलै कि रहै आरू खाय-पीयै के पैसा बची जाय छेलै तेॅ घोॅर पैसा दियेॅ पारै छेलै। अभावोॅ में गामोॅ में केन्होॅ केॅ गृहस्थी चली रहलोॅ छेलै। आबेॅ जे है बीहा-शादी रं बड़ोॅ खरचा सामनें आवी गेलोॅ छै तेॅ हुनी कुछू समझेॅ नै पारै छै। बेटी केॅ पढ़ाय रहलोॅ छै कि कोय आदर्शवादी परिवार शिक्षा पर जों बीहा लेॅ तैयार होय जाय तेॅ हुनी उबरी जैतै।

दूनो जीव खटिया पर बैठी केॅ आपनोॅ सुख-दुख बतियाय रहलोॅ छेलै कि गंगा के नींद टूटी गेलै आरू आपनोॅ बिछौना पर सें चालो दियेॅ लागली, "माँ डोॅर लागै छै, अन्धारोॅ में डोॅर लागै छै, तोहें कहाँ छैं?" इन्दु कानी रहली छेली। अँचरा सें लोर पोछी केॅ बोललकी, "आवी जो देवाल पकड़ी केॅ, बरन्डा पर छियौ, बाबूजी के माथोॅ दावी रहलोॅ छियौ।"

गंगा उठी केॅ डगमगैली ऐली तेॅ देखलकी कि बीच वाला कोठरी में रूपा पढ़ी रहलोॅ छै आरू ओकरोॅ आँखी सें लोरो बही रहलोॅ छै। भकवैली रं गंगा रामप्रसाद बाबू के बगलोॅ में आवी केॅ सूती गेली तेॅ इन्दु केॅ लोर पोछतें देखी केॅ कहेॅ लागली, "माँ, तोहें कानी रहली छैं की? आरू रूपा दी भी कैन्हें कानी रहलोॅ छै?"

इन्दु जल्दी सें लोर पोछी केॅ बोललकी, "नै, हम्में कहाँ कानै छियै बेटा।" वैं समझी गेली कि रूपा नें हुनका सिनी के बात सुनी लेनें छै आरू यही लेली कानी रहलोॅ छै।

रामप्रसाद बाबू गंगा केॅ देखी केॅ गहरा सांस खींची केॅ बोलेॅ लागलै, "कांचोॅ के पुतरी रं हमरी बेटी सिनी, सब लूर-ढंग सें भरली, केना केॅ जहाँ-तहाँ बिहाय दियै। लड़का वाला अन्धेर मचाय रहलोॅ छै, एकदम बेटा बेचै लेली तैयार छै। खैर रूपा माय तोहें निचिंते रहोॅ; हम्में दोविहो लड़का केॅ तेॅ बेटी नहिए देवै।"

गंगा टप सें बोली देलकी, "बाबुजी, बीहा करना की ज़रूरी होय छै। हम्में तेॅ तोरा छोड़ी केॅ कहियो कांही नै जैभौं।" भोली-भाली गंगा नें कस्सी केॅ आपनोॅ बाबूजी केॅ पकड़ी लेलकी। रामप्रसाद बाबू के मोॅन द्रवित होय गेलै। अपना सें सटली गंगा केॅ दुलार करी केॅ कहलकै, "नै बेटा, तोरा तेॅ हम्में राजकुमारोॅ साथें भेजभौं, तोहें तेॅ हमरी रानी बेटी छेकौ नी?"