बलराज साहनी 'बायोपिक' की समस्याएं / जयप्रकाश चौकसे

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बलराज साहनी 'बायोपिक' की समस्याएं
प्रकाशन तिथि : 11 मार्च 2019


टेलीविजन और इंटरनेट पर पुरानी फिल्में दिखाई जा रही हैं। गीत बनाए जा रहे हैं। आज का युवा दर्शक हिंदुस्तानी सिनेमा के गुजरे हुए दौर से परिचित हैं। अभिनेता परीक्षित साहनी अपने पिता महान बलराज साहनी की बायोपिक बनाना चाहते हैं। बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा जमीन' बार-बार टेलीविजन पर प्रसारित की जाती है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहला अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित किया था। हमारे फिल्मकार यूरोप के नव यथार्थवादी सिनेमा से परिचित हुए। इसी से प्रेरित बिमल रॉय ने 'दो बीघा जमीन' और राज कपूर ने 'बूट पॉलिश' बनाई परंतु काव्यात्मक यथार्थवाद का प्रारंभ सत्यजीत रॉय की 'पाथेर पांचाली' से प्रारंभ हुआ। ज्ञातव्य है कि जब कान फिल्म समारोह में 'पाथेर पांचाली' दिखाई जा रही थी तब केवल एक जूरी सदस्य एंड्रे वाजा जाग रहे थे और फिल्म समाप्त होने पर उन्होंने अपने साथियों से निवेदन किया कि वे काफी पीकर तरोताजा होकर इस महान फिल्म को देखें। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ। किसी एक का जागते रहना भी इतिहास रच सकता है।

बहरहाल, 'दो बीघा जमीन' में बलराज साहनी ने ऐसे किसान की भूमिका अभिनीत की जो अपने गांव के महाजन के पास गिरवी रखा अपना खेत छुड़ाने के लिए कोलकाता में रिक्शा खींचता है। इस भूमिका को बहुत सराहा गया। दशकों बाद कोलकाता में रिक्शा खींचने वाले पात्र की भूमिका ओम पुरी ने 'सिटी ऑफ जॉय'में अभिनीत की। ओम पुरी, बलराज साहनी की परम्परा की अगली कड़ी थे और अब नवाजुद्‌दीन सिद्‌दीकी इसी परम्परा की कड़ी हैं। खूबसूरत चेहरों के साथ ही खुरदुरे चेहरे वाले अभिनेता भी अवाम द्वारा सराहे जाते हैं।

बलराज साहनी ने 47 वर्ष की उम्र में फिल्म अभिनय यात्रा प्रारंभ की। अभिनय को प्राय: युवा अवस्था से जोड़ा जाता है। सच तो यह है कि आम आदमी भी अपने जीवन में अभिनय करता है। आजकल हम खुशहाल और प्रसन्न व्यक्ति की भूमिका निभा रहे हैं। अपने स्कूल जीवन में बलराज साहनी ने नाटक अभिनीत किए। उनके अध्यापक सोंधी और बुखारी ने उन्हें प्रेरित व प्रशिक्षित किया। उन्हें रंगमंच से प्रेम हो गया। फिल्म में अभिनय के विषय में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था। कुछ समय उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में भी पढ़ाने का काम किया। बलराज साहनी भारती लोकनाट्य संघ से जुड़े, जिसे प्राय: इप्टा कहा जाता है। प्रतिवादी विचार से संचालित इस संस्था से जुड़े अनेक लोग फिल्मों में आए। दरअसल, पृथ्वी थिएटर और इप्टा ने फिल्म संसार को कई प्रतिभावान लोग दिए।

मुंबई में बलराज साहनी मिल मजदूर संघ में भी सक्रिय रहे। उनकी मित्रता चेतन आनंद से हुई। एक मजदूर सभा में बलराज साहनी और चेतन आनंद के बीच बहस हुई। मुद्‌दा यह था कि क्या मिल मालिकों से सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए धन लिया जाए। कम्यूनिज्म के आदर्शों के प्रति समर्पित बलराज साहनी मिल मालिक से चंदा लेने के खिलाफ थे, जबकि चेतन आनंद का विचार था कि चंदा लेकर उस पैसे का इस्तेमाल उन्हीं के खिलाफ किया जाए। बहराल, चेतन आनंद और बलराज साहनी ऐसे व्यक्ति थे कि सिद्धांत के लिए की गई बहस से व्यक्तिगत रिश्ते को बचाए रखते थे। जब चेतन आनंद ने 'हकीकत' बनाने का विचार किया तब भी अपने रूठे हुए मित्र बलराज साहनी के पास पहुंचे और दोनों के सहयोग से ही वह फिल्म बन पाई। बलराज साहनी ने अपने पुत्र परीक्षित साहनी को रूस के सिनेमा स्कूल में विद्या के अध्ययन के लिए भेजा। परीक्षित निर्देशन विधा में प्रशिक्षित हुए। रूस के सिनेमा स्कूल में फिल्म कला से जुड़े सारे पक्षों का प्रशिक्षण दिया जाता है। आप किसी एक पक्ष में विशेषता अर्जित कर सकते हैं। बहरहाल, परीक्षित साहनी पटकथा लिख लेंगे और उन्हें पूंजी निवेशक भी मिल जाएंगे परंतु बलराज साहनी बायोपिक के लिए कलाकारों के चयन में उन्हें बहुत कष्ट होगा। मुख्य पात्र का चयन काफी कठिन होगा। बलराज साहनी ने एक सार्थक सफल जीवन जिया था। उन्हें फिल्म 'गर्म हवा' के लिए भी सराहा गया था। एमएस सथ्यू कि 'गर्म हवा' उन मुसलमानों की कहानी है, जिन्होंने देश के विभाजन के समय भारत में ही रहने का निर्णय किया था, क्योंकि उनके पिता दादा, परदादा और नाना भी यहीं जन्मे थे। इसी विषय पर बनी फिल्म 'मुल्क' को हम 'गर्म हवा' की अगली कड़ी मान सकते हैं। बलराज साहनी के जीवन की एक अजीबोगरीब घटना यह है कि उन्हें साम्यवादी विचारों में विश्वास करने और मिल मजदूर हड़तालों से जुड़ने के कारण कुछ माह की सजा हुई थी। उनकी निर्माणाधीन फिल्मों के पूंजी निवेशक ने अदालत में अर्जी लगाई। न्यायालय ने फैसला दिया कि पुलिस उन्हें जेल से लेकर प्रतिदिन सुबह 9:00 बजे स्टूडियो ले जाए और शाम 5:00 बजे वापस जेल ले आए। इस तरह बलराज साहनी एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्होंने राजनीतिक आदर्श के लिए जेल की सजा काटते हुए भी अभिनय किया।