फिनिक्स, खण्ड-5 / मृदुला शुक्ला

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छोटोॅ-छोटोॅ बातोॅ सें कचकचोॅ जे रोज होय रहलोॅ छेलै; ओकरा सें आरू विशेष करी केॅ गंगा पर जे प्रभाव पड़ी रहलोॅ छेलै, वहेॅ सिनी देखी-सुनी केॅ रामप्रसाद बाबू परिवारोॅ केॅ देवघर लेनें ऐलै।

अभाव तेॅ याहूँ छेवे करलै। एक कोठरी, एक बरण्डा आरू रसोय वाला घोॅर छेलै। मतरकि एंगना बड़के टा छेलै, जैमें टीन छवाय केॅ पढ़ै-लिखै के जग्घोॅ बनाय देलोॅ गेलै। खाना-पीना केन्हौं करी केॅ होय रहलोॅ छेलै। मतरकि इन्दु केॅ शांति छेलैµअच्छा वातावरण आरू अच्छा इस्कूल के गंगा आरू निवेदिता पर खुब्बे असर पड़ी रहलोॅ छेलै। गंगा पढ़ाय मेें बहुत्ते तेजी सें बढ़ी रहली छेलै।

रूपा के गौना के बात एक साल लागै सें पहिनें उठलै, मतरकि पहुना के छुट्टी कही केॅ कटी गेलै। एक-दू बेर पहुना ऐलै भी। रूपा प्रायवेट सें पार्ट वन के परीक्षा देलकी आरू पासो होय गेली। प्राइवेट सें ही बी0 ए0 के तैयारी करी रहलोॅ छै।

रामप्रसाद बाबू ट्यूशन करी केॅ आरू स्कूल के पुस्तकालय के काम करी केॅ कुछू बेसी पैसा अर्जित करी लै छै। नवल के पढ़ाय के भार ओकरोॅ मामा उठाय लेनें छै, जैसें गृहस्थी के गाड़ी खिंचाय रहलोॅ छै।

बड़ोॅ छुट्टी में रामप्रसाद बाबू सपरिवार घोॅर जाय छै, तेॅ सब्भे ठीक्के-ठाक रहै छै। पुरनका कड़वाहट आबेॅ धीरें-धीरें कमी गेलोॅ छै। गंगो सखी-सहेली सें मिली केॅ उत्साहित रहै छै। रधिया आभियो वहेॅ रं अमरूद-मेंहदी लेनें आवै छै, दून्हो घण्टो बात करै छै। यै बीचोॅ में रधिया के बीहो होय गेलोॅ छै। मतरकि ओकरोॅ स्वभाव में कोय परिवर्तन नै ऐलोॅ छै। सोसरारी में आभी बसना नै छेलै, यै लेली याँही रहै छै आरू माय के कामोॅ में हाथ बँटाय दै छै। ओकरोॅ पढ़ाय छूटी गेलोॅ छै।

रूपा के गौना के दिन पड़लै तेॅ सब्भे फेनू गामे में आवी गेलै आरू विधि-विधानी सें रामप्रसाद बाबू नें बेटी के विदा करी देलकै। एकटा बातोॅ के दुख इन्दु केॅ काँटोॅ नाँखि खटकै छेलै कि फेनू पहुना नै ऐलै आरू हुनका सिनी छुट्टीये के बात फेनू बतैलकै। गामोॅ के लोगें तेॅ दस तरह सें बात सुनाय देलकै, मतरकि इन्दु चुपचाप अँचरा सें लोर पोछत्हैं रहली। दमादोॅ के खातिरोॅ के शौक-अरमान ओकरोॅ मनें में रही गेलै। पहिनो एकाध दिन एन्हैं अचानके आवी केॅ चल्लोॅ गेलोॅ छेलै। बेटी के विदाय करी केॅ इन्दु भहराय केॅ गिरी पड़ली कि दू-सप्ताह बीमारे रहली। इन्दुओ एक औरते छेली, यै लेली भीतरे-भीतर ओकरा दमादोॅ के ई रं आना-जाना आकि मधुश्रावणी में या गौना में नै आना कुच्छू अलगे रं लागी रहलोॅ छेलै। रूपा के व्यवहारो सें वै कुच्छू बूझै नै पारै। मतरकि दाम्पत्य जीवन आकि नया-नया बीहा के जे शिरी चढ़ै छैµसे रूपा में देखाय नै दै छेलै। फेनू सोचै कि पढ़वैया लड़की आरू शहरुआ लड़का के व्यवहार हमरा सिनी के व्यवहार सें थोड़ोॅ अलगे होतै। तहियो गौना में रूपा के दुल्हा के नै ऐला सें रामप्रसाद बाबू आरू नवलो मुरझाय गेलै। तबेॅ ताँय गरमी छुट्टी खतम होलै आरू पूरा परिवार देवघर आवी गेलै। वाँही सें पुछारी करै लेली रूपा के सोसरार नवल केॅ भेजलकै। पहुना लुग सें रूपा आवी गेली छेलै। रूपा केॅ परीक्षा देना छेलै, यै लेली रामप्रसाद बाबू नें विदाय के चिट्ठीयो देनें छेलै।

डेढ़ महीना बाद जबेॅ नवल रूपा केॅ लै केॅ ऐलै, तेॅ इन्दु तेॅ रूपा के मुहे देखी केॅ कानी देलकी। रामप्रसाद बाबुओ अवाक रही गेलै। मतरकि एकान्तो में इन्दु केॅ समझैलकै, "पहिलोॅ-पहिल सोसरार बसली छेलै, फेनू पहुना पास दिल्ली में रहलै, माथा में परीक्षा के चिन्ता होतैµयैं सब सें दुबराय गेली छै। सब्भे ठीक होय जैतै। ओकरोॅ मुहोॅ पर अच्छा-अच्छा बात करौ।" इन्दु तहियो रूपा सें सोसरारी के गप्प खोदी-खोदी केॅ पूछै, बतियावै, मतरकि रूपा हूँ-हाँ सें बेसी कुछू नै बोलैµनै अच्छे, नै खराब।

एक दिना इन्दु नें हिम्मत करी केॅ असकल्ला में रूपा केॅ कहलकै, "पढ़ै-लिखै तेॅ कत्तेॅ नी लड़की छै, दुल्हो कत्तेॅ के कमावै छै, मतरकि तोरोॅ पहुना रं केकरो नै देखै छियौ। चिट्ठी-विट्ठी भी एकदम्मे कम आवै छौµसे कत्तेॅ लजखोकर छौ हुनी, आखिर कोनी जुगोॅ के छेकै। तोरोॅ मोॅन-मिजाज तेॅ ठीक रहै छौ नी? कैन्हें है रं शरीर गली रहलोॅ छौ।" आखिर में इन्दु नें यहो जोड़िये देलकी, "कोय खुशी के खबर छै की?" बस रूपा फफकी-फफकी कानी देलकी। लागलै जेना करेजोॅ फाटी गेलोॅ रहै। बोलली तइयो कुच्छू नै। बहुत्ते चुप करैला पर आरू किरिया देला पर एतन्है टा बोलली, "तोहें सिनी ठगाय गेलौ। एतना पैसा खरचा करी केॅ करजा सें भरी गेला। तोरोॅ बेटी तेॅ बस कुँवारिये अच्छा छेलौं। केसर फूफू केॅ हमरा साथें एना नै करना चाहियोॅ।"

इन्दु के तेॅ देहोॅ के खून पानी होय गेलै। सौंसे धरती घूरेॅ लागलै, "की बात छेकै बेटा, तोहें हमरा बताबोॅ नी।"

"माय तोरा दुख होतौं, जाबेॅ दहौ।" रूपा उठी केॅ मूँ-हाथ धोवेॅ लागली।

इन्दु के जेना चैन हेराय गेलोॅ रहै। रात केॅ नींद नै आवै, खाय में अन्न जेना जहर लागै। बेटी के जीवन में कौन घुन लागी गेलोॅ छै, जे सोना के पुतरी झाँवरी होली जाय छै।

एक दिन दुपहरिया में जबेॅ कोय नै छेलै तेॅ इन्दु नें फेनू आपनोॅ किरिया दै केॅ कानी-बाजी केॅ सब्भे कुछ बताय लेली कहलकी। रूपा पहिनें तेॅ काठ नाँखि बैठली रहली, फेनू सब्भे बतैलकी, "माय तोरोॅ पहुना नें पढ़त्हैं समय घरोॅ में सब्भे केॅ बताय देनें रहै कि हुनी दिल्लीये में एक पंजाबी लड़की साथें बीहा करतै, मतरकि घरोॅ के लोगें सिनी एकरा सें हुनकोॅ मोॅन हटाय लेली बीहा के जल्दबाजी करलकै, हिन्नें गरीब घरोॅ के लड़की सें बिना दान-दहेज के जल्दी-जल्दी शादी करै के बात चलैलकै आरो हुन्नें दिल्ली सें आनी केॅ बीहा कराय देलकै। मतरकि हिनी घरोॅ में कही देलकै कि 'आपनोॅ पुतोहू आपने पास राखौ।' आबेॅ सोसरारी के सब्भे हमरे ताना मारै छै कि रूपोॅ पर बीहा करलां कि बेटा के मोॅन फिराय लेती, मतरकि ई तेॅ पत्थरोॅ के मूरत निकली गेली। दू बेर जे पहुना ऐल्हौं, खाली बाबूजी के जान दै के धमकी सें। मतरकि एना भी की प्यार होय छै माय। हिनी दुसरोॅ बेर हमरा सब्भे बात साफ-साफ कही देलकै। दिल्लीयो सास लै केॅ गेली तेॅ पहुना कहलकौ कि" माय-बाबूजी पसन्द करी केॅ आनलेॅ छौं, तोहें हुनके पास रहोॅ या जों मोॅन हुवौं तेॅ पढ़ी-लिखी केॅ तहूँ हमरे नाँखि आपनोॅ जीवनसाथी चुनै लेली आजाद छौ। हमरा सें कुच्छू उम्मीद नै करिहोॅ। "

इन्दु तेॅ आसमानोॅ सें गिरली, "एत्तेॅ बड़का बात तोहें पचैलेॅ गेली रूपा?" गोस्सा आरू दुखोॅ सें इन्दु के मूँ लाल भभूखा होय गेलै। बोलेॅ लागली, "एना केना केॅ छोड़ी देतात। बापोॅ के डरोॅ सें तखनी श्रवण कुमार बनी गेलात, आरू आबेॅ केकरो जिनगी आरू जानोॅ पर बनलोॅ छोॅत। हम्में हुनका सिनी केॅ कचहरी ताँय घसीटवें, की बुझै छोॅतµबिना माय-बाप के बेटी, आबेॅ दैं बाबूजी केॅ।"

कहै के तेॅ इन्दु की-की बोली देलकै, मतरकि ओकरोॅ कंठ सुखलोॅ जाय आरू देह थरथर काँपलोॅ जाय। रूपा नें ऐन्हे चोट खैलोॅ हँसी-हँसी देलकै कि माय धक्क सें रही गेली, "माय, कोय कोर्ट-कचहरी दुल्हा नै दियेॅ पारै छै। सोहाग-भाग तेॅ देवी मैय्या दै छै। जबेॅ भगवती वाम होय गेलीत तबेॅ कौनें की दिलावेॅ पारतै। आरू कोनी पैसा सें मुकदमा लड़भौ। जब तक बात ढकलोॅ छै, हमरोॅ इज्जत बचलोॅ छै, आबेॅ आरू फजीहत कथी लेॅ करैभैं। हाँ, गंगा ब्याहै वक्ती देखी-सुनी केॅ करिहैं। कुँवारोॅ रहना भी अपराध नै छेकै।"

तब ताँय गंगा स्कूलोॅ सें आवी गेली। आपनोॅ नाम सुनी केॅ आरो फँसलोॅ-फँसलोॅ गल्ला के आवाज सुनी केॅ वाँही खाड़ी होय गेली। ओकरा देखत्हैं इन्दु के कानवोॅ आरो तेज होय गेलै। आबेॅ गंगा भी मैट्रिकोॅ में पहुँची गेली छै। रूपा में तेॅ सहनशक्ति भी छै, गंगा साथें जों ऐन्होॅ होय जैतियै तेॅ वैनें आपनोॅ जाने दै देतियै। गंगा माय के ई सब भाव कुछवे नै बूझी रहली छेलै। साल भर सें गंगा में भी बहुत कुछ परिवर्तन आवी गेलोॅ छेलै। पैसा के अभाव, बेटी होय के दरद, घरोॅ के इज्जतµसब्भे धीरेॅ-धीरेॅ बूझी रहलोॅ छेली। बहिन आरू बहनोय के बीच भी सब कुछ सामान्य नै छै, यहौ समझी रहलोॅ छेली। मतरकि रूपा के गंभीरतां आरू बात समझै लेॅ नै दै छेलै। तहियो हौ रात गंगा के चिन्तारहित बचपन के आखरी रात छेलै, जबेॅकि इन्दु नें कानतें-कानतें अधूरा सोहागोॅ के बात बतैलकी। आपनोॅ केाय वश नै समझी केॅ ऊ लोर घोंटी केॅ चुप, शील नाँखि पड़लोॅ रहली। हों, रूपा केॅ कोय बात के तकलीफ नै हुवेॅ पारेॅ, एकरोॅ हरदम्मे धियान राखेॅ लागली।

एक-दू बेर रूपा के सोसरारी वालां बोलाय केॅ लै गेलै। एक-दू बेर रूपा भी दिल्ली गेली। इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु ई मृगतृष्णा में कि भगवती माय कहियो दिन फिरैतै आरू जे होय गेलै, से भुलाय केॅ पहुना ज़रूरे रूपा केॅ मान-सम्मान दै देतै, रूपा केॅ भेजी दै छेलै। मतरकि कोय परिणाम नै देखी केॅ रूपा नें ही कही देलकै, "बाबुजी, हमरोॅ ऊ घरोॅ सें रिश्ता ही की छै। हमरा आपनोॅ पैरोॅ पर खड़ा होना छै, बस एतन्है टा तोरा सिनी मदद करी देॅ।"

रूपा भीतरे-भीतर घुटली जाय रहली छेली। रूपा के जीवन में पहुना लेॅ पहिलोॅ प्यार तेॅ छेलै, मतरकि सम्मान व स्वाभिमान आरू जीवन लेली भी दोसरोॅ भाव जगलै। आपनोॅ उपेक्षा भुलाय लेली ऊ दिनभर आपना केॅ कामोॅ में व्यस्त राखै। पढ़ाय, सिलायµघरोॅ के ढेर सिनी कामोॅ में ओझरैली रहै, मतरकि मोॅन ओकरोॅ एकदम्म टूटी चुकलोॅ छेलै। आपनोॅ तकलीफ आरू बीमारी केॅ वैं छिपावेॅ भी लागली छेलै।

गंगा के दसवां रिजल्ट बहुत बढ़िया होलै। इस्कूलोॅ में तेसरोॅ आरू लड़की में पहिलोॅ स्थान पैनें छेली। ओकरोॅ नाम लिखाना छेलै। रूपा के परीक्षा भी नजदीक आवी गेलोॅ छेलै। वही सें ऊ व्यस्त रही केॅ सहज रहै के कोशिश करी रहलोॅ छेली। रामप्रसाद बाबु सोचै कि बड़का घरोॅ के फेरा में कथी लेॅ पड़ी गेलां, एकरा सें तेॅ कोय मजूरे संग बेटी बिहाय देतियै, तेॅ सुखी रहतियै। हुनी रूपा केॅ विदाय लेॅ एक बेर फेनू दोसरा हाथें खबर भेजवैनें छेलै कि कुछु दवाब बनाय केॅ पहुना केॅ रस्ता पर आनलोॅ जाय, मतरकि ऊ तरफ सें कोय जवाब नै ऐलै। ऐलै तेॅ परोक्ष रूप सें यहेॅ कि खेत, जमीन, गहना, कपड़ा सब्भे तेॅ हम्में सिनी दै लेॅ तैयार छिहौं, आबेॅ बरोॅ केॅ वश में करना तेॅ हुनकोॅ बेटी के काम छेकै। यैमें हमरा सिनी की करेॅ पारै छी। अन्दरे-अन्दर ई धमकी भी दै देलेॅ छेलै कि केस-मुकदमा में तेॅ हमरा सिनी बड़ी आसानी सें लड़की केॅ बदचलन ठहराय केॅ हाथ झाड़ेॅ पारै छी। सब्भे आदमी आपने भरलोॅ छै। बेटा केॅ तेॅ सब्भैं बचाय छै।

ई सिनी बात जबेॅ बढ़ाय-चढ़ाय केॅ संवदियां कही रहलोॅ छेलै, रूपा वहीं ठाँ खाड़ोॅ छेली। पत्थर के मूरत नाँखि बस सुनत्हैं रहली, जेना दोसरा के बात होतेॅ रहेॅ।

दू दिन बाद गंगा नें देखलकै कि रूपा 'यशोघरा' काव्य पढ़ी केॅ कानी रहली छै। चुपचाप आँखी सें लोर चुवी केॅ किताबोॅ पर गिरी रहलोॅ छेलै। गंगा बगलोॅ में जाय केॅ बैठी रहली आरू बहिनी के हाथ आपनोॅ हाथोॅ में लै लेली, तबेॅ रूपा चोराय केॅ लोर पोछी केॅ रूपा बोलेॅ लागली, "देखैं गंगा, गौतम बुद्ध कत्तो महान रहै, मतरकि यशोधरा साथें कत्तेॅ अन्याय करनें छै, आरू वही यशोधरां आपनोॅ एक ठो बेटाहौ केॅ बुद्ध केॅ दान करी देलकै। यशोधरा केॅ एक बेटा तेॅ कम-सें-कम छेलै, जे ओकरोॅ माया के संसार छेलै। तोरोॅ पहुनां तेॅ एक्को दिन हमरा आपनोॅ बुझवे नै करलकौं, तेॅ की माया लागतियै छौड़ै में।"

गंगा यहो कै दाफी देखनें छै कि रूपो बीहा वाला पहुना के फोटो नुकाय केॅ देखै छै। गंगा देखी केॅ भी अनठाय दै। भींजलोॅ आँखी सें रूपा सुतै के नाटक करैµई सब देखी केॅ गंगा केॅ पहुना पर बहुत गुस्सा आवै, मजकि वहू लाचार छेलै।

परीक्षा के चार दिन पहिनें रूपा केॅ बोखार होय गेलै। रामप्रसाद बाबु डॉक्टर पास लेनें गेलै तेॅ डाक्टर नें ओकरा खाना आरू आराम बताय देलकै। कमजोरी देखी केॅ कुछु विटामिन-टॉनिक भी लिखी देलकै। मतरकि वैसें कोय फरक नै होलोॅ छेलै। चौथोॅ दिन बुखार थोड़ोॅ उतरी गेलै, मजकि रूपा के देह में शक्ति एकदम नै रहलै। केन्हौ केॅ मूँ-हाथ धोलाय केॅ इन्दु बैठाय दै। एक दिन हार्लिक्स बनाय लेॅ चम्मच जेन्है चलाय रहली छेली कि रूपा नें आँख उल्टी देलकी। इन्दु के चित्कार सें रामप्रसाद बाबु दौड़ी केॅ घोॅर घुसलै आरू गंगा, निवेदिताहौ बात जानी केॅ दोनों बहिन भोक्कार पारी केॅ कानेॅ लागली राम प्रसाद बाबु तेॅ अधीर होय्ये रहलोॅ छेलै। जबतक सब्भे अयलै, रूपा चिरनिद्रा में सुती चुकलोॅ छेली। जेना जीवन में शांत रहली, मौत नें भी ओतन्हैं शांति सें आपना में समाय लेलकै।

एक रात पहिन्हैं राम प्रसाद बाबु केॅ लगी गेलोॅ छेलै कि लक्षण ठीक नै छै। रूपा केॅ सन्निपात होय गेलोॅ रहै, ऊ रही-रही आरू बड़बड़ावै, "गंगा, पहुना ऐलौं छौं, नेग चार माँगी लैं...फेनू भागी जैथौं।" यहेॅ सुनी केॅ रामप्रसाद बाबु नें भाय केॅ तेॅ गामोॅ में खबर भेजनें छेलै, मतरकि ओकरोॅ सोसरार खबर नै दै के मोॅन होलै। हिन्नें रूपा के लाश घरोॅ के बाहर करलोॅ जाय रहलोॅ छेलै, हुन्नें हुनको सिनी भी पहुँची गेलै।

राम प्रसाद बाबु पहिलोॅ बेर समाज के नियमोॅ के परवाह नै करी बेटी के मरै के खबर ओकरोॅ सोसरारी में नै देलकै, नै अग्निकाज के अधिकार देलकै। हरिद्वार जाय केॅ श्राद्ध करी ऐलै। कहलकै, "ऊ जित्तो भी हमरोॅ बेटी छेली आरू मरल्हौ पर हमरिये बेटी छेली। ओकरोॅ सोसरारी के लोगोॅ केॅ छूतक मनाय के ज़रूरत नै छै। हम्में प्रायश्चित करी रहलोॅ छी बाप होय के."

आठे-दस दिन में घोॅर एकदम बदली गेलै। सौंसे घोॅर भाँय-भाँय करी रहलोॅ छेलै। रूपा के किताब-कॉपी होन्हें टेबुलोॅ पर राखलोॅ छै। नवल, निवेदिता, गंगा सब्भे मिली केॅ आपनोॅ माय-बाबुजी केॅ ई गंभीर शोकोॅ सें निकालै के उपाय सोची रहलोॅ छै। दैवोॅ के बड़का दण्ड नें ओकरा सिनी केॅ मूक बनाय देनें छै।