बचाओ / विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

Gadya Kosh से
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'नारायण-नारायण' का नाम जप करते नारद एक दिन भगवान के पास पहुँच गये। नारद को देखकर भगवान ने कहा-हे नारद! तुम भी नारायण-2 का नाम बोलना छोड़कर 'बचाओ-बचाओ' बोलना आरंभ करदो। जैसे आजकल मृत्युलोक से केवल 'बचाओ-बचाओ' की ध्वनियां ही सुनाई दे रही है। भगवान की रहस्यमयी वाणी को सुनकर नारद, मुस्कराकर 'नारायण-नारायण' बोलने लगे। भगवान ने कहा-नारद पता लगाओ कि मृत्युलोक में क्या कष्ट है जो वहाँ का इंसान "बचाओ-बचाओ" की रट लगाने लगा है। भगवान के वचन सुन नारद ने कहा-भगवन! उन्हें शायद अब कोई भी नहीं बचा सकता, आप भी नहीं। अरे, ये क्या कहते हो! मैं भी नहीं! ये कैसे हो सकता है! हाँ भगवन, क्योंकि उन्होंने कर्म ही ऐसे किए हैं। भगवन बोले-चलो मान लेता हूँ पर ये तो बताओ, वे लोग किसे बचाने की कह रहे हैं। प्रभू तो सुनिये नारद ने कहा-" बेटी बचाओ, पानी बचाओ, जंगल बचाओ (पर्यावरण बचाओ) , बाघ बचाओ, गोरैया बचाओ...बचाने की सूची और भी लम्बी है भगवन... ये सब सुनकर भगवान स्वयं चिन्ता में पड़ गये और कहने लगे-नारद तुमने सच कहा, उन्हें अब मैं भी नहीं बचा सकता...