फिनिक्स, खण्ड-29 / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
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"मौसी जों तोहें नै कहवौ तेॅ हम्मेें नै जैभौं, मतरकि है सोचौ कि केकरो बेटा तेॅ आखिर जैवे करतै।"

साँझकोॅ बेरा ढली रहलोॅ छेलै। अन्धारोॅ में गंगा चुप्पेचाप बैठली छेलै। पलाश नें बत्ती जराय केॅ गंगा केॅ देखलकै तेॅ बगलोॅ में बैठी केॅ बोलेॅ लागलै।

"नै हम्में कहाँ रोकी रहलोॅ छियौं, मतरकि एक-दू ठो कम्पटीशन में आरू बैठी केॅ देखी लेॅ, बढ़िया सें सोची-विचारी लेॅ, आभी हड़बड़िये की छै!"

"मौसी हम्में खूब बूझी रहलोॅ छियै। जहिया सें एन0 डी0 ए0 में जाय के बात होलोॅ छै, तोहें लुकाय-लुकाय केॅ कानी रहलोॅ छौ। तोरा हम्में बहादुर समझै छेलिहौं। पापा कहै छै कि तोहें ज़िन्दगी में वहेॅ करला, जे उचित समझल्हौ। की तोरोॅ दृष्टि सें हमरोॅ ई फैसला उचित नै छै? देश-सेवा सें बढ़ी केॅ की चीज होय छै?"

"पलाश तोहें कत्तेॅ जल्दी बड़ोॅ होय गेला। हम्में तेॅ तोरा अबेॅ तांय छोटे बुझतेॅ रहलियौं।"

"सोचै छौ कि कावेरी के बेटा तेॅ एक अमानत छेकै, एकरा केना भेजियै।"

गंगा मूड़ी झुकाय लेलकी। प्रशान्त नें फेनू गंगा के कंधा पर हाथ रखी केॅ समझैलकै, "तोहें ओकरी माय छेकौ, ई समझी लेॅ।"

गंगा नें कावेरी-वात्सल्य-सदन नाम सें बिना माय-बाप के बच्चा वास्तें एक आश्रम बनैलेॅ छेलै। आय प्रशान्त कावेरी केॅ लै केॅ वाँही चल्लोॅ गेलै।

दोसरे दिन बिहाने पलाश एन0 डी0 ए0 के पढ़ाय लेली चल्लोॅ गेलै। गंगा स्टेशन सें आवी केॅ बस कावेरी के फोटो लुग खाड़ी होय गेली। ओकरोॅ आँखी सें झर-झर लोर बहेॅ लागलै। पलाश के संस्कारी मोॅन आय सुदर्शन स्वस्थ शरीर देखी केॅ गंगा केॅ लागलै कि ओकरोॅ प्यार सम्पूर्ण आरू सार्थक होय गेलै, मगर आय सें ऊ जेना दिन भर के कामोॅ सें निवृत होय गेलै। ई खालीपन नें ओकरोॅ कलेजा मथी देलकै। ऊ हिचकी-हिचकी केॅ कानेॅ लागली।

प्रशान्त पीछू सें आवी केॅ खाड़ोॅ होय गेलै। फेनू प्रशान्त नें गंगा के कानोॅ में कहलकै, "पलाश के माय, तोरोॅ बेटा सैनिक बनै लेली गेलौ छौं, कावेरी के ऊ बेटा नै छेकै। आपनोॅ मनोॅ में जे चोर छौं, ओकरा भगावौ आरू जेना बहादुरी सें जीवन में संघर्ष करनें छौ, ओकर्हौ वहेॅ रँ करै लेॅ दौ। आबेॅ तोरा एक्के पलाश नै, कावेरी-वात्सल्य-सदन के सब्भे लड़का तोरोॅ पलाशे छेकौं।"

गंगा नें आपनोॅ माथोॅ प्रशान्त के कंधा पर टिकाय देलकै। प्रशान्त नें हँसी केॅ कहलकै, "गंगा, तोरोॅ केश के बीचोॅ में उजरोॅ रँ एक गंगा बनी गेलोॅ छौं, आबेॅ तोहें बच्चा नाँखि कानौ नै।"

गंगा आँख मूँदी केॅ मुस्कुरावेॅ लागली।