फिनिक्स, खण्ड-27 / मृदुला शुक्ला

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राधा केॅ गंगा नें ऊ बेर दू-चार दिनोॅ ताँय रोकी लेलकै। प्रशान्त के कार्य क्षेत्रा बढ़ले जाय रहलोॅ छेलै आरू गंगा केॅ पलाश के चिन्ता लगी रहलोॅ छेलै। साँझकोॅ बेरा रघ्घु साथें पलाश केॅ गंगा बोलवाय लै छेलै। तखनिये थोड़ोॅ बहुत इस्कूलोॅ के पढ़ाय भी देखी लै छेलै आरू खेल-कूदो वाँही होय जाय छेलै। रात केॅ प्रशान्त पलाश केॅ लेनें घोॅर चल्लोॅ जाय छेलै। नौकरी करतें हुएॅ गंगा एकरा सें ज़्यादा नै करेॅ पारै छेलै। कत्तेॅ बेर प्रशान्त के याद दिलैला के बादो ऊ पेरेन्ट्स मीटिंग में जाय लेली भूली जाय, कहियो किताब खरीदै लेली इस्कूल जाय में देरी करी दै, यै सिनी सें गंगा खूब खीजी जाय छेलै। अनसाय केॅ कखनियो कुच्छू बोलियो दै। मतरकि ई रँ बेसी दिन चलना मुश्किल छेलै, ई गंगा जानी रहलोॅ छेलै।

प्रशान्त के प्रेस अच्छा चली रहलोंॅ छेलै। ऊ दिन गंगो बैठली छेलै आरू राधो नै गेली छेलै। तपन तुरत्ते ऐलोॅ छेलै। बात-चीत होय रहलोॅ छेलै तेॅ तपन नें बतैलकै कि प्रशान्त बाबु नें आपनोॅ प्रेस में सप्ताह में एक दिन अंगिका भाषा लेॅ काम करै लेली सोचलेॅ छै, वहो निःशुल्क।

थोड़ोॅ देर बाद जबेॅ प्रशान्त ऐलै तेॅ गंगा नें यै सम्बन्ध में पूछलकै। प्रशान्त बोललै, "हौं गंगा, आपनोॅ संस्कृति केॅ जिलाय लेली भाषा केॅ जिलाय लेॅ पड़ै छै।"

"आबेॅ ओकरोॅ की ज़रूरत छै" गंगा थोड़ोॅ अकबकाय गेली। गंगा जानै छेलै कि बैंकोॅ सें लोन लेनें छै, जेकरोॅ किश्त प्रेसे सें चुकाय रहलोॅ छै। मतरकि गंगा यहू जानै छेलै कि प्रशान्त के ऊपर जोन बातोॅ के भूत चढ़ी जाय छै, ऊ आसानी सें नै उतरै छै।

"गंगा आपनोॅ भाषा सें आपनोॅ क्षेत्रा के प्रति स्वाभिमान जगै छैµएक होय के भावना आवै छै; तबेॅ हमरोॅ मंजिलो आसान होय जैतै।"

गंगा केॅ हिचकिचैली रँ खाड़ोॅ देखी केॅ फेनू बोलेॅ लागलै, "जानै छौ, जतना कोय व्यस्क शिक्षा पदाधिकारी आरू मंत्रालय लोगोॅ केॅ शिक्षित नै करेॅ पारतै, ओकरा सें बेसी लोगोॅ केॅ हम्में आपनोॅ भाषा सें शिक्षित करेॅ पारेॅ छियै। अंगिका-समाज के गठन, जाति-धर्म केॅ तोड़ी केॅ एक नया समाज बनाय लेली जों तपन नें करनें छै, तेॅ हम्में प्रेस के सुविधा कैन्हें नी दियै।"

"जे भी करिहौ, मतरकि पलाश के ध्यान रक्खी केॅ।" गंगा सच्चे गंभीर होय गेली छेली।

"ओकरा लेली तेॅ तोहें छेवे करौ नी?" प्रशान्त नें हँसी केॅ कहलकै।

"हम्में की करेॅ पारै छी, तोहें बाप छेकौ, तोरा अधिकार छौं डाँटै के, सिखावै के."

"यहेॅ लेली तेॅ आय अधिकार दै लेॅ ऐलोॅ छिहौं, तोहें पलाश के माय बनी जा, यहेॅ अनुरोध करै लेली ऐलोॅ छिहौं।"

राधा, तपन आरू सीमाहौ वाँही बैठलोॅ छेलै। गंगा एकदम्मे अवाक् होय केॅ सिकुड़ी गेली। है कौन तरह के निवेदन छेकै, जेना फौजदारी मोकदमा रहेॅµसोचै के समय भी नै दै लेली चाहै छै प्रशान्त।

तपन आरू राधा एक-दोसरा के तरफ ताकेॅ लागलै। गंगा के प्रतिक्रिया सें ऊ सिनी सशंकित होय उठी केॅ बाहर चल्लोॅ गेलै। प्रशान्त बस एतन्है कही केॅ निकली गेलै, "कल ऐभौं, सोची केॅ बताय दिहौ।"

गंगा नें हौ दिन राधा केॅ फेनू नै जावेॅ देलकै। ओकरोॅ मन एकदम्में वश में नै छेलै। अब ताँय जे कुच्छू होय रहलोॅ छेलै, सब्भे सहज स्वाभाविक रूप सें होलेॅ गेलोॅ छेलै, मतरकि ई निर्णय के घड़ी बड्डी कठोर लगी रहलोॅ छेलै। कलेजा के अन्दर लागै, जेना कुच्छू मथलोॅ जाय रहलोॅ छै। छत्तीस-सैंतीस बरस के उमर में अचानके एक मोड़ जीवन में आवी गेलोॅ छै। कुँवारोॅ अरमान आरू पथरैलोॅ अभिमान एक्के साथें ओकरा झकझोरी रहलोॅ छै।

राधा गमी रहली छेलै कि जखनी सें प्रशान्त नें अनचोके पलाश के माय बनै के प्रस्ताव रक्खी देलेॅ छै गंगा के सामना, गंगा के अजीब दशा होय गेलोॅ छै। राती गंगा नें आखिर राधा केॅ कहलकै, "सही-गलत फैसला लै के हिम्मत नै होय रहलोॅ छै। हेना तेॅ प्रशान्त आवै छै तेॅ आपनोॅ परेशानी बतावै छै, कहियो कदाल बाहर जाय छै तेॅ पलाश के जिम्मेवारियो दै जाय छै, मतरकि पलाश के सौतेली माय बनी केॅ की हम्में एत्तेॅ प्यार दिएॅ पारवै, जतना अभी दै रहलोॅ छियै। लोगें कहतै कि पहिनें कहै छेलैµबीहा नै करवोॅ, धनी, पैसा वाला आदमी देखी केॅ फँसाय लेलकी।"

राधा नें पहिनें चुप-चाप सब बात सुनलकी फेनू कहलकी, "लेकिन जे रँ तोहें पलाश के देखभाल करै छौ, ऊ रँ केत्तेॅ दिन चलेॅ पारतै। अपना पर विश्वास नै छौं तेॅ दोसरा पर तोरा विश्वास होत्हौं कि वैं पलाश के सौतेली माय बनी केॅ बढ़ियाँ सें संभारी लेतै। पलाशो कल बड़ोॅ होय केॅ तोरोॅ आरू प्रशान्त के रिश्ता के बारे में पुछतौं। तीन-चार बरस सें तोहें आपनोॅ सौंसे दुनियाँ समेटी लेनें छौ। आबेॅ तेॅ कुच्छू सोचै लेलेॅ पड़तौं। दरवाजा पर प्रेम दुबारा आवाज दै रहलोॅ छौं। ई बेर नै लौटावोॅ।"

गंगा नें बड्डी देर तांय सोचलकै। ओकर्हौ लागै कि जतना तक ऊ बढ़ी गेलोॅ छै, आरू पलाश के मोह में बँधी गेली छै, फेनू प्रशान्त के जिन्दगियो जे रँ व्यस्त होलोॅ जाय छै कि आबेॅ ओकरोॅ इनकार के वास्तें गुंजाइशो नै रही जाय छै। आखिर वहूँ तेॅ पहिनें प्रशान्ते केॅ प्यार के रूप में देखनें छेलै। भले ऊ जीवन आबेॅ लौटी केॅ नै आवै वाला छै। परिस्थिति नें परिपक्व आरू गंभीरो बनाय देनें छै, जिम्मेवारी के बोझ में ऊ भले आवी गेलोॅ छै, मतरकि अन्दर तेॅ प्रेम के अन्तर-सलिला हरदम्में विद्यमान रहै छै। आखिर ऊ आजो असकल्ली रहियो केॅ आपना केॅ पूर्ण कहाँ समझी रहली छै। दू टुटलोॅ-हारलोॅ मोॅन एक होय केॅ सब्भे विपद के सामना करै लेली तैयार छै, तेॅ यहो भावी के कुच्छू संकेते होतै। एकरोॅ बाद अगला सप्ताह गंगा आरू प्रशान्त नें कोर्ट में दस्तखत करी केॅ आरू बूढ़ानाथ मन्दिरोॅ में जाय केॅ बीहा के औपचारिकता पूरा करी लेलकै।

मतरकि गंगा नें पहिनैं सें प्रशान्त केॅ कही देनें छेलै कि ऊ नौकरी नै छोड़तै। कोय्यो हालत में परालम्बी बनना ओकरोॅ वास्तें आबेॅ संभव नै छै। औरत अगर पुरुष के मित्रा, सलाहकार आरू रस्ता देखायवाली बनै लेॅ चाहै छै तेॅ आकरा सुक्खोॅ के मुफ्तखोर नै बनी केॅ संघर्ष के रस्ता देखना ज़रूरी छै। बिना बाहर के दुनिया जानलेॅ ऊ आधे-अधूरो रही जाय छै। प्रशान्त केॅ तेॅ ई सब्भे में कोय आपत्ति कहियो नै छेलै।