फिनिक्स, खण्ड-25 / मृदुला शुक्ला

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तपन के बातोॅ सें प्रशान्त बहुत्ते प्रभावित छेलै। सब्भे तरफ सें विचार करी केॅ पहिनें एक प्रेस तरफ प्रशान्त प्रयत्नशील होय गेलै। मतरकि प्रेसो तेॅ प्रशान्त खाली आपनोॅ मनोॅ केॅ सन्तोष लेली लगाय रहलोॅ छेलै, ताकि समस्या केॅ आवाज मिलेॅ सकेॅ। ओकरा ज़्यादा चिंता सिल्क-उद्योग के छेलै। सरकार के लापरवाही सें दिनो-दिन जर्जर होय रहलोॅ छेलै रेशम-उद्योग। प्रशान्त बात के तह तांय जाय के प्रयास करी रहलोॅ छेलै। ऊ सोचै छेलै कि आय अगर भागलपुर के ई उद्योग केॅ थोड़ोॅ सहारा आरू बड़ोॅ हेनोॅ बाज़ार मिली जाय तेॅ भागलपुर के नक्शे बदली जाय।

यहेॅ सब देखी-बुझी केॅ ऊ दिल्ली के कारोबार समेटी केॅ भागलपुरे में व्यापार शुरू करै लेली चाहै छेलै। नौकरी करला सें अच्छा छै कि दस केॅ नौकरी दै के कोशिश करना। काम आसानो नै छेलै, नया भी छेलै, सरकारी विभाग के सुस्ती, अनुमति लै के झंझट, बिजली के आँख-मिचौली के प्रबंध आरू लूम बैठाय खातिर खरीद-बिक्री के जानकारीµयै सिनी में रोज ढेर लोगोॅ सें भेंट-मुलाकात करै लेली पड़ै छेलै। ई सिनी में प्रशान्त एकदम्में आपना केॅ थकाय रहलोॅ छेलै, जैसें पुरनका दिन याद नै आवेॅ। मतरकि ई सब्भे सें पलाश एकदम्में उपक्षित होय गेलै आरू बूढ़ी फूफू हलकान होय रहली छेलै।

अचानके एक दिन प्रशान्त के फूफू नें नौकर भेजी केॅ गंगा केॅ बोलवैलकै। रघ्घू नें आवी केॅ कहलकै, "गंगा दी, फूफू तोरा एखनिए बोलैनें छौं।" गंगा बैंकोॅ सें आवी केॅ चाय चढ़ैलै छेली, "कैन्हें रघ्घू, की बात छेकै?"

"गंगा दी, पलाश केॅ बड्डी जोर बोखार होय गेलोॅ छै, उतरी नै रहलोॅ छै।"

गंगा नौकर साथें वहाँ पहुचली तेॅ देखलकी कि पलाश बोखार सें एकदम्में तपलोॅ देह लेनें अलबल बकी रहलोॅ छै। आँख लाल-लाल होय रहलोॅ छेलै। फूफू के हाथ-पैर ठण्डा पड़ी गेलोॅ छेलै। डरोॅ सें ऊ अलगे काँपी रहली छेलै, खाली आँखी सें लोर बही रहलोॅ छेलै। भागलपुर में फूफू केॅ रहै के मौका भी बेसी नै लागलोॅ छेलै, यै लेली केकरो घरो ठीक सें नै जानी रहलोॅ छेलै जेकरा बोलाय लेली भेजतियै, यै लेॅ गंगा केॅ ही बोलाय लेलकी।

भागलपुर आवी केॅ प्रशान्तो के एत्तेॅ बड़ोॅ दुनिया होय गेलोॅ छेलै कि ओकरा खोजन्हौं मुश्किल छेलै। आँखी में ढेरे सपना बसाय लेनें छै। चम्पानगर आरू नाथनगर दौड़त्है रहै छै। फूफू के बातो कहाँ सुनै छै। फूफू बतावेॅ लागली, "कखनू प्रशान्त कहै छै 'फूफू, कोय जमाना में है' भागता हुआ शहर' कहलावै छेलै, आय है जड़ आरू मुरझैलोॅ रँ लागै छै हमरे सिनी के गलती सें नी। गंगा तोंही बोलोॅ, ई बौराहा केॅ हम्मेें समझावेॅ पारवै। पहिनें कावेरी के दुनियाँ सें गेला के बाद शोक में सब्भे कुच्छू छोड़ी देलकै, आबेॅ नया राग लैकेॅ बैठलोॅ छै। बहिनी नें बच्चा थमाय देलकै कि कुच्छू संसारी बनै तेॅ हमरा सौंपी केॅ यहाँकरोॅ उत्थानोॅ में लागलोॅ छै।"

गंगा नें फूफू केॅ ढाढस बंधाय केॅ दवाय सब उल्टी-पुल्टी देखलकैµफेनू डॉक्टर के नाम पढ़ी केॅ फोन पर ही हुनका घोॅर आवै ली कहलकै। डॉक्टर नें जबेॅ आवी केॅरोगी केॅ देखलकै तेॅ तुरन्ते गोस्सावेॅ लागलै आरू नर्सिग होम में भरती करै लेली कही देलकै। गंगा नें फूफू केॅ समझाय-बुझाय केॅ पलाश केॅ लै गेली आरू शांति नर्सिंग होम में भरती करी देलकी। बोखार तेॅ खाली लक्षण छेेलै, मतरकि पलाश के तबीअत पहिलें सें खराब चली रहलोॅ छेलै। पूरा दू दिन पानी चढ़लै, तबेॅ पलाश के आँख पूरा खुलेॅ पारलै। तेसरोॅ दिन जबेॅ गंगा भोरे-भोर पलाश के देह-हाथ पोछी केॅ हार्लिक्स आरू दवाय दै केॅ हटली छेलै, तखनिए आपनोॅ लूम बैठाय लेली पेपरसिनी जमा करी केॅ प्रशान्त पटना सें लौटलै। घरोॅ में घुसत्हैं पलाशोॅ के बीमारी के खबर सुनलकै। फेनू भागलोॅ नर्सिंग होम पहुँचलै। पलाश के ई हालत देखी केॅ गंगा केॅ प्रशान्तोॅ पर बड़ी गोस्सा होलोॅ छेलै, यै लेली चुपचाप आवी केॅ बैठी गेलै। प्रशान्तोॅ नें कहलकै, "गंगा, तोरा तकलीफ होय गेल्हौं।" गंगा जवाब नै देलकी, खाली दवाय वाला चिट्ठा प्रशान्तोॅ केॅ दै देलकी। दवाय लै केॅ प्रशान्त लौटलै तेॅ नौ बजी गेलोॅ छेलै। वें फेनू गंगा सें कहलकै, "आबेॅ तोहें बैंक भी जैभा तेॅ जा, हममें देखी लेवै।"

गंगा अनसुना करी केॅ हटी गेली। ग्यारह बजें जबेॅ फूफू ऐली, तबेॅ हुनक्है समझाय केॅ गंगा नहाय-धोय लेॅ घोॅर ऐली। फेनू तीन बजे शाम सें रात भर वाँही छेली। तब तांय बाबुजी भी बीचोॅ-बीचोॅ में आवी जाय छेलै। अगला दिन पलाश केॅ घर लै केॅ ऐलै तेॅ डॉक्टर के हिदायत के एत्तेॅ लम्बा-चौड़ा लिस्ट सुनी केॅ मोॅन घबरावेॅ लागलै। एतना छोटोॅ लड़का छै, ऊ फूफू या हुनकोॅ पुतोहू के बात मानवो करतै, यै में भी शक छै। आपनोॅ रोग के गंभीरता ऊ बच्चा की बूझेॅ पारतै। गंगा कुच्छू नै सोचेॅ पारी रहलोॅ छेली कि की व्यवस्था करना उचित होतै। अस्पताल ताँय तेॅ ठीक्के छेलै, हालाँकि लोग तेॅ तखनियो कटाक्ष करिये रहलोॅ छेलै। साँझे जबेॅ गंगा आपनोॅ घोॅर आवेॅ लगली तेॅ पलाश कानेॅ लागलै, "गंगा आंटी हम अकेले नहीं रहेंगे, हम भी आपके साथ जायेंगे।" गंगा ठकमकाय गेली, ई बात तेॅ गंगा नें सोचल्हैं नै छेली। बड़का घोॅर, सुख-सुविधा नौकर-चाकर हाथें रहै वाला लड़का ओकरोॅ साधारण घोॅर, साधारण बिछौना। वहाँ साधारण ढंग सें केना रहेॅ पारतै, यै लेली असमंजस में पड़ी गेली।

प्रशान्त बाहर के कोठरी में कुच्छू लिखी-पढ़ी रहलोॅ छेलै। वहाँ दू-चार ठो आदमियो छेलै। गंगा खूब बुझी रहलोॅ छेली कि प्रशान्त के ई व्यस्तता के कारण की छेकै। पहिनौ ऊ ईमानदार आरू मिलनसार छेलै, मदद करै के आदतो छेलै। मतरकि एखनी तेॅ लोगोॅ सें अलग रहै नै पारै छै। एत्तेॅ अकेलापन झेलनें छै, महानगर नें एतने दंश देनें छै कि जे थोड़ोॅ टा करीब होय छै, ओकरा लेली जमीन-आसमान एक करी केॅ काम करेॅ लागै छैµआपनोॅ घोॅर-परिवार के चिन्तो ओकरे चिन्ता में समाय गेलोॅ छै। मने-मन कुच्छू विचारी केॅ गंगा नें फूफू केॅ समझाय देलकै, "आभी पलाश बच्चा छै, कमजोरो छै, यै लेली एक आदमी के ज़रूरत तेॅ छै, मतरकि हम्में यहाँ तेॅ नै रहेॅ पारवै, माय-बाबुजी असकल्लोॅ छै, यै लेली आपनोॅ साथें पलाशो केॅ लेनें जाय छियै।" बस एतन्है कही ऊ ओकरा लै केॅ आवी गेली, प्रशान्त सें पुछबो नै करलकी।

पलाश तेॅ छोटोॅ छेलैµमातृविहीन आरू बड़का टा घरोॅ में असकल्लोॅ आपन्है में खेलै वाला, यहाँ तेॅ अगल-बगल के बच्चो मिली गेलै आरू रामप्रसाद बाबु-इन्दु के प्यारो मिली रहलोॅ छेलै। गंगो नें आपनोॅ छुट्टी दू-चार दिन बढ़ाय देलकी। पलाश बेसी थकी नै जाय आकि घबरावै नै, यै लेली बहलैतें रहै कखनू खिस्सा-कहानी कही केॅ, कखनू लूडो खेली केॅ, कखनू कागज-पेन्सिल सें कट्टम-कुट्टी खेली केॅ ऊ पलाश के देखभाल में लागलिये रहै। पत्थरोॅ के खाना, फोॅल के इन्तेजाम में जेना आपनोॅ सब्भे कुच्छू भुलाय गेली रहै। मातृत्व के जेना एक स्राोत खुली गेलोॅ रहै या निवेदिता के दुखोॅ सें उबरै के बहाना। फूफू रोजे एक बेर आवी केॅ भेंट करी लै छेली। अड़ोस-पड़ोस के लोगोॅ केॅ अजगुत लागै छेलै। मतरकि गंगा नें तेॅ कहियो ई सिनी के परवाहे नै करलकी।

पलाश के गेला के बात जबेॅ प्रशान्तेॅ सुनलकै तेॅ अकबकाय गेलै। एक तरफ तेॅ पलाश के तरफ सें निश्चिंतो होलै, दोसरोॅ तरफ आपनोॅ कर्त्तव्य केॅ नै निभावै के कारणें लज्जितो। ऊ पलाश सें भेंट करै लेली जाय तेॅ गंगा के माय-बाबुजी सें बात करै, गंगा पलाशो केॅ वहीं ठा पहुँचाय दै आरू अपनें हटी जायµप्रशान्तें गंगा के ई रवैया देखी रहलोॅ छेलै। जे दिन गंगा केॅ बैंक ज्वाइन करना छेलै, ठीक एक दिन पहिनें प्रशान्त पलाश केॅ लानै के बात करेॅ लेली ऐलोॅ छेलै। इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु मन्दिर गेलोॅ छेलै। पलाश अन्दर कोठरी में फोटो के किताब देखी रहलोॅ छेलै।

प्रशान्त लेली चाय लै केॅ गंगा ऐली तेॅ प्रशान्तें कहलकै, "आबेॅ कल सें तोहें बैंक जैभौ आरू पलाशो ठीक होय गेलोॅ छै। तेॅ आय पलाश केॅ लेनें जाय छियौं।" पता नै कैन्हें तेॅ प्रशान्त आपनोॅ बेटा के बारे में भी अधिकारोॅ सेें बोलै नै पारी रहलोॅ छेलै। गंगा तमतमैली वहाँ सें उठी गेली आरू रसोय ओसरा पर जाय केॅ कुच्छू करेॅ लागली। गंगा रँ लड़की के ई व्यवहार पर प्रशान्त हतप्रभ होय गेलै। ऊ गंगा के ई रूप कहियो नै देखलेॅ छेलै। उठी केॅ प्रशान्तो झिझकलोॅ ऐलै आरू पुछलकै, "की बात होलौं? हमरा सें कोय गलती होय गेलै की?"

"नै तोरा सें केना गलती हुएॅ पारौं। जिनगी मेें सब्भे दिन तोहें सहिये करनें छौ। जे तोरा सें नजदीक रहै छै, होकरे सें गलती होय छै। शुरू सें यहेॅ तेॅ देखनें छिहौं।"

"पलाश के मोॅन खराब होय गेला सें नाराज छौ की? मतरकि हौ दिन जबेॅ हम्में गेलोॅ रहियै, पलाश के तबीयत एत्तेॅ खराब नै रहै, तहियो हमरा छोड़ी केॅ नै जाना चाहियोॅ, हम्में।"

गंगा नें हाथोॅ सें रोकी देलकै, "तोरा तहियो जाना चाहियोॅ आरू आय भी पलाश केॅ लै केॅ जाना चाहियोॅ। जों पलाश केॅ कुच्छू होय जैतियै तेॅ तोरोॅ समाज-सेवा, लूम आरू कारखाना बैठावोॅ आरू अंग क्षेत्रा के उत्थान के रस्ता में कोय बाधा रहबे नै करतिहौं?"

"गंगा एन्होॅ बात मुँहोॅ सें नै निकालोॅ, पलाश हमरोॅ जान छेकोॅ। ठीक छै, तोहें ओकरा लेली बहुत्ते कुच्छू करल्हौ। मतरकि..."

"नै-नै हम्में कुच्छू नै करलेॅ छिहौं, तोहें तेॅ एतन्हौ लायक भी नै समझलहौ। फूफू नें केना केॅ बोलाय लेलकैµआरू कोय तेॅ ई काम करवे करतियै।"

गंगा के गल्लोॅ भर्राय गेलै, लोर गालोॅ पर सें बहेॅ लागलै। ऊ तेजीे सें हटी केॅ कोठरी में चल्ली गेली। प्रशान्त चुप्पे-चाप बाहर वाला कमरा में बैठलोॅ रही गेलै। तबेॅ ताँय मैय्यो-बाबुजी आवी गेलै आरू गंगा सहज रूप सें घरोॅ के काम में व्यस्त होय गेली। प्रशान्त देखी रहलोॅ छेलै कि गंगा के आँख अभियो भरलोॅ छै। ओकरा अन्दर सें कुच्छू बेचैनी रँ लागेॅ लागलै। आखिर में ऊ उठी केॅ खाड़ोॅ होलै आरू कही देलकै, "कुच्छू दिन ताँय पलाश केॅ याँही छोड़ी जाय छिहौं, तोरा सिनी तेॅ छेवे करौ, देखी लिहौ।" गंगा नें चौंकी केॅ देखलकै तेॅ प्रशान्त नें आपनोॅ मूँ घुमाय लेलकै।

गंगा केॅ आबेॅ अपनोॅ कड़वोॅ बोली पर बड्डी अफसोस हुएॅ लागलै। प्रशान्त हेनोॅ सज्जन आदमी लेली ओकरा की अधिकार छेलै जे एत्तेॅ बात सुनाय देलकी, आरू पलाश वास्तें वैं जे भी करनें छै, से आपनोॅ अन्दर के भाव सें बाध्य होय केॅ, कोय अहसान तेॅ नहिये करलेॅ छै। की सोचतेॅ होतै प्रशान्तो।

अगला दिन सें प्रशान्त नियमित रूप सें साँझ केॅ आवेॅ लागलै। फोॅल सिनी लै केॅ आवै आरू एक घण्टा बेटा के साथें समय बितावै छेलै। एक सप्ताह बाद पलाश एकदम्मे ठीक होय गेलै। ओकरा इस्कूलो जाना छेलै, यै लेली प्रशान्त एतबार दिन ऐलै। गंगा नें सब्भे सामान समेटी देलेॅ छेलै। मतरकि एतना दिन के व्यस्तता आरू लगाव सें ओकरोॅ मन पलाश के वास्तें भारी होय रहलोॅ छेलै।

प्रशान्त नें कहलकै, "गंगा हौ दिन तेॅ तोहें बड्डी गोस्सा में छेलौ आरू जायजो छेलौं। मतरकि अभियो कहै छियौं कि पलाश केॅ जे तोहें हमरा लौटाय रहलोॅ छौ, बीमारी सें अच्छा करै लेली जे करनें छौ, ओकरा लेली धन्यवाद। हम्में जानी केॅ केकर्हौ दुख पहुँचाय लेली नै चाहै छियै। सच्चे ऊ दिन हमरा बाहर नै जाना चाहियोॅ।"

"प्रशान्त तोहें अनजाने में बहुत्ते दुख पहुँचाय छौ, सच कहलौ। आरू तोरोॅ सामनें कैएक बेर एन्होॅ मौका ऐल्हौं, जबेॅ तोरा नै जाना चाहियोॅ आरू तोहें चल्लोॅ गेलौ?"

प्रशान्त अर्थ बूझै लेली गंगा के दिश ताकेॅ लागलैµआखिर की अभिप्राय छै गंगा के? गंगा की पुरनका राख हटाय केॅ आग देखै लेली चाहै छै? तबेॅ ताँय गंगा नें दोसरोॅ बात छेड़ी देलकी आरू पलाश केॅ विदा करी देलकी।