फैसला (कहानी) / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Gadya Kosh से
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गनौरी केॅ समझै मेॅ नै आबै कि आखिर करलोॅ की जाय। होना केॅ जमीन बहुत्ते तेॅ नै छेलै; एक कट्ठा आरो एक घूर। मतरकि जमीन छै एकदम सोनोॅ। इखनिये खरीददार पाँच लाख तांय दै वास्तेॅ तैयार छै। तैयार हेन्है नै छै। मुखिया-सरपंच ऊ सभा में कही रहलोॅ छेलै कि जल्दिये ई गाँवोॅ सेॅ होय केॅ सरकारी सड़क निकलै वाला छै। ईखनी तेॅ बैलगाड़िये नी चलै छै, सड़क बनला पर तेॅ बारह-बारह पहियावाला ट्रक दौड़तै। तखनी तेॅ यहेॅ कट्ठा भरी जमीन हीरा के दाम पर बिकतै। दस पन्द्रह लाख सेॅ कम नै। गनौरी मनेमन सोचलकै, आरो सोची केॅ खुश होय गेलै।

मतरकि ओकरोॅ ई खुशी बड्डी देर तांय नै टिकेॅ पारलै। ऊ सोचेॅ लागलै कि तब तांय वैं अपनोॅ जमीन केॅ की जोगेॅ पारतै? ई तेॅ केन्हौं केॅ नै लागै छै। ननखू, बलेसर, दासू, पटवारी, सबके आँख ई जमीन पर गड़लोॅ छै, आरो नै तेॅ मुखियौ जमीनोॅ पर दाँत गड़ैलोॅ होलोॅ छै। की रं हमरा समझाय रहलोॅ छेलै, "गनौरी तोरोॅ ई जमीन तेॅ समझें कि पानिये नाँखि जाय वाला छौ। जखनी सरकारी सड़क बनेॅ लागतै तेॅ की समझै छैं, अपनोॅ जमीन बचावेॅ पारभैं। सरकार केॅ केकरो जमीन लै के हक छै, आरो तोरोॅ ई जमीन लेॅ हजार दू हजार दै देतौ। लाख, दू लाख तेॅ नहिये नी देतौ। जों अपनोॅ भला चाहै छैं, तेॅ ई जमीन हमरोॅ नामोॅ सेॅ करी दैं। हम्में तेॅ सरकारो सेॅ लड़ो पारौं, तोहें तेॅ कोर्ट-कचहरी सेॅ नहिये नी पारेॅ पारवैं। आरो जों हम्मेॅ हारिये जैवै तेॅ हमरा दुक्खो नै होतै। मतरकि जों तोरोॅ ई जमीन पानी नाँखि चललोॅ गेलौ, तबेॅ तेॅ तोहें हहरी केॅ मरी जैबे।"

"गलत नै कहै छै, मुखिया जी" गनौरी मनेमन सोचलकै, "तबेॅ की हम्में ई जमीन केॅ बेचिये दियै। मतरकि हम्में जानै छियै कि मुखियां जी जत्तेॅ इखनी दाम लगाय रहलोॅ छै, ओत्तो नै दै वाला छै। चार लाख के बात करै छै, आरो घीसू मरड़ पाँच लाख दै वास्तेॅ तैयार छै, मतरकि एक दाफी नै, तीन खेफोॅ में। तीन खेफ के मतलब होलै, पांचो सालोॅ में दिएॅ पारेॅ। मानी लेॅ, घीसू केॅ दै लेॅ तैयारो होय जाय छियै, तेॅ की मुखिया ओकरा जमीन लिएॅ देतै? कोय न कोय अडंगा लगैये देतै।" सोचतें-सोचतें गनौरी के मोॅन एकदम कलपित्तोॅ होय उठलै।

ऊ उठलै, आरो ऐंगन सेॅ निकली केॅ जमीनोॅ दिश बढ़ी गेलै, जे जमीन के कारणें आयकल ओकरोॅ मोॅन एकदम खिन्न रहै छै। गनौरी के घरोॅ सेॅ पच्चीस बांस के दूरी पर होतै ऊ जमीन, जे ओकरा ससुराल परिवारोॅ सेॅ मिललोॅ छेलै, दहेज रूपोॅ में। शायत परती-परांत बुझिये केॅ ससुराल वालां ई जमीन दहेजोॅ मेॅ दै देलेॅ छेलै। शादी के बाद सेॅ लै केॅ आय तांय ऊ जमीनोॅ पर गनौरी कुछ उगावेॅ नै सकलोॅ छेलै। आय वहा जमीन के किस्मत बदली गेलोॅ छेलै। गनौरी सोचलेॅ नै छेलै कि कट्ठा भरी के ई परपट परांट के दाम कभी पाँच लाख तक होय जैतै।

सोचतेॅ-सोचतेॅ गनौरी जोरी सेॅ सटलोॅ जमीन पर पहुंची गेलै। सालो भर घुटना भरी पानी यै जोरी मेॅ बहतेॅ रहै छै। वैं धोती केॅ जांघोॅ तक सरकैलकै आरो जोरी केॅ पार करी गेलै। कत्तेॅ शीतल पानी छै, चानन के स्रोत छेकै तेॅ की, चानन के पानी सेॅ कटियो टा कम निर्मल नै। वैं मने मन सोचलकै आरो अपनोॅ जमीन के एक टीला पर बैठी गेलै। वैं जमीनोॅ के चौहद्दी पर नजर दौड़ैलकै आरो बुदबुदाय उठलै, "ई जमीन सेॅ मोहे की करना, जे नै फसल देॅ, नै शान्ति। रातकोॅ नींद तक छीनी लेलेॅ छै यैं। कोॅन मारी पीठी पर लादी केॅ लै जाना छै, जमीन आरो जायदाद। बेचिये देला में शान्ति छै। की होतै पांच लाख के बदला लाखे, दू लाख मिली जाय छै। ठिक्के मुखियां कहै छै कि जों सरकारी चक्कर में पड़ी जैबै, तेॅ हजारे दू हजार मेॅ जमीन छिनाय जैतौ। ...मतरकि है किसिम सेॅ मुखिया आकि घीसू मरड़ के नगीच झुकवोॅ अच्छा नै होतै। झुकै के मतलब छै, आरो झुकैतै। लाखो दू लाख दै मेॅ ना नुकुर करतै। गरजाहू बुझतै। अजीब चक्कर छै। बिन्देसर पाठक जी सेॅ मनोॅ के दुख बतैलियै, तेॅ की रं हुनी बातोॅ केॅ टारी देलकै। कहलकै, जमीन-जोरू होवे करै छै जोरोॅ के. ' गनौरी केॅ ई बात याद ऐथैं, जी" कसैलोॅ होय गेलै, आरो ठोर बिचकैतें कहलकै, "हुँह, जमीन-जोरू होवे करै छै जोरोॅ के."

मतरकि तखनिये ऊ सावधान होतेॅ अपने आप बोली पड़लै, "देखै छियै, के जोरोॅ पर हमरोॅ जमीन केॅ हथियावै छै। जों कोय हमरा सेेॅ धुरतई करै के कोशिश करतै, तेॅ हेनोॅ मजा चखैवै कि मुखिया आरो पांडे जी की साथेॅ सौंसे गांव याद रखतै। इखनी हमरोॅ दुक्खोॅ पर नोन छिड़की केॅ भीतरे भीतर मजा लुटै छै। की सोचै छै, सौंसे बुद्धि आरो ताकत मुखियो साथेॅ घीसू के माथा-देहोॅ में छै। आखिर में वहा होतै, जे सोचलेॅ छियैµई जमीन भुसमुण्डा गांव के फन्टुस के हाथे बेची देवै जानै छियै कि वैं ई जमीन के कत्तेॅ कीमत लगैतै। तेॅ, कोय बात नै कम से कम मुखिया आरो घीसू साथेॅ ई गाँव के लोगोॅ केॅ तेॅ मालूम होय जैतै कि गनौरी के जी दुखैला के की अन्जाम हुएॅ पारै छै। ऊ दिन, की रं किसन पण्डित, सुकेशी यादव, नीरू मिसिर मुखिया के बातोॅ में हों-हों करतेॅ कहेॅ लागलोॅ छेलै, ' गनौरी, जत्तेॅ मुखिया, ई जमीनोॅ के कीमत लगाय रहलोॅ छै ओत्तेॅ तेॅ कोय देतौ, ई तेॅ समझेॅ कि रेतोॅ के दाम हठुआचारीµमिली रहलोॅ छौ। वहू कोय बाप-दादा के पुस्तैनी जमीन होतियौ, तेॅ बात कुच्छू आरो होतियै। मंगनी में ससुरारी सेॅ मिललोॅ छौ, तोहें तेॅ भाग्यशाली छोॅ।"

सोची केॅ गनौरी के जी एकदम खट्टा होय गेलै। सबकेॅ फन्टुस मजा चखैतौ। वैं मने-मन बुदबुदैलै, "कहै छै नी, बरोॅ गाछी के नीचेॅ घास नै जमै छै। एक फन्टुस ई गाँव के टोलोॅ-टोलोॅ केॅ नै उजाड़ी केॅ राखी देलकै, तबेॅ हमरा कहियोॅ। इखनी हमरोॅ हालत देखी केॅ लोग हाँसै छै, तखनी हाँसेवाला के हालत देखी केॅ हम्में हाँसबै।" ई सोची केॅ गनौरी अजीबे किसिम सेॅ ठठाय पड़लै।

आय पहिलोॅ दाफी वैं अपनोॅ जमीन पर कोय मोह नै दिखैलेॅ छेलै। संझकी वक्ती टहलतेॅ-टहलतेॅ ऊ हिन्नें आवी गेलोॅ छेलै, आरो बस एकाध घण्टा रुकलोॅ होतै कि तखनिये मस्जिद सें साँझकोॅ अजान उठेॅ लागलै। गनौरी झोकोॅ सेॅ उठी खड़ा होलै आरो अपनोॅ घोॅर दिस बढ़ी गेलै। घोॅर पहुंचतेॅ-पहुंचतेॅ काफी बेर होय गेलै।

ओकरी जनानी तुलसीचौरा पर संझा दिया जराय केॅ ओकरे आसरा देखी रहलोॅ छेलै। ऐथैं पुछलकै, "आय बड़ी बेर भै गेलौं, कहाँ गेलोॅ छेलौ?"

"हाट चल्लोॅ गेलोॅ छेलियै, वांही देर होय गेलै। ' खाना तैयार छौं की, नै जानौं कैन्हें आय भूख सबेरगरे बुझावेॅ लागलोॅ छै।"

"तोहें हाथ-गोड़ धोओ, हम्में चौका लगाय छियौं।"

जखनी गनौरी कौर मुँहोॅ मेॅ राखी रहलोॅ छेलै, तखनी ओकरोॅ चेहरा पर आय प्रसन्नता नै छेलै, जे रोज खाय वक्ती रहै छै। ओकरी जनानी केॅ ई भाँपतेॅ देर नै लागलै। पूछी बैठलकै, "आय तोहें कुछ मनझमान बुझावै छोॅ। केकरौ सेॅ कुछु कहा सुनी होय गेलोॅ" छौं की?

"नै तेॅ" गनौरी अपना पर नियंत्रण पैतेॅ कहलकै, "झटकलोॅ-झटकलोॅ ऐलोॅ छियैं, ताही सेॅ तोरा हेनोॅ बुझावै छौं।" आरो ई कहतेॅ-कहतेॅ बचलोॅ कौर मुँहोॅ में डाललकै आरो फेरू लोटा उठैलेॅ मुँह-हाथ धोय लेॅ ऐंगना के एक कोना दिश बढ़ी गेलै।

जनानी खाय-पीयै लेॅ भन्सा दिश बढ़लै, तेॅ गनौरी बराण्डा पर बिछैलोॅ खटिया के नगीच आवी गेलै। चद्दर हटाय केॅ बिछौना केॅ सीधा करलकै आरो चद्दर बिछाय केॅ खटिया पर लेटी गेलै।

दसो मिनट नै भेलोॅ होतै कि ओकरोॅ आँख लगी गेलै। जखनी पार्वती हाथोॅ में गिलास ले लेॅ नगीच ऐली, तखनी तेॅ गनौरी घोर नींदोॅ में आबी गेलोॅ छेलै।

पार्वती सिरहाना में गिलास राखी वै पर कटोरी राखी देलकै, आरो बचलोॅ काम समेटै लेॅ भनसा घरोॅ दिश बढ़ी गेलै। घरोॅ के सबटा काम समेटै में पार्वती केॅ घण्टा, दू घण्टा ज़रूरे लागी जाय छै। ई वक्ती तांय गनौरी के एक नीन पूरा होय जाय छै।

मतरकि आय हेनोॅ नै होलोॅ छेलै। अभी आधो घण्टा नै बितलोॅ होते कि गनौरी चीखी पड़लै। पार्वती धड़फड़ैली ओकरोॅ नगीच आवी केॅ पूछलकै, "की होलौं। सपनाय गेलौ की?" "हौं सपनैये गेलोॅ छेलियै।"

"केन्होॅ सपना?"

"बस हेने-हेनोॅ। जा सुतोॅ, हमरो नींद आवी गेलै। थकलोॅ छियै नी।"

गनौरी पार्वती केॅ भेजी तेॅ देलकै, मतरकि ओकरा नींद नै ऐलै। कै दाफी वै कोशिशो करलकै कि नींद आवी जाय। वैं सोचेॅ लागलै, "केन्होॅ भयानक स्वप्न छेलै। एककठिया जमीन केॅ फोड़ी ऊ दैत बाहर होय गेलोॅ छेलै, आरो फेनू तेॅ वै जन्नें हाथ घुमावै, हुन्नै आंधी-बतास हुहआबेॅ लागै छेलै, आरो आंधी-बतास में टोला-टोला के घोॅर घास-फूस रं उड़ी-उड़ी केॅ दूर फेकाय रहलोॅ छेलै। आदमी ढेलोॅ-ढेपोॅ नाँखि लुढ़की-पुड़की रहलोॅ छेलै। फेनू वै में हमरे घोॅर कहाँ बचलोॅ छेलै। सबसें पहलेॅ तेॅ हमरे घोॅर उड़लोॅ छेलै, आरो हमरोॅ छपरे रं हम्मेॅ ढनमनाय गेलोॅ छेलियै।" सोचतेॅ-सोचतेॅ गनौरी उठी बैठलै। ओकरोॅ उठनै छेलै कि पार्वतियो नगीच आवी केॅ ठाढ़ी भै गेलै।

"की नींद नै आबै छौ?" गनौरी के गोड़थारी दिश बैठतेॅ पार्वती पूछलकै।

"आवी जैतै, जा तोहें सुती रहोॅ।"

"एक बात पूछियौं?"

"कोॅन बात? पूछोॅ नी।"

"हम्में आय महीना भरी सेॅ तोरा परेशान देखी रहलोॅ छियौं। ज़रूरे तोहें ऊ जमीनोॅ केॅ लै केॅ परेशान रही रहलोॅ छौ। हम्में, दू दिन तोरा सपना में बड़बड़ैतेॅ देखलेॅ छियौं। बोली रहलोॅ छेल्हौ, दस लाख के जमीन हम्में पाँच लाख मेॅ नै दिएॅ पारौं।" ई सब तोहें केकरा सेॅ बोलै छौ? के तोरोॅ जमीन ऐत्तेॅ दामोॅ में खरीदै वाला छौं? तोहें हमरा सेॅ कोय बात ज़रूरे छिपाय रहलोॅ छोॅ। हमरे किरिया, जों कुछु हमरा सेॅ छिपावोॅ तेॅ। "

गनौरी नेॅ पार्वती के बात सुनलकै, कुछ देरी लेॅ मौन रहलै, फेनू एक-एक बात खोली केॅ कही देलकै। कहेॅ लागलै, तेॅ सपना के दैतो के कहानी कही देलकै।

सुनी केॅ पार्वती गर्दन सेॅ लैकेॅ गोड़ तांय सिहरी उठलै। फेनू संयत होतें कहलकै, "हमरोॅ एक बात कहिया तोहें मानबौ।"

"से आय तक कौन हेनोॅ बात होलोॅ छै, जे नै मानलेॅ छियौं।" गनौरी चेहरा पर थोड़ोॅ शांति लेतेॅ हुएॅ कहलकै, "पहलें कहोॅ तेॅ।"

"सुनोॅ, तोहें ई जमीने के मोह छोड़ी दौ।"

"तोरोेॅ कहै के मतलब?" गनौरी केॅ जेना झटका लागलोॅ रहेॅ "है तोहें की बोलै छौ किसन के माय।"

"ठीक बोलै छियौं। जे चीज दुख दै वाला बनी जाय, ओकरोॅ मोह कथी लेॅ। आरो ऊ जमीनोॅ सें दसे लाख मिलै छै, तेॅ की होय जैतै। महल खड़ा करवा? महल खड़ा करलै सेॅ कोॅन शांति मिली जैतौं। महल में शांति मिलतियै, तेॅ बुद्ध आरो महावीर कथी लेॅ राजमहल छोड़तियै। तोहें अभी बतैलौ कि ऊ जमीन तोहें फन्टुस के हाथें बेची देभौ, भले ही पानी के भाव में। ताकि मुखिया आरो गाँव वाला केॅ सीख सिखाबेॅ सकौ। हम्में पूछै छियौं, हेन्हौ करी केॅ तोहें कोॅन शांति पावी जैवा? आपनोॅ दुख केॅ सुख दै लेॅ सौंसे गांव केॅ दुख देबौ भला केन्होेॅ सतकर्म?"

"तेॅ, तोहें की चाहै छौ, हम्में मुखिया आकि घीसू मरड़ के हाथोॅ में पानी के भाव जमीन बेची दियै?"

"नैं हम्में ई कहाँ कही रहलोॅ छियाैं। जमील तेॅ तोहें फन्टुसोॅ केॅ पानिये के भाव में दै के बात सोची रहलोॅ छौ। बोलोॅ, सोची रहलोॅ छौ की नै?"

"सोचै के पीछू कारण बताय चुकलोॅ छियौं।"

"किसुन के बाबू, ज़रा सोचोॅ, जे बात सोची केॅ इखनिये एतना परेशान छौ, तबेॅ तखनी कत्तेॅ परेशान होभौ, जबेॅ हेनोॅ हीन काम करी चुकवौ। जों तोंय तंग आवी केॅ पानिये के भाव में जमीन फन्टुस केॅ दै लेॅ चाहै छौ तेॅ कैन्हेंनी पंचायत के बीचोॅ में ई कही दै छौ कि ई जमीन हम्में गाँव में बच्चा सिनी के इस्कूल खोलै वास्तें दान में देलियै।"

"तोहें है कि बोलै छौ पार्वती।"

"हम्में ठिक्के बोली रहलोॅ छियौ, किसुन के बाबू। जे काम करी केॅ जीवन भर खुशी नै मिलेॅ, होनोॅ काम कथी लेॅ करबौ। ज़रा तोंही सोचोॅ, जमीन फन्टुस केॅ दै-दै छोॅ, फेनू वै गामोॅ के लोगोॅ केॅ प्रताड़ित करतै। सब्भैं तोरहै शापतौ। आह उठतै, तेॅ केकरा विसैतै। जों इस्कूल खोलै में जमीन दै-दै छौ, तेॅ कल गांव में हेनोॅ बच्चा ऐतै, जे मुखिया आरो घीसू मरड़ रं नै होतै, आरो नै फन्टुस हेनोॅ। की हमरा सिनी एतना टा नै सोचेॅ पारौं, नै करेॅ पारौं? कुछ दिएॅ पारेॅ, तेॅ अमीरे आकि फकीरे। बिचलका तेॅ त्रिशंकु छेकै, न धरती में नै, आकाश में। तोंही तेॅ कभिये कहलोॅ छेलौ कि गरीबोॅ के मोॅन बड़ा उच्चोॅ होय छै, सरंगे रं। किसुन के बाबू, ई बात तोरा सेॅ कहै लेॅ हम्में कै दिनोॅ सेेॅ छटपटाय रहलोॅ छेलियौं।" कहतेॅ-कहतेॅ पार्वती हठाते रुकी गेलै, मतर चेहरा पर प्रश्न आरो जिज्ञासा के उतार-चढ़ाव शुरु होय गेलोॅ छेलै।

गनौरी नें ललटेन के रोशनी में अपनोॅ पार्वती के चेहरा केॅ बड़ी गौर सें देखलकै, आरो कुछ देर लेली बस देखतै रहलै।

"की हम्में दिल दुखाय वाला बात कही देलियौं, किसुन के बाबू?" पार्वती नें गनौरी केॅ ई रं घुरतेॅ देखलकै, तेॅ पूछी बैठलै।

"नै किसुन के माय, नै, तोहें दिल दुखाय वाला नै, दिल जुड़ाय वाला बात कही देलौ। अनभुवारोॅ केॅ रास्ता दिखाय देलौ। तोहें जे मंत्र ई कानी में पढ़लेॅ छौ, आबेॅ एकरा सेॅ कोय दूत-भूत सपना मेॅ नै ऐतै। है याद दिलाय केॅ अच्छे करलोॅ कि दिएॅ-करेॅ पारै तेॅ खाली अमीरे आकि फकीरे।"

गनौरी नेॅ फेनू बड़ी गौर सेॅ पार्वती केॅ देखलकै। ओकरा लागलै जेना ओकरोॅ चेहरा पर लालटेन के रोशनी नै, भोरकवा उगी गेलोॅ रहेॅ। वैंने पार्वती के हाथ अपनोॅ हाथोॅ में लेलकै, आरो हौले सेॅ हँसतेॅ कहलकै, "तोरोॅ बातोॅ सेेॅ कहिया बाहर गेलोॅ छियौं। हों कल के दिन तोहें हमरोॅ साथ-साथ रहियोॅ, आबै वाला दिन के गवाही लेॅ।" आरो गनौरी अपनोॅ दोनों बाँह दोनों दिश फैलाय देलकै।