फिल्म संरक्षण की दीवानगी का मजनूं / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
फिल्म संरक्षण की दीवानगी का मजनूं
प्रकाशन तिथि :23 दिसम्बर 2015


फिल्म विधा से जुड़े सारे कामों के लिए जुनून की आवश्यकता होती है। सच तो यह है कि हर क्षेत्र में जुनून ही व्यक्ति को लक्ष्य तक ले जाता है। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर का जुनून है भारतीय सिनेमा की अमर कृतियों के मूल प्रिंट पर जो समय के खूंखार पंजों ने निशान बनाए हैं और उन फिल्मों के निर्माताओं की अपनी ही विरासत के प्रति उदासीनता के कारण हुई हानि से उन्हें उभाकर पुन: मूल की दशा तक लाना। शिवेंद्रसिंह डूंगरपुर फिल्म विरासत के प्रति जागरूक, संवेदनशील अौर कर्मठ व्यक्ति हैं। मुंबई के तारदेव में उनके दफ्तर में फिल्म से जुड़ी बहुमूल्य सामग्री का खजाना है, जिसमें राज कपुर का वह मिचेल कैमरा भी है, जिससे उनकी महान फिल्में 'आवारा,' 'श्री 420,' 'जागते रहो,' तथा 'बूट पॉलिश' की शूटिंग की गई थी। शिवेंद्र सिंह को कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता और न ही फिल्म उद्योग से कोई सहायता मिलती है। वे सारे काम स्वयं अर्जित पूंजी से करते हैं। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले वृत्तचित्र बनाए हैं। ज्ञातव्य है कि पुणे फिल्म संस्थान के आर्काइव्स विभाग में दशकों तक पदस्थ नायर साहब ने उसे व्यवस्थित रखा था और छात्रों की फरहमाइश का प्रिंट उन्हें दिखाने के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और शबाना आज तक नायर साहब की शान में कसीदे पढ़ते हैं। उन्हीं नायर के काम और जीवन पर शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने वृत्त चित्र भी बनाया है। विगत कुछ वर्षों से वे यूरोप के महान फिल्मकारों पर वृत्त चित्र बना रहे हैं। डूंगरपुर छोटी-सी रियासत रहा है परंतु क्रिकेटधर्मी राजसिंह डुंगरपुर और फिल्म विरासत के रक्षक शिवेंद्रसिंह डूंगरपुर के कारण विश्व में अनेक लोग इस रियासत को जानते हैं।

विगत वर्ष शिवेंद्र सिंह ने मंुंबई में फिल्म रेस्टोरेशन का दस दिवसीय सेमीनार भी आयोजित किया था, जिसमें कुछ छात्रों की फीस आमिर खान और उनकी पत्नी किरण राव ने दी थी। इस वर्ष 26 फरवरी से 6 मार्च तक पुणे के नेशनल फिल्म आर्काइव्स में फिल्म रेस्टोरेशन का एक एडवांस्ड कोर्स रखा जा रहा है, जिसकी फीस 25 हजार रुपए है, जिसमें रहने के स्थान की सुविधा शामिल है तथा इसके प्रवेश-पत्र 11 जनवरी तक भेजे जा सकते हैं। इसकी विस्तृत जानकारी www.filmheritagefoundation.co.in या www.fiafnet.org से ली जा सकती है। 22 जनवरी को चुने हुए लोगों को सूचना दी जाएगी। इस कोर्स को करने पर प्रमाण-पत्र दिया जाएगा। इस आयोजन में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म आर्काइव्स भी शामिल है। यह फ्रांस की प्रसिद्ध संस्था है, जो दशकों से फिल्म प्रिजर्वेशन के काम में लगी है। यह संस्था 1938 से सक्रिय है। 75 देशों के 155 संस्थान इस संस्था से जुड़े हैं, जिसका उद्देश्य धन कमाना नहीं वरन् पूरे विश्व की श्रेष्ठ फिल्मों और उनकी मूल प्रचार सामग्री का संरक्षण करना है। इस महत्वपूर्ण आयोजन में यह संस्था अपने विशेषज्ञों सहित शामिल है।

शिवेंद्र सिंह के अथक प्रयासों में पहली बार सरकार ने मात्र इतनी सहायता की है कि पुणे के फिल्म आर्काइव्स में इसे नि:शुल्क आयोजित करने की आज्ञा दी है। इसी संस्था में अनेक क्लासिक्स के प्रिंट भी रखे हैं और जो छात्र इस आयोजन में भाग लेंगे, उन्हें पुणे संस्थान के परिसर की जानकारी भी उपलब्ध होगी। ज्ञातव्य है कि जब शांताराम ने अपने साथियों सहित प्रभात स्टूडियो की स्थापना की थी तब निर्माण पूर्व ही शांताराम ने एक पौधा लगाया था। अब विशाल वृक्ष बन चुका आम का वह पौधा छात्रों द्वारा 'विसडम ट्री' के नाम से संबोधित होता है और छात्र फिल्म विधा पर इसी के नीचे बैठकर बहस करते हैं। फिल्म प्रिजर्वेशन के इस आयोजन से जुड़ना अर्थात 'आम के आम और गुठलियों के दाम' की तरह है। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि प्राचीन संस्कृति के वारिस भारतीय अपनी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के प्रति उदासीन रहे हैं। हमने कितने वैदिक काल के शास्त्र खो दिए हैं, कितनी महान इमारतें टूट गई हैं। कहने का उद्देश्य यह नहीं है कि भारतीय सिनेमा उस उदात्त संस्कृति के समान है परंतु इस विधा में भी कई कालजयी कृतियां बनी हैं और अगर उनकी रक्षा नहीं हुई तो सौ दो सौ वर्ष बाद आज के कालखंड की जानकारी कया भावी पीढ़ियां विज्ञापन फिल्मों से प्राप्त करेंगी?

फंडा यह है कि यदि आप रिटेल बिज़नेस में हैं तो आप डिटेल बिजनेस में हैं। जितना आप ग्राहक को जानें, उतना बेहतर।