बस तू राजपूत की छोरी नी होती तो... / नवीन रमण

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनीषा और रणजीत

मनीषा

तू आपणी क्लास मैं कती सब तै न्यारी अर सब तै प्यारी लागै सै मन्नै।

ऊ तै मेरा जी अंगरेजी की क्लास मैं लागता कोनी। पर जब तू अंगरेजी पढ़ै है ना। जमा अंगरेजी के फूल से झड़ ज्या सै। कती गुड़ की तरिया (तरह) तेरी आवाज घुलती चली जा सै। कितनी मीठी आवाज सै तेरी। कती शहद बरगी(जैसी)

बस तू राजपूत नहीं होती तो मैं तेरे तै प्यार करण लाग जाता। पर तू राजपूत सै तो डर लाग्गै सै। यै राजपूत मन्नै जान तै मार देंगे। हाँ पता सै मन्नै तू उन जीसी(जैसी) राजपूतनी कोनी। फेर बी घणा डर लाग्गै सै।

तू जात का फरक कोनी मानती। पर बावळी तेरे मानने नहीं मानने तै घणा फरक कोनी पड़दा।

जी(मन) तो तेरा भी करदा होगा मेरे तै बात करण का। अर प्यार करण का। अक कोनी (नहीं) करता?

तेरी आवाज,लिखाई अर तेरी शक़्ल तीनू(तीनों) आपस मैं टक्कर देवै।

देबी का अवतार लागै मन्नै तै तू। दूसरी छोरियां बरगी(जैसी) कोनी तू।

जै राम जी की

देबी तन्नै सब क्याहे की मौज दे


रणजीत