बण्टा भाग-2 / अमरेन्द्र

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बण्टा के आय पच्चीसमोॅ दिन बीती रहलोॅ छै, इस्कूली में ऐबोॅ। एक-एक लड़का सें ओकरोॅ घन्नोॅ परिचय होय गेलोॅ छेलै आरो इस्कूली सें गायब रहै के एक-एक गुर सें ऊ परिचित होय चुकलोॅ छेलै।

इस्कूल सें गायब रहै के एकेक तरीका ओकरोॅ नसे-नस में उतरी गेलोॅ छेलै। हुन्नें गुरु जी केॅ कही दै कि माय के तबीअत खराब छै आरो घरोॅ में आबी केॅ कही दै कि ओकरोॅ ओटी विहाने से दरद करी रहलोॅ छै, नै रहलोॅ गेलै तेॅ इस्कूलोॅ सें चल्लोॅ ऐलियै।

आरो ऊ दिन छुट्टिये-छुट्टी रहै छेलै बण्टा लेली।

पचरासी कभी-कभार सोचबो करै कि आखिर आयकल बण्टू के ओटी में दरद कैन्हें रही-रही केॅ उठी जाय छै। वैनें ई बातोॅ पर बण्टू के माय सें एक-दू दाफी बातो करलेॅ छेलै। मतरकि बण्टामायं ई कही केॅ भरम मेटी देलकै कि घरोॅ में रहै छेलै तेॅ कुछ न कुछ मुँहोॅ में देतै रहेॅ, आबेॅ तीन-चार घण्टा निराहारै रहै लेॅ लागै छै, तेॅ कुछ बुझैतें होतै। अभ्यास होय जैतै, तेॅ सब ठीक होय जैतै।

मजकि हौ दिन आबै के नौबते नै ऐलै। बण्टा के घरौवा नाम एक छौंड़ा, दू-चार आरो छौड़ां केॅ बताय देलकै, "अरे एकरोॅ नाम ध्रुव कुमार थोड़े छेकै, है तेॅ ओकरोॅ बाबू के गढ़लोॅ नाम छेकै, जे ई इस्कूली में लिखाय देलेॅ छै। एकरोॅ असली नाम तेॅ छेकै बण्टा।"

बस की छेलै, तखनिये सें बण्टा ध्रुव कुमार के जग्घा में बण्टा बनी गेलै। ई बात जबेॅ गुरु सिनी के कानोॅ में गेलै, तेॅ गुरुवो सिनी के जीहा पर धु्रव कुमार के घरौवे नाम चढ़ी गेलै।

आबेॅ भले गुरुजी आरनी केॅ ई बात कचोटै वाला नै लागेॅ, मजकि बण्टा तेॅ भीतरे-भीतर कुढ़ी केॅ रही जाय, जखनी कोय गुरु जी पचास चटिया के बीचोॅ में ओकरा बण्टा कही दै। "एकरा सें की होय छै कि ओकरोॅ असली नाम बण्टा छेकै, ध्रुवकुमार नये नाम छेकै तेॅ की। आबेॅ असली नाम हमरोॅ यहेॅ भेलै।" वैं मनेमन सोचै।

एकरोॅ सें ज़्यादा बण्टा केॅ दुखमोचना सें चिढ़ हुऐ, जे दू-चार छौड़ा केॅ एकठो फैंकड़ा सिखाय देलेॅ छेलै, आरो ऊ छौड़ा वकत-कुवकत वहेॅ फेंकड़ा दुहरावेॅ लागै—

जेकरोॅ नाम छै बण्टा

वैं की पढ़थै, घण्टा।

दुखमोचना इस्कूल भरी में सबसें ज़्यादा पढ़ै-लिखै में तेज छेलै, यै लेली ओकरोॅ सब पर धौंस भी चली जाय। बदमासियो करै तेॅ कोय गुरु जी ओकरा मारै नै।

वही एक हेनोॅ लड़का छेलै, जे अकल्ले रिक्शा पर चढ़ी केॅ आबै। बाप कचहरी में नामी बड़ा बाबू छेलै। दुखमोचन के बाबू हफ्ता में एक दिन ज़रूरे इस्कूल आवी जाय। आबै, तेॅ लागै जेना—इस्कूल इस्पेक्टर आवी गेलोॅ रहै। देखथैं, सब गुरु जी पैरड लेली खाड़ोॅ, जेना सिपाही रहेॅ।

जाय के पहलें सब गुरु जी केॅ ज़रूरे हुनी चाय-पान कराबै। यहा सें दुखमोचन के एक दुसरे रं के नवाबी छेलै, इस्कूली में।

लेकिन बण्टा केॅ एकरा सें की। ऊ दिन दुखमोचना के पकिया साथी गरीबा इस्कूल सें लौटी रहलोॅ छेलै।

बैशाखोॅ के शुरुआती दिन, मतरकि रौद तेॅ जेना देह जराय दै वाला।

कण्ठ सूखेॅ लागलै, तेॅ गरीबा इस्कूली संे आगू पचास हाथ दूरी पर गड़लोॅ चापाकल के नगीच खाड़ोॅ होय गेलै आरो काॅपी-किताब पेटोॅ में खोसी केॅ चापाकल के हैंडिल ऊपर उठाय केॅ फेनू नीचें तांय दबाय देलकै। पानी निकललै, तेॅ आगू बढ़लै—चुरु लगाय लेॅ, मतरकि तखनी तांय तेॅ पानी सोंऽऽऽ के आवाज करतें चापाकल के भीतर घुसी गेलै। वैं फेनू सें वहेॅ रं आपनोॅ देह के सौंसे भार देतें हैंडिल उठैतें ओकरा नीचेॅ करी देलकै। अबकी पहिलका सें ज्यादाहै पानी निकललै, लेकिन जब तांय कि चापाकल के मुँहोॅ सें आपनोॅ चुरु सटैतियै, अबकियो दाफी पानी वहेॅ रं सोंऽऽ करतें चापाकल के नीचेॅ उतरी गेलै।

बण्टा दूरे सें खड़ा होय केॅ तमाशा देखी रहलोॅ छेलै। ओकरा भीतरे-भीतर गुदगुदी होय रहलोॅ छेलै कि बच्चू फेरोॅ में पड़लोॅ छै। वैं बोलैबोॅ करतियै केकरा, ओकरोॅ सिवा तेॅ आरो वहाँ पर कोय छेवो नै करलै।

दुखमोचनें आँख उठाय केॅ इस्कूली दिश देखलकै, शायत कोय लड़का इस्कूली सें अभी निकलतें रहेॅ। मतरकि वहाँ कोय नै छेलै। एकदम सून-सपाट होय गेलोॅ छेलै।

दुसरोॅ दिश नजर घुमैलकै तेॅ ओकरोॅ नजर बण्टा पर पड़लै। सोचोॅ में पड़ी गेलै—पुकारौं कि नै पुकारौं। कि हुन्नें सें बण्टा पहिलें बोली पड़लै "की बराय दियौ की?" आरो दौड़ले-दौड़ले चापाकल लुग आबी गेलै।

दुखमोचना केॅ प्यासे एत्तेॅ लागलोॅ छेलै कि ऊ कुच्छू बोलै के स्थितिये में नै रहै। हुन्नें जेन्हैं बण्टां सिलोट जमीन पर राखी केॅ हैंडिल दोनों हाथोॅ सें धरलकै कि हुन्नें दुखमोचनो चापाकल के मुँहोॅ सें आपनोॅ दोनों हाथ केॅ दोना रं बनैतें सटाय देलकै।

ओकरोॅ हाथ तेॅ ज़रूरे चापाकल के मुँहोॅ सें सटलोॅ छेलै, मजकि नजर बण्टाहै दिश तनलोॅ ऊपर उठलोॅ कि जल्दी सें वैं हैंडिल कैन्हें नी दबाय रहलोॅ छै। हुन्नें बण्टा के मनोॅ में तेॅ एक दूसरे बात घुमड़ी रहलोॅ छेलै। वैनें हैंडिल केॅ हौले-हौले एक-दू दाफी ऊपर-नीचें करलकै आरो फेनू एक बारगिये हेनोॅ जोरोॅ सें दबाय देलकै कि पानी होॅ-होॅ करी केॅ बाहर निकली ऐलै।

हौ पानी दुखमोचना के दोना नाँखी बनलोॅ हाथोॅ सें बाहर छिलकी केॅ ओकरा सौंसे मुँहोेॅ केॅ भिगैतें, कालर, जेब, पैंट, सबकेॅ भिंगाय देलकै। अकबकाय केॅ सोझोॅ होलै, तेॅ मुंहोॅ-गर्दन के पानी टघरी केॅ पैण्टोॅ में खोसलोॅ काॅपी-किताब सबकेॅ सरगद करी देलकै।

दुखमोचना के देखै लायक स्थिति देखी केॅ बण्टा भीतरे-भीतर गनगनाय उठलै, मतरकि चेहरा पर हेने कुछ बनावटी भाव लानलेॅ होलोॅ छेलै, जेना—यैमें ओकरोॅ कोय दोष नै रहेॅ आरो ई बात के ओकरोॅ दुक्खो बहुत रहेॅ।

हुन्नें दुखमोचना के मूं गोस्सा सें तमतम करी रहलोॅ छेलै। प्यास-त्यास तेॅ कखनिये खतम होय चुकलोॅ छेलै।

ओकरोॅ ई हालत देखी केॅ बण्टा केॅ थोड़ोॅ टा कचोट होलै, तेॅ कहलकै, "हम्में नै जानलियै कि हैंडिल दबैला सें पानी हेना केॅ होहाय जैतै, अच्छा अबकी हौले-हौले चलैवौ। एत्तेॅ तेॅ धूप छै। पाँचे मिनटोॅ में कमीज-पैंट सुखी जैतौ। बस्ता पेटोॅ सें निकाली केॅ धूपोॅ में राखी दैं।"

मतरकि दुखमोचना बण्टा के एक्को बातोॅ के कोय जवाब नै देलकै आरो पेटोॅ के आगू, पैंटोॅ में खोसलोॅ बस्ता निकाली केॅ सीधे घोॅर दिश बढ़ी गेलै।

आबेॅ बण्टा केॅ आवै वाला खतरा के आभास हुएॅ लागलै। "ज़रूर वैं ई बातोॅ के बदला लेतै। हेन्होॅ गुम्मी साधी केॅ कैन्हें गेेलै। मतरकि यैं करै की पारेॅ। है तेॅ हुएॅ नै पारेॅ कि ऊ हमरा सें भिड़तै। एक्के पटकनिया में तेॅ सब गुर्री भुतलाय जैतै...तबेॅ ई हुएॅ पारेॅ कि वैं पीछू सें लंग्घी मारी देॅ आरो हेन्होॅ जग्घोॅ मारेॅ, जहाँ कि कादो-कीचड़ रहेॅ।" ई बात सोचिये केॅ बण्टा एक मिनटोॅ लेॅ एकदम सावधान होय गेलै।

मजकि वहाँ आबेॅ कोय नै छेलै। दुखमोचना आँखी सें ओझल होय गेलोॅ छेलै।

बण्टां नीचें राखलोॅ सिलोट-पेन्सिल उठैलकै आरो आपनोॅ घोॅर लगे छड़पनिया दै देलकै।

घोॅर तेॅ आबी गेलै, मजकि दोसरोॅ दिन इस्कूल जाय केेॅ ओकरोॅ हियाव नै हुऐ. बण्टां मने-मन सोचै, "दुखमोचन ज़रूर बदला लै के कोय तरीका ढूंढतेॅ होतै, आरो केना केॅ लेतै, ई कहना मुश्किल।" सोचतें-सोचतें बण्टा हेनोॅ कुछ सोची लै कि सोचियै केॅ ऊ डरी उठै, वैं मने-मन सोचलकै, "हुएॅ सकै छै, वें गुलेली सें गोली चलाय दै आरो गुलेली के गोली ओकरोॅ कोकड़ी, पीठी आकि गोड़े सें लगी गेलै, तबेॅ तेॅ बाप रे बाप, दस दिन खटिया सें सटलोॅ रहोॅ। एक दाफी गुलेली सें कस्सी केॅ गोली वैं एक ठो पठिया पर चलाय देलेॅ छेलै। आधोॅ घंटा तक ऊ पठिया वहीं पर छटपटैतें रही गेलै। ऊ तेॅ केकरो पता नै चललै, नै तेॅ वहेॅ दिन हमरा निनौन होय जैतियै।"

गुलेल के बात सोचतैं ओकरा लागलै कि एक हनहनैतें ऐतें गोली ओकरोॅ पनखोखा सें लागलोॅ छै आरो ऊ छटपटावेॅ लागलोॅ छै। बण्टा एकदम सें सिहरी गेलै। सोचलकै, "नै, ऊ इस्कूल नै जैतै। कम-सें-कम दू-तीन दिन तक नहिये जैतै। तब तांय दुखमोचना के गोस्सा ज़रूरे उतरी जैतै। फेनू, की हम्में मारलेॅ छियै, की पीटलेॅ छियै? जों पानी होहाय केॅ निकली गेलै तेॅ, हमरोॅ की दोष।" वैंनें आपना केॅ निर्दोष दिखैतें मन केॅ ढाढस बंधैलकै कि काहीं कुछ नै होतै।

आरो यहेॅ सोची केॅ कि कांही कुछ नै होतै, वैनें काँखी में सिलोट-किताब दबैलकै आरो दोसरोॅ दिन इस्कूली दिश चली देलकै। दूरे सें जखनी ओकरोॅ नजर चापाकल पर पड़लै, ओकरोॅ आँखी में कलकोॅ वाला घटना घूमी गेलै। होहैतेॅ पानी आरो दुखमोचन केरोॅ सरगद होलोॅ कमीज, पैंट, बस्ता। बण्टा के ठोरोॅ पर हस्सी फैली गेलै।

ऊ मने-मन गुदगुदैतें इस्कूली के पिण्डा तांय पहुँचलै। ओकरा घोर आचरज होलै कि एक भी बच्चा हल्ला-गुल्ला नै करी रहलोॅ छेलै आरो दुखमोचन, सब लड़का सें अलग, ऊ मरखन्नोॅ मास्टर जमुआर लुग बैठलोॅ होलोॅ छेलै, जेकरोॅ मार सें यमराजो थरथर काँपै छेलै।

अभी बण्टा पिण्डा के ऊपर चढ़लोॅ नै होतै कि जमुआर गुरु जी झपटी केॅ ओकरा धरलकै आरो बिना कुछ पूछलैं छड़ी सें सिटपिटाय देलकै वंै तब तांय सिटपिटैेतें रहलै, जब तांय कि जमुआर गुरु जी थक्की नै गेलै।

बण्टा कटलोॅ कबूतर नाँखी छटपटैतें रहलै, मतरकि कोय मास्टर बचाय लेॅ नै ऐलै। लड़का सिनी केॅ तेॅ खैर डरोॅ सें जाने निकली रहलोॅ छेलै; ऊ की बचाय लेॅ ऐतियै!

जबेॅ जमुआर मास्टर मारतें-मारतें हफसेॅ लागलै, तेॅ मारबोॅ छोड़ी देलकै आरो एक दिश राखलोॅ कुर्सी पर बैठी रहलै। बण्टा कमीजोॅ सें, बाँही सें, आरो अंगुरी सें लोर पोछतें होनै केॅ खाड़े रहलै। एक घण्टा नै, दू घण्टा नै, तीन घण्टा नै, चार-चार घण्टा, जब तांय कि आखिरलका घण्टी जोरोॅ सें टनटनाय नै उठलै।

घण्टी के टनटनैतें सब चेला-चटिया सिलोट, बस्ता, बोरिया लेलेॅ फुर्र पार होय गेलै। मतरकि बण्टा होनै केॅ खाड़ोॅ रहलै। ओकरा साहस नै होलै कि आपनोॅ सिलोट-काॅपी उठावेॅ।

मतर है सब कत्तेॅ देर होतियै। आखिर गुरुओ आरनी केॅ तेॅ जाय के हड़बड़ी छेवे करलै, से जमुआर मास्टर नें कर्र्रो ॅ बोली में कहलकै, "देख बण्टा ई सब कुर्सी घोष बाबू के दुआरी पर पहुँचाय के काम तोरोॅ आरो भोरोहो आवी केॅ तोर्है सबटा कुर्सी यहाँ लानी केॅ राखना छौ। बस ई समझैं कि आय सें ई काम तोरोॅ होलौ। समझी गेलैं। जो, एक-एक कुर्सी केॅ घोष बाबू के ऐंगना में रखी आव, तबेॅ घोॅर जय्यैं।" ई कही केॅ जेन्हैं जमुआर गुरु जाय लेॅ उठलै कि आरो सिनी गुरुओ उठी केॅ आपनोॅ-आपनोॅ रस्ता पर बढ़ी गेलै।

बण्टा पीछू सें सबकेॅ जैतें देखतें रहलै। वैनें दायां हाथ घुमाय केॅ पीठी पर राखलकै, तेॅ एकबारगिये तिलमिलाय गेलै। हाथ वहीं पर पहुँची गेलै, जैठां छड़ी सें चमड़ी उखड़ी गेलोॅ छेलै। ऊ तुरत्ते बत्ती नाँखी तनी गेलै आरो दर्द खतम होय के इन्तजारी में आँख मुनी लेलकै।

अंगुरी छुवाय गेला के कारणें जे घाव लहरी उठलोॅ छेलै, ऊ जेन्है केॅ कम होलै, बण्टा सब कुछ भुलाय केॅ कुर्सी दिश बढ़लै आरो एकेक केॅ घोष बाबू के दुआरी पर राखी ऐलै। अनदिना के बात रहतियै तेॅ कोय बात नै छेलै, मजकि इखनी तेॅ ओकरोॅ पीठी में जरियो टा झुकला सें दरद हुएॅ लागै। तहियो वैं पाँचो कुर्सी उठाय केॅ ठीक जग्घा पर राखी ऐलोॅ छेलै आरो फेनू बस्ता उठैनें आपनोॅ घोॅर दिश बढ़ी गेलै।

रस्ता में वैं कै दाफी आँखी के लोर दायां-बायां बाँही सें पोछलेॅ होतै, कहना मुश्किल। मतरकि घोॅर पहुँचतैं, ऊ एकदम गुम होय गेलोॅ छेलै। वैनें नुकाय केॅ कमीज खोललेॅ छेलै आरो जल्दी सें गंजी पिहनी लेलकै कि कहीं माय ओकरोॅ घाव नै देखी लेॅ। नै तेॅ पिटाय के कारण पूछतै। फेनू एक-एक बात खुलतै आरो बाबू केॅ जबेॅ मालूम होतै कि दुखमोचन साथें वैं की करलेॅ छै, तबेॅ पीठ सहलाय के बदला उल्टे बाबू ओकरा डंगैतै।

से बण्टा सबटा दरद घोंटी केॅ पीवी गेलै। साँझ केॅ ऊ खेलै लेॅ नै निकललै। डिजना, सिंघवा, भूधरा, दुआरी पर बुलाय लेॅ ऐवो करलै, तेॅ वैं यही कही केॅ सब दोस्तोॅ केॅ लौटाय देलकै कि गुरु जी ढेरे टास्क दै देलेॅ छै, सब केॅ पूरा करना छै, यै लेली आय खेलै लेॅ नै जैतै।

साथी सिनी केॅ आचरजे लागलोॅ छेलै, बण्टा के बात सुनी केॅ। मतरकि कुछ बोललै नै आरो दुआरी पर सें सब लौटी ऐलै। जखनी डिजना, भुदरा आरनी ओकरोॅ लुग गेलोॅ छेलै, तखनी सचमुचे में वैं कुछ सिलोटी पर लिखी रहलोॅ छेलै।

लिखतियै की, बस हिन्नें-हुन्नें टेढ़ोॅ-मेढ़ोॅ रेखा बनाय रहलोॅ छेलै आरो बनैतें-बनैतें एक ठो हेनोॅ नक्शा बनी उठलोॅ छेलै कि ऊ जेना कोय भूत रहेॅ।

बण्टा हठाते बड़ी सावधान होय उठलै। वैंने बड़ी ध्यान सें ऊ बनी गेलोॅ नक्शा केॅ देखलकै आरो कुछ देर तांय देखतें रहलै। फेनू वैं सिलोट केॅ कभी दायां दिश, कभी बायां दिश घुमाय केॅ ऊ नक्शा में बड़ोॅ-बड़ोॅ कान, बड़ोॅ-बड़ोॅ आँख बनैलकै। आँख के पिपनी सुइयाँ नाखी खाड़ोॅ-खाड़ोॅ। ऊपरलका ठोरी के ऊपर दोनों दिश दू बोढ़नी रं मूँछ आरो ठोरोॅ सें बाहर निकललोॅ भाला नाँखी वैं दाँत बनैलकै।

सबसे बाद में ओकरोॅ माथा पर बाल बनैलकै, ठीक होने, जेना कटैया के ढेरे गाछ उगी ऐलोॅ रहेॅ। बाल के दोनों दिश सांढ़ोॅ वाला भालाहै नाँखी निकललोॅ सींग।

नक्शा बनैलोॅ होलै तेॅ बण्टां ओकरा बड़ी गौर सें देखलकै। देखलकै तेॅ खुश होय उठलै। एकदम खुश। तबेॅ वैं मोटोॅ-मोटोॅ अक्षर में नक्शा के नीचू एक-एक अक्षर याद करी एकटा नाम लिखलकै—जमराज जमुआर गुरु जी.

बनैला-लिखला के बाद जबेॅ वैं गौर सें फेनू नक्शा देखलकै, तेॅ एकदम सें गदगदाय गेलै। जेना ओकरोॅ सबटा दरदे फुर्र पार होय गेलोॅ रहेेॅ।

कुछ देर तांय तेॅ फोटू केॅ देखत्हैं रहलै, फेनू सिलोट केॅ जमीन पर राखी केॅ दोनों मुट्ठी कस्सी लेलकै। दांत-मूँ किच्ची केॅ दोनों मुट्ठी तब तांय कसतें रहलै, जब तांय मुट्ठी में दरद नै हुएॅ लागलै।

साँझ उतरेॅ लागलोॅ छेलै। बण्टां बाबू के आवाज सुनलकै, तेॅ झट सना सिलोट के राकस केॅ मेटाय केॅ कोठरी दिश भागी गेलै आरो सिलोट बस्ता में नुकाय केॅ राखी देलकै।

हौ दिन ऊ खाय-पीवी केॅ सुतै लेॅ गेलै, तेॅ जल्दिये सुती रहलै। नैं तेॅ माय सें बिना कहानी सुनलेॅ सुतै नै।

बण्टामाय केॅ समझै में नै आवी रहलोॅ छेलै कि आखिर बण्टा एत्तेॅ भोरे-भोर इस्कूल कैन्हें जाय लेॅ मार करी रहलोॅ छै। हेनोॅ तेॅ कहियो नै होलै। आखिर पूछिये बैठलै, "अरे बण्टू, आय एत्तेॅ जल्दी इस्कूल जाय के कैन्हें धड़पड़ी छौ?"

बण्टाहौ जानै छेलै कि घरोॅ में कोय-न-कोय ई सवाल करतै ज़रूरे, से वैं पहिलै सें एकरोॅ जवाबो ढूंढी केॅ राखलेॅ छेलै। से, माय जेना केॅ पुछलकै, ऊ तेन्है केॅ बोली पड़लै, "आय गुरु जीं हमरा पर भार देलेॅ छै। घोष बाबू के यहाँ सें लै केॅ सबटा कुर्सी इस्कूली में हमरै राखना छै। यहेॅ लेॅ धड़पड़ी छै। गुरु जी आवै सें पहिलैं जे कुर्सी सबटो राखना छै।"

"ओ, इ बात छै" बण्टो माय निचिन्त होतें कहलकै, "तेॅ, बेटा जल्दी-जल्दी खाय ले। रातकोॅ रोटी तेॅ छेवे करौ, नोॅन, तेल लै ले, नैं तेॅ अचारी तेल के दू बूंदे डाली दैं। एकदम स्वादिष्ट होय जैतौ। खैलोॅ रहवे तेॅ हम्मूं निश्चिन्त रहवोॅ।"

अचारी के बात सुनथैं बण्टा के मुँहोॅ सें लार टपकी ऐलै, मतरकि वैं आपनोॅ जीहा पर काबुए राखवोॅ अच्छा समझलकै। ओकरा खूब याद छै कि यहेॅ अचारी के चक्कर में ऊ चक्कर खाय चुकलोॅ छै।

बात ई होलोॅ छेलै कि ओकरी माय बड़ोॅ-बड़ोॅ टिकोला के फाँक करी कुच्चा बनैलेॅ छेलै। रोज तेॅ आपने सामना में कुच्चा धूपोॅ में सूखै लेॅ दै, मतरकि हौ दिन बण्टामाय केॅ ज़रूरी कामोॅ सें पड़ोसी कन जाना छेलै। रिश्ता में पितियो लागै, केना नै जैतियै।

कुच्चा वाला बोय्यम धूपोॅ में राखी देलकै, आरो बण्टा केॅ बोललै कि देखत्हैं रहियैं—बकरी-चकरी मूँ नै दै दौ।

मतरकि बच्चा-बुतरु पर की भरोसोॅ, से बण्टामायं बण्टा के साथ-साथ बिलटाहौ केॅ कही देलकै, "बिलटू, ज़रा कुच्चा देखतें रहियैं—बकरी-चकरी मूँ नै दै देॅ। हम्में घण्टा-दू घण्टा मंे लौटवौ।" आरो ई कही केॅ ऊ ऐंगन सें बाहर निकली ऐलै।

ऐंगन के बीचोॅ में कुच्चा वाला बोय्यम, तेल सें चुपचुप चमकी रहलोॅ छेलै, आरो ओतन्हैं ओकरा देखी केॅ बण्टा के आँखो चमकी रहलोॅ छेलै। जत्तेॅ बोय्यम भरी तेल भरलोॅ छेले, ओत्ते हिन्नें बण्टा के मुँह भरी लार।

आखिर वैं कत्तेॅ देर टुकटुक कुच्चा केॅ देखतें रहैतियै। मन में ऐलै कि एकटा फाँक निकाली केॅ खय्ये लेवै, तेॅ माय केॅ की पता चलतै। से वैं बोय्यम के ढक्कन उठैलकै आरो एकटा फाँक मुँहोॅ में टप सना दै देलकै, जना कोय बगुलां पोठिया मछली धरी केॅ चोंच के भीतर करी लेलेॅ रहेॅ।

एकरोॅ बाद एक फाँक निकालियो लेलकै कि छहारी में बैठी केॅ आनन्द सें खैलोॅ जैतै। फाँक लै केॅ कपड़ा सें होनै केॅ बोय्यम रोॅ मूँ बांधलकै आरो बरण्डा पर बिछैलोॅ खटिया पर आवी केॅ बैठी रहलै।

बण्टा केॅ की मालूम छेलै कि ओकरोॅ करतूत सब बिलटां देखी रहलोॅ छै। आरो कोय बात होतियै तेॅ एकरोॅ शिकायत वैं मौसी सें कही केॅ बण्टा केॅ मारो खिलैतियै, मतरकि यहाँ तेॅ कुच्चा खाय के बात रहै। बिलटाहौ के मुँहौ में कुच्चा देखी केॅ लार आपन्हैं आवी रहलोॅ छेलै।

आबेॅ चूँकि बण्टा ओकरोॅ शुरुआत करी चुकलोॅ छेलै, यै लेली ओकरा कांही सें कोय खतरो नै बुझाय छेलै। ऊ तमतमैलोॅ बण्टा लुग ऐलै आरो कहलकै, "यहेॅ कुच्चा के रखवाली करी रहलोॅ छैं। खैबे तोहें, आरो ढेंस लागतै हमरा पर। मौसी ई मानतै कि हम्में नै खैलेॅ छियै? यहेॅ सोचतै कि सिखा-बुद्धि करी केॅ दोनों खैलेॅ होतै। आबेॅ जबेॅ तोरोॅ कारण हमरा पर शक करवे करतै, ढेंस लागबे करतै, तेॅ कैन्हें नी हम्मू कुच्चा खैय्ये लीयै। आरो हम्में देखलेॅ छियौ, तोहें दू-दू कुच्चा खैलेॅ छैं। तोहें दू कुच्चा, तेॅ तोरोॅ सें कोॅन मानै में हम्में कम। एक महीना के बड़ोॅ छियौ, से हम्में चार कुच्चा खैबौ।" एतना कही बिलटा दनदनैले बोय्यम दिश गेलै; बोय्यम के मुँहोॅ पर बान्हलोॅ कपड़ा केेॅ खोललकै आरो गिनी केॅ सीधे चार कुच्चा निकाललकै। बोय्यम के मूँ बान्हलकै आरो बण्टा लुग आवी केॅ एक-एक करी के चटकारा दै-दै खावेॅ लागलै।

बण्टा के मुँहोॅ के कुच्चा खतम होय चुकलोॅ छेलै। अब तांय जोहो जीहा पर थोड़ोॅ खटरस बचलोॅ छेलै, वहू आलोपित होय गेलै। मन में गोस्सो बढ़ी गेलै। सोची रहलोॅ छेलै, "बिलटा कत्तो आपनोॅ मौसेरोॅ-ऊसेरोॅ भाय रहेॅ, घोॅर तेॅ हमरे छेेकै आरो हमरे कुच्चा पर एकरोॅ हेनोॅ अधिकार। हम्में दू ठो खैबै, तेॅ यैं चार ठो खैतै।"

बण्टा गोस्सा सें तमतमाय उठलै आरो बिना कुछ कहले सीधे बोय्यम दिश दड़बनिया दै देलकै। मुन्हन खोललकै आरो दायाँ हाथोॅ सें एक बोकटोॅ कुच्चा निकाली केॅ बायां हाथोॅ सें जेना-तेना घुमाय केॅ मुन्हन बान्ही देलकै।

बरण्डा पर लौटलै, आरो बिलटा केॅ देखाय-देखाय काटी केॅ खाबेॅ लागलै। चाटी-चाटी केॅ खाय के सवाले नै छेलै, कैन्हें कि ओकरोॅ हाथोेॅ में कुच्चा के आठ-दस फाँक सें कम नै छेलै। तेल सें चपचपैलोॅ होला के कारण ऊ गरय मछली रं मुट्ठी सें फिसली रहलोॅ छेलै, जेकरा वैं बायां हाथ सें लैकेॅ मुँहोॅ में टप सें दै दै।

बिलटा के मोॅन तेॅ होलै कि ओकरोॅ हाथोॅ सें सबटा छीनी केॅ एक्के साथ आपनोॅ मूँ में राखी दै, मतरकि एकरोॅ ज़रूरते की छेलै, जबेॅ कि सामना में कुच्चा के खजाना राखलोॅ छेलै। वैनें बण्टा सें कहलकै, "एत्तेॅ-एत्तेॅ कुच्चा लेलैं, तेॅ कोय बात नै, मुन्हन तेॅ ठीक सें बान्ही देतियैं। ऊ की हम्में बान्हवै। अच्छा चलें, बान्ही दै छियौ।"

आरो बान्हैं सें पहिलें बिलटौ एक बोकटोॅ कुच्चा निकाली केॅ कुछ बायां हाथोॅ में राखलकै, कुछ मुँहोॅ में, आरो दोनों हाथोॅ के सहारा सें बोय्यम पर कस्सी केॅ मुन्हन बांधी देलकै; हेनोॅ कि बण्टा खोलेॅ नै पारेॅ।

मतरकि आबेॅ बण्टा केॅ वहाँ पहुँचै के ज़रूरते नै छेलै। अघाय गेलोॅ छेलै। आबेॅ तेॅ ऊ दोनों हाथ केॅ धरती पर रगड़ी-रगड़ी तेल-हल्दी केॅ मेटाय के कोशिश करी रहलोॅ छेलै कि माय केॅ पतो नै लागेॅ।

बिलटौं आपनोॅ हाथ-मूँ केॅ एक ठो फेकलोॅ कागज सें साफ करी, फेनू दोनों हाथोॅ केॅ धुरदौ सें रगड़ी लेलकै। भरपेट भोजें बण्टा और बिलटा के दोस्ती केॅ एकदम्म घन्नोॅ करी देलेॅ छेलै। दोनों भीतर सें गनगनाय गेलै। हेनोॅ भोज खाय के खुशी में दोनों में सें केकरौ ख्याले नै रहलै कि बोय्यम के कुच्चा आधोॅ सें अधिक ओराय चुकलोॅ छै।

हौ तेॅ बण्टामाय केॅ चिन्ता छेलै कि कहीं ऊ दोनों खेलै-कूदै में नै लागी गेलोॅ रहेॅ आरो हुन्नें बकरी बोय्यम लोढ़काय केॅ कुच्चा तितिर-बितिर करी देलेॅ रहेॅ। से ऊ पड़ोसी के यहाँ सें चल्लै तेॅ सीधे घोॅर दिश, एकदम धतर-पतर।

घरोॅ में घुसतैं ओकरा आँख बोय्यम पर पड़लै, तेॅ माथोॅ सन्न रही गेलै। ओकरा ई देखी केॅ आचरज होलै कि बोय्यम पर मुन्हन तेॅ ठीके-ठाक बन्धलोॅ छै, मतरकि कुच्चा एकदम अधियाय गेलोॅ छै।

बण्टामाय केॅ समझै में कुछुवे देर नै लागलै। ऊ सनसनैलेॅ बरण्डा पर ऐलै आरो बण्टा के दोनो हाथ लैकेॅ सूंघलकै। बण्टा के दोनों हाथ एकदम गमगम करी रहलोॅ छेलै। धुरदा पर रगड़ला सें की होतै, अचार के काहीं गन्ध जाय छै। हाथोॅ सें ज़्यादा कहीं मूँ महकी रहलोॅ छेलै।

हाथोॅ के हल्दी-तेल तेॅ केन्होॅ केॅ छूटी गेलोॅ छेलै, मतरकि ठोरोॅ पर तेल आरो हल्दी अलगे सें चमकी रहलोॅ छेलै।

बण्टौ केॅ समझै में देर नै लागलै कि आय ओकरोॅ मैय्ये हाथंे नै, बाबुओ हाथें निनौन छै। माय बाबू केॅ कहतै आरो फेनू ओकरोॅ कुच्चा के मजा आखिर में खट्टा होय केॅ रहतै।

माय के तमतमैलोॅ मूँ देखी केॅ बण्टा बिना मूँ खोलले बिलटा दिश कुल्होॅ उठैलकै आरो आँखी सें बार-बार इशारा करी बतैलकै कि एकरा में ऊ असकल्ले नै, बिलटौ शामिल छै।

आबेॅ यै में के कत्तेॅ शरीक छै, है तेॅ बण्टामाय केॅ पता लगैवोॅ कठिन छेलै। पतो लगाय केॅ की करतियै—आखिर बहिनबेटा छेलै बिलटा, ओकरा तेॅ नहिये मारेॅ सकै छेलै। की पता बिलटै के सनकैला पर बण्टाहौं कुच्चा खाय लेलेॅ रहै। बहुत सब अन्देशी केॅ बण्टामाय नें तेॅ बण्टा केॅ मारलकै, नै बिलटाहै केॅ कुछ कहलकै। बस बोय्यम उठैलकै आरो कोठरी के सबसें उपरलका ताखा पर राखी देलकै।

बण्टा हौ दिन केॅ भूलेॅ नै पारै छै। जबेॅ भी अचार लुग पहुँचै छै कि ओकरा कुच्चा वाला बात याद आवी जाय छै।

"अचार के तेल निकालेॅ पारवैं कि बोय्यमे गिराय देवैं। ठहर, हम्मी निकाली दै छियौ, हुएॅ सकै छै, तोहें सब्भे तेले नै होहाय केॅ राखी दैं।" बण्टा माय नें पीछू सें कहलेॅ छेलै आरो आपन्हैं सें तेल निकाली केॅ रोटी में मली देलेॅ छेलै, जेकरा बण्टा एक अखबारी में लपेटी केॅ बस्ता में राखी लेलकै आरो ई कहतें जल्दी-जल्दी निकली गेलै कि कुर्सी सड़ियैला के बाद वैं वाहीं बैठी केॅ खाय लेतै।