बण्टा भाग-8 / अमरेन्द्र

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"इकबाल भाय, आरो सब बात तेॅ ठीक। बण्टू आपनोॅ उमिर सें बीस गुणा ज्यादाहै जानै छै। ओकरा कृषि काॅलेज के प्रोफेसरो सिनी एत्है मानै छै कि मत पूछोॅ। मतरकि आयकल ऊ असकल्ले बीस बिघिया आम बगीचा दिश भागी जाय छै। कभी-कभी दिन भरी वहीं रही गेलोॅ। है एकदम ठीक नै। आखिर छेकै तेॅ बच्चे नी।"

"अरे, रात भरी तेॅ वोॅन, बगीचा, बहियार में नहिये नी रहतै होतै भैरो। रहै लेॅ दैं। वैं आयतक जत्तेॅ भी जानलेॅ छै, वही वन, बगीचा, नदी, बहियार, पोखरी, सरंग सें। हमरा सिनी सें वंै इकन्नी भरी सीखै छै आरो पन्द्रह आना वही सिनी सें, समाज सें, समाज के रीति-रिवाज, व्यवहार सें। तोहंे चिन्ता नै करलोॅ करें।" इकबालें भैरो केॅ आपने खटिया पर बैठे के इशारा करतें कहलकै।

आरो जबेॅ भैरो कापरी खटिया पर बैठी गेलै, तेॅ इकबालें फेनू कहना शुरु करलकै, " भैरो कापरी पुराण के कथा छेकै, तहूँ जानतें होभैं कि की रं एक बालक शिक्षा पाबै खातिर एक ऋषि लुग पहुँचलै, तेॅ ऋषि ओकरा एक गाय देतें कहलकै कि 'जोॅन दिन ई गाय सें सौ गाय हो जावं, वही दिन तोहें ऐयोॅ आरो हम्में तोरा आपनोॅ चटिया बनाय लेबांै।' ऋषि के शर्त ऊ लड़का मानी लेलकै आरो जंगल दिश चली देलकै। जंगल में ओकरा कै साल तेॅ बीती गेलै आरो जबेॅ एक गाय सें सौ गाय होय गेलै, तेॅ सब गाय केॅ लै केॅ ऊ लड़का वहेॅ ऋषि लुग ऐलै। सौ गाय देखी केॅ ऋषिं कहलकै, 'ठीक छै, आय सें तोहें यहाँ रही केॅ शिक्षा पावेॅ सकै छोॅ। आय सें हम्में तोरा शिक्षा देभौं। यै पर जाने छैं, वैं लड़का की कहलकै? कहलकै' हम्में आपनें के ऋणी छियै गुरुदेव, आपनें तेॅ हमरा शिक्षा दै चुकलोॅ छियै। 'जानै छैं, ई बातोॅ पर वैं ऋषि आचरज सें पूछलकै' सें केना? 'तबेॅ वैं लड़का कहलकै,' जंगल में एत्तेॅ साल रहै के क्रम में वैं पशु, पक्षी, नदी, हवा-बतास, आकाश, तारा, चांद-सुरुज सबके गतिविधि के ढेर-ढेर बात जानी लेलेॅ छै। कोॅन ऋतु में की-की बदलै छै, कोॅन-कोॅन फल-फूल उगै छै, कोॅन-कोॅन पशु-पक्षी के जनम होय छै, केन्होॅ हवा केना चलै छै, कौन बादल की किसिम के होय छै। सब। के केना बोलै छै, ओकरोॅ की मानै छै, यहू सब। आखिर आपन्हौं तेॅ वहेॅ सब के बारे में शिक्षा-दीक्षा देतियै। आरो ऊ सब तेॅ हम्में प्रकृतिये बीच रही केॅ जानी लेलेॅ छियै। ' बालक के ई बात सुनीकेॅ ऋषि मुस्कैलै आरो माथा पर हाथ रखी आशीर्वाद देलकै कि वैं लड़का ऋषि के मनसा खाली जानबे नै करलकै, बलुक बढ़िया चटिया बनलै।

" आबेॅ समझलैं भैरू, हमरोॅ जिनगी में जंगल-नदी, पहाड़-पर्वत, पक्षी, पशु के की महत्त्व छै। छोड़ी दैं बण्टा केॅ, जों ऊ पोखर किनारी में बैठलोॅ रहै छै, गंगा नदी केॅ निहारतें रहै छै, पास-पड़ोस के धरोॅ में केकरौ सें खिस्सा-गप्प सुनतें रहै छै। आभी ओकरोॅ उमिरे की होलोॅ छै। खेलै-धूपै के ही तेॅ उमिर छेकै। एक बात जानी लेॅ भैरू, समाज के एक-एक व्यक्ति हमरा कुछ-न-कुछ शिक्षा ज़रूरे दै छै। दत्तात्रोय मुनि के गुरु तेॅ गिद्ध तक छेलै। आबेॅ तोहें जानै छै कि नैं, नै जानौं, तहियो है सुनी लेॅ—महात्मा बुद्ध केॅ ज्ञान कोय भगवान, देवी-देवता सें नै मिललोॅ छेलै। मिललोॅ छेलै तेॅ केकरा सें—समाज के एक अदना गवैया-बजवैया सें। योग-तप करी केॅ बुद्ध आपनोॅ हाड़-मांस सुखाय केॅ बैठलोॅ छेलै कि तखनिये हुनकोॅ सामना सें एक गायक-मंडली गुजरलै। जे मंडली में पुरुष तेॅ एकतारा बजाय रहलोॅ छेलै आरो जनानी गीत गाबै छेलै। हौ जे गीत गैलोॅ जाय रहलोॅ छेलै आकरोॅ अर्थ ई छेलै कि सितार के तार केॅ एत्तेॅ नै कस्सोॅ कि तारे टूटी जाय, एत्तेॅ ढिल्लोॅ नै छोड़ोॅ कि सुरे नै निकलेॅ। जों तोहें तार ठीक सें बजैबौ, तेॅ सब के मोॅन झूूमी उठतै।

" जानै छै भैरू, बुद्ध नें जबेॅ ई बात सुनलकै, तेॅ हुनकोॅ ज्ञान खुली गेलै। हुनी मध्यम मार्ग केॅ पकड़ी लेलकै आरो हुनकोॅ शिष्य सौंसे दुनिया होय गेलै। आरो है बुद्ध के गुरु के छेलै, तेॅ छोटोॅ-मोटोॅ अदना रं गवैया। तहीं सें कहै छियौ कि समाज के एक छोटोॅ-सें-छोटोॅ आदमी हमरोॅ जीवन केॅ महान बनावेॅ पारेॅ।

"भैरू, हमरा सिनी जे ज्ञान दै छियै, ऊ खाली सिद्धान्त छेकै, हमरोॅ आँखी के आगू में कुछ नै होय छै। प्रकृति आरो समाज के बीच रही केॅ जे आदमी ज्ञान हासिल करै छै, वैं जेटा हासिल करै छै, वहेॅ सुच्चा ज्ञान छेकै—जेकरा तोहें प्रामाणिक ज्ञान कहै छैं। ऊ ज्ञान पर जत्तेॅ भरोसोॅ करलोॅ जावेॅ सकै, तेॅ करलोॅ जावेॅ सकेॅ। हमरो सिनी के ज्ञान तेॅ किताबिये ज्ञान छेकै, अक्षर पर टिकलोॅ ज्ञान, कहलोॅ गेलोॅ ज्ञान पर आधारित ज्ञान। एकरोॅ कोॅन भरोसोॅ। छुच्छे कठदलीली।" ई कहतें-कहतें इकबाल हँंसी पड़लै। आरो कुछ देर की सोचत्हैं रही गेलै।

भैरो कापरी तेॅ पुराणवाला कथाहै से जें चुप छेलै, तेॅ चुप्पे छेलै। खाली दोस्त इकबाल के वहेॅ बात केॅ गुनी रहलोॅ छेलै।

"भैरू, दू रोजोॅ सें एक टा बात गमतें होबैं।" इकबालें भेरो के कान्हा पर हाथ धरी टोकलकै, तेॅ जेना ऊ अनचोके नीनोॅ सें जागी उठलोॅ रहेॅ आरो बोललै, "की?"

"यहेॅ कि बंटू भोरे-भोर कांही निकली जैतै होतौ।"

"हों, ई दस रोजोॅ सें देखी रहलोॅ छियै, मजकि ओकरा सें पूछलेॅ नै छियै।"

"पूछै के ज़रूरतो नै छै। रमखेली के जानै छैं, जे बंटू के गहरा दोस्त छेकै?"

"हों, जानै छियै, ई तेॅ ओकरोॅ साथे लागले रहै छै।"

"यहू जानै छैं कि रमखेलिया केकरोॅ बेटा छेकै?"

"केकरोॅ?"

" भगवत्ता मोची के. आय पाँच रोजोॅ सें भगवत्ता बीमार छै। बस सोचें कि मरले दाखिल छै। कोय देखबैय्या नै। रमखेलिया के मैय्यो तेॅ नहिये छै। बस वहेॅ रमखेलिया; वैं पानी पिलैतै कि असपताली सें दवाय माँगी केॅ लानतै। वहू में भगवत्ता हेनोॅ आदमी के कौनें सुनै छै। ...जानै छैं भैरू, आयकल बण्टू आपनोॅ आठ-नोॅ साथी लै लैकेॅ भगवत्ता के ही सेवा में लागलोॅ रहै छै।

"आबेॅ तेॅ भगवत्ता भागवत होय गेलोॅ छै। बीमारी सें पहिलें जेहनोॅ छेलै, ओकरोॅ सें बढ़िया। बुलबे-चालबे नै करै छै, कामो पर जावेॅ लागलोॅ छै। ...हौ देखैं, हौ देखैं।" हठाते इकबालें भैरू कापरी केॅ दक्खिन दिश हाथोॅ सें देखैतें बोललै, "ई सब दोस्तोॅ केॅ लैकेॅ, बण्टू भगवत मोची के टोले सें निकल्लोॅ छै। सुनै में यहू मिललोॅ छै कि यै सिनी मिली केॅ हौ टोला में बच्चा सब केॅ जौरोॅ करी, एकआध घंटा ओना मासी धंग भी पढ़ावै छै।"

तखनिये तांय भैरो कापरी के चुप्पे देखी केॅ इकबालें ओकरोॅ दिश देखतें कहलकै, "तोहें कुछ सोचेॅ तेॅ नै लागलैं भैरु, अरे बण्टू के मंडली में कौन जातोॅ के लड़का नै छै, कैथ, कहार, बामन, राजपूत, धानुक, वैस, सब जातोॅ के. भैरू, हमरा सिनी जे व्यवस्था बनैलेॅ छियै, आबेॅ ऊ, यहेॅ बच्चा-बुतरु तोड़तै, अश्वमेघ वाला घोड़ा केॅ लव, कुश रोकै लेॅ तैयार छौ। देखी लेॅ आवी रहलोॅ छौ।"

दोनों देखलकै, बण्टा आरो रमखेलिया आगू-आगू हर कदम पर उछललोॅ-कूदलोॅ आगू बढ़ी रहलोॅ छेलै, तेॅ पीछू के छौड़ो, हाथोॅ में ढेलोॅ उठाय केॅ दूर तांय फेंकै वास्तें, दौड़ी केॅ आगू निकली जाय। सब में होड़ा-होड़ी छेलै। कोय दोनों हाथोॅ केॅ तुतरु रं बनैलेॅ मुँहोॅ सें फूंकी रहलोॅ छेलै, तेॅ कोय तरहत्थी पर ताली बजाय केॅ जग्घा पर, कलाई केॅ कलाई पर ठोकी केॅ नगाड़ा बजाय के नाटक में मशगूल। केकरो कुछ सुध-बुध नै।

ई सब देखी भैरो आरो इकबाल एक्के साथें खिलखिलाय केॅ हाँसी पड़लै।

सुनत्हैं सब मनझमान होय गेलै। जुटै के तेॅ सब जुटलोॅ छेलै इस्कूली में, मजकि बण्टा बिना सचमुचे में कलास हवांक हेनोॅ लागी रहलोॅ छेलै। गुरुओ जी के चेहरा पर हौ चमक आरो पढ़ाय में तेज नै छेलै। होना केॅ एकरा इकबालें केन्हौ केॅ जाहिर हुएॅ दै लेॅ नै चाही रहलोॅ छेलै। बस कठहँस्सी में एतनै टा बोललै, "की रमखेली, आबेॅ बण्टू बिना तोरोॅ खेलकूद कना होतै?"

मजकि तखनिये गंभीर होतें फेनू कहलकै, " देख अंजुम, मीरवा, बिहारी, शेखावत आरनी, बंटू घोॅर गेलोॅ छै तेॅ की, वैं जे काम शुरु करनें छै, ऊ बंद नै हुएॅ। सुनै छियै, तोरा सिनी डोमासियो में जाय केॅ पढ़ाना शुरु करनें छौ। हम्में तेॅ चाहै छियै कि हमरोॅ इस्कूल के सब बच्चा, जे पढ़ै लिखै में तेज छै, आपनोॅ-आपनोॅ मुहल्ला के बच्चा केॅ अंगुरी पकड़ी केॅ अक्षर सिखाना शुरु करी दौ। खाली सरकारे पर भरोसे करी केॅ रहवोॅ बेवकूफी छेकै। आरो सरकार के भरोसे रही के कोय अच्छा काम पूरा होलोॅ छै की? ऊ तेॅ बण्टू हेनोॅ लड़का के जिद्दें सें पूरा होतै।

"आरू बण्टू की वहाँ ढेरे दिन रहेॅ पारतै। ओकरोॅ माय बीमार छेलै; ई बात सुनलकै, तेॅ घोॅर जाय लेॅ जिद्द पकड़ी लेलकै। एक दिन तेॅ खैवो नै करलकै। हारी-पारी केॅ मौसां ओकरा भीखनपुर पहुँचाय ऐलै, मजकि ई शरतो पर कि माय के मोॅन ठीक होत्हैं ऊ भिट्टी आवी जैतै। हौ तेॅ नहियो शर्त करवैतियै, तहियो ऐतियोॅ। ओकरोॅ मोॅन यहाँ लागी गेलोॅ छै। हम्में जानै छियै नी कि ऊ वहाँ बहुत्ते दिन नै रहेॅ पारेॅ।"

इकबाल गुरु जी के ई बात सुनी केॅ शेखर, सोराजी, अठोंगर, बमबम आरनी तेॅ भीतरे-भीतर गदगदाय गेलै। सोचलकै—चलें, ज़्यादा सें ज़्यादा दस रोज, या आरो ज्यादा, तेॅ बीस रोज; होन्हौं केॅ महिनो तेॅ देखत्हैं-देखत्हैं फुर्र होय जाय छै।

ई ढाढस सें बण्टा के सब साथी केॅ बड़ी बोॅल मिललोॅ छेलै। सब ठीक समय पर कलासो जाय, ठीक समय पर कलासो लै। हौ सिनी वक्ती तेॅ बण्टा के बहुत ज़्यादा कमी नै अखड़ै, मजकि खेल के वकत हुऐ, तखनी बण्टा बिना ऊ खेल बेकारे लागै।

खेल के बात याद ऐत्हैं मीरवा केॅ हौ दिनकोॅ ज़रूर याद आवी जाय, जबेॅ वैं दौड़ै वक्ती, ई फेकड़ा पढ़ना शुरु करलेॅ छेलै,

कबडी कबडुआ बाप तोरोॅ भड़ुआ

माय तोरी नेंगड़ी, घीच बेटा टेंगड़ी

तेॅ बण्टा बीचे में खेल रोकतें कहलेॅ छेलै, "देख, आय सें खेल खेलै वक्ती ई फेंकड़ा कोय नै पड़तै। आरो नै तेॅ" सेल कबड्डी आला, भगत मोर साला' वालाहै फेंकड़ा पढ़तै। बस एक फेंकड़ा पढ़लोॅ जैतै। "

आरो बण्टा दस कदम दौड़ी केॅ फेनू वहीं ठां आगू-पीछू होतें एक्के सांस बोलतें गेलोॅ छेलै,

सेल कबड्डी आला, तबला बजाला

तबला में पैसा, लाल बतासा।

आरो वहेॅ दिनोॅ सें कोय्यो हौ दोनों फेकड़ा कबड्डी खेलै वक्ती, नै पढ़लेॅ छेलै।

यहेॅ रं एक दिन हेन्हैं केॅ जबेॅ सोराजीं ई गीत पढ़ना शुरु करलकै,

एक तारा, दू तारा

मदन गोपाल तारा

मदना रोॅ बेटी बड़ी झगड़ाई

अक्का गोल-गोल, पक्का पान

शिवोॅ के बेटी कन्यादान

काना रे कनतुल्ला-तुल्ला

पीपर गाछी मारै गुल्ला

साँप बोलै कों-कों कबूतर मांगै दाना

हम्में तोरोॅ नाना।

तेॅ बण्टा गीत के आखरी में कहलेॅ छेलै, "यै सें 'काना' शब्द हटाय केॅ पढ़लोॅ करें। काना बदला कुछुवो बोली ले नी, है सिनी कथी लेॅ बोलै छैं।"

मीरवां माथा पर जोर देतें सोचलकै, "आखिर बण्टा ई सब बातोॅ सें एत्तेॅ चिढ़ै छै कथी लेॅ। ई की हम्में बनैलेॅ छियै, सब्भे तेॅ बोलै छै। आय तांय कोय्यांे तेॅ केकरौ मना नै करलकै। जों बण्टू के माय-बाप हेनोॅ होतियै आरो चिढ़तियै तेॅ एक ठो बातो छेलै। तहियो बण्टू यहेॅ चाहै छै, तेॅ हमरौ सिनी केॅ यहेॅ करना चाही। आखिर ऊ हमरा सिनी लेॅ कत्तेॅ-कत्तेॅ अच्छा बात सोचै छै।"

कि तखनिये इस्कूली के घण्टी तीन दाफी टन-टन-टन के बाद एकदम सें टनटनाय उठलै। घण्टी टनटनाना छेलै कि सब काॅपी-बस्ता लेलेॅ बिरनी रं बाहर निकली पड़लै आरो झुण्ड में चलतें, एक दुसरा केॅ धकेलतें, लेरू-बाछा रं आगू बढ़ेॅ लागलै।

18

"अरे कहाँ छैं कापरी? बाहर निकल, घरोॅ में की घुसियैलोॅ छैं।" भैरो कापरी के द्वारी पर आवी केॅ इकबालें गदगद कण्ठ सें कहलकै।

"अरे इकबाल भाय, ठहरोॅ, ठहरोॅ, तुरत आवै छियांै।" कहतें-कहतें भैरो बाहर निकली ऐलै आरो बरण्डै पर खटिया बिछैतें-बिछैतें पूछलकै, "से एत्तेॅ भोरे-भोर? कोॅन खुशी आनलेॅ छौ दोस्त कि पूसोॅ में कोयल रं कंठ फूटी रहलोॅ छौं। ला बैठोॅ, आरो बतावोॅ कि खुशी के बात की छेकै।"

"पागल होय गेलोॅ छैं। हेन्हैं केॅ बतैभौ, भौजी केॅ कहैं, पहिलैं सबोरोॅ सें रसकदम के मिठाय दुकानी सें मंगैतौ, तेॅ पुछियैं कि बात की छेकै?" इकबाल नें गोल करलोॅ अखबार केॅ दायां हाथोॅ सें बामां में लेतें कहलकै।

"मीट्ठो ऐतै आरो मछलियो ऐतै, पहिलें बतावोॅ तेॅ दोस्त।"

"अरे, बण्टू तेॅ सौंसे इलाका के नाम रौशन करी देलकौ। है देखंे, जागृत हिन्दुस्तान में की छपलोॅ छै—बालक बण्टा को राज्य सरकार सम्मानित करेगी। एकदम मोटोॅ-मोटोॅ अक्षर में ई पंक्ति छपलोॅ छै आरो नीचू में नान्होॅ-नान्होॅ अक्षर में ढेर सिनी बात।"

भैरो इकबाल के हाथोॅ सें अखबार लै केॅ पढ़ेॅ लागलै। एकेक पंक्ति पर ओकरोॅ मुंह कदम्ब नाँखी खिली रहलोॅ छेलै।

"भागवत, चैरासी आरनी के घरोॅ में जबेॅ मिठाय बँटी रहलोॅ छै, तबेॅ तेॅ तोरा मिठाय के भोज टोला भरी में करी देना चाहियोॅ भैरो।" इकबाल जना खुशी सें पागल होतें कहलकै, "पढ़बे करलैं, हमरोॅ इस्कूलो पुरस्कृत होतै, कैन्हें कि बण्टू ई स्कूल के छात्रा छेकै। हम्में तेॅ यहेॅ बूझै छियै—बण्टू ई इलाका लेली अल्लाह के नियामत बनी केॅ ऐलै। ...इखनी चलै छियौ भैरो, खबर ऐलोॅ छै—डी. एम. कमिश्नर यहेॅ संदर्भ में आपनोॅ आदमी साथें इस्कूल आवै वाला छै। साँझै मिट्ठोॅ, मछली दोनों खैभौ।" एतना कही झटकलोॅ-झटकलोॅ इकबाल आपनोॅ टोला दिश मुड़ी गेलै।

भैरो कापरी अखबार लेलेॅ घरोॅ के भीतर हेनोॅ भागलै, जेना देर सें बाहर बंधलोॅ बछड़ा बथानी दिश उड़ै छै। रूपसावाली के सामना में अखबार केॅ फैलाय केॅ राखी देलकै आरो कहलकै, "पढ़ेॅ सकै छोॅ तेॅ पढ़ोॅ। बंटू के वश में भूते-प्रेत नै, सरकारो वश में होय गेलोॅ छै।" आरो ई कही भैरो बच्चे नाँखी खिलखिलाय केॅ हाँसी पड़लै।