फिल्मकार और नायिकाएं / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्मकार और नायिकाएं

प्रकाशन तिथि : 11 जुलाई 2012 शेक्सपीयर की रोमियो-जूलियट से प्रेरित संजय लीला भंसाली 'राम-लीला' में करीना कपूर की जगह प्रियंका चोपड़ा को लिया गया है। प्रचारित खबरों के मुताबिक करीना से कहा गया कि वह अक्टूबर में होने वाली अपनी शादी को स्थगित कर दें। शायद संजय के मन में यह ख्याल आया हो कि फिल्म के प्रदर्शन तक करीना विवाहित हो जाएंगी और कदाचित मां भी बन जाएं। इस तरह के भय प्राय: फिल्मकारों को रहे हैं। 'मदर इंडिया' की शूटिंग पूरी होते ही नरगिस-सुनील दत्त ने विवाह किया, परंतु महबूब खान के कहने पर उसे गोपनीय रखा, क्योंकि फिल्म में उनकी भूमिकाएं माता और पुत्र की थीं। यथार्थ जीवन का विवाह फिल्म के व्यवसाय पर असर डाल सकता था। इस तरह के भय होना स्वाभाविक है।

जब राजकपूर की 'बॉबी' शूटिंग के अंतिम दौर में थी, तब नायिका डिंपल कपाडिय़ा ने राजेश खन्ना से शादी कर ली, परंतु 'बॉबी' ने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किए। यह बात अलग है कि इस घटना के बाद राजेश खन्ना की फिल्में असफल होने लगीं। ज्ञातव्य है कि 'बॉबी' और अमिताभ अभिनीत 'जंजीर' कुछ माह के अंतर से प्रदर्शित हुई थीं। अमिताभ बच्चन का अभ्युदय और राजेश खन्ना की सितारा हैसियत का अंत कमोबेश साथ-साथ हुआ है। कुछ वर्ष पूर्व संजय लीला भंसाली ने सलमान खान और करीना कपूर के साथ 'बाजीराव मस्तानी' बनाने की घोषणा की थी। किन्हीं कारणों से यह फिल्म अभी तक नहीं बनी। करीना कपूर के साथ भंसाली की काम करने की इच्छा कुछ उसी तरह है, जैसे उन्होंने माधुरी दीक्षित के साथ की थी। उनकी पहली फिल्म 'खामोशी' को माधुरी अस्वीकृत कर चुकी थीं और वर्षों बाद 'देवदास' में उन्होंने उन्हें चंद्रमुखी की भूमिका में लिया। शायद इसी तरह किसी दिन वह करीना के साथ भी काम करें।

दरअसल संजय लीला भंसाली ने ऐश्वर्या राय को 'हम दिल दे चुके सनम' और 'देवदास' में बहुत प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया। सिनेमा की इस विधा में पारंगत फिल्मकारों की हमारे यहां पुरानी परंपरा है। राज कपूर, गुरुदत्त, विजय आनंद और राज खोसला को इस काम में महारत हासिल था। यह महज इत्तफाक भी हो सकता है, परंतु राजकपूर को अपनी दो नायिकाओं से प्यार हुआ था और गुरुदत्त तथा वहीदा रहमान के बीच भी अंतरंगता थी। विजय आनंद 'गाइड' बनाते समय अपनी नायिका से प्रेम करने लगे थे। इस विषय में राज कपूर ने एक बार कहा था कि फिल्मकार नायिका को अत्यंत मनोरम और मादक छवि में प्रस्तुत करता है, जो उसकी फिल्म के लिए आवश्यक है। नायिका स्वयं अपनी इस छवि को देखकर मुग्ध हो जाती है और अपनी छवि के माध्यम से फिल्मकार को प्रेम करने लगती है। क्या यथार्थ जीवन में भी प्रेमी की मनोरम बातों में प्रेमिका अपनी एक छवि देखकर उस पर मुग्ध होती है और विवाह के पश्चात जब उन बातों का दोहराव नहीं होता तो प्रेम का भरम मिट जाता है? प्रेम कभी-कभी, कहीं-कहीं होता है, परंतु उसका भरम प्राय: उत्पन्न होता रहता है। 'आई लव यू' कभी जबान से बोला जाता है, कभी यह आवाज पेट से निकलती है और यह दिल से भी कहा जाता है। कन्या के सुंदर और अमीर होने पर यह मस्तिष्क से भी कहा जाता है। प्रेम कभी जरूरत भी होता है। जब यह बिना किसी मकसद से होता है, तब इसमें गहराई होती है, सच्चाई होती है। कई बार कुछ लोगों को लगता है कि प्रेम में नहीं पड़े तो जनम लेना बेकार है, अत: सार्थकता की तलाश भी प्यार का ढोंग पैदा करती है। जब सामने कोई छवि न हो, दिल में कोई मकसद न हो और प्रेम हो जाए तो उसे दिव्य दीवानगी कहते हैं। इसी तरह सूफी, संत और शायर भी बन जाते हैं।

गुरुदत्त ने वहीदा रहमान को हैदराबाद के एक नृत्य कार्यक्रम में देखा और उन्हें लगा कि इस युवती में अभिनय प्रतिभा है। स्क्रीन टेस्ट के बाद उन्होंने वहीदा को अपनी निर्माणाधीन 'सी.आई.डी.' में एक छोटी-सी भूमिका दी। अपनी सबसे महत्वाकांक्षी 'प्यासा' में उन्हें लिया और कुछ दिन की शूटिंग के बाद उनके सहयोगियों को नायिका पसंद नहीं आई, तब उन्होंने कलकत्ता में एक लंबा दौर किया और संपादित रीलें देखकर सभी दंग रह गए। इस तरह के सृजन को भी प्यार माना जाता है। सृजन प्रक्रिया को समझने का प्रयास प्याज के छिलके उतारने की तरह है। आखिरी छिलका उतारने के बाद प्याज ही गायब हो जाता है, परंतु प्रक्रिया में हाथ में जो गंध रह जाती है, वही प्याज का सार है। दरअसल यह एक जुनून है। सारा समय फिल्मकार नायिका को प्रस्तुत करने के नए तरीके खोजता रहता है, गोयाकि वह उसके मन में, विचार में बस जाती है। यह अनुभूति की तीव्रता, यह पागलपन ही सुंदर नतजे सामने लाता है।

संजय लीला भंसाली भी अपनी फिल्म डूबकर बनाते हैं। याद कीजिए 'हम दिल दे चुके सनम' में ऐश्वर्या राय की पहली झलक। वह एक खुले मैदान में दौड़ते हुए आती हैं और बच्चों के एक खेल में शामिल होती हैं। इसमें नायिका की जीवन ऊर्जा और मस्ती स्पष्ट नजर आती है। संजय की फिल्में ऑपेरानुमा होती हैं और गीतों के फिल्मांकन का उनका अपना निराला ढंग रहा है। इतनी एकाग्रता और डूब जाने के भाव के बावजूद ऐसा कभी नहीं सुना कि उन्हें अपनी किसी नायिका से प्यार हो गया है। उन्हें महज अपने काम से प्यार है। 'सावरिया' में उन्होंने सोनम कपूर को ऐसे प्रस्तुत किया कि दर्शकों को गुरुदत्त की फिल्म की वहीदा रहमान याद आने लगी। बाद में सोनम कभी वैसी नहीं लगीं। अब वह पुन: प्रेम कथा की ओर लौट रहे हैं। प्रियंका खूबसूरत और प्रतिभाशाली हैं और भंसाली उन्हें निश्चय ही दिलकश अंदाज में प्रस्तुत करेंगे।