बण्टा भाग-7 / अमरेन्द्र

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"बण्टा अंजुम, रमखेली, शेखर, मीरका, शेखावत, घोल्टू, सोराजी, अठोंगर, बमबम, सब खड़ा हो जा।" हाजरी लेला के बाद इकबाल गुरु जीं फेनू ग्यारहो केॅ खड़ा करी देलकै।

आरो सब लड़का ई देखी केॅ सन्न छेलै। खास करी केॅ ई देखी केॅ कि आय बण्टाहौ केॅ गुरु जीं खाड़ोॅ करलेॅ छेलै। सब के नजर कभी गुरु जी दिश जाय, कभी बण्टा दिश।

"तोरोॅ सिनी के चोरी कल हम्में आपनोॅ आँखी सें देखलेॅ छियांै, आपनोॅ खेतोॅ के मचानी सें। तोरा सिनी की बुझलौ कि मचान खाली छै। हम्में सुतलोॅ-सुतलोॅ तोरोॅ सिनी के सब तमाशा देखी रहलोॅ छेलियौं। आबेॅ यहेॅ में भलाय छौं कि दसो डाँड़ोॅ बल्लोॅ पर झुकी केॅ खाड़ोॅ होय जा।"

इकबाल गुरु जी के आदेश होत्हैं दसो डाँड़ोॅ बल्लोॅ पर कमर केॅ सीधा करी खाड़ोॅ होय गेलै। कमर भारोॅ पर सौंसे देह। कुछुवे घंटा में सब डगमग करेॅ लागलै, तेॅ गुरु जी केॅ भीतरे-भीतर दया लागेॅ लागलै। सोचलकै, "हेना केॅ तेॅ सबके ठेहुना, जांघ धरी लेतै। ई सजा ठीक नै।"

सोचत्हैं कहलकै, " ठीक छै, सब सोझोॅ होय जा। आरो कैन्हें कि ई दसो के मुखिया बण्टा छेकै, यै लेली जों बण्टा हमरोॅ सवालोॅ के उत्तर दै देॅ, तेॅ सबक सजा माफ। जो उत्तर नै दिएॅ पारतै, तेॅ होने केॅ सबकेॅ खाड़ोॅ करबौं।

गुरु जी के बात सुनत्हैं दसो ठो सोझोॅ होय गेलै आरो सवाल के प्रतीक्षा में गुरु जी के मूं देखेॅ लागलै। एक क्षण चुप्पी साधला के बाद गुरु जीं कहलकै, "तोरा सिनी फल के चोरी करी रहलोॅ छेलौ, यै लेली बण्टा केॅ तीस ताजा फल आरो दस सुक्खा फल के नाम लै लेॅ लागतै, नै तेॅ दसो के सजा फेनू पहलके वाला मिलतै।"

तीस ताजा फल आरो दस सुक्खा फल, बाप रे बाप, एत्तेॅ नाम के बताबेॅ पारतै—क्लास भरी के दिमाग सुनत्हैं सन्न छेलै आरो खास करी केॅ बण्टा छोड़ी केॅ दसो ठो के मूं एकदम झमान कि आबेॅ फेनू वहेॅ रं खाड़ोॅ होनाहै छै।

मतरकि गुरु जी के सवाल सुनत्हैं बण्टा के दिमाग आटा-चक्की नाँखी हन-हन चलेॅ लागलोॅ छेलै। ठीक-ठीक मने-मन हिसाब लगाय केॅ वैं अंगुली के पोरोॅ पर गिनाना शुरु करलकै, "ताजा फलोॅ में छेकै—अमरुद, अनानास, अनार, अंगूर, आम, केला, ककड़ी, कटहल, खिरनी, खीरा, खजूर, खरबूजा, गुलाब जामुन, जामुन, तरबुज, नींबू, जमेरी नींबू, नासपाती, पपीता, फलसा, बेल, बैर, लीची, सपाटू, शरीफा, शहतूत, सन्तरा, सेव, सिंघाड़ा आरो कबरंगा।"

कबरंगा के नाम सुनत्हैं बण्टा रोॅ नवो खासम खास दोस्त के देह काँपी गेलै। सोचलकै, यैं कबरंगा के नाम गिनाय केॅ नाश करलकै। गुरु जी के गोस्सा बढ़तै। मतरकि है नै होलोॅ छेलै। हेकरोॅ बदला सब के आँखी में चमक छेलै। गुरुवे जी नै, क्लास के सब लड़को दोनों हाथोॅ के अंगुली के पोरोॅ पर बुढ़बा अंगुली केॅ फिराय-फिराय संख्या गिनवो करी रहलोॅ छेलै। तीस सें एक ज्यादाहै, पूरे एकतीस ताजा फलोॅ के नाम बण्टा गिनैलै छेलै।

फेनू वैं गुरु जी दिश देखत्हैं कहलेॅ छेलै, "आबेॅ सुक्खा फल में प्रमुख छेकै—अखरोट, अंजीर, काजू, चिरौंजी, चिलगोचा, नारियल, पिश्ता, कागजी बादाम, चिनिया बादाम, किशमिश आरो खूबानी।"

किलास भरी के आँख फटलोॅ के फटलोॅ रही गेलै आरो इकबाल गुरु जी तेॅ एकदम दंग। हेनोॅ विलक्षण चटिया आय तक हुनका नै मिललोॅ छेलै। बण्टा के पीठ थपथपैतें हुनी गदगद भाव सें बोललै, "बण्टू, खुबानी के खाली नामे सुनलेॅ छैं कि खैलोॅ छैं।"

"खैलेॅ छियै गुरु जी, फल के ऊपरलका सुखलोॅ भाग खाय में मीट्ठोॅ लागै छै। फल के भीतर में बादाम नाँखी गुठली होय छै आरो गुठली में गिरी रहै छै, जे खाय में बादामें रं स्वादिष्ट होय छै। हम्में यहू जानै छियै कि ई फल खाली उत्तर प्रदेश के ठंडे क्षेत्रा में होलोॅ।"

"आरो चिलगोजा?" गुरु जी के कण्ठोॅ सें हठाते ई सवाल निकली गेलै, तेॅ बण्टाहौ रुकलै नै। कहलकै, "चिलगोजा, भारत केरोॅ फोॅल नै छेकै, अफगानिस्तान दिश होय छै। ई कच्चो आरो भुजियो केॅ खैलोॅ जाय छै।"

"आचरज, घोर आचरज" इकबाल गुरु जी के मोॅन बोललै, "ई कोय सामान्य बच्चा हुऐ नै पारेॅ।"

14

क्लास केरोॅ ई घटना के एक अलगे असर बच्चा सिनी के दिमाग पर होलै। खाली दूसरे सिनी बच्चा पर नै, बण्टा के मंडलियो में कुछ केॅ यहेॅ विश्वास हुएॅ लागलै कि ओकरा ज़रूरे कोय जिन, भूत सें दोस्ती छै, जे बण्टा केॅ भीतरे-भीतर मदद करै छै।

ई बात तखनी कोय बोललै तेॅ नै, कैन्हें कि दसो वास्तें यहेॅ बहुत बड़ोॅ बात छेलै कि बण्टा के बुद्धिये कारण सब्भे मार आरो सजा सें बची गेलोॅ छेलै। मजकि भूत आरो जिनवाला बात नै तेॅ अंजुम, शेखर, रामखेली, मीरका, बिहारी, शेखावत के मनोॅ सें गेलै, नै तेॅ घोल्टू, सोराजी, अठोंगर आरो बमबम के. असल में ई बात वही क्लासोॅ के एक कोना सें उड़लोॅ छेलै आरो क्लास भरी के माथा पर हठाते बैठी गेलै। मतरकि बोलै कोय कुछुवो नै।

आखिर बोलतियै की? बण्टा के हाव-भाव कुछ हेनोॅ छेवे नै करलै। मजकि शेखावत है केन्हौं केॅ मानै लेॅ तैयार नै छेलै के बण्टा के वशोॅ में जिन्न आकि भूत नै छै, वैं कहै, "देखें रमखेलिया, जेकरोॅ वशोॅ में भूत आकि जिन्न हुएॅ छै, ऊ भूत-जिन्न नाँखी थोड़े दिखावै छै, आकि कुछ काम करै छै; काम तेॅ करै छै जिन्न, भूत। देखलैं नै, बण्टा ऊ दिन केना सब बुझौव्वल के मानें फटाफट बताय देलकै आरो पाँच रोज पहिलें ओत्तेॅ-ओत्तेॅ फलोॅ के नाम केना बताय देलकै। अरे जिन आवी केॅ ओकरोॅ कानोॅ में बोललोॅ गेलोॅ होतै, आरो बण्टा तहीं सें ओत्तेॅ-ओत्तेॅ नाम बोलेॅ पारलै।"

"अच्छा है बात, हम्में ओकरा पूछयै।" रमखेलिया गंभीर होतें बोललै।

"पुछबो नै करियैं, कहीं जिन, भूत केॅ हमरा सिनी के पीछू लगाय देलकौ, तेॅ बुझी ले।"

दोनों चुप भै गेलै।

मतरकि फलवाला घटना सें बण्टा के आदर लड़का सिनी के बीच आरो बढ़ी गेलोॅ छेलै। आबेॅ वैं आपनोॅ मंडली के दसे लड़का केॅ की, कलासोॅ के कोय्यो विद्यार्थी केॅ कुछुवो बोली दै, तेॅ वैं बण्टा के बात केॅ नकारै नै, ऊ जेना हुएॅ करी दै, नहियो मोॅन रहै, तहियो।

शुरु-शुरु में तेॅ बण्टो केॅ हठाते ई बढ़लोॅ आवभगत के कुछ मानी नै बुझैलै, मतरकि धीरें-धीरें एकरोॅ भेद खुलेॅ लागलै, जबेॅ एक दिन अंजुमें ओकरा सें कहलकै, "किलासोॅ के कुछ लड़का ई मानै छै कि बण्टा के वशोॅ में जिन आकि भूत छै, जेकरा सें वै जखनी चाहै छै, पूछी केॅ उत्तर बताय दै छै, नै तेॅ ओत्तेॅ-ओत्तेॅ बुझौव्वल आरो फलोॅ के नाम केना बताय देलकै।"

बण्टा बड़ी मनोॅ सें अंजुम के बात सुनलकै आरो फेनू बोललै, "ई बात आबेॅ केकरो नै मालूम होना चाही, नै तेॅ सब हमरा सें डरतै।"

बण्टा ई बात केॅ हौ किसिम सें कहलेॅ छेलै कि ई बात सच्चे रहेॅ। जे जानी लेलकै, जानी लेलकै, आबेॅ कोय नै जानेॅ। कम-सें-कम अंजुम यहेॅ अर्थ बुझैलकै।

"अजी सुनै छोॅ।" रुपसावालीं ऐंगन्हैं सें बराण्डा पर बैठलोॅ भैरो कापरी सें कहलकै। "की बात छेकै।" भैरो नगीच ऐंतें पूछलकै।

"बण्टू इस्कूली के बाद कहाँ जाय छै, केकरा-केकरा कन जाय छै कोॅन घाट-कुघाट, एकरोॅ खयाल राखै छौ की नै?"

"तोहें तेॅ हेनोॅ बोलै छौ, जेना ऊ टुअर रहेॅ आरो ओकरोॅ देखभाल रहबे नै करेॅ।"

"ओह, तोहें हमरोॅ कहै के मतलब नै बुझी रहलोॅ छौ।"

"खूब बुझी रहलोॅ छियै बिल्टू-माय। तोहें यहेॅ नी कहै लेॅ चाहै छौ कि आयकल ऊ केकरा-तेकरा कन नी बैठलोॅ फुरै छै, यही नी?"

" खाली यहेॅ बात रहतियै तेॅ चलोॅ कुछु बात नै छेलै। जबेॅ बिल्टू साथ में रहै छेलै, तबेॅ तेॅ कोय बाते नै छेलै। आबेॅ बिल्टुओ बड़ोॅ पढ़ाय लेॅ भागलपुर चल्लोॅ गेलै। की करतै, बंटुओ केॅ मोॅन नै लागै छै तेॅ हिन्नें-हुन्नें घाट-कुघाट भेलोॅ फुरै छै।

"ई तोहें घाट-कुघाट की बार-बार बोली रहलोॅ छौ?"

"आबेॅ तोरा की बतैय्यौं कि मुहल्ला-टोला में बण्टू बारे में ई केन्होॅ कनफुसकी सुनै छियै कि वैं कोय भूत के सिद्धि करी लेलेॅ छै। भला एतना टा बच्चा, आबेॅ तोंही कहोॅ, जे उमिर भूत-जिन सें डरै के छेकै, ऊ सिद्धि की करतै।"

"बिल्टू-माय, कहावत छै कि रुपसा गाँव के बिल्लियो पढ़लोॅ-लिखलोॅ होय छै; तोहें केना बची गेलोॅ।"

"की तोहें कहै लेॅ चाहै छोॅ।" रुपसावाली चिढ़तें बोली उठलै तेॅ भाव केॅ भाँपतें हुएॅ भैरो कापरी तुरत आपनोॅ बातोॅ में आरो बात मिलैतें कहलकै, "होना केॅ तेॅ हम्मू ई बात सुनलेॅ छियै, मतरकि अब तांय ई बात केॅ हम्में अनठियाय रहलोॅ छेलियै। लागै छै, ज़रूर बण्टा कोय फकीर, या तांत्रिक सें हेनोॅ मंत्रा पावी लेलेॅ छै, जेकरोॅ बल्लोॅ पर वैं गजब के कारगुजारी करी रहलोॅ छै, आयकल।"

"अरे यहेॅ तेॅ हम्मू कहै लेॅ चाहै छेलियौं। गोस्साबोॅ नै, तेॅ एकटा बात कहै छियांै—डेढ़ दू महीना सें बण्टु के रंग-ढंग कुच्छु बदललोॅ-बदललोॅ देखै छियै। देर रात तांय की-की लालटेन के रोशनी में निरयासी-निरयासी पढ़तें-घोकतें रहै छै, नै कहेॅ पारियौं। इस्कूली के पाठ होतियै, तेॅ सुनाय-सुनाय केॅ पढ़तियै, मजकि मनेमन पढ़ै के की मतलब! जेना मंतर जपतेॅ रहेॅ।"

"हम्मू महीना भरी सें बंटू के ई रंग-ढंग देखी रहलोॅ छियै। मतरकि घबड़ावोॅ नै बिल्टू-माय, ऊ भूत सिनी के बारे में हम्मू जानै के कोशिश करी रहलोॅ छियै। जे पता लागलोॅ छै, वै में तेॅ एक जिन्न छेकै, बाकी सब प्रेत। ई प्रेत कतना छै, से नै कहेॅ पारौं। तीन-चार प्रेत के पता करनें छियै। ई पे्रत सिनी आपनोॅ मशानोॅ सें केन्होॅ केॅ नै हटै छै। शकल सूरत एकदम आदमिये नाँखी। पकड़ेॅ नै पारभौ कि ऊ हवा छेकै, आदमी नै। छूलौ सें लागतौं कि हम्में आदमिये केॅ छुवी रहलोॅ छियै। मतरकि छै बड़ी ज्ञानी प्रेत सब। वैं आपनोॅ वहेॅ ज्ञान सें, जेकरा चाहै छै, आपनोॅ वश में करी लै छै, आरो जे चाहै छै, कराय छै। यहू मालूम होलोॅ छै कि जे बच्चा ओकरोॅ शिकार होय जाय छै आरो ओकरोॅ माय-बाप जों ऊ बच्चा केॅ बाहर जाय सें रोकै छै, तेॅ एक्के साथ गाछी सें उतरी-उतरी केॅ सब प्रेत जिन केॅ लेलेॅ ओकरोॅ घरोॅ पर आवी केॅ मंडराबेॅ लागै छै। आरो आंखी सामनाहै में ऊ बच्चा केॅ उठाय केॅ लै जाय छै।"

"की?" रुपसावाली एक अजीब भय सें भौआय उठलै।

" झूठ थोड़े कहै छियौं। कै आदमी, ओझा-गुनी सें पूछी केॅ ऐलोॅ छियै, तबेॅ कहै छियौं। आबेॅ तोहें बण्टू के एक टा कहानी सुनोॅ कि भूत-प्रेत के सिद्धि कैन्हें आरो केना करलकै। वैं, पोखरी के नगीच डेढ़ महीना पहिलें, लतामोॅ के एक टा गाछ लगैनें छेलै। बित्ता भरी खद्दो खोदी केॅ वैंमें मुंह भरी गोबर भरी देलकै। फेनू ऊपर सें मिट्टी दै केॅ आधोॅ गाछ केॅ गाड़ी देलकै, ताकि गाछ हवा नै सें गिरेॅ पारेॅ। बच्चा रं गाछ छेलै। जों बढ़बो करतियै, तेॅ दस-बीस दिन के बादें। से नै, वैं रोज-रोज गोबर खोदी केॅ गाछ निकालै कि जोड़ बढ़लै की नै। भला है रं रोज-रोज गाछ केॅ निकाली केॅ देखला सें गाछ लगै वाला छेलै। गाछ धीरें-धीरें कुम्हलाय केॅ गिरी पड़लै।

"बण्टा सोचलकै, ई काम हवा के छेकै। हवाएं ओकरोॅ गाछी केॅ गिरैलेॅ छै। से हवा केॅ सजा देलोॅ जाय। जानै छोॅ, ओकरोॅ बाद बण्टू दिन भरी इस्कूली सें गायब रहलै। पता नै, कहाँ गेलै, आरो हवा के बारे में सब बात लेलकै। हवा के बारे में सब बात तेॅ प्रेते बतावेॅ पारेॅ; भूत-प्रेत तेॅ हवे नी होय छै बिल्टू-माय।"

"हौ देखौ, बंटू कहाँ सें असकल्ले हफसलोॅ-धपसलोॅ आवी रहलोॅ छौं। कुछ टोकियौ-टाकियौ नै। हवा वाला बात तेॅ आबेॅ सौंसे गाँव भरी के लोग जानेॅ लागलोॅ छै। नै विश्वास छौं तेॅ अभी देखियौ, की रं वैं टन-टन जवाब देतौं।"

तब तांय बण्टा ऊ सब के एकदम नगीच आवी गेलोॅ छेलै। थकान के बावजूदो चेहरा पर काफी खुशी लहरी रहलोॅ छेलै। भैरो कापरीं ओकरोॅ पीठ सहलैतें पूछलकै, "कहाँ गेलोॅ छेलैं बण्टू?"

"हौ दिश। बिसूबा थान के हुन्नंे; हौ पार।" बण्टा हाथ सें इशारा करतें कहलकै।

"अरे, हौ दिश तेॅ खाली आमे के गाछ छै। हुन्नें कथी लेॅ गेलोॅ छेलैं? आरो के-के साथोॅ में छेलौ?"

"आय कोय नै छेलै। असकल्ले छेलियै।"

"असकल्ले! डोॅर नै लगलोॅ?" भैरो कापरीं आचरज सें पुछलकै।

बण्टा मुस्कैतें हुएॅ मूड़ी डोलाय केॅ बोललै—"नै।"

"अच्छा, वहाँ कथी लेॅ गेलोॅ छेलैं?"

"वहाँ हवा बड़ी अच्छा बहै छै।"

हवा के बात सुनत्हैं रुपसावाली के दोनों कान फेनू खाड़ोॅ होय गेलै।

"अच्छा बंटू, तोहें हवा के बारे में की-की जानै छैं, बताबेॅ पारैं?" भैरो कापरी लगले पूछलकै आरो लगले बण्टाहौं बिना रुकले जवाब देना शुरु करलकै, "हवा केॅ देखना मुश्किल छै, एकरा केन्हौ केॅ नै देखलोॅ जाबेॅ पारै। हवा जबेॅ हमरोॅ देहोॅ केॅ छुवै छै, तेॅ पता चलै छै—हवा छै आरो बही रहलोॅ छै।"

"अच्छा बण्टू, तोहंे है केना पता लगैबैं कि हवा चली रहलोॅ छै कि नै चली रहलोॅ छै?"

"गाछ देखी केॅ।"

'गाछ देखी केॅ' सुनत्हैं रूपसावाली हठाते कांपी गेलै। अभी, कुछ देर पहलैं तेॅ भैरो कापरी बतैलेॅ छेलै कि भूत-प्रेत गाछी सें उतरी केॅ...

"सुनलौ, बिल्टू-माय, गाछी केॅ देखी केॅ पता लगाय लै छै।" भैरो कापरी रुपसावाली दिश देखी केॅ बोललै। फेनू बण्टा दिश मूं करी कहलकै, "गाछ देखी केॅ केना?"

"जबेॅ गाछ इस्थिर रहेॅ, आगिन सें धुआँ उठी केॅ सीधे ऊपर जाय, तेॅ जानी लेॅ हवा प्रति घंटा, आधोॅ कोस सें कम चली रहलोॅ छै। जों पत्ता खड़खड़ाबै, तेॅ समझोॅ कि हवा प्रति घंटा दू कोस सें तीन कोस तांय के गति सें चली रहलोॅ छै। जों पत्ता साथें ठाहुरो हिलेॅ, तेॅ समझोॅ हवा प्रति घंटा चार सें छोॅ कोस बही रहलोॅ छै आरो जों धूल उड़ेॅ लागेॅ तेॅ बूझोॅ कि प्रति घंटा सात सें नोॅ कोस बही रहलोॅ छै। जों छोटोॅ गाछ डोलेॅ लागेॅ, तेॅ हवा निश्चित रूपोॅ सें प्रति घंटा नोॅ सें बारह कोस बही रहलोॅ छै। आरो जों बड़ोॅ गाछ के ठाहुर साथें गाछोॅ डोलेॅ लागेॅ, तेॅ समझोॅ कि तखनी हवा प्रति घंटा बारह सें लै केॅ उन्नीस कोस तांय बहतें रहै छै। हेन्हैं केॅ जों गाछ टूटेॅ लागै छै, तेॅ समझी लेॅ कि हवा उन्नीस कोस सें लै केॅ सत्ताइस कोस तांय प्रति घंटा बही रहलोॅ छै आरो जों गाछे उखड़ेॅ लागै तेॅ बूझोॅ कि हवा प्रति घंटा सत्ताइस कोस सें लै केॅ सैंतीस कोस के रफ्तार से बही रहलोॅ छै आरो आगू, जो तेज हवा सें छोॅर-छप्पर उड़ेॅ लागै, तेॅ बुझोॅ कि हवा सत्ताइस कोसोॅ सें ज़्यादा प्रति घंटा के हिसाब सें बही रहलोॅ छै। आ जों कि हवा सें गाछ टूटेॅ लागेॅ, ऊ आंधी छेकै, जे गाछ उखाड़ेॅ, ऊ तेज आंधी आरो जे छप्पर उड़ाबै, ऊ तूफान छेकै।"

"सुनलौ नी बिल्टू माय।" भैरो कापरीं रूपसावाली दिश घूमतें कहलकै। मतरकि रुपसावाली सुनतियै की। ओकरोॅ तेॅ सौंसे ध्यान हवा के गति, आंधी, तूफान, पेड़ के गिरवोॅ-उखड़वोॅ आरो वही हवा के बीच मछली के पुछड़ी रं हाथ-गोड़ डुलैतें भूत-प्रेत आँखी के सामना नाचेॅ लागलोॅ छेलै।

"अच्छा बेटा, जल्दी सें तैयार होय जा, आय हम्में तोरा नवयुग विद्यालय के गुरु अनिल शंकर झा जी सें मिलवाय लेॅ लै चलबौं। हुनी यहाँ काली मठोॅ में आवी केॅ ठहरलोॅ छै।"

बण्टा, ई बात सुनत्हंै, गदगदाय गेलै। दौड़ी केॅ आपनोॅ कोठरी में घुसी गेलै आरो ओकरोॅ वहाँ सें हटत्हैं भैरो कापरीं रूपसावाली सें कहलकै, "देखलौ नी, की रं सब टा ओझा, भगत नाँखी बोललोॅ गेलै।"

"एक बात कहियौं, तोहें बण्टू केॅ दीदी लुग दै आवोॅ। कोय किसिम के बात होय जाय, तेॅ लांछन लेला सें की फायदा? पढ़ै-लिखै लेॅ जानिये लेलेॅ छै, आबेॅ घरे पर पढ़तै तेॅ ठीक। होन्हौ केॅ बच्चा मैय्ये-बाप के नियंत्राण में ठीक रहेॅ पारेॅ। आबेॅ होय्यो तेॅ रहलोॅ छै पाँच-छोॅ महीना। आपनोॅ बच्चा केॅ देखलेॅ बिना की मैय्यो-बाप केॅ चैन मिलै छै।"

"देखोॅ बिल्टू-माय, तोहें बण्टू केॅ भगाय पर कैन्हें लागलोॅ छौ। एक तेॅ बिल्टू घरोॅ सें बाहर रहेॅ लागलै। पता नै, ई केन्होॅ पढ़ाय-लिखाय शुरु होय गेलै कि आँखी तरोॅ सें बच्चे हटी जाय छै। की जानतै बच्चां माय-बाबू के बच्चा प्रति लगाव। आरो बच्चो सिनी केॅ माय-बाबू, घोॅर-गाँव के प्रति जे लगाव नै रहलै—सब यहेॅ कारण। ई पढ़ाय तेॅ गाँव के सुख-चैन-प्रतिभा, सब छीनी रहलोॅ छै। हमरा सिनी के जमाना में ई फैशन नै छेलै।"

"यहेॅ सें तेॅ कहै छियौं कि बंटू केॅ ओकरोॅ माय-बाप लुग दै आवौ।"

"है रं कैन्हें बोलै छौ। मौसी तेॅ माय सें बढ़ी केॅ होय छै। कहलोॅ कथी लेॅ गेलोॅ छै—मरेॅ माय, जिएॅ मौसी. चलोॅ उठोॅ, बण्टू केॅ तैयार करी दौ। ज़रा ओकरा झड़वैय्यो देबै, सुनै छियै, झा जी मुंगेरी के चण्डी थान में सिद्धि पैलोॅ होलोॅ छै।"

आरो जबेॅ रूपसावाली वैठां सें उठलै, तेॅ भैरो कापरी नैं जानौ कोॅन सोचोॅ में हठाते डूबी गेलै।