बड़ो का बड़प्पन / बालकृष्ण भट्ट

Gadya Kosh से
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महाराज पंचम जार्ज का भारत में पदार्पण बड़ों के बड़प्‍पन का उदाहरण हो गया। जिससे सिद्ध हो गया कि जो बड़े हैं उनमें कोई बात अवश्‍य ऐसी रहती है जिससे वे बड़े कहाते हैं - कर्जन की कुटिल नीति तथा कर्जन अनुगामियों के विषय शासन से संतापित भारत को श्रीमान को आगमन वैसा ही सुखद हुआ जैसा ग्रीष्‍म के प्रचंड ताप से संतापित धरती को वर्षाकाल के नव मेघोदय से होता है। भारतीय प्रजा के नेत्रों में एक ऐसी रसांजन शलाका सी फेर दी गई कि कर्जनी शासन की पीड़ा से जो चकाचौंथी हो रही थी वह दूर हुई। ब्रिटिश जाति के उदार शासन का क्‍या तत्‍व है प्रत्‍यक्ष दिखाई देने लगा ऐंग्‍लों इंडियनों के क्रूर और निठुर बर्त्ताव से हताश हो यही चित्त में जम गया था कि हम भेड़ बकरियों से गए बीते काठ की पुतली समान हैं जैसा नाच नचाना चाहें हमें वैसा ही नाचना पड़ेगा। सो बात अब न रही श्रीमान का सबों पर समभाव और सरल बर्ताव देखकर चित्त में ढाढस बँधा कि हम इतना दीन हीन नहीं हैं न निरे जानवर हैं वरन द्विपद के रूप में चतुस्‍पद न रह ईश्‍वर की सृष्टि में हम भी वैसा ही पंचेन्द्रियवान् मनुष्य हैं जैसा क्षिति तल पर और सब जाति के लोग हैं। हमारे भी मस्तिष्‍क है दिमागी केबत हमें भी वैसी ही हासिल है जैसा इस समय के सभ्‍यताभिमानियों को है। उदयपुर के महाराणा के साथ श्रीमान का मैत्री बर्ताव बड़प्‍पन के उदार भाव की परख हुई। सिसोदिया कुलभूषण राणा भी इस समय क्षत्रियों की मानमर्यादा की कसौटी हुए। छोटे-बड़े बहुतेरे राजा महाराजा हैं पर अपने पूज्‍य पूर्वजों के प्रण का प्राणपण से निबाहने वाले प्रताप के वंशधर प्रतापी राणाही केवल देखने में आए। इतने बड़े सम्राट का दिल्‍ली के एक-एक कुलियों से स्‍नेहपूरित बर्ताव बड़प्‍पन का उद्गार नहीं तो और क्‍या है? एक छोटा सा जमींदार अपनी जमींदारी के घमंड से चूर रह बड़ों को भी अपने से छोटा ही मानता है तब क्षुद्र कुली और मजदूर किसान बेचारे कहाँ रहे। अनुमान होता है कि इससे श्रीमान को विदित हो गया होगा कि यहाँ पुलिस तथा अन्‍य कर्मचारियों को कैसा अत्‍याचार पूरित निठुर बर्ताव लोगों के साथ रहता है। जिसे काँच समझ रखा था वह बड़े दाम का हीरा निकला, कर्जन के कोरे दरबार से चित्त में ऐसी छनक हो गई थी कि यही विचार दृढ़ हुआ कि यह सब हिंदुस्‍तान के कई करोड़ के स्‍वाहा होने का सामान रचा जा रहा है। पर 'आफलोदय कर्मणां' वाली नीति के अनुसार वहाँ कुछ और ही बात प्रकट हुई। महाराजा युधिष्ठिर के राजसूय की एक दूसरी प्रतिकृति देखने में आई। दिल्‍ली के दरबार में एक-एक राजाओं से शिष्‍टाचार का बर्ताव, बड़ी से बड़ी उपाधि का प्रदान, वंग विच्‍छेद का तोड़ देना इत्‍यादि बातों से यही चित्त चाहता है कि ऐसे सम्राट युग-युग जीते रहे उन के छत्र की छाया सदैव हम पर बन रहे और इसी को बड़ों का बड़प्‍पन कहेंगे।