बण्टा भाग-9 / अमरेन्द्र

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सौंसे भीखनपुर मुहल्ला में भोरे सें गलगुदुर होय रहलोॅ छै। ई मानै लेॅ कोय्यो तैयारे नै छै कि जोन बण्टा केॅ राज्य सरकार सें पुरस्कृत करै के बात छपलोॅ छै, ऊ पचरासिये के बेटा छेकै। हेनोॅ बात रहैतियै तेॅ भीखनपुर के नाम नै छपतियै। इस्कूलोॅ के नाम छपलोॅ छै तेॅ भिट्टी के, जों यहेॅ बण्टा रहतियै, तेॅ भीखनपुरो के नाम ज़रूरे छपतियै। की बण्टा नाम के आरो लड़का आरो पचरासी नाम के बाप आरो कहीं नै हुएॅ सकै छै।

जत्तेॅ किसिम के लोग, ओत्तेॅ रकम के बात। मतरकि टोला भरी के बच्चा-बुतरु लेॅ काका कनक लाल चैधरी हेनोॅ-तेहनोॅ आदमी नै छेकै। बड़ोॅ वकिलाय पढ़लेॅ छेै, बड़का-बड़का जज-मिनिस्टर सें परिचय छै, ई बात के नै जानै छै। हुनी जेन्हैं अखबार में ई समाचार पढ़लकै, तेॅ सरकारी आॅफिसोॅ में टेलीफोन करी-करी केॅ सब बात के पता लगाय लेलकै कि बण्टा केकरोॅ लड़का छेकै, मूल बासिन्दा कहाँकरोॅ छेकै, भिट्ठी में ओकरोॅ की रिश्ता छै, ओकरा कथी लेॅ पुरस्कार मिली रहलोॅ छै, पुरस्कार में ओकरा सरकारोॅ सें की मिलतै, कहिया मिलतै, के देतै, कोनी स्थानोॅ पर मिलतै, विशेष स्थिति में स्थान बदलेॅ पारें की नै? आरनी आरनी। आरो सब तरफ सें निश्चिन्त होय केॅ, साथे साथ यहू जानी केॅ कि बण्टा आरो कोय नै, ओकरोॅ पड़ोसी पचरासिये के बेटा छेकै, हुनी मारे गदगद होतें घरोॅ सें बाहर निकली ऐलोॅ छेलै। दू नम्बर गुमटी पहुँची केॅ शंकर साव के मिठाय दुकानी में चार सेर मिहिन दाना के लड्डू लेलकै। आरो पचरासी घोॅर दिश लौटी पड़लै। पटरिये-पटरी होलेॅ हुनी एक नम्बर गुमटी तांय ऐलोॅ छेलै आरो कारू मंडल के दुकानी सें दस टाका के चाॅकलेटो लै लेलकै। जेकरा खादी के आपनोॅ लम्बा कुत्र्ता के जेबी में डाललकै आरो आगू बड़ी गेलै। हुनी बण्टा के बात केॅ लैकेॅ एत्त्है खुश छेलै, जेना ई पुरस्कार पचरासी बेटा केॅ नै, हुनके बेटा केॅ मिललोॅ रहै।

चैधरी काका पचरासी के दुआरी पर आवी केॅ रुकी गेलै, तेॅ बण्टा केॅ आवाज देलकै। हुनकोॅ आवाज सुनत्हैं पचरासी झपटी केॅ घरोॅ सें बाहर आवी गेलै।

"की बात छेकै दादा?" चैधरी काका के हाथोॅ में मिठाय के डलिया देखी वैं आचरज सें पूछलकै।

"अरे बण्टू कहाँ छै?" चैधरी का के उतावलापन के कोय सीमा नै छेलै।

"ऊ तेॅ बगीचा में सुखलोॅ लकड़ी, काठी, पत्ता जौरोॅ करी रहलोॅ होतै। देखै नै छौ, कुहासोॅ की रं राती घिरी आवै छै। लागै छै सबटा लगलोॅ आलू पौधा केॅ झुलसा रोग मारी जैतै। तरसुऐ नी ऊ यहाँ ऐलोॅ छै, आरो वही दिनोॅ सें, हमरोॅ मना करलहौ पर बगीचा भागी जाय छै, झाड़पात जमा करै लेॅ। तबेॅ एक बात होय जाय छै कि जखनी बण्टा खेतोॅ के बीचोॅ-बीचोॅ में खोॅर-पात राती जराय दै छै, तेॅ कुहासोॅ खेतोॅ पर कम्मे गिरै छै। मनाहो करला पर मानै छै, जोरी सें बाल्टी-बाल्टी पानी लै आनै छै, फसलोॅ पर छीटी देलकौ आरो खोॅर-पतारोॅ पर ताकि देर रात तांय ऊ धुऐंतें रहेॅ। देखौ, ई ठहारोॅ में ऊ बहियार गेलोॅ होलोॅ छै, तबेॅ गांती बांधी देलेॅ छियै आरो आपनोॅ कम्बलो दै देलेॅ छियै।" कहतें-कहतें पचरासी के बोली झमान होय गेलोॅ छेलै, मजकि तखनिये कुछ हुलासोॅ सें बोली उठलै, "मतरकि जे कहोॅ दादा, सालो भर तेॅ नै होलोॅ होत्है बण्टा के भिट्टी गेलौ, आरो वहाँ सें ऐलोॅ छै, तेॅ पच्चीस साल के इलिम लै केॅ ऐलोॅ छै।"

"अरे यहेॅ इलिम लेॅ तेॅ सरकारें ओकरा पुरस्कृत करी रहलोॅ छै। पहलें है मिठाय घरोॅ में रखी केॅ आवोॅ। यै में कुछ तेॅ बण्टा के संगी-साथियों में बांटी दियौ।"

पचरासी केॅ है सब बहुत कुच्छू समझै में नै ऐलै। वैं अभी तांय ई खबर केॅ जानलो नै छेलै। कोय कहवो नै करलेॅ छेलै, जानतियै कहाँ सें। ऊ आपने में हेरैलोॅ-हेरैलोॅ हेनोॅ बुझैलै। जबेॅ चैधरी कां फेनू घरोॅ में मिठाय धरी आय केॅ कहलकै, तेॅ पचरासी तखनी बिना कुछ पूछले मिठाय घरोॅ में राखी ऐलै आरो तुरत्ते बाहर निकली ऐलै, एक कुर्सियो लै ऐलोॅ छेलै।

"आबोॅ, बैठोॅ दादा।" कुर्सी दुआरी के बाहर रखतें पचरासी कहलेॅ छेलै।

"अरे नै, नै, एकरोॅ कोय ज़रूरत नै छै।" चैधरी कां हाथोॅ सें इनकार करतें कहलेॅ छेलै आरो बाकी बात अखबार पढ़ी केॅ सुनैलेॅ छेलै। सुनैला के बाद बड्डी गौरव के साथ कहने छेलै, "की समझलौ, आबेॅ बण्टा केॅ सरकारें पढ़ैतै। सरकारे के पैसा पर ऊ पटना जैतै, दिल्ली जैतै, लन्दन जैतै। आरो तोहें जानिये लेलौ कि कथी लेॅ बण्टा केॅ सरकार है सुविधा दै रहलोॅ छै। पूरे कदरसी-डोमासी केॅ बण्टा जे रं आपनोॅ साथी संगें मिली केॅ स्वर्ग बनाय देलकै, वहेॅ लेॅ। पचरासी, ई काम तेॅ आजादी पैला के बाद, नेहरु सें लैकेॅ आपनोॅ झुट्टा सांसद आरो विधायको नै करेॅ पारलकै। डपोर संख रं बाजी लौ कत्तो।"

पचरासी तेॅ खुशी सें कुछ बोल्है नै पारी रहलोॅ छेलै। की बोलतियै ऊ। वैं तेॅ अभी तांय के ई जिनगी में कभी है बात सपन्हौं में नै सोचलेॅ छेलै। जों सोचलेॅ छेलै, तेॅ एतने टा कि बण्टा चार अक्षर पढ़ी लै छै, तेॅ बारह नम्बर गुमटिये पर कोय मनिहारी के दुकान खोलवाय देवै, नै घरोॅ में दिएॅ पारतै तेॅ नै, आपनोॅ जेब तेॅ चलैतै।

"अरे, सोचेॅ की लागलौ। ई सपना के बात नै छेकै। अखबारोॅ में छपलोॅ बात छेकै। अखबारो झूठ हुएॅ पारेॅ, मजकि हम्में तेॅ भागलपुर कमिश्नरी सें लैकेॅ पटना तक पूछी लेलेॅ छियै। एकदम सच-सच बात छेकै।" ई कहतें चैधरी कां आपनोॅ जेबी में हाथ डाली केॅ सब टा चैकलेट निकाललेॅ छेलै आरो पचरासी के दायां तरहत्थी आपनोॅ बायां तरहत्थी पर धरतें, वै पर सब चाॅकलेट राखी देलकै, ई कहतें कि "है खाली बण्टू वास्तें छेकै। हमरोॅ दिश सें दै दियौ। पता नै, ऊ कखनी लौटेॅ, नै तेॅ हम्मी आपनोॅ हाथोॅ सें देतियै। है रं पूत तेॅ घरोॅ-घरोॅ में हुएॅ।"

कहतें-कहतें हुनी एकदम गंभीर होय उठलोॅ छेलै आरो जेन्हैं लौटै लेॅ घुुमलै, ओन्है केॅ फेनू पचरासी दिश होतें बोललै, "आरो सुनोॅ, बण्टू पुरस्कृत तेॅ होतियै भिट्टिये में, मजकि मोॅर-मिनिस्टर सें पैरवी करी केॅ ऊ स्थान बदलवाय केॅ हम्में भीखनपुर करवाय लेलेॅ छियै। आबेॅ कालिये थानवाला इस्कूली में सबटा मोर-मिनिस्टर, डी. एम. कमिश्नर ऐतै। सरकार सें कहीं देलियै कि बण्टू के माय के मोॅन बहुत खराब छै, से सब बातोॅ के देखतें हुएॅ ई समारोह भीखनपुरे में हुएॅ। डी. एम., कमिश्नरें मानियो लेलकै। आरो एक बात, ई कार्यक्रम अगले महिना के पहिलकोॅ मंगलवार केॅ होना छै। यहू सबकेॅ कही दियौ। से तेॅ अखबार में ई सब बात निकलबे करतै।" कहतें-कहतें चैधरी काका विषहरी-थान दिश बढ़ी गेलोॅ छेलै।

पचरासी तेॅ वहीं पर बक्खोॅ नाँखी खाड़े रही गेलोॅ छेलै—ढेर देरी लेॅ। ई सब बातोॅ पर जेना विश्वास होय्यो केॅ ओकरा विश्वास नै होय रहलोॅ छेलै।

भीखनपुर के प्राइमरी इस्कूल सजी-धजी केॅ बड़का घरकुण्डा रं सुन्दर दिखावेॅ लागलोॅ छेलै। आमोॅ पल्लोॅ केॅ, नारियल रस्सी सें गूंथी-गूंथी केॅ, माला नांखी बनैलोॅ गेलै, जेकराहै इस्कूली छत के बीच में खड़ा सीक आरो बीस गज के दायरा में आवैवाला गाछ, मकान सें हेनोॅ बांधलोॅ गेलौ छेलै, जेना सीधा तनलोॅ आधोॅ छतरी रहेॅ। बाहर-बाहर जहाँ रस्सी के छोर खतम हुऐ, वहाँ-वहाँ गंेदा फूलोॅ के माला लटकैलोॅ गेलोॅ छेलै।

छतरी के भीतर दू सौ सें ज़्यादा प्लास्टिक वाला लाल-लाल कुर्सी दू भागोॅ में राखलोॅ गेलोॅ छेलै—तीन हाथोॅ के बीचे बीच खाली जग्घोॅ छोड़ी केॅ कि बड़ोॅ-बड़का लोगोॅ केॅ आबै-जाबै में कोय दिक्कत नै हुएॅ।

इस्कूली के बरण्डा सें लागलोॅ पाया-वाया तेॅ कुछुवे नै छेलै, से वहीं पर लम्बा रं तीन टेबुल जोड़ी केॅ रखलोॅ गेलै आरो वैं पर बगुला के उजरोॅ पंख नाँखी बगबग एकसलगा चादर हेनोॅ बिछैलोॅ गेलै कि तीन टेबुल जोड़ी केॅ एक करलोॅ गेलोॅ के पतो नै चलेॅ। टेबुल के बीचोॅ-बीचोॅ में काँचोॅ के गुलदस्ता में हजारा गेंदा आरो पत्ता सहित गुलाबो गोलियाय केॅ राखलोॅ। वही टेबुल पीछू पांच ठो काठ वाला कुर्सी. कृष्णमोहन घोष बाबू के यहाँ से मंगैलोॅ गेलोॅ छेलै। बीचोॅ में सिंहासननुमा एक काठोॅ के कुर्सियो छेलै, जे कनक लाल चैधरी के यहाँ सें मंगवैलोॅ गेलोॅ छेलै, जेकरा चैधरी जी आपने लेली खास करी केॅ बनवैलेॅ रहै। आय वही कुर्सी शिक्षा मंत्राी वास्तें ऐलै।

बरण्डा के नीचें दायां दिश वाला कुर्सी सिनी के सबसें आगू वाला कुर्सी सिनी पर इकबाल गुरु जी साथें, भैरो कापरी, पचरासी महतो, कनक लाल चैधरी, हरि दूबे, उमाकांत भारती साथें बण्टा केरोॅ नवो साथी अंजुम, रमखेली, मिरवा, शेखावत, घोल्टू, सोराजी, अठोंगर आरो बमबम बैठलोॅ छेलै।

ऊ पंक्ति के ठीक पीछू वही इस्कूल के गुरु जी सिनी बैठलै। साथें-साथें मुहल्ला भरी के आरो कुछ गणमान्य लोगो। बाकी पीछू कुर्सी पर मुंदीचक, बरहपुरा, लालूचक, लोदीपुर, इशाकचक, के लोग सिनी जमलोॅ होलोॅ छेलै। होन्हैं केॅ दांया दिश के अगुलका कुर्सी पर कुछ अफसर टाइप के लोग बैठलोॅ छेलै आरो पिछुलका कुर्सी पर पूरे भीखनपुर भरी के लोग पहिलें सें जमी चुकलोॅ रहै।

मंच के पश्चिम, पूरब, आरो दक्खिन के पटरी तांय देखवैय्या के खचाखच भीड़, गड़लोॅ खुट्आ रं, स्थिर दिखावै। मंच के एकदम पीछू प्लास्टिक के पाँच कुर्सी पर पाँच जनानियो बैठलोॅ छेलै, जै में बण्टा आरो बिल्टू माय तेॅ अलगे सें पहचान में आवी रहलोॅ छेलै, बाकी तीन कुर्सी पर चैधरी, भारती आरो दुबे जी के जनानी बैठलोॅ छेलै कि हठाते हुचक्का उठलै—मिनिस्टर साहब आवी गेलै, मिनिस्टर साहब आवी गेलै। जे खाड़ोॅ छेलै, ऊ तेॅ खाड़े रहलै, लेकिन बैठलोॅ सब हेनोॅ खाड़ोॅ होय गेलै, जेना हठाते कलासोॅ में हेडमास्टर साहब घुसी गेलोॅ रहेॅ।

सब्भैं देखलकै, शिक्षा मंत्राी जी सबसें आगू-आगू दोनों दिश बिछलोॅ कुर्सी सिनी के बीच के रास्ता सें निकली मंचोॅ दिश बढ़ी गेलै। एकरोॅ साथे ंपुलिस के रौन खतम होय गेलोॅ छेलै। सब एक दिश खाड़ोॅ होय गेलोॅ रहै।

मंत्राी जी के कुर्सी पर बैठत्हैं सांसद, विधायक हुनकोॅ एक दिश आरो मंत्राी जी के साथ ऐलोॅ दू आदमी एक दिश बैठलै।

मंत्राी जी के जयजयकार के बीच जबेॅ स्वागत गान खतम होलै, तेॅ शिक्षा मंत्राी होय के नाता मंत्राी जी खाड़ोॅ होय केॅ अंग्रेज़ी में आधोॅ घंटा तांय बोललै, ताकि लोग हुनका कम पढ़लोॅ-लिखलोॅ नै समझेॅ। सुनवैया में कुछ तेॅ आचरज में छेलै, बाकी ढेरे हेनोॅ मूडोॅ में, जेना हुनी मंत्राी जी के एक-एक बातोॅ केॅ समझी रहलोॅ छेलै। कभियो-कभियो बगल के आदमी केॅ गुर्राय केॅ देखियो लै, है बताय लेॅ कि ओकरोॅ बोलला सें मंत्राी केॅ सुनै में दिक्कत होय रहलोॅ छै।

मंत्राी जी के भाषण खतम होलै, तेॅ दायां दिश खड़ा एक आदमी सामना में आवी केॅ बोललै, "आबेॅ आपना सिनी के सामना में भिट्टी स्कूल के हेडमास्टर इकबाल जी आपनोॅ बात राखतै।"

मंच के नीचें जेना नया उत्तेजना उठी गेलोॅ छेलै। इकबाल गुरु मंच पर चढ़लोॅ छेलै। सफेद चूड़ीदार पजामा आरो सफेदे लंबा कुत्र्ता। चेहरा पर कटलोॅ-छटलोॅ कारोॅ-घन्नो दाढ़ी आरो दाढ़ी के रंग सें मिलतें पातरोॅ मूंछ। आँखी पर पातरोॅ फ्रेम में सफेद शीशा के चश्मा। देखलै सें लागै कि खूब पढ़लोॅ-लिखलोॅ आदमी छेकै, यही सें सब्भै यहेॅ सोचलकै कि हिनियो ज़रूरे अंगे्रजिये में बोलतै। मतरकि बात उल्टा निकललै। मंच पर आवी केॅ हुनी जबेॅ माइक आपनोॅ हाथोॅ में लेलकै, तेॅ एतनै टा कहलकै, "आय देश में जों शिक्षा, बच्चा सिनी केॅ शिक्षित नै करेॅ पारी रहलोॅ छै, तेॅ ओकरोॅ एक्के कारण छेकै कि शिक्षा ओकरोॅ मातृभाषा में नै देलोॅ जाय रहलोॅ छै। एक बच्चा वहेॅ भाषा में, सिर्फ़ वही भाषा में दुनिया भरी के बात समझेॅ पारेॅ, जे भाषा में ऊ बच्चा के पुरखां सब बातोॅ केॅ हजारो लाखो बरसोॅ सें समझतें ऐलोॅ छै। ई देश के ज्ञान, ई देश के भाषा में छुपलोॅ छै, आरो हम्में ई देश केॅ शिक्षित यहाँकरे माँटी के भाषा में करेॅ पारौं, वही भाषा, जे दुबड़ी रं ई जमीन पर गड़लोॅ छै, जेकरा जत्तेॅ मोचारलोॅ जाय, कत्तो काटलोॅ जाय, ऊ फेनू उगी आवै छै, कैन्हें कि दुबड़ी कभियो नै मरै छै। बण्टा आरो एकरोॅ साथीं टोला-टोला केॅ ओकरे भाषा में शिक्षित करी केॅ यहेॅ देखैलेॅ छै, जे काम कोय दूसरोॅ भाषा सें दू सौ साल में ंनै होतियै, ऊ काम बण्टू आरो ओकरोॅ साथी सिर्फ़ पाँच महीना में करी दिखैलेॅ छै। हमरा बड्डी गौरव होतै, जांे ई बात केॅ ई देश के शिक्षाविद् समझेॅ पारतै।"

जब तांय इकबाल गुरु के भाषण होतें रहलै, तब तांय तेॅ एकदम चुप्पी रहलै, मजकि हुनकोॅ बात खतम होत्हैं ताली के गड़गड़ाहट हेनोॅ गूंजलै कि मत पूछोॅ। तीन मिनिट तांय गूंजतै रहलै। कम हुऐ कि फेनू तेज होय जाय। इकबाल जी के आपनोॅ कुर्सी पर बैठी गेला के बादो।

मंच-संचालक की बोललकै, केकरौ कुछ नै मालूम होलै। ताली बजबोॅ तेॅ तबेॅ रुकलै, जबेॅ मंच पर बण्टा आपनोॅ नवो साथी साथें खाड़ोॅ होय गेलोॅ छेलै।

बण्टा के आपनोॅ साथी साथें मंच पर खड़ा होवोॅ तेॅ एक अलगे दृश्य खाड़ोॅ करी देलेॅ छेलै। जे सिनी नीचें कुर्सी पर बैठलोॅ छलै आकि कुर्सी के पीछू खड़ा छेलै, ऊ तेॅ बैठले आरू खड़े रहलै, मजकि दायां-बायां खड़ा देखवैय्या के पीछू वाला लोग गजब के हुलुक-बुलुक करेॅ लागलोॅ छेलै। छोटोॅ-छोटोॅ बुतरु तेॅ जन्हैं भीड़ोॅ में फांक देखै, मूड़ी घुसाय केॅ आगू निकली आवै। देखवैय्या के आँखी में अजीब भाव छेलै, जेना मंच पर खड़ा बुतरु सिनी अभी हवा में उड़ी केॅ देखतै।

मंच संचालकें माइक बण्टा के आगू में करी देलकै आरो कुछ बोलै के इशारो करलकै। बण्टा एक क्षण लेली आपनोॅ दोस्त सिनी केॅ दायां-बायां दिश मूड़ी करी केॅ देखलकै—कि वैं की बोलतै? कि तखनिये मंचोॅ सें नीचें उतरी केॅ ऊ पचरासी लुग आवी गेलै। पचरासी के हाथोॅ में राखलोॅ बस्ता केॅ लेलकै। एक कापी निकाललकै आरो वहीं सें एक कागज निकाली केॅ मंचोॅ पर फेनू खाड़ोॅ होय गेलै। ठीक वही जग्घा पर। एक दाफी दायां-बायां दिश के आपनोॅ नवो साथी केॅ देखलकै आरो मूं के माइक सें लगभग सटाय लेलकै। ठोर बंद करले हूँ-हूँ करी केॅ गल्ला साफ करलकै आरो बोलेॅ लागलै, "हमरोॅ साथी सिनी बोलै छेलै कि हम्में एत्तेॅ बात केना जानै छियै। हम्मंे ज़रूर कोय भूत-प्रेत पोसलेॅ छियै। आय हम्में एकरोॅ राज बतावै छियै कि कना हम्में एत्तेॅ-एत्तेॅ बात जानलियै आरो करलियै। है देखोॅ अखबारोॅ के ई टुकड़ा।"

ई कही केॅ बण्टा दायां हाथ सें ऊ अखबार के टुकड़ा हवा में कुछ देर तांय लहरैलेॅ छेलै आरो फेनू नीचेॅ करी कहना शुरु करलेॅ छेलै, "ई छेकै हमरोॅ पहिलकोॅ राष्ट्रपति अब्दुल कलाम द्वारा हमरा सिनी लेली बनैलोॅ गेलोॅ दस मंत्रा, जेकरा हम्में रोज एकान्ती में घोकियै आरो वहेॅ मंत्रा मोताबिक काम करियै, जहाँ दिक्कत हुएॅ, बड़ोॅ-बड़ोॅ विद्वानोॅ सें पूछियै। ई मंत्रा सिनी हमरा में बड़ी हिम्मत लानी देलकै। आबेॅ तोरा सिनी जानै लेॅ चाहबौ कि ऊ मंत्रा की छेकै, हम्में पढ़ी केॅ सुनाय छियौ।"

आरो बण्टा दोनों हाथोॅ सें ऊ कतरन के पंक्ति सिनी केॅ ठीक सें रेघाय-रेघाय केॅ पढ़ना शुरु करलकै,

" पहिलोॅ मंत्रा छेकै—हम्में आपनोॅ पढ़ाय आरो कार्य भीतरी मनोॅ सें करवै आरो महान बनबै।

" दूसरोॅ छेकै, आबेॅ सें हम्में कम-सें-कम दस अनपढ़ लोगोॅ केॅ पढ़बोॅ-लिखवोॅ सिखैबै।

" तेसरोॅ मंत्रा छेके, हम्में कम-सें-कम दस गाछ लगैवै आरो ओकरोॅ अच्छा नांखी देखभल करबै।

" आबेॅ चैथोॅ मंत्रा छेकै, हम्में शहर-गाँव जाय केॅ कम-सें-कम पांचो लोगोॅ केॅ नशाखोरी आरो जुआ खेलै के आदत सें मुक्ति दिलैबै। '

" पाँचमोॅ मंत्रा सुनोॅ, पाँचमोॅ मंत्रा छेकै कि हम्में बीमार आदमी के दुख दूर करै के सद्दोखिन प्रयास करबै। '

" वहेॅ रं छठमोॅ मंत्रा ई छेकै कि हम्में धम्र, जाति आरो भाषा के नामोॅ पर केकरो भेदभाव के समर्थन नै करबै।

" सातमोॅ मंत्रा छेकै कि हम्में ईमानदार बनबै आरो समाज केॅ भ्रष्टाचार सें मुक्त करै के प्रयास करबै।

" आठमोॅ छेकै कि हम्में बुद्धिमान नागरिक बनै लेली काम करबै आरो आपनोॅ परिवारो केॅ आदर्शवान बनैबै।

"रहलै नौमोॅ, तेॅ नौमोॅ मंत्रा ई छेकै कि हम्में मंद बुद्धि आरो शारीरिक रूप सें कमजोर लोगोॅ साथें दोस्ताना व्यवहार करवै आरो सहयोग देबै ताकि हुनकोॅ सिनी हमरे नांखी जीवन जीएॅ सकेॅ।"

कहतें-कहतें बण्टा हठाते रुकलोॅ छेलै आरो कतरन केॅ बायां हाथोॅ सें लेतें दायां हाथोॅ सें दोस्त सिनी के छूवी-छूवी केॅ जल्दी-जल्दी गिनलेॅ छेलै, "एक, दू, तीन, चार, पाँच, छोॅ, सात, आठ नौ आरो फेनू आपना पर अंगुरी रखतें कहलेॅ छेलै, दस।"

वैं एकरोॅ बाद होन्हैं केॅ अखबार दोनों हाथोॅ के दोनों चुटकी के बीच दबैतें बोललै छेलै, "आरो मिसाइल मानव डाॅ। ए. पी. जे अब्दुल कलाम जी केॅ दशमोॅ दैलोॅ मंत्रा छेकै कि हम्में आपनोॅ देशवासी आरो देश के सफलता पर गौरव करबै।"

पढ़ला के बाद बड़ी हिफाजत सें वैं ऊ कतरन चपोती केॅ कमीज के ऊपरलका जेबी में राखी केॅ दोस्ते सिनी के पंक्ति में सीधा खाड़ोॅ होय गेलै।

बण्टा के दशमोॅ मंत्रा पढ़त्हैं सब्भे दिशा सें ताली के हेनोॅ गड़गड़ाहट होलोॅ छेलै कि मत पूछोॅ।

तालिये के गड़गड़ाहट के बीच मंत्राी जी उठलोॅ छेलै आरो मंत्राी जी साथें, मंचोॅ के आरो सब आदमियो।

टेबुल पर गांधी जी रोॅ डेढ़-डेढ़ बित्ता के चमचम करतें स्टील वाला दस मूत्र्ति एक अर्दली आवी केॅ राखी गेलोॅ छेलै।

ताली के गड़गड़ाहट रुकिये नै रहलोॅ छेलै।

एक आदमी मंत्राी जी के हाथोॅ में एकेक करी केॅ मूत्र्ति राखलेॅ जाय आरो मंत्राी जी एकेक करी केॅ मूत्र्ति बहादुर बच्चा केॅ देलेॅ जाय। पत्राकार आरो फोटो खिंचवैया के तेॅ तांता। धांय-धांय कैमरा सें फोटो खिचलोॅ जाय रहलोॅ छेलै, कैमरा के छटाक-छटाक-छटाक सें बण्टा, अंजुम, रमखेली, मिरवा, शेखावत, घोल्टू, सोराजी, अठोंगर, बमबम, शेखर के चेहरा रही-रही केॅ वहेॅ रं चमकी उठै, जेना धारापाती सजैलोॅ आइना पर सुरुज के किरिन सब्भे पर एक्के साथ चमकी-चमकी जैतें रहेॅ। बण्टा आरनी के आँख तेॅ एकदम चैंधियैलोॅ जाय छेलै। सामना में मूं राखवोॅ एकदम कठिन। मजकि फोटो खिंचाय के हुलास के कोय ठिकानोॅ नै छेलै। सब मूत्र्ति लेलेॅ मूत्र्तिये नाँखी खाड़ोॅ रहलै। ऊ बीचोॅ में पीछू खड़ा होय केॅ मंत्राी जी फेनू की बोललै, कोय नै सुनलकै। भला हौ ताली में कोय्यो केकरोॅ की सुनेॅ पारतियै।

धीरें-धीरें मंच खाली होय गेलै। बण्टौ आपनोॅ साथी साथें नीचे उतरी इकबाल गुरु जी केॅ घेरी खाड़ोॅ होय गेलोॅ छेलै।

चैधरी जी घूमी केॅ जमुआर गुरु जी सें कुछ कहै लेॅ चाहलकै, मजकि हुनी आपनोॅ साथी साथें हौलेॅ सें कखनिये खिसकी गेलोॅ छेलै।

आरो मंत्रियो आरनी जाय चुकलै, मजकि देखवैय्या, सुनवैय्या के ठसाठस भीड़ होन्है केॅ खाड़ोॅ छेलै, जेना बिना नगीचोॅ सें बण्टा केॅ देखलेॅ जाय लेॅ तैयार नै रहेॅ। ताली के गड़गड़ाहट थमी गेलोॅ छेलै, तहियो नै जानौं, सबके कानोॅ में हौ गड़गड़ाहट कत्तेॅ देर तांय गनगनैतैं रहलै। जेकरा भी कोय कुछ बोलतें सुनलकै, तेॅ बस यही कि "बेटा हुएॅ तेॅ बण्टा जेन्होॅ।"