फिल्मों में वंशवाद और व्यक्तिगत प्रतिभा / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्मों में वंशवाद और व्यक्तिगत प्रतिभा
प्रकाशन तिथि : 17 अगस्त 2018


फिल्मकारों और सितारों की संतानें अभिनय क्षेत्र में आती रही हैं। पृथ्वीराज कूपर से रणवीर, करिश्मा और करीना कपूर फिल्मों में आए। इसके साथ ही एक्शन मास्टर के बेटे भी अभिनय के क्षेत्र में आए। जैसे वीरू देवगन के सुपुत्र अजय देवगन सफल और सक्रिय हैं। एक्शन डायरेक्टर श्याम कौशल के सुपुत्र विक्की कौशल ने 'राजी' और 'संजू' में अभिनय किया है। वीरू देवगन के प्रमुख सहायक जयसिंह के सुपुत्र सनी सिंह को 'प्यार का पंचनामा' में सराहा गया। कंगना रनोट ने आरोप लगाया कि फिल्म उद्योग में परिवारवाद और वंशवाद जारी रहा है। कंगना का आरोप पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि परिवार की मदद से आपको पहला अवसर अपेक्षाकृत कम संघर्ष से मिल जाता है। परंतु दर्शक का अनुमोदन नहीं होने पर व्यक्ति बाहर फेंक दिया जाता है। सलमान खान टिके हुए हैं, परंतु उनके भाई अरबाज और सोहेल असफल रहे हैं। अब उनकी बहन अर्पिता के पति को गरबा केंद्रित 'लवरात्रि' में प्रस्तुत किया जा रहा है। शोभना समर्थ की सुपुत्रियां नूतन और तनूजा ने अभिनय किया है। तनूजा की सुपुत्री काजोल की शादी अजय देवगन से हुई है।

सफल फिल्मकार रोहत शेट्‌टी भी पुराने दौर के एक्शन मास्टर शेट्‌टी के रिश्तेदार हैं। राजनीति में भी वंशवाद की आलोचना हुई है परंतु फिल्मों की तरह इस क्षेत्र में भी आवाम का अनुमोदन महत्वपूर्ण एवं निर्णायक है। धीरूभाई अंबानी के सुपुत्र मुकेश अंबानी दुनिया के अमीरों की सूची में शुमार हैं। अनिल अंबानी भी उद्योगपति हैं। इसके बावजूद अवाम से भी प्रतिभाशाली लोग अपने क्षेत्र में शिखर तक पहुंचे हैं। अजहरुद्‌दीन को जब भारतीय क्रिकेट टीम में अवसर मिला तब उनके पास अपना बल्ला तक नहीं था और साधारण कैनवास के जूते पहनते थे, परंतु पहले तीन टेस्ट में लगातार शतक लगाकर वे सितारा हो गए। धन आते ही उन्होंने फैशनेबल कपड़े खरीदे और सारे अरमान पूरे करने लगे।

सलमान खान की नज़दीकी मित्र कलाकार संगीता बिजलानी से उन्होंने प्रेम विवाह किया। अजहरुद्‌दीन का सुपुत्र मोटरबाइक दुर्घटना में मरा। संगीता बिजलानी से उनका तलाक हो चुका है। संगीता और सलमान आज भी मित्र हैं और सलमान के जिम में संगीता भी कसरत करने आती हैं। एक महिला को छोड़कर शेष सभी से सलमान खान आज भी संपर्क में हैं और सोमी अली को सहायता भी प्रदान करते हैं। यह अजीब बात है कि ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी फिल्म 'आवारा' में इसी वंशवाद पर प्रहार के लिए एक अपराधी जज के बेटे का अपहरण कर, उसे चोर बनाता है। परंतु अपनी प्रेमिका की प्रेरणा से वह सही दिशा की ओर अग्रसर होता है। फिल्म में संदेश था कि जन्म नहीं बस पालन-पोषण और परिस्थितियां निर्णायक सिद्ध होती हैं। राज कपूर के सुपुत्र रणधीर कपूर ने 'धरम-करम' नामक फिल्म में आवारा में प्रस्तुत अवधारण के विपरीत फिल्म बनाई, जिसमें संगीतकार के बेटा अपराधियों की बस्ती में पालन पोषण के बावजूद संगीतकार बनता है और अपराधी के बेटे का पालन पोषण संगीतकार के घर में होता है, परंतु वह अपराध करता है। एक ही फिल्म निर्माण संस्था में दो परस्पर विरोध करने वाले विचारों पर फिल्में बनी हैं। इस मामले में प्राय: यह भी हुआ है कि वैध संतान निखट्‌टू साबित हुई है और रखैल द्वारा प्राप्त संतान काबिल सिद्ध हुई है। यह संभव है कि रखैल की संतान मन में एक दर्द लिए चलती है और इस दर्द की आग से गुजरकर वे खरे सोने की तरह सामने आते हैं। वैध संतान अतिरिक्त लाड़-प्यार और सुविधा के पालने में आलसी हो जाते हैं। रूस के विशेषज्ञ प्रतिभा की चिह्न कर पांच वर्ष की आयु की बालिका का चयन कर उसे बैले नृत्य का प्रशिक्षण देते हैं। उनके शरीर का लचीलापन देखने लायक होता है। लैटिन अमेरिका में इसी ढंग से फुटबॉल खिलाड़ी प्रशिक्षित किए जाते हैं। यह खेदजनक है कि राजनीति की कोई पाठशाला नहीं, जहां से समर्पित नेताओं का उदय हो सके। जिस क्षेत्र में प्रशिक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता है, उस क्षेत्र में ही कोई संस्थान नहीं है।

इटली में जन्में महान चित्रकार लियोनार्दो द विन्ची 'लास्ट सपर' नामक पेंटिंग बना रहे थे। उन्होंने अनेक मॉडलों से मुलाकात की और प्रभु यीशु की पेंटिंग के लिए पियोत्रा का चुनाव किया। इस चित्र को पूरा करने में उन्हें लंबा समय लगा। कुछ वर्ष पश्चात उन्होंने जुडास का चित्र बनाया था। इसी व्यक्ति के विश्वासघात के कारण ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाया गया था। फिर मॉडल की तलाश हुई। एक संगीन अपराध करके एक व्यक्ति सात वर्ष की सजा काट चुका था और उसे ही जुडास के लिए मॉडल चुना गया। स्तब्ध कर देने वाली बात यह है कि प्रभु यीशु और जुडास दोनों के ही चित्र के लिए चुना गया मॉडल पियोत्रा ही था जो जेल की सजा काट चुका था। मनुष्य के स्वभाव एवं प्रवृत्ति में निरंतर परिवर्तन होता रहता है और इस परिवर्तन को चेहरे पर भी देखा जा सकता है। 'लास्ट सपर' नामक पेंटिंग से कैलेंडर बनाए गए हैं और इस धर्म के अनुयायी अपने घर में भी पवित्रता के प्रतीक के तौर पर रखते हैं। हमारी संस्कृति में लिखी रामायण के रचयिता अपने जीवन के पहले दौर में दस्यु भी रहे हैं। 'मानस' के लेखक तुलसीदास एक दौर में एक नाचने वाली से प्रेम करते थे और यह बात अमृतलाल नागर के उपन्यास 'मानस के हंस' में लिखी गई है। धरती अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा भी करती है परंतु मानव अवचेतन में पल-पल परिवर्तन होते हैं, जिनकी गति ध्वनि से भी अधिक है। अत: किसी व्यक्ति के विषय में अन्य व्यक्ति की धारणा बदलती है। अवचेतन से जलसाघर में रक्त निरंतर जारी रहता है।