बड़े अच्छे लगते हैं... और तुम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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एक बहुत सुन्दर गीत है। बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियाँ, ये रैना, और... तुम। अक्सर सोचती हूँ। क्या ये नदियाँ, धरती, पहाड़ और आसमान हमेशा ही बड़े अच्छे लगते हैं? और ये इनके साथ ये 'तुम कौन है? इस 'तुम को आखिर में क्यों रखा गया। जबकी मुझे लगता है कि। ये सारा अच्छापन और पूरा सच्चापन इन्हीं 'तुम की वजह से है।

सोचो, ये नदियाँ, पहाड़, पंछी, फू ल और तारे-सितारे तो शाश्वत हैं फिर इस दुनियाँ के सभी लोगों को ये बड़े अच्छे क्यों नहीं लगते? मुझे तो लगता है इस सारी दुनिया की हर चीज तभी खूबसूरत है। जब आपके जीवन में कोई 'तुम हो। मेरे आपके सबके जीवन में इस 'तुम की वजह से ही जिन्दगी का गीत पूर्ण होता है।

जब जीवन में 'तुम हो तो फू लों में खुशबू महकती है। बहता पानी नदियाँ लगता है। खुरदुरी, पथरीली धरती सौंधी महक देने लगती है। पेड़ों पर बैठे पंछियों की भाषा समझ में आने लगती है। अपने आसपास पल रहे सभी रिश्ते सच्चे लगने लगते हैं। ऐसा क्यों हुआ अचानक कभी सोचा है? हमारे मन की दहलीजों पर जब कोई आहट होती है। जब कोई अपने कदमों के गहरे निशान बनाने लगता है, दिल की जमी पर फिर हमें समझ आता है कि सागर खारा होते हुए भी नदियों को बड़ा अच्छा क्यों लगता है? रात के सन्नाटों में लहरें जड़ किनारों के कानों में जा-जा यही कहती होगी ना। ओ किनारों तुम कितने जड़ हो बहते क्यों नहीं मेरे साथ और फि र किसी दिन कोई किनारा चुपके से लहरों के साथ बह जाता होगा ये कह कर की बड़े अच्छे लगते हो। तुम। किसी बड़े वृक्ष के तने से लगी हुई कोई कोमल लता भी तो हौले-हौले यही कहती होगी ना की बड़े अच्छे लगते हैं ...।

सुबह-सुबह, पेड़ों की पत्तियों पर जो अनगिनत बूंदें दिखती हैं ना कभी उन्हें ध्यान से देखिएगा किसी ने रात को बड़े प्रेम से लिखा होगा। बड़े अच्छे लगते हैं ...सुबह सूरज की गर्मी से वो बूंदें वो स्पर्श पिघल जाते हैं। जैसे जि़न्दगी की धूप हमारे जीवन से प्रेम, स्नेह, आत्मीयता को पिघलाकर हममें सूखापन भर देती है ये सूखापन ही हमें खुरदुरा बनाता है। मार डालता है और भीतर का गीलापन, भीतर की नमी हमें जि़ंदा रखती है।

जब तक हमारे मन के अन्दर गीलापन नहीं होगा तरलता नहीं होगी सरलता नहीं होगी, बहाव नहीं होगा, प्रवाह नहीं होगा। हम किसी से जुड़ ही नहीं सकते और ना कोई अच्छा लगेगा कभी हम कभी भी सुन्दरता को महसूस नहीं कर सकते।

इस गीलेपन को बचा लिया होता तो आज दुनिया में इतने संदेह, शक, फरेब, अविश्वास और आतंक नहीं होते।

हरेक को नदिया, धरती, आसमान बड़े सुहाने, बड़े अच्छे लगते। इस सुन्दर दुनिया को देखने के लिए सुन्दर आंखें और सुन्दर मन चाहिए और इक 'तुम भी चाहिए। वो 'तुम जो आपमें आपके जि़न्दा होने का अहसास भर दें।

आपके अन्दर लहरों को तरंगों को जन्म दें, जिसे आप अपनी जि़न्दगी के गीत में शामिल कर सके। जिसके आने से आपको सूरज की धूप ठंडक पहुंचाए और जिसके समीप जाने पर बर्फ भी सुलगती-सी महसूस हो। जिसे सोचने के बाद, आपकी सोच बदल जाए, मन बदल जाए उस तुम का होना लाजमी है जिसके होने से आपकी आँखों में चमक और होठों पर मुस्काने खिल जाएं।

वो 'तुम हम सबके पास है आसपास है, लेकिन क्या हमने कभी उनसे कहा-(उस 'तुम से कहा?) कि ये सारी दुनिया के झन्झटाये उलझने। ये परेशानियाँ। ये जिम्मेदारियां। ये मजबूरियां। ये दुशवारियाँ, दूरियाँ। सिर्फ इसलिए अच्छे लगते हैं, क्योंकि तुम बड़े अच्छे लगते हो।

और हाँ ये दौलत। ये शोहरत। गाडिय़ां, बंगले, बैंक अकाउंट सब कितने झूठे हैं। मगर सच्चे लगते हैं ...ये आंखें, वो बातें, वो शिकायते, वो झगड़े और ...और ...और ...तुम।

नहीं कह पाए आज तक तो आज ही कह दीजिये। अच्छा लगता है, कहना भी और सुनना भी कि। बड़े अच्छे लगते हैं ...और तुम।