बड़बोला चूंचूं / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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“कुछ खाओगे? मेरे पास चने और मक्का के दाने हैं। गेहूं और धन की बालियां हैं। तरबूज के बीज हैं।” टिल्लू गिलहरी ने चूंचूं चूहे से कहा। चूंचूं मुंह बिचकाते हुए बोला,”हुअं। ये भी कोई खाने की चीज हैं। मुनक्के, किशमिश और बादाम खिलाओ तो बात बने।” बेचारी टिल्लू अपना सा मुंह लेकर रह गई। चूंचूं बड़बोला था। खुद को लाटसाहब समझता। एक दिन चूंचूं पैदल जा रहा था। टिल्लू बोली,”चलो। मेरी साईकिल में बैठ जाओ।” चूंचूं ने मुंह बनाते हुए नजरें पफेर लीं। बोला,”तुम्हारी खटारा साईकिल तुम्हें मुबारक। मुझे तो ए.सी. कार में बैठने की आदत है।” टिल्लू चुपचाप आगे निकल गई।

सर्दी आने वाली थी। हर कोई सिर छिपाने का ठिकाना ढूंढ रहा था। जौली चूज़े ने पूछा तो चंूचूं बोला,”घास-फूस के घर भी कोई घर होते हैं। अरे! घर हो तो आलीशान। नहीं तो नहीं।” घोंघे ने चिढ़ाया,”चूंचूं भाई। जब तक आलीशान घर नहीं बन जाता, तब तक किसी कोटर में ही छिप जाओ।”

बारिश आई तो सब अपने-अपने घरों में चले गए। चूंचूं भीगता रहा और बीमार पड़ गया। पिफर अचानक भीषण गर्मी पड़ी। पानी के स्रोत सूख गए। प्यास से सब बेहाल थे। बारिश का रुका हुआ पानी एक जोहड़ में बचा हुआ था। सब उस पानी को उबाल कर पी रहे थे। चूंचूं चूहा दौड़ रहा था। टिल्लू बोली, ”चूंचूं। प्यास लगी होगी। उबला पानी पियोगे।” चूंचूं अपनी आदत के अनुसार बोला,”हुअं। मैं मिनरल वाटर पीता हूँ। अगर कोल्ड ड्रिंक है तो दो।” तभी चूंचूं का पैर लड़खड़ाया और उसके पांव में चोट लग गई। कई दिन उसे बिस्तर पर बिताने पड़े। भूख-प्यास से उसका बुरा हाल था। एक रात वो अंधेरे में उठा। थके हारे चूंचूं को जोहड़ के पानी से प्यास बुझानी पड़ी। बिना उबला पानी पीने से चूंचूं बीमार हो गया। मगर उसकी हेकड़ी तब भी नहीं गई।

समय गुजरता गया। चूंचूं ने लॉटरी का टिकट खरीदा था। उसकी लॉटरी लग गई। टिल्लू ने सुझाव दिया,”लॉटरी के रुपये संकट के लिए बचाकर रखना।” मगर चूंचूं ने सारे रुपये मकान बनाने में खर्च कर डाले। मकान क्या बना। चूंचूं घमण्डी हो गया। उसके पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। अपने आगे वह किसी को कुछ नहीं समझता। अपने घर बुलाना तो दूर वह किसी को घर के आस-पास भी पफटकने नहीं देता। एक ही बात कहता,”बुरी नज़र से मेरे घर को देखोगे, तो आँखें नोच लूंगा।”

हर दिन एक जैसे नहीं रहते। बुरा समय बता कर नहीं आता। एक दिन चूंचूं के घर में भीषण आग लग गई। चूंचूं का मकान धूं-धूं कर जलने लगा। टिल्लू ने देखा तो वह चीखी,”चूंचूं। जोहड़ के पानी से आग बुझाओ।” चूंचूं बोला,”जोहड़ का पानी गंदा है। मेरा घर गंदा हो जाएगा।” टिल्लू गिलहरी बोली,”चूंचूं। पागल मत बनो। आग बुझाने के लिए कैसा भी पानी हो, उससे क्या पफर्क पड़ता है।” आग में झुलसता हुआ चूंचूं बोला,”गंवारों जैसी बात मत करो। पफायर ब्रिगेड की गाड़ी बुलाओ। वो सापफ पानी से मेरे घर में लगी आग को बुझाएंगे।” फायर ब्रिगेड की गाड़ी सायरन बजाती हुई आई। मगर तब तक देर हो चुकी थी। चूंचूं का बड़बोलापन उसे ले डूबा। उसका घर जलकर खाक हो चुका था।