फिल्मी गानों से सीखें छंद / ओम नीरव

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फ़िल्म संसार में अधिकांश गाने किसी न किसी भारतीय सनातनी छंद पर आधारित हैं। इन गानों को बहुत ही आकर्षक धुन में गाया गया है और बहुत ही सम्मोहक पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया है। इस लिए ये गाने हमको सरलता से कंठस्थ हो जाते हैं और इनकी लय सहज ही मन में स्थापित हो जाती है। इस लय के अनुकरण से हम सम्बन्धित छंद की रचना कर सकते हैं और छंद के विधान को भी समझ सकते है। छंद है क्या? मुख्यतः लय का व्याकरण ही तो है छंद। जब हम किसी फ़िल्मी गाने को लय से गाते हैं तो जाने-अनजाने एक छंद हमारे मन में स्थापित हो जाता है। यह वह छंद होता है जिस पर गाने की लय आधारित होती है, दूसरे शब्दों में जो गाने का आधार-छंद होता है। हमारे मन में छंद की प्रकृति पूर्णतः बैठ जाती है, भले ही हम उस छंद का नाम न जानते हों। यदि हम थोड़ा प्रयास करें तो मन में समायी हुई छंद की प्रकृति को शब्दों में व्यक्त भी कर सकते हैं अर्थात हम छंद के विधान को भी समझ सकते हैं जिसके अंतर्गत लय के साथ चरण-संख्या और तुकांत विधान का उल्लेख भी सम्मिलित रहता है। आइये किसी एक गाने का उदाहरण लेकर बात प्रारम्भ करें, जैसे-

छोडो न मेरा' आँचल, सब लोग क्या कहेंगे।

हमको दिवाना' तुमको, काली घटा कहेंगे।

इस गाने की पंक्तियों को लय से गाते समय लघु और गुरु पर ध्यान दें तो हम पाते हैं कि प्रत्येक पंक्ति में लघु-गुरु एक निश्चित क्रम में ही आते हैं और वह क्रम इस प्रकार है-

छोडो न / मेरा' आँचल / , सब लोग / क्या कहेंगे

गागाल गालगागा गागाल गालगागा

जबकि ल और गा क्रमशः लघु और गुरु के सूचक हैं। यह उस छंद की मापनी अथवा लगावली है जिस पर यह गाना आधारित है और उस छंद का नाम है दिग्पाल। इसे मृदुगति भी कहते हैं। मूल छंद में ऐसी चार पंक्तियाँ होती हैं जिन्हें चरण कहते हैं और क्रमागत दो-दो चरण अलग-अलग समतुकांत होते हैं। इस छंद पर या किसी अन्य छंद पर जब कोई गाना, गीत, गीतिका, ग़ज़ल या कोई अन्य कविता रची जाती हैं तब तुकांत विधान बदल कर उस विधा के अनुरूप हो जाता है और चरण-संख्या का प्रतिबन्ध समाप्त हो जाता है। तब इस छंद को हम उस रचना का 'आधार छंद' कहते हैं। प्रस्तुत उदाहरण में दिये गये फ़िल्मी गाने 'छोडो न मेरा' आँचल, सब लोग क्या कहेंगे'का आधार छंद' दिग्पाल 'या' मृदुगति' है। यह एक मापनीयुक्त मात्रिक छंद है। इसी प्रकार अन्य फ़िल्मी गानों से अनेक छंदों की लय को समझा जा सकता है और उसमें तुकांत विधान तथा चरण-संख्या को जोड़ कर छंदों को पूर्णता से समझा जा सकता है। प्रायः सभी सममात्रिक छंदों में चार चरण होते हैं और क्रमागत दो-दो चरण समतुकांत होते हैं। उपर्युक्त उदाहरण को सम्मिलित करते हुए हम कुछ छंदों का उल्लेख करते हैं जिनके आधार पर अनेक फ़िल्मी गानों का निर्माण हुआ है, जिनकी सहायता से हम इन छंदों के स्वरूप को सरलता से हृदयस्थ कर सकते हैं और जिनके आधार पर शुद्धता और सटीकता के साथ मुक्तक, गीत, गीतिका, ग़ज़ल, भजन, कीर्तन, खंडकाव्य, महाकाव्य आदि की रचना कर सकते हैं।

(1) दिग्पाल या मृदुगति छंद (24 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गागाल गालगागा गागाल गालगागा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) छोडो न / मेरा' आँचल / , सब लोग / क्या कहेंगे

2) सारे ज / हाँ से' अच्छा / हिन्दोस / तां हमारा

3) गुज़रा हु / आ ज़माना / आता न / हीं दुबारा

4) ऐ दिल मु / झे बता दे / , तू किस पे / आ गया है?

मूल छंद का उदाहरण-

दिग्पाल हो कि मृदुगति, यह छंद भा रहा है,

है चाल मत्त जैसे, नभ में उड़ा रहा है।

हम गीत गीतिका या, मुक्तक भले बनायें,

इस छंद के सर्जन में, आनंद सिंधु पायें।

(स्वरचित)

(2) सुमेरु छन्द (19 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-लगागागा लगागागा लगागा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) मुहब्बत अब / तिजारत बन / गयी है

2) मै' तन्हा था / मगर इतना / नहीं था

3) मुहब्बत कर / ने' वाले कम / न होगें

4) अकेले हैं / चले आओ / जहाँ हो

5) हमें तुमसे / मुहब्बत हो / गयी है

मूल छंद का उदाहरण-

चलाती देश को यह भीड़ देखो,

उजाड़ा भीड़ का वह नीड़ देखो।

कठिन पहचान है अपनी बचाना,

कहीं तुम भीड़ में ही खो न जाना।

(स्वरचित)

(3) विधाता छंद (28 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-लगागागा लगागागा-लगागागा लगागागा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) सुहानी चां / दनी रातें / हमे सोने / नहीं देतीं

2) मुझे तेरी / मुहब्बत का / सहारा मिल / गया होता

3) चलो इक बा / र फिर से अज / नबी बन जा / यॅँ हम दोनों

4) बहारों फू / ल बरसाओ / मे' रा महबू / ब आया है

5) सजन रे झू / ठ मत बोलो / खुदा के पा / स जाना है

मूल छंद का उदाहरण-

ग़ज़ल हो या भजन कीर्तन, सभी में प्राण भर देता,

अमर लय ताल से गुंजित, समूची सृष्टि कर देता।

भले हो छंद या सृष्टा, बड़ा प्यारा 'विधाता' है,

सुहानी कल्पना जैसी, धरा सुन्दर सजाता है।

(स्वरचित)

(4) शक्ति छंद (18 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-लगागा लगागा-लगागा लगा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) तुम्हारी / नज़र क्यों / खफा हो / गयी,

2) बदन पे / सितारें / लपेटे / हुए ...

3) दिखाई / दिये यूँ / कि बेखुद / किया

मूल छंद का उदाहरण-

चलाचल चलाचल अकेले निडर,

चलेंगे हजारों, चलेगा जिधर।

दया-प्रेम की ज्योति उर में जला,

टलेगी स्वयं पंथ की हर बला।

(स्वरचित)


(5) वाचिक भुजंगप्रयात छंद (20 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-लगागा लगागा-लगागा लगागा

विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) तुम्हीं मे / रे'मंदिर / तुम्हीं मे / री' पूजा /

2) वो' जब या / द आये / बहुत या / द आये।

3) ते' रे प्या / र का आ / सरा चा / हता हूँ

4) बने चा / हे' दुश्मन / जमाना / हमारा

5) अजी रू / ठकर अब / कहाँ जा / इयेगा

मूल छंद का उदाहरण-

अकेला अकेला कहाँ जा रहा हूँ,

कहो तो बता दूँ जहाँ जा रहा हूँ।

लगा मृत्यु से है भयाक्रांत मेला,

मिलूँगा अतः मृत्यु से मैं अकेला।

(स्वरचित)

(6) आनंदवर्धक छंद (19 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगागा गालगागा गालगा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) दिल के अरमां / आंसुओं में / बह गए

2) है अगर दुश् / मन ज़माना / ग़म नहीं

3) पर्वतों से / आज मैं टक / रा गया

4) कल चमन था / आज इक सह / रा हुआ

5) दिल ते' री दी / वानगी में / खो गया

6) आपके पह / लू में' आकर / रो दिये

मूल छंद का उदाहरण

लोग कैसे, गन्दगी फैला रहे,

नालियों में छोड़ जो मैला रहे।

नालियों पर शौच जिनके शिशु करें,

रोग से मारें सभी को, खुद मरें।

(स्वरचित)

(7) सार्द्धमनोरम छंद (21 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगागा गालगागा गालगागा

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

1) छोड़ दो आँ / चल ज़माना / क्या कहेगा

मूल छंद का उदाहरण-

मानते भय से, कभी मन से नहीं कुछ।

संहिताओं में नहीं अपना कहीं कुछ।

पर्व ही केवल मनाते रह गये हम।

देश का बस गान गाते रह गए हम।

(स्वरचित)

(8) वाचिक राधा (23 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

बस यही अप / राध में हर / बार करता / हूँ,

आदमी हूँ / आदमी से / प्यार करता / हूँ।

मूल छंद का उदाहरण-

कौन ऊपर बैठकर रसकुम्भ छलकाये।

छोड़ कर दो-चार छींटे प्यास उमगाये।

कौन विह्वलता धरा कि देख मुस्काता,

छेड़ता है राग, गाता और इठलाता।

(स्वरचित)

(9) गीतिका छंद (26 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गालगा विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इस छंद का नाम सीता हो जाएगा।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) आपकी नज़ / रों ने' समझा / प्यार के का / बिल मुझे

2) चुपके' चुपके / रात दिन आँ / सू बहाना / याद है

मूल छंद का उदाहरण-

शीत ने कैसा उबाया, क्या बताएँ साथियों!

माह दो कैसे बिताया, क्या बताएँ साथियों!

रक्त में गर्मी नहीं, गर्मी न देखी नोट में,

सूर्य भी देखा छुपा-सा कोहरे की ओट में।

(स्वरचित)

(10) वाचिक महालक्ष्मी छंद (15 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगा गालगा गालगा

विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) ज़िंदगी / की न टू / टे लड़ी

2) ज़िन्दगी / प्यार का / गीत है

मूल छंद का उदाहरण-

साधना तुम, तुम्हीं सर्जना,

कवि हृदय की तुम्हीं कल्पना।

गीत हो तुम, तुम्हीं गीतिका।

तुम महाकाव्य हो प्रीति का।

(स्वरचित)

(11) वाचिक स्रग्विणी छंद (20 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगा गालगा-गालगा गालगा

विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) खुश रहे / तू सदा / ये दुआ / है मे' री

2) कर चले / हम फ़िदा / जानो'-तन / साथियों

3) तुम अगर / साथ दे / ने का' वा / दा करो

4) बेखुदी / में सनम / उठ गए / जो कदम

5) मैं ते' रे / इश्क में / , मर न जा / ऊँ कहीं

6) जिन्दगी / हर कदम / इक नई / जंग है

7) जिंदगी / का सफर / है ये' कै / सा सफर

मूल छंद का उदाहरण-

दाढ़ियाँ हैं विविध, हैं विविध चोटियाँ।

धर्म की विश्व में हैं विविध कोटियाँ।

क्या कहें उस मनुज के कथित धर्म को,

जो जिये स्वार्थ में त्याग सत्कर्म को।

(स्वरचित)

(12) वाचिक गंगोदक छंद (40 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगा गालगा-गालगा गालगा गालगा-गालगा गालगा गालगा

विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) तुम अगर / साथ दे / ने का'वा / दा करो / , मैं यूँ' ही / मस्त नग / मे सुना / ता रहूँ।

2) मैं ते'रे / इश्क में / , मर न जा / ऊँ कहीं / तू मुझे / आजमा / ने की' को / शिश न कर।

मूल छंद का उदाहरण-

छांदसी काव्य की सर्जना के लिए, भाव को शिल्प आधार दे शारदे!

साथ शब्दार्थ के लक्षणा-व्यंजना से भरा काव्य-संसार दे शारदे!

द्वेष की भीति को प्रीति की रीति से, दे मिटा स्नेह संचार दे शारदे!

विश्व की वेदना पीर मेरी बने, आज ऐसे सुसंस्कार दे शारदे!

(स्वरचित)

(13) वाचिक बाला छंद (17 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-गालगा गालगा गालगागा

विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) रात भर / का है 'मे' ह / मां अँधेरा

2) आज सो / चा तो' आँ / सू भराये

3) जा रहा / है वफ़ा / का जनाज़ा

मूल छंद का उदाहरण-

रोटियाँ चाहिए कुछ घरों को

रोज़ियाँ चाहिए कुछ करों को।

काम हैं और भी ज़िंदगी में

क्या रखा इश्क़-आवारगी में।

(स्वरचित)

(14) वाचिक पंचचामर छंद (24 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)

मापनी-12 12 12 12, 12 12 12 12

लगावली-लगा लगा-लगा लगा, लगा-लगा लगा लगा

विशेष-यदि इस मापनी में किसी गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग न किया जाये तो यह छंद मापनीयुक्त वर्णिक हो जाएगा जिसे वर्णवृत्त भी कहते है। तब इसके नाम से पहले 'वाचिक' विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

ये' ज़िं / दगी / सवा / ल है / कि ज़िन् / दगी / जवा / ब है।

मूल छंद का उदाहरण-

विचार आ गया उसे निबद्ध छंद में किया,

रसानुभूति के लिए निचोड़ भी दिया हिया।

परन्तु नव्य-नव्य गीत-गीत तो हुआ तभी,

किसी अजान ने समोद गुनगुना दिया कभी।

(स्वरचित)

आगे के उदाहरणों में ऐसे छंदों की चर्चा है जिनकी कोई निश्चित मापनी नहीं है। इनको मापनीमुक्त कहते हैं। इनका शिल्प-विधान अन्य प्रकार से व्यक्त किया जाता है।

(15) लावणी छंद (30 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-30 मात्रा, 16, 14 पर यति, अंत में वाचिक गा

लावणी (30 मात्रा) = चौपाई (16 मात्रा) + 14 मात्रा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) गोरे-गोरे चाँद से' मुख पर, काली-काली आंखें हैं।

2) आओ बच्चों तुम्हे दिखायेँ, झाँकी हिंदुस्तान की।

3) खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी वाली रानी थी।

4) फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है।

5) एक डाल पर तोता बोले, एक डाल पर मैना।

6) रात कली इक ख्वाब में' आई और गले का हार हुई।

7) कसमें वादें प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या?

8) रामचन्द्र कह गए सिया से, ऐसा कलियुग आएगा

मूल छंद का उदाहरण-

तिनके-तिनके बीन-बीन जब, पर्ण कुटी बन पायेगी,

तो छल से कोई सूर्पणखा, आग लगाने आयेगी।

काम-अनल चन्दन करने का, संयम बल रखना होगा,

सीता-सी वामा चाहो तो, राम तुम्हें बनना होगा।

(स्वरचित)

(16) सार छंद (28 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-28 मात्रा, 16, 12 पर यति, अंत में वाचिक गागा

सार (28 मात्रा) = चौपाई (16 मात्रा) + 12 मात्रा

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) रोते-रोते हँसना सीखो, हँसते-हँसते रोना।

2) मेरे नैना सावन भादो, फिर भी 'मे' रा मन प्यासा

मूल छंद का उदाहरण-

कितना सुन्दर कितना भोला, था वह बचपन न्यारा,

पल में हँसना पल में रोना, लगता कितना प्यारा।

अब जाने क्या हुआ हँसी के, भीतर रो लेते हैं,

रोते-रोते भीतर-भीतर, बाहर हँस देते हैं।

(स्वरचित)

(17) पदपादाकुलक छंद (16 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-16 मात्रा, प्रारम्भ में गा / द्विकल अनिवार्य, इस गा / द्विकल के बाद एक त्रिकल आये तो उसके बाद पुनः दूसरा त्रिकल अनिवार्य।

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

जब दर्द नहीं था सीने में,

क्या खाक मजा था जीने में।

मूल छंद का उदाहरण-

कविता में हो यदि भाव नहीं,

पढने में आता चाव नहीं।

हो शिल्प भाव का सम्मेलन,

तब कविता होती मनभावन।

(स्वरचित)

(18) मत्तसवैया / राधेश्यामी छंद (32 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-32 मात्रा, 16, 16 पर यति, 16-16 मात्रा के प्रत्येक पद के प्रारम्भ में गा / द्विकल अनिवार्य, इस गा / द्विकल के बाद एक त्रिकल आये तो उसके बाद पुनः दूसरा त्रिकल अनिवार्य।

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

दिल लूटने'वाले जादूगर, अब मैंने' तुझे पहचाना है।

मूल छंद का उदाहरण-

जिस गर्भकोश में निराकार, आते-आते साकार हुआ,

इच्छा कि भी न प्रतीक्षा की, ऐसा पोषण सत्कार हुआ।

इच्छापेक्षी तरु कल्प लगा, जिसके आगे बस नाम-नाम,

विधि की ऐसी पहली कृति को, मन बार-बार करता प्रणाम।

(स्वरचित)

(19) जयकरी / चौपई छंद (15 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-15 मात्रा, अंत में गाल अनिवार्य

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

तौबा ये मतवाली चाल,

झुक जाये फूलों की डाल।

मूल छंद का उदाहरण-

भोंपू लगा-लगा धनवान,

फोड़ रहे जनता के कान।

ध्वनि-ताण्डव का अत्याचार,

कैसा है यह धर्म-प्रचार।

(स्वरचित)

(20) चौपाई छंद (16 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-16 मात्रा, अंत में गाल वर्जित।

छंदाधारित फ़िल्मी गाने-

1) दीवानों से ये मत पूछो,

दीवानों पर क्या गुज़री है।

2) कहीं दूर जब दिन ढल जाये

शाम की' दुल्हन नजर चुराए

मूल छंद का उदाहरण-

धर्म बना व्यापार अनोखा,

हर्र-फिटकरी बिन रँग चोखा।

गुरु-घंटाल स्वाँग दिखलाते,

घन-आदर दोनों ही पाते।

(स्वरचित)

(21) प्रदीप छन्द (29 मात्रा, मापनीमुक्त मात्रिक)

विधान-16, 13 पर यति, अंत लगा

प्रदीप (29 मात्रा) = चौपाई (16 मात्रा) + दोहा का विषम चरण (13 मात्रा)

छंदाधारित फ़िल्मी गाना-

आओ बच्चों तुम्हें दिखायें, झाँकी हिंदुस्तान की।

मूल छन्द का उदाहरण-

लय का है व्याकरण अनोखा, जो कहलाता छंद है।

गीत गीतिका मुक्तक सब में, छंदों का आनंद है।

कोई ग्रंथ नहीं होता है, अंतिम साधन ज्ञान का।

आओ हम सब मिलकर सीखें, कौशल छंद विधान का।

(स्वरचित)

यह कुछ इने-गिने उदाहरण हैं जिनके माध्यम से हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि फ़िल्मी गानों से कैसे छंदों का बोध होता है। अन्य अनेक उदाहरण पाठक स्वयं खोज सकते हैं और उनके माध्यम से नये-नये छंदों का निगमन कर सकते हैं। इस प्रकार हम काव्यशास्त्र की जटिलताओं में बिना उलझे हुए अनेक भारतीय सनातनी छंदों का ज्ञान फ़िल्मी गानों के अनुकरण से प्राप्त कर सकते हैं और यह अनुभव कर सकते हैं कि छन्द-शास्त्र वस्तुतः इतना जटिल नहीं है जितना प्रतीत होता है।