बण्टा भाग-6 / अमरेन्द्र

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घोषणा मोताबिक बण्टा केॅ सब लड़का के बीचोॅ में " गांधी जी के आत्मकथा' किताब देलोॅ गेलोॅ। किताब देलकै इकबाल गुरु जीं, आपनोॅ हाथोॅ सें। सब लड़का यै पर ताली बजैलेॅ छेलै आरो बण्टा के दस ठो खासम खास दोस्तें तेॅ ज़रूरत सें ज़्यादा देर तांय मुड़ी झुकाय केॅ ताली पीटतैं रहलोॅ छेलै।

रुकलोॅ छेलै तब्हैं, जबेॅ गुरु जीं रुकै लेॅ कहलकै। ऊ दिन सें तेॅ बण्टा आपनोॅ किलासोॅ के मुनीटरे बनी गेलै।

कोय लड़का केॅ कुछ काम करना रहै, तेॅ ओकरा ज़रूरे पूूछै, यहाँ तांय कि कोय कठिन सवालो के उत्तर पहिलें वैं बण्टाहै सें पूछै।

जों बण्टा ऊ सवालोॅ के उत्तर नै जानै आरो कहै कि हम्में नै जानै छी, तेॅ पुछवैय्या केॅ कम्मे विश्वास हुऐ कि वैं नै जानै छै। सोचै, इखनी नै बताय लेॅ नै चाहै छै, दुसरोॅ दिन बताय देतै। आरो ठिक्के में बण्टा ऊ सवालोॅ के जवाब दूसरोॅ दिन ज़रूरे बताय दै। हुऐ है कि जबेॅ ऊ घोॅर लौटै, तेॅ रात में खाय वक्ती मौसा सें हौ सिनी सवाल के उत्तर पूछै, जे इस्कूली में ओकरोॅ दोस्तें पूछलेॅ छेलै।

यहू नै हुऐ कि इस्कूल जैतैं, सीधे उत्तर बताय दै। हौ लड़का के दू-तीन दाफी पूछले पर बताबै—कुछ हेनोॅ भाव सें कि ई सवाल के उत्तर तेॅ पहिलैं सें वैं जानै छेलै, मजकि कल मूड नै छेलै, यै लेली नै बतैलकै। एकरा सें बण्टा के ज्ञान के धाक भले इस्कूली में जमेॅ लागलोॅ छेलै, मजकि ओकरा हौ सब के उत्तर जानै लेॅ मेहनतो खूब करै लेॅ पड़ै। खेल-कूद सें धीरें-धीरंे ओकरोॅ साथ छूटेॅ लागलोॅ छेलै।

हौ दिन इस्कूल सें लौटला पर वैं बड़ी हुलासोॅ सें पहिलें मौसी केॅ फेनू सँझकी मौसाहौ केॅ ऊ किताब दिखैनें छेलै आरो वहेॅ दिन किताब के कत्तेॅ नी पन्ना पीछुवे दिश सें पढ़ी गेलोॅ छेलै।

पढ़तें-पढ़तें ऊ सहसा चैंकी उठलै। किताब के लेन्हैं ऊ बस्ता दिश दौड़लै आरो काॅपी के बीच में राखलोॅ वहेॅ अखबार के टुकड़ा पर अंगुरी बढ़ाय-बढ़ाय केॅ मनेमन पढ़लकै।

ओकरोॅ चेहरा पर आचरज के भाव उड़ी रहलोॅ छेलै। वैं कभियो काॅपी के बीच पन्ना केॅ पढ़ै, कभियो गांधी जी के आत्मकथा केॅ। फेनू की होलै कि हो पोथी के बीचोॅ में राखलोॅ अखबार के टुकड़ा केॅ 'गांधी जी के आत्मकथा' वाला किताबोॅ के बीचोॅ में हिफाजतोॅ सें राखी देलकै आरो किताब बन्द करी ताखा पर होनै के राखी देलकै।

वैं माय केॅ देखतें ऐलोॅ छेलै—रामायन केॅ हेन्हैं सहेजी ताखा पर राखतें।

छुट्टी के दिन छेलै आरो हवो हौल्कोॅ-हौल्कोॅ ठहार बुझावेॅ लागलोॅ छेलै। बण्टा साथें दसो दोस्त के योजना शनिचरे केॅ तै होय गेलोॅ छेलै कि पोखरी पर पिकनिक मनैलोॅ जाय। योजना यहू बनलै कि पांडे का के फुलवारी में घुसी केॅ कबरंगा तोड़लोॅ जाय।

पहलें तेॅ बण्टा चोरी-चपारी सें साफ मुकरी गेलै। कहलकै, "है सब कामोॅ में हम्में तोरा सिनी केॅ साथ नै देबौं, आरो नै कहबौं—हेनोॅ करै लेॅ। जों कि पकड़ाय भै गेलौं तेॅ देह-हाथ के भरता निकली जैतौं। घरोॅ में धुनाठन पड़तौं—से तेॅ अलगे।"

बण्टा केॅ हठातें जमुआर गुरु जी के मार याद आवी गेलोॅ छेलै।

"तोहें बेकारे डरै छैं, पांडेका तेॅ आपनोॅ फुलवारी कभियो नै आवै छै। बस एकठो बूढ़ोॅ रं जोगवारोॅ फुलवारी जोगै छै। वहू में ओकरा सुझवो करै छै कम। आबेॅ जों तोरा एत्त्है डोॅर लागै छौ, तेॅ तोहें बाहरे रहियैं। हमरै सिनी भीतर घुसबै। कबरंगा तोरो वास्तें बाहर फेकी देबौ।"

बार-बार कबरंगा के नाम सुनी बण्टाहौं चुप्पी लगाय देलकै। सोचलकै, "हरजे की छै। धरैतै तेॅ यहेॅ सब, नै धरैतेॅ तेॅ बांट-चूट तेॅ बराबरे होतै।"

"सोचै की छैं" मीरवां टन सना बोललै, "जानै छियै कि तोरोॅ रं डरपोक दीवाल फानै नै पारेॅ। खैर, तोहें एक काम कर—तोरा बाहरे सें गाछी पर खाली ढेपोॅ मारतें रहना छौ, कभी सामना सें, कभियो पीछू सें, कभी दायां दीवाली दिश सें, आरो कभियो बायां दीवाली दिशोॅ सें। जोगवारोॅ केॅ तेॅ ठीक सें सूझै नै छै। गाछी पर ढेपोॅ के आवाज सुनी जबेॅ ऊ बायां दीवाल दिश दौड़तै, तेॅ हमरा सिनी बायां दीवाली पर चढ़ी गाछी के कबरंगा तोड़बै; बायां दिश दौड़तै तेॅ दायां दिश के तोड़बै; हिन्नें दौड़तै, तेॅ हुन्नंे सें तोड़बै आरो हुन्नें दौड़तै, तेॅ हमरा सिनी हिन्नें सें तोड़बै। की समझलैं।"

"समझी गेलियै।" योजना सुनी केॅ बण्टा केॅ हँसी आवी गेलै आरु ऊ सिनी मूं पर हाथ राखी खिलखिलाय पड़लै। हँसै वक्ती सिपकियो भर नै आवाज निकलै लेॅ देलकै कि काँही जोगवारो नै आवाज सुनी लेॅ। लड़का के आवाज सुनत्हैं सावधान होय जाय छै, आँख के कमजोर रहला सें की, कान के बड्डी पातरोॅ छै।

"तेॅ, चल शुरु।" बण्टां कहलकै।

कमाण्डर के इशारा भर होना छेलै कि दसो लड़का दीवाली सें सटलोॅ-सटलोॅ फुलवारी के पिछुलका दिश चल्लोॅ गेलै आरो हिन्नें बण्टा दोनों जेबी में आठ, दस छोटोॅ-छोटोॅ ढेपोॅ भरी केॅ फुलवारी के बाहर वाला एक ठुट्ठा गाछी पर बैठी रहलै। कथी के गाछ छेलै, पता नै, मतरकि छेलै बड़ी मजबूत। से बण्टा गाछी के ओत्तै फुनगी तक पहुँची गेलै, जहाँ सें फुलवारी के पछिया दीवारी के पिछुलका भाग दिखावेॅ पारेॅ। बण्टां देखलकै कि तीन लड़का दीवारी पर चढ़ै में लागलोॅ छै। पहिलें दीवारी पर छः पंजा दिखलैलै, फेनू तीन-तीन टांग आरो देखत्हैं-देखत्हैं तीन लड़का दीवारी पर छेलै। फेनू की छेलै, बण्टा पूवारी ओर के गाछ सिनी पर ढेपोॅ कस्सी केॅ मारलकै। पत्ता पर खर-खर के आवाज होलै आरो फेनू एक्के साथ ढेपोॅ साथें कोय आरो चीज भद सें गिरलै।

जोगवारोॅ, जे चुपचाप खटिया पर बैठलोॅ खैनी रगड़बो करी रहलोॅ छेलै, आवाज सुनत्हैं झट सना खैनी मुँहोॅ में राखलकै आरो, "हो, हो, के छेकैं रे, के छेकैं रे, के कबरंगा तोड़ी रहलोॅ छैं रे, ओकरोॅ टांग तोड़ी देबौ रे" कहतें-कहतें आवाजे दिश दौड़लै।

जोगवारोॅ केॅ दौड़तें देखलकै, तेॅ बण्टा आरो ढेपोॅ नै फेकलकै। जोगवारोॅ पूबारी दिश आवी केॅ बायां कान के भुरकी मेें बायां हाथ के अंगूठा घुसैलकै आरो आवाज के दिशा पहचानै के कोशिश करलकै। ई जानी केॅ कि आवाज पछिया दीवारी दिश सें आवी रहलोॅ छै, ऊ एक बड़का साटोॅ उठैलें वहेॅ दिश दौड़ी पड़लै, ई कहतें कि "ठहर कबरंगा तोड़ै छैं, तोरोॅ अभी टांग तोड़ै छियौ।"

जोगवारोॅ ई किसिम सें दौड़लोॅ छेलै कि दीवाली पर खाड़ोॅ तीनो लड़का धप-धप करी केॅ बाहर कुदी गेलै। बची गेलै भीतर में रमखेलिया, जे गिरलोॅ कबरंगा चुनै लेॅ भीतर घुसी गेलोॅ छेलै। भीतर घुसै के मनसुआ देलेॅ छेलै शेखरें। से ऊ सबसें ज़्यादा चिन्तित छेलै कि केना ओकरा बाहर करलोॅ जाय।

"रमखेलिया ज़रूर कोय गाछी के पीछू में खाड़ोॅ होतै आरो जोगवारोेॅ सें बचै के कोशिश करतें होतै।"

"जों कजायत रमखेलिया पकड़ाय गेलै, तबेॅ?" मीरकां चिन्ता जाहिर करलकै।

"तबेॅ तेॅ हमरा सिनी के बदला वहीं बेचारा मार खैतै।" अंजुम बोललै।

"मार खाय के चिन्ता नै छै" तखनिये पीछू सें आवी बण्टा कहलकै, "चिन्ता तेॅ एकरोॅ छै कि जों रमखेलिया पकड़ाय छै, तबेॅ वैं एकेक धौल पर एक-एक के नाम बोलतै कि के, के कबरंगा तोड़ै में छेलै, जेना बिज्जी के डांग पर गदहीं हीरा, मोती, हागै छेलै।"

" आरू समय रहतियै, तेॅ बिज्जी-गधी बातोॅ पर बण्टा खूब हँसतियै, मतरकि ऊ कटियो टा नै हँसलै।

"से तेॅ तोहें एकदम ठीक कहलैं बण्टा, तबेॅ की करलोॅ जाय?" शेखर बोललै। सब के आँखी में डोॅर काँपेॅ लागलोॅ छेलै।

"देखें, आबेॅ एक्के उपाय छै। हम्में दक्खिन दिश सें गाछी पर ढेपोॅ चलाय छियौ; आरो जोगवारोॅ जेन्हैं दक्खिन के दीवाली दिश जाव; तोरा में सें कोय दीवाली पर चढ़ी रमोखिलया के हाथ पकड़ी केॅ खीची लियैं।"

"ठीक छै।" अंजुम बोललै

आरो योजना मोताबिक बण्टा दक्खिन दीवाली दिश पहुँची गेलै आरो जेन्हैं देखलकै कि अंजुम दीवाली पर चढ़लोॅ होलोॅ छै, वैं हुन्नें सें नगीच वाला गाछी पर ढेपोॅ चलाना शुरु करी देलकै। दक्खिन दिश गाछी पर ढेपोॅ चलत्हैं जोगवारोॅ वहेॅ दिश साटोॅ लै केॅ दौड़लै आरो हिन्नें, झुकी केॅ अंजुम रमखेलिया केॅ घीचेॅ लागलै। मतरकि दुर्भाग्य हेनोॅ होलै कि रमखेलिया केॅ अंजुम की घीचतै, रमखेलिया छेवै करलै एत्तेॅ घुमाँटोॅ कि अंजुमे फुलवारी दिश खिंचाय गेलै।

खूब जोरोॅ सें धम्म के आवाज भेलै, तेॅ दक्खिन दिश छोड़ी केॅ जोगवारोॅ पछिया दिश दौड़लै। आरो एकरोॅ पहिले कि ऊ दोनों फेनू दीवारी पर चढ़ै के कोशिश करतियै, जोगवारोॅ ओकरोॅ सामना में जमराज नाँखी खाड़ोॅ भै गेलै।

ओकरोॅ हाथोॅ में मोटोॅ साटोॅ देखी केॅ दोनों के सिट्टी-पिट्टी गुम छेलै। अभी वैं साटोॅ उठैबे करतियै कि फुरती सें रमखेलियां जोगवारोॅ केॅ हेनोॅ लंग्घी मारलकै कि ऊ सीधे लद सें जमीन पर चित्त गिरी पड़लै। हाथोॅ के साटोॅ छिटकी केॅ दूर गिरी गेलै। आरो ई सब देखै केॅ पहिलैं अंजुम आरो रमखेलिया सीधे दीवाली सें सटलोॅ गाछी दिश भागलै। जानेॅ कहाँ सें ऊ फुरती आवी गेलोॅ छेलै कि दनादन बन्दर नांखी ठाहुर पकड़ी दोनों गाछी पर चढ़ी गेलै आरो फेनू दीवारी पर खड़ा होय केॅ सीधे हौ पार हुनमान कूद लगाय देलकै। हौ दोनों के बाहर निकलना छेलै कि सब एक्के दाफी सबौरोॅ दिश दरबनिया लगाय देलकै। कन्नें कबरंगा गिरलै, के कत्तेॅ लेलकै, केकरोॅ होश ने छेलै। के आगू रहलै, के एकदम पीछू? एकरोॅ होश नै।

हुन्नें जोगवारोॅ ताड़ गाछी के पकलोॅ ताड़ नाँखी भद सना जे गिरलै, तेॅ पाँच मिनिट बादे उठलै। उठलै तेॅ चारो दिश देखलकै। तब तांय तेॅ सब फुरपार छेलै। ऊ थोड़ोॅ नेंगचैतें-नेंगचैतें आपनोॅ खटिया ओर बढ़लै आरो वहीं पर बैठतें बड़बड़ावेॅ लागलै, "अच्छा बरगाहो सांय सिनी, कोय दिन हम्मू पकड़ी केॅ कचूमर नै निकाललियौ, तेॅ हमरोॅ नाम बगोछोॅ महतो नै।"