बण्टा भाग-3 / अमरेन्द्र

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घरोॅ सें चललै, तेॅ सीधे सरपट दौड़लेॅ इस्कूले जाय केॅ ऊ रुकलै। बस्ता काँखी पेटोॅ में दबाय के कोय सवाले नै छेलै। दौड़ै में गिरौ पारेॅ, से वैं बस्ता केॅ छाती में दोनों हाथोॅ सें कस्सी केॅ दबाय लेलेॅ छेलै।

इस्कूल पहुँचलै तेॅ वहाँ एकदम सुन-सपाट छेलै। एकदम सुनाफड़ में इस्कूलो तेॅ छलै। जब तांय इस्कूल के बच्चा आरो गुरु जी आवी नै जाय, हुन्नें एक्को आदमी नै दिखावै। हों, पीछू दिश एक बड़ोॅ रं पोखर ज़रूरे छेलै, जैमें भैंस सिनी हेलतेॅ रहेॅ। भैंसी केॅ हेलतें देखी केॅ बण्टा के मोॅन गदगद होय जाय। इस्कूल में छुट्टी होला के बाद ऊ कुछ-न-कुछ देर लेली पोखरी दिश ज़रूरे चल्लोॅ आवै। पानी में हेलतें भैंसी केॅ देखै, तेॅ ओकरोॅ मोॅन करै कि ऊ सीधे ओकरोॅ पीठी पर कूदी जाय। शायत कूदियो जैतियै, मतरकि पोखर तेॅ तीन मरद गड्ढा में छेलै। पता नैं भैंस कौन दिशा सें आरो केना घुसी जाय छै। वैं सोचै आरो घुरी आवै।

आय तेॅ इस्कूल ऊ बहुत पहिलें पहुँची गेलोॅ छेलै। ऊ पोखरियो दिश जाबेॅ पारै छेलै, मतरकि ओकरोॅ दिमागो में तेॅ तूफान उठी रहलोॅ छेलै, "बाप रे बाप, की रं मारलेॅ छेॅ मरखन्ना जमराज मास्टर नें। खेलरी उदारी देलेॅ छेॅ। ऊ तेॅ माय नें चूतड़ परकोॅ घाव नहिये देखलेॅ छै। देखतियै तेॅ की इस्कूल आवेॅ देतियै।"

बण्टा रोॅ मनोॅ में तूफान उठी रहलोॅ छेलै। वैनें आपनोॅ बस्ता इस्कूल के दीवारी सें सटाय केॅ राखलकै आरो घोष बाबू के दुआरी पर पहुँची गेलै।

काठोॅ के कुर्सी. बच्चा लेॅ भारी बोझोॅ सें कम नै छेलै। मतरकि बण्टा केॅ ऊ दिन कुर्सी सिनी होनोॅ भारी नै बुझैलै। ऊ कुर्सी के पीछू उल्टा दिशा सें खाड़ोॅ हुएॅ आरो पीठी पर कुर्सी केॅ डाली इस्कूल पहुँचाय दै। कुसी उठैला पर ऊ एत्तेॅ झुकी जाय कि कुर्सी ससरै के सवाले नै छेलै।

एक, दू, तीन, चार, पाँच। बण्टा पाँचो कुर्सी उठाय केॅ इस्कूली के बरण्डा पर राखी ऐलै आरो हिन्नें-हुन्नें देखी केॅ आहिस्ता-आहिस्ता पोखरी दिश चल्लोॅ गेलै। एकरा एकरोॅ सुधे नै छेलै कि रोटी के गंध पावी केॅ कोय कौआ, चिल्ला, कुत्ता ओकरोॅ बस्ता लै केॅ उड़ेॅ पारेॅ।

पोखरी दिश सें लौटलै, तेॅ आमोॅ के पत्ता में कुछ नुकैलेॅ ऐलै आरो एकेक कुर्सी पर हिन्नें-हुन्नें पत्ता केॅ घुमावेॅ लागलै, जेना—सिलोटी पर खल्ली सें कुछ लिखतें रहेॅ।

सब्भे कुर्सी पर कुछ-कुछ लिखला के बाद वैं आमोॅ के पत्ता इस्कूली के पिछुवाड़ी के झाड़ी में रिंगाय केॅ फेंकी देलकै। ऊ पत्ता कोय ढेपो थोड़े छेलै कि रिंगाय केॅ फेंकला सें दूर जाय केॅ गिरतियै। दू हाथ आगू उड़लै आरो फेनू नीचें गिरेॅ लागलै। ऊ तेॅ खैर तखनिये जोरोॅ के हवा उठलै आरो सब पत्ता सिनी उड़ियाय केॅ पोखरी में जाय गिरलै।

बण्टा केॅ निश्चिन्ती भेलै। लौटी केॅ ऐलै आरो बस्ता उठाय केॅ पिण्डा सें नीचंे उतरी गेलै। लड़का सिनी के ऐवोॅ शुरु होय गेलोॅ छेलै। मतलब कि गुरुओ जी केॅ आवै में आबेॅ देरी नै छेलै।

वैं सोचलकै—कुच्छू देर आरो रुकी जाँव, जब तांय गुरु जी आरनी नै आवी जाय छै, फेनू नै जानौं की सोचलकै कि ऊ चुपचाप वैठां सें खिसकी गेलै—आपनोॅ सब बस्ता-बोरिया समेटनेैं।

इस्कूली में ई नियम छेलै कि जब तांय प्रार्थना नै खतम होय जाय, तब तांय गुरुजी आरो चेला-चटिया बराण्डा के बाहरे रहै। बराण्डा के बाहरे प्रार्थना होय आरो यही लेॅ सब लड़का गुरु जी सिनी के आवै तांय बाहरे में धुर-फिर करतें रहै।

जबेॅ सब गुरु जी आवी गेलै, तेॅ प्रार्थना शुरु होलै। एक दिश गुरुजी सिनी आरो दोसरोॅ दिश सब लड़का। लड़का सिनी रेघाय-रेघाय गावी रहलोॅ छेलै—

ईश्वर अल्लाह तोरे नाम

सबकेॅ सन्मति दौ भगवान।

आरो जमुआर गुरु जी सब के बीच खोजी रहलोॅ छेलै बन्टा केॅ।

आखिर ऊ दिखाय कैन्हें नी रहलोॅ छै! आखिर गेलै कहाँ! कुर्सी सब आनले छै; हुएॅ सकै छै फेनू खाय लेॅ घोॅर चल्लोॅ गेलोॅ होतै। खाय केॅ आवी जैतै। सोची केॅ जमुआर गुरु जी निश्चिन्त होय गेलै।

हुन्नें प्रार्थना खत्म होलै तेॅ लड़का सिनी आपनोॅ-आपनोॅ जग्घा पर बैठै लेॅ दौड़ी पड़लै। गुरुओ आरनी आपनोॅ-आपनोॅ कुर्सी पर आराम सें बैठलै।

मजकि आय आराम वाला बाते कहाँ छेलै। कुछ देर बादे देह-हाथ चुनचुनाबेॅ लागलै। एक ठो के चुनचुनैतियै तेॅ कोय दुसरोॅ बात होतियै। यहाँ तेॅ सब गुरु जी के होने हाल छेलै।

पहिलें तेॅ केहुनिया नोचैबोॅ शुरु होलै, फेनू पीठ आरो चूतड़ साथे-साथ। सब गुरु जी परेशान—पहिलें पीठ नोचेॅ कि पहिलें जांघ। अजीब दृश्य होय गेलोॅ छेलै—कोय गुरु जी जांघ खोखरी रहलोॅ छेलै, तेॅ कोय दोनों हाथोॅ के पीछू करी पीठ, आरो कोय तेॅ कोहनिये भमोरै में लागलोॅ छेलै।

ई हालत देखी केॅ लड़का सिनी डरोॅ सें थरथराय रहलोॅ छेलै। जानें की होय गेलै गुरु जी सिनी केॅ। बात कुछुओ हुएॅ, मार तेॅ आखिर ओकरै सिनी के पड़तै।

क्लास में सब लड़का-बुतरु, जेठ के ताव में हक-हक करतें कबूतर, कौआ नाँखी चुप छेलै आरो गुरुजी आरनी सावन-भादो में कौआ-कबूतर नाँखी आपनोॅ देह-हाथ खुजलावै में बेहाल।

बण्टा मनेमन अनुमान लगैलकै—हुरकुस्सी के असर चढ़त्हैं सब गुरु जी ओकरोॅ घोॅर दिश दौड़तै आरो ओकरा घरोॅ सें खीची केॅ धुनाटतै। से वैं इस्कूल खत्म होला के बादे घोॅर लौटवोॅ भला समझलकै।

वहेॅ होलै। बलुक इस्कूल खत्म होला के आधोॅ घण्टा बादे ऊ घोॅर दिश चललै। एकदम सावधानी पूर्वक। कि "कहीं कोय गुरुजी रास्ता में नै मिली जाय। पता तेॅ लगिये गेलोॅ होतै कि देह-हाथ नोचवाय के की कारण छेकै आरो केकरोॅ ई करतूत होतै। हमरा मार पड़लोॅ ढेरे दिन थोड़े होलोॅ छै। मिनिट में सब पता लागी गेलोॅ होतै। वहू में कि हम्में क्लासो सें गायब छेलियै, तेॅ शंका केकरौ आन पर जाय के कोय सवाले नै उठै छै।"

यहेॅ सोचतें-विचारतें ऊ आहिस्ता-आहिस्ता आपनोॅ घोॅर दिश बढ़ी रहलोॅ छेलै कि हठाते ओकरोॅ गोड़ घरोॅ सें दू बाँस पीछुवे थमी गेलै। एकबारगिये। देखलकै कि सब मास्टर तेॅ ओकरे घरोॅ के बाहर खड़ा छै। साथे-साथे चैधरी काकाहौ दू-चार आदमी साथें खड़ा छै।

बण्टा के देहोॅ में जेना करेण्ट लागी गेलोॅ रहेॅ आरो गोड़ोॅ में जना पंख। ऊ सीधे उल्टे पाँव हौले-हौले बसम्बिट्टी दिश ऐलै आरो पैंटोॅ में बस्ता केॅ आधोॅ खोसी केॅ, लगै उड़ौन सबौर दिश दै देलकै। बंसबिट्टी पार करी केॅ लीची बगान, फेनू आम बगीचा, आरो वहीं सें लोदीपुर वाला एकपैरिया धरी केॅ सबौर दिश एक्के साँस भागलोॅ चल्लोॅ गेलै, जब तांय ऊ सबौर नै पहुँची गेलै।