फिल्म मसान और कब्रिस्तान-श्मशान विवाद / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्म मसान और कब्रिस्तान-श्मशान विवाद
प्रकाशन तिथि :23 फरवरी 2017

जाने कैसे यह भ्रांति पूरे भारत में सदियों से फैली हुई है कि बनारस में दाह संस्कार होने से स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। अनेक शहरों से मरणासन्न लोगों को रिश्तेदार काशी ले आते हैं। काशी के अस्सी घाट पर शवदाह कराने वाले लोगों के बीच बारी-बारी से अवसर लिए जाने की व्यवस्था है और कतार तोड़कर पहले स्थान के लिए नीलामी भी होती है। चाणक्य के जीवन से प्रेरित सीरियल बनाने वाले द्विवेदीजी ने भी सनी देओल अभिनीत 'अस्सी घाट' फिल्म बनाई थी, जो कतिपय कारणों से अभी तक प्रदर्शित नहीं हो पाई। खबर है कि आजकल देओल परिवार के सारे निर्णय स्वयं धर्मेंद्र लेने लगे हैं और वे व्यवस्था जमाने की प्रक्रिया में संभवत: 'अस्सीघाट' के प्रदर्शन का भी प्रयास करेंगे। अस्सी पार धर्मेंद्र पुन: सक्रिय हुए हैं। इस तरह की बातें भी कही जा रही है कि वे परिवार के कुछ कर्ज भी चुकाने वाले हैं। सनी देओल की 'दिल्लगी' की असफलता से कुछ कर्ज खड़े हो गए हैं। दरअसल, धर्मेंद्र के कॅरिअर की दोपहर में किसी की सलाह पर उन्होंने मुंबई-पुणे मार्ग पर कोई जमीन खरीदी थी, जो अब प्राइम लोकेशन बन गई है, क्योंकि नया पुणे मार्ग इसके पास से ही गुजरता है। यह जमीन लगभग सौ एकड़ है। देओल परिवार हमेशा ही इतना समृद्ध रहा है कि यह पेंडिंग कर्ज कभी भी चुका सकता था परंतु अव्यवस्था के कारण ऐसा नहीं हुआ। अत: धर्मेंद्र सबकुछ ठीक करने का प्रण ले चुके हैं।

कुछ वर्ष पूर्व 'मसान' नामक महान फिल्म का प्रदर्शन हुआ था, जिसमें दाह क्रिया करने वाले डोम परिवार की कथा थी। फिल्मकार नीरज की यह फिल्म 24 जुलाई 2015 को भारत में प्रदर्शित हुई थी। इस परिवार का पढ़ा-लिखा युवा अपना पारिवारिक कार्य नहीं करना चाहता। सारा द्वंद्व परिवार में पीढ़ियों की सोच में आए परिवर्तन की कथा प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत करती है। इसके साथ एक पौराणिक कथा का भी विवरण था कि स्वयं भगवान शिव ने इस व्यवस्था का निर्माण किया था। डोम समुदाय में भी एक राजा होता है और उसका ज्येष्ठ पुत्र उसका उत्तराधिकारी होता है। यही पुत्र डोम राजा बनने का विरोध करता है। 'मसान' को अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए थे।

इस प्रसंग से स्मरण आता है कि शशि कपूर की पत्नी जेनीफर केंडल इंग्लैड में जन्मी थीं और मध्य आयु में ही आंत के कैंसर से ग्रस्त इस महान कलाकार की मृत्यु लंदन में हुई और उनकी अंतिम इच्छा के अनुरूप लंदन में उनका दाह संस्कार किया गया। उनका कहना था कि वे अपने पति शशि कपूर के वंश की परम्परा के अनुरूप अपना दाह संस्कार चाहती हैं। ज्ञातव्य है कि अपर्णा सेन निर्देशित '36 चौरंगी लेन' में जेनीफर ने अभिनय किया था। इसकी तरह अनेक तथ्यों से अपरिचित हमारे प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश चुनाव में आरोप लगाया कि अखिलेश यादव सरकार कब्रिस्तान को अधिक जमीन आवंटित करती है और शवदाह के लिए कतई परेशान नहीं है। अगले ही दिन अखिलेश यादव ने तमाम प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए कि नरेंद्र मोदी ने कब्रिस्तान और श्मशान पर झूठा बयान दिया है। उन्होंने प्रमाण दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र में शवदान स्थान के विकास के लिए सौ करोड़ आवंटित किए थे। बेचारे अखिलेश यादव पर नरेंद्र मोदी ने यह आरोप भी लगाया कि ईद के अवसर पर दीवाली के शुभ अवसर से अधिक बिजली दी जाती है। युवा अखिलेश ने सप्रमाण सिद्ध किया कि दीवापली के पांच दिनों में ईद से कहीं अधिक बिजली दी गई। सारांश यह कि संभव है कि पहली बार एक प्रधानमंत्री का सफेद झूठ उजागर किया गया। यह भारत महान में ही संभव है कि शिखर पुरुष सरेआम झूठ बोलता पकड़ा गया है। किसी अन्य देश में इस झूठ पर बड़ा बवाल मचता और उन्हें पूरे देश से क्षमा-याचना करनी पड़ती परंतु मानवीय स्तर पर यह संभव नहीं है कि कोई शिखर व्यक्ति 24 घंटे 12 माह तक क्षमा याचना करता रहे। जैन धर्म के मानने वाले अपने उत्सव के अंतर्गत क्षमा दिवस भी मनाते हैं, जब वे अपने परिचित एवं अपरिचित व्यक्तियों से भी जाने-अनजाने की गई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगते हैं।

हमारे राजनीतिक दलों को भी इसी परम्परा में क्षमा दिवस का आयोजन करना चाहिए। यह बेहतर हो कि लोकसभा एवं राज्यसभा में भी क्षमा दिवस आयोजित किया जाए, जिसमें सभी चुने गए एवं नामजद व्यक्ति अवाम से क्षमा मांगे। हमारा अवाम अत्यंत क्षमाशील है। हम तो अपनी पीठ पर कोड़े बरसाने वालों को भी क्षमा कर देते हैं। यह क्षमा प्रार्थना कुछ इस तरह भी हो सकती है कि चुनाव में वैध एवं अवैध तरीकों के इस्तेमाल और समाज में सांप्रदायिकता फैलाने के प्रयास के लिए उन्हें क्षमा किया जाए। चुनाव की गंगोत्री से ही कालेधन और भ्रष्टाचार की धारा प्रवाहित होती है।

विगत आम चुनाव में बनारस में किए गए वादों में गंगा की सफाई का आश्वासन भी दिया गया था, जो अन्य आश्वासनों और वादों की तरह निभाया नहीं गया है। स्मरण आता है कि राजीव गांधी पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की बात की थी। इत्तेफाक देखिए कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी के देश के नाम संबोधन के कुछ घंटों पूर्व ही राज कपूर की फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' का प्रदर्शन हुआ था। इस फिल्म को पहली बार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का संकेत देने का श्रेय जाता है। इसी तरह विनोबा भावे के द्वारा डाकुओं के आत्म समर्पण की पहल के कुछ समय पूर्व ही राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' का प्रदर्शन हुआ था। इन संयोगों के कारण भी हम राज कपूर को स्वतंत्र भारत का प्रतिनिधि फिल्मकार मान सकते हैं। मानवीय समस्याओं का आकलन और घटनाओं का पूर्व अनुमान लगाना साहित्य और सिनेमा के विषय हैं। सिनेमा और चुनाव दोनों ही अवाम के अवचेतन से संचालित होते हुए इसी पर आधारित भी है। अवाम कभी-कभी अपने फिल्म चयन और नेता चयन में चूक कर जाता है। गलतियां करना मानवीय है और नेताओं का क्षमा न मांगना उनका अपना संविधान के परे का अधिकार है। नोटबंदी जैसी भयावह गलती को भी अवाम ने क्षमा किया है या नहीं- यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा।