फेयरवेल / रेखा राजवंशी

Gadya Kosh से
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यह दिन भी अन्य दिनों जैसा ही था। ज्योति ने सुबह जल्दी उठ कर चाय बनाई और ड्राइंग रूम के लाउन्ज में अलसाते हुए धंस गई। सुबह अकेले बैठकर चुस्कियों के साथ चाय पीने का मज़ा ही और है। फिर उठ कर फ्रिज से आटा निकाल कर अपूर्व के लिए दो पराठें बनाए, रात की सब्ज़ी के साथ डिब्बे में पैक कर दिए। अपूर्व ऑस्ट्रेलिया में पच्चीस साल रहने के बाद भी ज़रा नहीं बदले। ऑफिस में लंच उन्हें भारतीय ही चाहिए। पर उसे भारतीय भोजन ऑफिस में ले जाना पसंद नहीं है, वहाँ वह सैंडविच ही ले जाती है। घर आके तसल्ली से सैंडविच खाना पसंद करती है।

खाना पैक करके अपूर्व को उठाया फिर जल्दी से शॉवर में घुस गई।  दस मिनट में तैयार होकर स्टेशन की तरफ़ चल दी। अच्छी बात तो ये है कि स्टेशन उसके घर से सिर्फ़ पांच मिनट दूर है।  ट्रेन तक पहुँचने की जल्दबाजी होती है, पर ट्रेन में बैठने के बाद उसे बहुत तसल्ली मिलती है।  ऐसा लगता है कि एक दिन की जंग जीत ली हो। ट्रेन में सीट मिलना भी वैसे तो एक चुनौती है, पर आज एक लड़के ने उठ कर उसे अपनी सीट दे दी।  नीले रंग की आरामदायक सीट बैठ कर आस-पास नज़र डाली, ट्रेन हमेशा की तरह फुल थी।  सामने की सीट पर दो महिलाएँ बैठीं मगज़ीन्स में आँखे गड़ाएँ थीं।  ज्योति ने अपने बगल में नज़र डाली, इयर फ़ोन कानों में लगाए एक बीस पच्चीस बरस की लड़की अपनी दुनिया में गुम थी।  अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो कुछ और लोग ट्रेन में आ गए, खाली सीट न देखकर रेलिंग को हाथ से थाम खड़े हो गए। शुरू-शुरू में ट्रेन की शांति देखकर बहुत अजीब लगता था कि यहाँ कोई बात क्यों नहीं करता। पर कभी-कभी हंसती-खिलखिलाती किशोरियाँ दिख जातीं तो अच्छा लगता।   

शुक्र है, दो स्टेशन के बाद ही उसका ऑफिस है। वहाँ स्टेशन की अगली स्ट्रीट पर ही मक्डोनल्ड के बगल में आई टी ओ की बिल्डिंग है जिसमें वह काम करती है। सुबह के नौ बजे से शाम के पांच बजे तक वहीँ होती है।


अपूर्व आई टी में हैं, वे कार से ही जाते हैं। उनके दफ्तर में पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है। आदि उनकी एक मात्र संतान है, जो पढ़ लिख कर वकील बन गया है। पिछले साल ही वह मूव आउट हुआ है। अब ज्योति और अपूर्व अकेले हो गए हैं पर इससे उनकी व्यस्त दिनचर्या में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा है। पांच दिन की नौकरी वैसे ही चल रही है। वीकेंड में अक्सर आदि आ जाता है, ज्योति उसके पसंद की चीज़े पकाने में व्यस्त हो जाती है और उसके साथ वक़्त गुज़र जाता है। अपूर्व को रीडिंग के अलावा, गार्डनिंग का भी शौक है, वीकेंड में टेनिस खेलने जाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। सब कुछ रूटीन में चलता रहता है।

आज भी दफ्तर के बाद ज्योति घर आई। उसका ऑफिस पास है, तो वह ज़रा जल्दी आ जाती है। अपूर्व करीब डेढ़ घंटे बाद आते हैं। तब तक ज्योति को आराम मिल जाता है।

शाम की चाय अपूर्व ही बनाते हैं और दोनों साथ चाय पीते हैं।

उस दिन अपूर्व एक कार्ड दिखते हुए बोले - 'तुमने ये निमंत्रण पत्र देखा?'

'किसी की शादी का है क्या?' ज्योति ने कहा।

'शादी का नहीं है, तुम्हें याद है न एडवर्ड?'

'एडवर्ड …ओह वो। वही एडवर्ड न, जिसके घर हम रुके थे पच्चीस साल पहले।'

'हाँ, वही एडवर्ड। उसकी फेयरवेल पार्टी का निमंत्रण है।'

ज्योति की आँखों के सामने चालीस साल के खुशमिजाज़ एडवर्ड और उसकी खूबसूरत पत्नी ग्रेस का चेहरा घूम गया। जब वे सिडनी आए थे तो एक महीने उन्हीं के घर में पेइंग गेस्ट रहे थे।

एडवर्ड और ग्रेस ने ही शुरू में उनकी मदद की थी। 'करिंगबा' नाम का सबर्ब, जिसमे वह रहते थे, बहुत खूबसूरत था। पास में ही क्रोनुला समुद्र तट था, जहाँ बने मोटल्स में अक्सर बैक पैकर्स और टूरिस्ट रुकते थे। एडवर्ड ने ही उन्हें सेंटर लिंक जाने और वहाँ अपना नाम रजिस्टर कराने को कहा था, जिसकी वज़ह से जब उन्हें जल्दी ही कुछ वित्तीय सहायता मिल गई, तो वे कितना खुश हुए थे और एडवर्ड के लिए वाइन की एक बोतल ले आए थे।


ज्योति को एडवर्ड और ग्रेस के दो छोटे-छोटे गोल-मटोल जुड़वां बच्चों के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था। ग्रेस ने ही उसे बाज़ार और वेस्टफील्ड घुमाया था। यहाँ के स्कूल और चाइल्ड केयर के बारे में भी उसी से पता चला था।

जिस दिन शाम को अपूर्व और ज्योति घर होते उस दिन एडवर्ड बियर की बोतल खोल लेता, बियर पीते-पीते जाने कितनी बातों पर डिस्कशन करता। कई बातों के बारे में उन्हें एडवर्ड से ही पता चलता। ज्योति और अपूर्व ने ऑस्ट्रेलिया को पहली बार उनकी नज़र से ही देखा।

एडवर्ड ने ही ज्योति को 'जो' और अपूर्व को 'ऐपु' कहना शुरू किया।

'ऐपु, कम हियर मेट। अपनी ब्यूटीफुल वाइफ को भी यहाँ ले आओ। चलो आज बीच चलते हैं।'

और सब ख़ुशी-ख़ुशी उसकी सेवन सीटर में बैठ बीच चले जाते।

ग्रेस पिकनिक मैट्स बिछा देती। रसगुल्ले जैसे नरम मुलायम बच्चे विल और जिल ज्योति के आसपास घूमने लगते -'प्ले विद अस, जो... '

ग्रेस प्यार से सिखाती, 'डिड यू से, प्लीज़'

'प्लीज़ जो ...' दोनों उसके हाथ में सॉफ्ट बॉल पकड़ा देते।

ज्योति और अपूर्व बच्चों को लेकर थोड़ी दूर चले जाते, जिससे ग्रेस और एडवर्ड को कुछ वक़्त अपने लिए मिल सके। उनके जाते ही एडवर्ड और ग्रेस एक दूसरे में ऐसे खो जाते, जैसे जाने कितने दिनों से बिछुड़े हों। उन्हें चुम्बन लेते देख अपूर्व अक्सर ज्योति को आँख मार देते और नव ब्याहता ज्योति थोड़ी शर्मा जाती।

एक महीना ख़त्म होने के पहले ही ज्योति और अपूर्व ने अपने लिए किराए का घर ले लिया। सेंटर लिंक से मिले खर्चे से उन्होंने मंहगे सबर्ब में रहने की बजाए उस एरिया में जाना पसंद किया जो सस्ता हो और जहाँ भारतीय ग्रोसरी आदि की सुविधाएँ उपलब्ध हों। इसलिए शुरू में वे ब्लैक टाउन के दो कमरों के ग्रेनी फ़्लैट में आ गए। गृहस्थी शुरू करने के लिए काफ़ी सामान उन्हें ग्रेस ने दे दिया।

उनके चलने के पहले ग्रेस की आँखों में आंसू आ गए 'वी विल मिस यू जो' कहते-कहते उसे गले से लगा लिया।

एडवर्ड ही उन्हें अपनी गाड़ी में वहाँ छोड़ने आया। सामान सेट करने में मदद की और सारा सिस्टम भी समझा दिया।

घर बसा लेने के बाद अपूर्व ने उन्हें घर खाने पर बुलाया तो शायद पहली बार उन्होंने उत्तर भारतीय भोजन खाने का आनंद लिया। विल और जिल ज्योति को देखते ही उसकी तरफ़ दौड़े।

'दे लव यू जो, कीप देम' कहते-कहते एडवर्ड ने आँख मारी और सब हंस पड़े।

शीघ्र ही नौकरी की तलाश शुरू हुई। अपूर्व को नौकरी मिली ही थी कि ज्योति प्रेग्नेंट हो गई और जल्द ही आदि ने उनकी ज़िन्दगी में ख़ुशी के फूल बिखेर दिए। आदि के जन्म पर एडवर्ड गिफ्ट बैग लेकर आया, 'कॉंग्रेट्स मेट' कहते हुए अपूर्व को गले से लगा लिया।

'वेयर इज़ ग्रेस' अपूर्व के पूछने पर वह बोला, 'सॉरी, उसे बच्चों को स्विमिंग ले जाना था। उसी ने बेबी के लिए यह सामान भेजा है।'

आदि के जन्म के बाद भी वे बराबर संपर्क में रहे, मिलते जुलते रहे पर फिर बच्चे बड़े होने लगे, उनके स्कूल की गतिविधियाँ बड़ गईं और धीरे-धीरे आना-जाना कम होने लगा।

इस बीच ज्योति को भी जॉब मिल गया और जल्द ही दोनों ने घर खरीद लिया। घर की ओपनिंग सेरेमनी पर एडवर्ड और ग्रेस फिर मिले मगर उसके बाद संपर्क सिर्फ़ फ़ोन तक सीमित रह गया।

और आज इतने साल बाद यह कार्ड आया है। ग्रेस और एडवर्ड की सारी बातें ताज़ा होने लगीं। आख़िर एडवर्ड को वह कैसे भूल सकती थी।

ज्योति ने अपूर्व के हाथ से कार्ड लिया, देखा। अगले महीने 7 अक्टूबर, शनिवार को शाम पांच बजे का निमंत्रण था। देखकर अच्छा लगा, उसमें वे आदि का नाम लिखना न भूले थे।


'इतनी जल्दी इतना समय बीत गया, पता ही नहीं चला। इतनी जल्दी एडवर्ड रिटायर भी हो गया? कितने साल का होगा?' अपूर्व ने पूछा।

'शायद साठ या पैंसठ के बीच।' ज्योति ने जवाब दिया।

'अच्छा, मेक श्योर कुछ अच्छी-सी शेम्पेन ले आना' कहते हुए ज्योति किचन में गई और फ्रिज पर लगे कलेण्डर में मार्क कर दिया।

आदि को भी व्हाट्सएप पर 'सेव द डेट' का मैसेज भेज दिया।

'श्योर, डेट सेव्ड। आई विल बी देयर' उसका जवाब भी साथ की साथ आ गया।

अगले महीने सात नवम्बर आ गया। अपूर्व ने अच्छा-सा सूट पहना, पर ज्योति ने साड़ी ही पहनी क्योंकि ग्रेस और एडवर्ड हमेशा उसे साड़ी में ही देखना पसंद करते थे। करीब चालीस मिनट की ड्राइव के बाद दोनों कारिंगबा पहुँचे। खूबसूरत पैंकिंग में मंहगी फ्रेंच ‘कुग’ शेम्पेन लेकर जब वे गाडी से उतरे तो देखा कि घर का दरवाज़ा खुला हुआ था, बाहर से ही फेयरवेल के साइन को देखा जा सकता था।

दरवाज़े पर दो खूबसूरत नौजवान सबका स्वागत कर रहे थे।

उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा 'तो इतने बड़े हो गए विल और जिल। एडवर्ड जैसी कद काठी और ग्रेस जैसी खूबसूरत नीली आँखें। दोनों ने सौम्य मुस्कान से उनका स्वागत किया और अंदर जाने को कहा। आदि भी पांच मिनट में वहाँ पहुँच गया।

अंदर पहुँचते ही ग्रेस ने उसे गले लगा लिया। पता नहीं क्यों ग्रेस की नीली आँखे आज मुस्कुराती हुई नहीं लगी।

'वेयर इज़ एडवर्ड?' अपूर्व ने धीरे से पूछा।

'यू विल-सी हिम सून' कहते हुए ग्रेस ने उन्हें बैकयार्ड में सजी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया। जब ज्योति और अपूर्व वहाँ पहुँचे तो देखा कि पहले से बहुत सारे लोग एकत्रित थे,

'लगता है कि बहुत बड़ी पार्टी है' अपूर्व ने धीरे से कहा।

'एडवर्ड था ही इतना सोशल' ज्योति ने कहा।


गार्डन बिजली के बल्बों से जगमगा रहा था। लोग फूलों के गुलदस्ते और गिफ्ट लेकर आ रहे थे। यूँ तो सब मुस्कुरा कर आपस में मिल रहे थे, पर फिर भी माहौल में एक अजीब-सी चुप्पी थी।

तभी व्हील चेयर धकेलते हुए ग्रेस वहाँ आई, कुर्सी पर एक दुबला पतला बीमार-सा व्यक्ति बैठा था। जब कुर्सी रौशनी में आई तो शक्ल एडवर्ड से मिलती जुलती लगी।

'एवरीबॉडी वेलकम एडवर्ड' बेटे विल ने माइक पर जाकर कहा।

'क्या…।?’ हम जैसे आसमान से ज़मीन पर उतरे। कहाँ गोल चेहरे वाला, भरे भरे शरीर का, लम्बा चौड़ा एडवर्ड और कहाँ ये बीमार, दुबला पतला आदमी? ऐसा कैसे हो सकता है? पर आँखे, नाक और चेहरा एडवर्ड का ही था।

तो क्या एडवर्ड बीमार था? आख़िर क्या हुआ उसको? और ग्रेस ... जाने कितने दिन से वह अकेली ये सब झेल रही होगी।

गलती हमारी है आख़िर हम संपर्क में क्यों नहीं रहे? उसे अचानक अपराध बोध ने घेर लिया। आख़िर क्या हुआ है उसको? जाने कितने प्रश्न उसके जेहन में घूमने लगे। ज्योति को लगा शायद बीमारी की वज़ह से ही एडवर्ड ने रिटायरमेंट लिया है।

'आज आप सब एडवर्ड को फेयरवेल देने के लिए यहाँ इकट्ठे हुए हैं, हम सपरिवार आपका स्वागत करते हैं। आप सबने हमारी ज़िन्दगी में एक ख़ास भूमिका निभाई है और आप सब हमारे परिवार का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं, अब मैं अपनी माँ ग्रेस को बुलाना चाहूँगा' कहते हुए विल ने अपनी माँ ग्रेस को बुलाया।

थके से कदमों से उठ के जब ग्रेस माइक पर आई, तो जिल ने आगे बढ़ कर उसे थाम लिया, उसकी नम आँखें देख लगा शायद एडवर्ड के रिटायरमेंट से सब दुखी हैं।

ग्रेस माइक पर कह रही थी –

'हेलो फ्रेंड्स। एडवर्ड ने आप सबके साथ इतने साल हंसी ख़ुशी समय बिताया, इन सालों में कितने अविस्मरणीय क्षण आप सबने हमें दिए, हम उसके लिए आपके आभारी हैं। परन्तु पिछले पांच वर्षों से हम कठिन स्थितियों से गुज़र रहे हैं। एडवर्ड बीमार है और उसका इलाज़ चल रहा है। वी रेस्पेक्ट एडवर्ड'स डिसीज़न (हम एडवर्ड के निर्णय का आदर करते हैं), मैं चाहती हूँ कि एडवर्ड स्वयं आपको अपने निर्णय के बारे में बताए।'

कहते-कहते उसने माइक एडवर्ड के सामने कर दिया। एडवर्ड ने कमज़ोर हाथों से माइक लिया, धीरे से मुस्कराया और अपने दोस्ताना अंदाज़ में बोला, 'दोस्तों, आप सबका मेरी फेयरवेल में यहाँ आने के लिए शुक्रिया। मैं पिछले कुछ सालों से बीमार रहा हूँ और मैंने यह फ़ैसला बहुत सोच समझ कर लिया है। मेरा परिवार भी पिछले एक साल से इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो रहा है और अंत में हम सबने मिलकर ही यह निर्णय लिया है।

ईश्वर ने मुझे बहुत दिया है। मेरे पास सब कुछ है, ब्यूटीफुल पत्नी ग्रेस है, जिसने मुझे ज़िन्दगी में हर ख़ुशी दी। दो हैंडसम बेटे दिए, जिनके साथ मैंने बहुत अच्छे लम्हें बिताए, ईश्वर की कृपा से मुझे आप जैसे अच्छे दोस्तों का साथ मिला।

कुछ लोग जानते हैं कि मैं बीमार हूँ, मेरे शरीर के अंग अब साथ नहीं देते। पिछले पांच साल से मुझे मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी (एम एस ए) है और जैसा कि आपको पता ही है इसका कोई इलाज़ नहीं है।

मैं इलाज़ के सहारे अगले एक साल से दस साल तक ज़िन्दगी बढ़ा सकता हूँ। पर मैं अपने आप से थक गया हूँ। ग्रेस और बच्चों को मैं अपने दुखों से और दुखी नहीं करना चाहता, सब पर बोझ नहीं बनना चाहता। अपने आपको एक हारा हुआ खिलाड़ी बना कर सबकी सहानुभूति इकट्ठी करने से मुझे नफ़रत है। मैं आपकी यादों में एक हंसमुख, स्वस्थ एडवर्ड के रूप में ही रहना चाहता हूँ। अतः मैंने, अपने परिवार की सहमति से यह फ़ैसला किया है कि मैं स्विज़रलैंड जाकर 'यूथेनेसिया' (इच्छा मृत्यु) का वरण करूँगा। आशा है आप सब मेरी इस इच्छा का आदर करेंगे। आपसे मेरी यह आखिरी मुलाकात ज़रूर है पर मैं आपकी यादों में सदा साथ रहूँगा। एक प्रसन्नचित्त, तंदरुस्त, हाज़िरजवाब और शैतान एडवर्ड के रूप में।'

'यूथेनेसिया... ' ज्योति के दिमाग़ में करेंट-सा लगा। समझ नहीं आता था कि एडवर्ड जैसा ज़िंदादिल इंसान ऐसा क़दम उठाने की कैसे सोच सकता है? एडवर्ड का भाषण चल रहा था पर ज्योति को आगे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।

एडवर्ड कैसे ऐसा क़दम उठा सकता है? शायद थक गया होगा बीमारी झेलते झेलते। जो अपनी ज़िन्दगी ठहाकों की तरह खुल के ज़िया और दूसरों की मदद के लिए भागता रहा, कैसे अपनी गिरती सेहत की लड़ाई हार गया। क्या मनः स्थिति रही होगी उसकी जब उसने इतना बड़ा निर्णय लिया होगा। क्या उसे दूसरों पर बोझ बनना मंज़ूर नहीं था? या वह अपने आपको इस तरह मरता हुआ देख नहीं पा रहा था? और कितना वक़्त लगा होगा उसे ऐसा कठिन फ़ैसला करने के पहले और फिर ग्रेस? ग्रेस का क्या होगा? दोनों तो अब तक जैसे दो जिस्म एक जान थे। इतने साल साथ रहने के बाद एक प्रेमी दुसरे को कैसे अकेले छोड़ सकता है? पिछले पांच साल से ग्रेस किस परेशानी भरे दौर से गुज़र रही थी ज्योति को इसका अंदाज़ा भी नहीं था।

उसे अचानक ग्रेस पर गुस्सा आने लगा। आख़िर एडवर्ड की बात वह क्यों मान गई? मना क्यों नहीं कर दिया उसने? किसी भी तरह उसे मना लेती, अपनी अकेलेपन का तकाज़ा करके उसे रोक लेती। ग्रेस तो पूरी ज़िन्दगी एडवर्ड की परछाईं बनी रही और आख़िर में उसे इस तरह अपनी अंतिन यात्रा पर जाने के लिए मान क्यों गई? या हो सकता है कि एडवर्ड के फैसले को उसे मानना पड़ा। एडवर्ड तो वैसे भी सबको कन्विंस करने में निपुण था।

ज्योति को लगा हाँ बिलकुल यही हुआ होगा। ग्रेस ने आखिरकार हथियार दाल दिए होंगे। ग्रेस के मन के तूफ़ान का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।

और फिर विल और जिल वह दोनों तो समझदार, पढ़े लिखे लड़के हैं। वह ही रोक लेते एडवर्ड को। पर शायद किसी की कुछ न चली होगी। जिस आदमी ने ज़िन्दगी भर किसी से कुछ न लिया हो उसका बेबस और लाचार हो जाना एक सजा से बढ़कर नहीं है। एडवर्ड न किसी की सेवा लेना चाहता था, न किसी को परेशान करना चाहता था। वह एक हीरो की तरह ज़िया और शायद हीरो की तरह ही मरना चाहता होगा।

अचानक उसकी आँखों से बरसात होने लगी, अपूर्व ने उसका हाथ थामा और उसके हाथ में में टिशू थमा दिया। आस पास देखा सबकी आँखों में आंसू थे। इस तरह से इच्छा मृत्यु का स्वागत करना लोगों के गले से उतरना मुश्किल हो रहा था।

तभी ग्रेस आगे बड़ी, एडवर्ड का हाथ थामा और एडवर्ड की पसंद का गीत गाने लगी। 'लिविंग ऑन अ प्रेयर' विल और जिल ने उसका साथ दिया। एडवर्ड के चेहरे पर अजीब-सी शांति छाने लगी।

अचानक ज्योति का मन किया कि वह एडवर्ड और ग्रेस से लिपट जाए और पच्चीस साल पहले की ज़िन्दगी दुबारा जी ले।